कक्षा -12
N.C.E.R.T
अपठित काव्यांश-बोध
Page-3
19.
चिड़िया को लाख समझाओ
कि पिंजड़े के बाहर
धरती बड़ी है, निर्मम है,
वहाँ हवा में उसे
अपने जिस्म की गंध तक नहीं मिलेगी।
यूँ तो बाहर समुद्र है, नदी है, झरना है,
पर पानी के लिए भटकना है,
यहाँ कटोरी में भरा जल गटकना है।
बाहर दाने का टोटा है
कि पिंजड़े के बाहर
धरती बड़ी है, निर्मम है,
वहाँ हवा में उसे
अपने जिस्म की गंध तक नहीं मिलेगी।
यूँ तो बाहर समुद्र है, नदी है, झरना है,
पर पानी के लिए भटकना है,
यहाँ कटोरी में भरा जल गटकना है।
बाहर दाने का टोटा है
यहाँ चुग्गा मोटा है।
बाहर बहेलिये का डर है
यहाँ निद्र्वद्व कंठ-स्वर है।
फिर भी चिड़िया मुक्ति का गाना गाएगी,
मारे जाने की आशंका से भरे होने पर भी
पिंजड़े से जितना अंग निकल सकेगा निकालेगी,
हर सू जोर लगाएगी
और पिंजड़ा टूट जाने या खुल जाने पर उड़ जाएगी।
बाहर बहेलिये का डर है
यहाँ निद्र्वद्व कंठ-स्वर है।
फिर भी चिड़िया मुक्ति का गाना गाएगी,
मारे जाने की आशंका से भरे होने पर भी
पिंजड़े से जितना अंग निकल सकेगा निकालेगी,
हर सू जोर लगाएगी
और पिंजड़ा टूट जाने या खुल जाने पर उड़ जाएगी।
प्रश्न
(क) पिंजड़े के बाहर का संसार निर्मम कैसे है?
(ख) पिंजड़े के भीतर चिड़िया को क्या-क्या सुविधाएँ उपलब्ध हैं?
(ग) कवि चिड़िया को स्वतंत्र जगत की किन वास्तविकताओं से अवगत कराना चाहता है?
(घ) बाहर सुखों का अभाव और प्राणों का संकट होने पर भी चिड़िया मुक्ति ही क्यों चाहती है?
(ङ) कविता का संदेश स्पष्ट कीजिए।
(ख) पिंजड़े के भीतर चिड़िया को क्या-क्या सुविधाएँ उपलब्ध हैं?
(ग) कवि चिड़िया को स्वतंत्र जगत की किन वास्तविकताओं से अवगत कराना चाहता है?
(घ) बाहर सुखों का अभाव और प्राणों का संकट होने पर भी चिड़िया मुक्ति ही क्यों चाहती है?
(ङ) कविता का संदेश स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
(क) पिंजड़े के बाहर का संसार हमेशा कमजोर को सताने की कोशिश में रहता है। यहाँ कमजोर को सदैव संघर्ष करना पड़ता है। इस कारण वह निर्मम है।
(ख) पिंजड़े के भीतर चिड़िया को पानी, अनाज, आवास तथा सुरक्षा उपलब्ध है।
(ग) कवि बताना चाहता है कि बाहर जीने के लिए संघर्ष करना पड़ता है। भोजन, आवास व सुरक्षा के लिए हर समय मेहनत करनी होती है।
(घ) बाहर सुखों का अभाव व प्राणों संकटहोने पर भी चिड़िया मुक्ति चाहती है, क्योंकि वह आज़ाद जीवन जीना पसंद करती है।
(ङ) इस कविता में कवि ने स्वतंत्रता के महत्त्व को समझाया है। मनष्य के व्यक्तित्व का विकास स्वतंत्र परिवेश में ही हो सकता है।
(ख) पिंजड़े के भीतर चिड़िया को पानी, अनाज, आवास तथा सुरक्षा उपलब्ध है।
(ग) कवि बताना चाहता है कि बाहर जीने के लिए संघर्ष करना पड़ता है। भोजन, आवास व सुरक्षा के लिए हर समय मेहनत करनी होती है।
(घ) बाहर सुखों का अभाव व प्राणों संकटहोने पर भी चिड़िया मुक्ति चाहती है, क्योंकि वह आज़ाद जीवन जीना पसंद करती है।
(ङ) इस कविता में कवि ने स्वतंत्रता के महत्त्व को समझाया है। मनष्य के व्यक्तित्व का विकास स्वतंत्र परिवेश में ही हो सकता है।
20.
