Saturday, 12 January 2019

कक्षा -12 N.C.E.R.T अपठित काव्यांश-बोध Page-2

कक्षा -12
N.C.E.R.T
अपठित काव्यांश-बोध
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11.
जब-जब बाँहें झुकीं मेघ की, धरती का तन-मन ललका है,
जब-जब मैं गुजरा पनघट से, पनिहारिन का घट छलका है।
सुन बाँसुरिया सदा-सदा से हर बेसुध राधा बहकी है,
मेघदूत को देख यक्ष की सुधियों में केसर महकी है।
क्या अपराध किसी का है फिर, क्या कमजोरी कहूँ किसी की,
जब-जब रंग जमा महफ़िल में जोश रुका कब पायल का है।
जब-जब मन में भाव उमड़ते, प्रणय श्लोक अवतीर्ण हुए हैं,
जब-जब प्यास जमी पत्थर में, निझर स्रोत विकीर्ण हुए हैं।
जब-जब गूंजी लोकगीत की धुन अथवा आल्हा की कड़ियाँ,
खेतों पर यौवन लहराया, रूप गुजरिया का दमका है।
प्रश्न
(मेघों के झुकने का धरती पर क्या प्रभाव पड़ता है और क्यों?
(
) राधा कौन थी ? उसेबेसुधक्यों कहा है?
(
) मन के भावों और प्रेम-गीतों का परस्पर क्या संबंध है ? इनमें से कौन किस पर आश्रित है?
(
) काव्यांश में झरनों के अनायास फूट पड़ने का क्या कारण बताया गया है?
(
) आशय स्पष्ट कीजिए-खेतों पर यौवन लहराया, रूप गुजरिया का दमका है।
उत्तर-
(मेघों के झुकने पर धरती का तन-मन ललक है, क्योंकि मेघों से बारिश होती है और इससे धरती पर खुशाँ फैलती हैं
(
) राधा कृष्ण की आराधिका थी। वह कृष्ण की बाँसुरी की मधुर तान पर मुग्ध थी। वह हर समय उसमें ही खोई रहती थी। इस कारण उसे बेसुध कहा गया है।
(
) प्रेम का स्थान मन में है। जब मन में प्रेम उमड़ता है तो कवि प्रेम-गीतों की रचना करता है। प्रेम-गीत मन के भावों पर आश्रित होते हैं।
(
) जब-जब पत्थरों के मन में प्रेम की प्यास जागती है, तब-तब उसमें से झरने फूट पड़ते हैं।
(
) इसका अर्थ यह है कि खेतों में हरी-भरी फसलें लहलहाने पर कृषक-बालिकाएँ प्रसन्न हो जाती हैं। उनके चेहरे खुशी से दमक उठते हैं।
12.
क्या रोकेंगे प्रलय मेघ ये, क्या विद्युत-घन के नर्तन,
मुझे साथी रोक सकेंगे, सागर के गर्जन-तर्जन।
मैं अविराम पथिक अलबेला रुके मेरे कभी चरण,
शूलों के बदले फूलों का किया मैंने मित्र चयन।
मैं विपदाओं में मुसकाता नव आशा के दीप लिए
फिर मुझको क्या रोक सकेंगे, जीवन के उत्थान-पतन।
आँधी हो, ओले-वर्षा हों, राह सुपरिचित है मेरी,
फिर मुझको क्या डरा सकेंगे, ये जग के खंडन-मंडन।
मैं अटका कब, कब विचलित मैं, सतत डगर मेरी संबल।
रोक सकी पगले कब मुझको यह युग की प्राचीर निबल।
मुझे डरा पाए कब अंधड़, ज्वालामुखियों के कंपन,
मुझे पथिक कब रोक सके हैं, अग्निशिखाओं के नर्तन।
मैं बढ़ता अविराम निरंतर तन-मन में उन्माद लिए,
फिर मुझको क्या डरा सकेंगे, ये बादल-विद्युत नर्तन।
प्रश्न
(उपर्युक्त पंक्तियों के आधार पर कवि के स्वभाव की किन्हीं दो प्रमुख विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
(
) कविता में आए मे, विद्युत, सागर की गर्जना औरज्वालामुखी किनके प्रतीक हैं ? कवि ने उनकासंयोजन यहाँ क्यों किया है ?