मेघ आए बड़े बन-ठन के सँवर के।
आगे-आगे नाचती-गाती बयार चली,
दरवाजे-खिड़कियाँ खुलने लगीं गली-गली।
पाहुन ज्यों आए हों गाँव में शहर के।
मेघ आए बड़े बन-ठन के सँवर के।
आगे-आगे नाचती-गाती बयार चली,
दरवाजे-खिड़कियाँ खुलने लगीं गली-गली।
पाहुन ज्यों आए हों गाँव में शहर के।
मेघ आए बड़े बन-ठन के सँवर के।
पेड़ झुक झाँकने लगे गरदन उचकाए,
आँधी चली, धूल भागी घाघरा उठाए,
बूढ़े पीपल ने आगे बढ़कर जुहार की।
बरस बाद सुधि लीन्हीं-
बोली अकुलाई लता ओट हो किवार की।
आँधी चली, धूल भागी घाघरा उठाए,
बूढ़े पीपल ने आगे बढ़कर जुहार की।
बरस बाद सुधि लीन्हीं-
बोली अकुलाई लता ओट हो किवार की।
प्रश्न
(क) उपर्युक्त काव्यांश में ‘पाहुन’ किसे कहा गया है और क्यों?
(ख) मेघ किस रूप में और कहाँ आए?
(ग) मेघ के आने पर गाँव में क्या-क्या परिवर्तन दिखाई देने लगे ?
(घ) पीपल को किसके रूप में चित्रित किया गया है? उसने क्या किया?
(ङ)‘लता’ कौन है? उसने क्या शिकायत की?
(ख) मेघ किस रूप में और कहाँ आए?
(ग) मेघ के आने पर गाँव में क्या-क्या परिवर्तन दिखाई देने लगे ?
(घ) पीपल को किसके रूप में चित्रित किया गया है? उसने क्या किया?
(ङ)‘लता’ कौन है? उसने क्या शिकायत की?
उत्तर-
(क) मेघ को ‘पाहुन’ कहा गया है, क्योंकि वे बहुत दिन बाद लौटे हैं और ससुराल में पाहुन की भाँति उनका स्वागत हो रहा है।
(ख) मेघ मेहमान की तरह सज-सँवरकर गाँव में आए।
(ग) मेघ के आने पर गाँव के घरों के दरवाजे व खिड़कियाँ खुलने लगीं। पेड़ झुकने लगे, आँधी चली और धूल ग्रामीण बाला की भाँति भागने लगी।
(घ) पीपल को गाँव के बूढ़े व्यक्ति के रूप में चित्रित किया गया है। उसने नवागंतुक का स्वागत किया।
(ङ) ‘लता’ नवविवाहिता है, जो एक वर्ष से पति की प्रतीक्षा कर रही है। उसे शिकायत है कि वह (बादल) पूरे एक साल बाद लौटकर आया है।
(ख) मेघ मेहमान की तरह सज-सँवरकर गाँव में आए।
(ग) मेघ के आने पर गाँव के घरों के दरवाजे व खिड़कियाँ खुलने लगीं। पेड़ झुकने लगे, आँधी चली और धूल ग्रामीण बाला की भाँति भागने लगी।
(घ) पीपल को गाँव के बूढ़े व्यक्ति के रूप में चित्रित किया गया है। उसने नवागंतुक का स्वागत किया।
(ङ) ‘लता’ नवविवाहिता है, जो एक वर्ष से पति की प्रतीक्षा कर रही है। उसे शिकायत है कि वह (बादल) पूरे एक साल बाद लौटकर आया है।
21.