(
) ‘शूलों के बदले फूलों का किया मैंने कभी चयन’-पंक्ति का भाव स्पष्ट कीजिए।
(
) ‘युग की प्राचीरसे क्या तात्पर्य है? उसे कमजोर क्यों बताया गया है?
(
) किन पंक्तियों का आशय है-तन-मन में दृढ़ निश्चय का नशा हो तो जीवन-मार्ग में बढ़ते रहने से कोई नहीं रोक सकता।
उत्तर-
(कवि के स्वभाव की दो विशेषताएँ हैं-() गतिशीलता। () साहस संघर्षशीलता।
(
) मेघ, विद्युत, सागर की गर्जना ज्वालामुखी जीवन-पथ में आने वाली बाधाओं के परिचायक हैं। कवि इनका संयोजन इसलिए करता है ताकि अपनी संघर्षशीलता साहस को दर्शा सके।
(
) इस पंक्ति का भाव यह है कि कवि ने हमेशा चुनौतियों से पूर्ण कठिन मार्ग चुना है। वह सुख-सुविधापूर्ण जीवन त्यागकर संघर्ष करते हुए जीना चाहता है।
(
) इसका अर्थ है-समय की बाधाएँ। कवि कहता है कि संकल्पवान व्यक्ति बाधाओं संकटों को अपने साहस एवं संघर्ष से जीत लेते हैं। इसी कारण वे कमजोर कमज़ोर हैं।
(
) ये पंक्तियाँ हैं
मैं बढ़ता अविराम निरंतर तन-मन में उन्माद लिए, फिर मुझको क्या डरा सकेंगे, ये बादल-विद्युत नर्तन।
13.
यह मजूर, जो जेठ मास के इस निधूम अनल में
कर्ममग्न है अविचल अविकल दग्ध हुआ पल-पल में;
यह मजूर, जिसके अंगों पर लिपटी एक लँगोटी,
यह मजूर, जर्जर कुटिया में जिसकी वसुधा छोटी,
किस तप में तल्लीन यहाँ है भूख-प्यास को जीते,
किस कठोर साधना में इसके युग-के-युग हैं बीते!
कितने महा महाधिप आए, हुए विलीन क्षितिज में,
नहीं दृष्टि तक डाली इसने, निर्विकार यह निज में।
यह अविकप जाने कितने घूंट पिए है विष के,
आज इसे देखा जब मैंने बात नहीं की इससे।
अब ऐसा लगता है, इसके तप से विश्व विकल है,
नया इंद्रपद इसके हित ही निश्चित है निस्संशय।
प्रश्न
(जेठ के महीने में मजदूर को देखकर कवि क्या अनुभव कर रहा है?
(
) उसकी दीन-हीन दशा को कवि ने किस तरह प्रस्तुत किया है?
(
) उसका पूरा जीवन कैसे बीता है? उसने बड़े-से-बड़े लोगों को भी अपना कष्ट क्यों नहीं बताया?
(
) उसने जीवन कैसे जिया है ? उसकी दशा को देखकर कवि को किस बात का आभास होने लगा है?
(
) आशय स्पष्ट कीजिए :
नया इंद्रपद इसके हित ही निश्चित है निस्संशय।
उत्तर-
(जेठ के महीने में काम करते मजदूर को देखकर कवि अनुभव करता है कि वह अपने काम में मग्न है। गरम मौसम भी उसके कार्य को बाधित नहीं कर पा रहा है।
(
) कवि बताता है कि मजदूर की दशा दयनीय है। वह सिर्फ़ एक लैंगोटी पहने हुए है। उसकी कुटिया टूटी-फूटी है। वह पेट भरने लायक भी नहीं कमा पाता।
(
) मज़दूर का पूरा जीवन तंगहाली में बीता है। उसने बड़े-से-बड़े लोगों को भी अपना कष्ट नहीं बताया, क्योंकि वह , जागरूक नहीं था। वह अपने काम में तल्लीन रहता था।
(
) मज़दूर ने सारा जीवन विष के घूंट पीकर जिया है। वह सदा अभावों से ग्रस्त रहा है। उसकी दशा देखकर कवि को लगता है कि मजदूर की तपस्या से सारा संसार विकल है।
(
) इस काव्य पंक्ति का आशय यह है कि मजदूर के कठोर तप से यह लगता है कि उसे नया इंद्रपद मिलेगा। कवि को लगता है कि अब उसकी हालत में सुधार होगा।
14.
मुक्त करो नारी को, मानव !
चिर बंदिनी नारी को,
युग-युग की बर्बर कारा से
जननी, सखी, प्यारी को !
छिन्न करो सब स्वर्ण-पाश
उसके कोमल तन-मन के,
वे आभूषण नहीं, दाम
उसके बंदी जीवन के !
उसे मानवी का गौरव दे
पूर्ण सत्व दो नूतन,
उसका मुख जग का प्रकाश हो,
उठे अंध अवगुंठन।
मुक्त करो जीवनसंगिनी को,
जननी देवी को आदृत
जगजीवन में मानव के संग
हो मानवी प्रतिष्ठित !
प्रेमस्वर्ग हो धरा, मधुर
नारी महिमा से मंडित,
नारी-मुख की नव किरणों से
युगप्रभात हो ज्योतित !
प्रश्न
(कवि नारी को किस दशा से मुक्त कराना चाहता है? वह उसके भिन्न-भिन्न रूपों का उल्लेख क्यों कर रहा है?
(
) कवि नारी के आभूषणों को उसके अलंकरण के साधन मानकर उन्हें किन रूपों में देख रहा है?
(
) वह नारी को किन दी गरिमाओं से मंडित करा रहा है और क्या कामना कर रहा है?
(
) वह मुक्त नारी को किन-किन रूपों में प्रतिष्ठित करना चाहता है?
(
) आशय स्पष्ट कीजिए :
नारी-मुख की नव किरणों से
युग-प्रभात हो ज्योतित !
उत्तर-
(कवि नारी को पुरुष के बंधन से मुक्त कराना चाहता है। वह उसके जननी, सखी प्रिया रूप का उल्लेख करता है, क्योंकि पुरुष का संबंध उसके साथ माँ दोस्त पत्नी के रूप में होता है।
(
) कवि नारी के आभूषणों को उसके अलंकरण के साधन नहीं मानता। वह उन्हें नारी की स्वतंत्रता की कीमत मानता है।
(
) कवि नारी को मानवी तथा मातृत्व की गरिमाओं से मंडित कर रहा है। वह कामना करता है कि उसे पुरुष के समान दर्ज़ा मिले।
(
) कवि मुक्त नारी को मानवी, युग को प्रकाश देने वाली आदि रूपों में प्रतिष्ठित करना चाहता है।
(
) इन काव्य पंक्तियों का आशय यह है कि नारी के नए रूप से नए युग का प्रभात प्रकाशित हो। अर्थात नारी अपने कार्यों से समाज को दिशा दे।
15.
कवि, कुछ ऐसी तान सुनाओ, जिससे उथल-पुथल मच जाए,
एक हिलोर इधर से आए, एक हिलोर उधर से आए।
प्राणों के लाले पड़ जाएँ त्राहि-त्राहि स्वर नभ में छाए |
नाश और सत्यानाशों का धुआँधार जग में छा जाए।
बरसे आग, जलद जल जाए, भस्मसात् भूधर हो जाए,
पाप-पुण्य सदसद् भावों की धूल उड़े उठ दायें-बायें।
नभ का वक्षस्थल फट जाए, तारे टूक-टूक हो जाएँ।
कवि कुछ ऐसी तान सुनाओ, जिससे उथल-पुथल मच जाए।
प्रश्न
() कवि की कविता क्रांति लाने में कैसे सहायक हो सकती है?
(
) कवि के द्वारा किस प्रकार की उथल-पुथल चाही गई है?
(
) आपके विचार से नाश और सत्यानाश में क्या अंतर हो सकता है? कवि उनकी कामना क्यों करता है?
(
) किसी समाज में फैली जड़ता और रूढ़िवादिता क्रांति से ही दूर हो सकती है-पक्ष या विपक्ष में दो तर्क दीजिए।
(
) काव्यांश से दो मुहावरे चुनकर उनका वाक्यों में प्रयोग कीजिए।
उत्तर-
(कवि अपनी कविता के माध्यम से लोगों में जागरूकता पैदा करता है। वह अपने संदेशों से जनता को कुशासन समाप्त करने के लिए प्रेरित करता है।
(
) कवि के द्वारा ऐसी उथल-पुथल की चाह की गई है, जिससे समाज में बुरी ताकतें पूर्णतया नष्ट हो जाएँ।
(
) हमारे विचार सेनाशसे सिर्फ़ बुरी ताकतें समाप्त हो सकती हैं, परंतुसत्यानाशसे सब कुछ नष्ट हो जाता है। इसमें अच्छी ताकतें भी समाप्त हो जाती हैं। कवि ऐसा करके बुरी ताकतों के बचने की किसी भी संभावना को छोड़ना नहीं चाहता।
(
) यह बात बिलकुल सही है कि समाज में फैली जड़ता रूढ़िवादिता केवल क्रांति से ही दूर हो सकती है। क्रांति से वर्तमान में चल रही व्यवस्था नष्ट हो जाती है तथा नए विचारों को पनपने का अवसर मिलता है।
(
) लाले पड़ना-महँगाई के कारण गरीबों को रोटी के लाले पड़ने लगे हैं।
छा जाना-बिजेंद्र पदक जीतकर देश पर छा गया।
16.
यदि फूल नहीं बो सकते तो काँटे कम-से-कम मत बोओ!
है अगम चेतना की घाटी, कमजोर बड़ा मानव का मन
ममता की शीतल छाया में होता कटुता का स्वयं शमन।
ज्वालाएँ जब घुल जाती हैं, खुल-खुल जाते हैं मुँदे नयन
होकर निर्मलता में प्रशांत, बहता प्राणों का क्षुब्ध पवन।
संकट में यदि मुसका सको, भय से कातर हो मत रोओ
यदि फूल नहीं बो सकते तो काँटे कम-से-कम मत बोओ!
प्रश्न
(फूल बोनेऔरकाँटे बोनेका प्रतीकार्थ क्या है?
(
) मन किन स्थितियों में अशांत होता है और कैसी स्थितियाँ उसे शांत कर देती हैं?
(
) संकट पड़ने पर मनुष्य का व्यवहार कैसा होना चाहिए और क्यों?
(
) मन में कटुता कैसे आती है और वह कैसे दूर हो जाती है?
(
) काव्यांश से दो मुहावरे चुनकर वाक्य-प्रयोग कीजिए।
उत्तर-
(फूल बोनेका अर्थ है-‘अच्छे कार्य करनातथाकाँटे बोनेका अर्थ है-‘बुरे कार्य करना
(
) मन में विरोध की भावना के उदय होने के कारण अशांति का उदय होता है। ममता की शीतल छाया उसे शांत कर देती है।
(
) संकट पड़ने पर मनुष्य को भयभीत नहीं होना चाहिए। उसे अपना मन मजबूत करना चाहिए तथा मुस्कराना चाहिए।
(
) मन में कटुता तब आती है, जब मनुष्य को सफलता नहीं मिलती। वह भटकता रहता है। स्नेह से यह कटुता स्वयं दूर हो जाती है।
(
) काँटे बोनाहमें दूसरों के लिए काँटे नहीं बोने चाहिए।
घुल जानाविदेश में गए पुत्र की खोज-खबर मिलने पर विक्रम घुल गया है।
17.
पाकर तुझसे सभी सुखों को हमने भोगा,
तेरा प्रत्युपकार कभी क्या हमसे होगा?
तेरी ही यह देह तुझी से बनी हुई है,
बस तेरे ही सुरस-सार से सनी हुई है,
फिर अंत समय तूही इसे अचल देख अपनाएगी।
हे मातृभूमि! यह अंत में तुझमें ही मिल जाएगी।
प्रश्न
(यह काव्यांश किसे संबोधित है ? उससे हम क्या पाते हैं ?
(
) ‘प्रत्युपकारकिसे कहते हैं? देश का प्रत्युपकार क्यों नहीं हो सकता?
(
) शरीर-निर्माण में मातृभूमि का क्या योगदान है?
(
) ‘अचलविशेषण किसके लिए प्रयुक्त हुआ है और क्यों?
(
) देश से हमारा संबंध मृत्युपर्यत रहता है, स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
(यह काव्यांश मातृभूमि को संबोधित है। मातृभूमि से हम जीवन के लिए आवश्यक सभी वस्तुएँ पाते हैं।
(
) किसी से वस्तु प्राप्त करने के बदले में कुछ देनाप्रत्युपकारकहलाता है। मातृभूमि का प्रत्युपकार इसलिए नहीं हो सकता, क्योंकि मनुष्य जन्म से लेकर मृत्यु तक हमेशा कुछ--कुछ मातृभूमि से प्राप्त करता रहता है।
(
) मातृभूमि से ही मनुष्य का शरीर बना है। जल, हवा, आग, भूमि आकाश-मातृभूमि में ही मिलते हैं।
(
) ‘अचलविशेषण मानव के मृत शरीर के लिए प्रयुक्त हुआ है, क्योंकि मृत शरीर गतिहीन होता है।
(
) मनुष्य का शरीर मातृभूमि और इसके तत्वों-वायु, जल, अग्नि, भूमि और आकाश-से मिलकर बनता है और अंतत: मातृभूमि में ही मिल जाता है।
इस तरह हम कह सकते हैं कि मातृभूमि से हमारा संबंध मृत्युपर्यत रहता है।
18.
क्षमामयी तू दयामयी है, क्षेममयी है,
सुधामयी, वात्सल्यमयी, तू प्रेममयी है,
विभवशालिनी, विश्वपालिनी दुखहनी है,
भयनिवारिणी, शांतिकारिणी, सुखकर्नी,
हे शरणदायिनी देवि तू करती सबका त्राण है।
हे मातृभूमि, संतान हम, तू जननी, तू प्राण है
प्रश्न
(इस काव्यांश में किसे संबोधित किया गया है ? उसे क्षमामयी क्यों कहा गया है?
(
) वात्सल्य किसे कहते हैं? मातृभूमिवात्सल्यमयीकैसे है?
(
) मातृभूमि कोविभवशालिनीऔरविश्वपालिनीक्यों कहा गया है?
(
) शरणदायिनी कौन है? यह भूमिका वह कैसे निभाती है?
(
) कवि देश और देशवासियों में परस्पर क्या संबंध मानता है ?
उत्तर-
() इस काव्यांश में मातृभूमि को संबोधित किया गया है। मातृभूमि मानव की गलतियों को सदैव क्षमा करती है, इस कारण उसेक्षमामयीकहा
गया है।
(
) बच्चे के प्रति माँ के प्रेम कोवात्सल्यकहते हैं। मातृभूमि मनुष्य की देखभाल माँ की तरह करती है, इसी कारण उसेवात्सल्यमयीकहा गया है।
(
) मातृभूमि से हमें अनेक संसाधन मिलते हैं। इन संसाधनों से मनुष्य का विकास होता है। पृथ्वी से ही अन्न, फल आदि मिलते हैं। इस कारण मातृभूमि कोविभवशालिनीविश्वपालिनीकहा जाता है।
(
) शरणदायिनी मातृभूमि है। सभी प्राणी इसी पर आवास बनाते हैं।
(
) कवि कहता है कि देशवासी के कार्य देश को महान बनाते हैं तथा देश ही उनकी रक्षा करता है और नागरिकों को अपना नाम देता है।

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