ले चल माँझी मझधार मुझे, दे-दे बस अब पतवार मुझे।
इन लहरों के टकराने पर आता रह-रहकर प्यार मुझे ॥
मत रोक मुझे भयभीत न कर, मैं सदा कैंटीली राह चला।
पथ-पथ मेरे पतझारों में नव सुरभि भरा मधुमास पला।
इन लहरों के टकराने पर आता रह-रहकर प्यार मुझे ॥
मत रोक मुझे भयभीत न कर, मैं सदा कैंटीली राह चला।
पथ-पथ मेरे पतझारों में नव सुरभि भरा मधुमास पला।
मैं हूँ अबाध, अविराम, अथक, बंधन मुझको स्वीकार नहीं।
मैं नहीं अरे ऐसा राही, जो बेबस-सा मन मार चलें।
कब रोक सकी मुझको चितवन, मदमाते कजरारे घन की,
कब लुभा सकी मुझको बरबस, मधु-मस्त फुहारें सावन की।
मैं नहीं अरे ऐसा राही, जो बेबस-सा मन मार चलें।
कब रोक सकी मुझको चितवन, मदमाते कजरारे घन की,
कब लुभा सकी मुझको बरबस, मधु-मस्त फुहारें सावन की।
फिर कहाँ डरा पाएगा यह, पगले जर्जर संसार मुझे।
इन लहरों के टकराने पर, आता रह-रहकर प्यार मुझे।
मैं हूँ अपने मन का राजा, इस पार रहूँ, उस पार चलूँ
मैं मस्त खिलाड़ी हूँ ऐसा, जी चाहे जीतें हार चलूँ।
इन लहरों के टकराने पर, आता रह-रहकर प्यार मुझे।
मैं हूँ अपने मन का राजा, इस पार रहूँ, उस पार चलूँ
मैं मस्त खिलाड़ी हूँ ऐसा, जी चाहे जीतें हार चलूँ।
जो मचल उठे अनजाने ही अरमान नहीं मेरे ऐसे-
राहों को समझा लेता हूँ, सब बात सदा अपने मन की
इन उठती-गिरती लहरों का कर लेने दो श्रृंगार मुझे,
इन लहरों के टकराने पर आता रह-रहकर प्यार मुझे।
राहों को समझा लेता हूँ, सब बात सदा अपने मन की
इन उठती-गिरती लहरों का कर लेने दो श्रृंगार मुझे,
इन लहरों के टकराने पर आता रह-रहकर प्यार मुझे।
प्रश्न
(क) ‘अपने मन का राजा’ होने के दो लक्षण कविता से चुनकर लिखिए।
(ख) किस पंक्ति में कवि पतझड़ को भी बसंत मान लेता है?
(ग) कविता का केंद्रीय भाव दो-तीन वाक्यों में लिखिए।
(घ) कविता के आधार पर कवि-स्वभाव की दो विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
(ङ)आशय स्पष्ट कीजिए-“कब रोक सकी मुझको चितवन, मदमाते कजरारे घन की।”
(ख) किस पंक्ति में कवि पतझड़ को भी बसंत मान लेता है?
(ग) कविता का केंद्रीय भाव दो-तीन वाक्यों में लिखिए।
(घ) कविता के आधार पर कवि-स्वभाव की दो विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
(ङ)आशय स्पष्ट कीजिए-“कब रोक सकी मुझको चितवन, मदमाते कजरारे घन की।”
उत्तर-
(क) ‘अपने मन का राजा’ होने के दो लक्षण निम्नलिखित हैं
(1) कवि कहीं भी रहे उसे हार-जीत की परवाह नहीं रहती।
(2) कवि को किसी प्रकार का बंधन स्वीकार नहीं है।
(ख) यह पंक्ति है–
पथ-पथ मेरे पतझारों में नव सुरभि भरा मधुमास पला।
(ग) इस कविता में कवि जीवन-पथ पर चलते हुए भयभीत न होने की सीख देता है। वह विपरीत परिस्थितियों में मार्ग बनाने, आत्मनिर्भर बनने तथा किसी भी रुकावट से न रुकने के लिए कहता है।
(घ) कवि का स्वभाव निभाँक, स्वाभिमानी तथा विपरीत दशाओं को अनुकूल बनाने वाला है।
(ङ) इसका अर्थ यह है कि किसी सुंदरी का आकर्षण भी पथिक के निश्चय को नहीं डिगा सका।
(1) कवि कहीं भी रहे उसे हार-जीत की परवाह नहीं रहती।
(2) कवि को किसी प्रकार का बंधन स्वीकार नहीं है।
(ख) यह पंक्ति है–
पथ-पथ मेरे पतझारों में नव सुरभि भरा मधुमास पला।
(ग) इस कविता में कवि जीवन-पथ पर चलते हुए भयभीत न होने की सीख देता है। वह विपरीत परिस्थितियों में मार्ग बनाने, आत्मनिर्भर बनने तथा किसी भी रुकावट से न रुकने के लिए कहता है।
(घ) कवि का स्वभाव निभाँक, स्वाभिमानी तथा विपरीत दशाओं को अनुकूल बनाने वाला है।
(ङ) इसका अर्थ यह है कि किसी सुंदरी का आकर्षण भी पथिक के निश्चय को नहीं डिगा सका।
22.
पथ बंद है पीछे अचल है पीठ पर धक्का प्रबल।
मत सोच बढ़ चल तू अभय, प्ले बाहु में उत्साह-बल।
जीवन-समर के सैनिको, संभव असंभव को करो
पथ-पथ निमंत्रण दे रहा आगे कदम, आगे कदम।
मत सोच बढ़ चल तू अभय, प्ले बाहु में उत्साह-बल।
जीवन-समर के सैनिको, संभव असंभव को करो
पथ-पथ निमंत्रण दे रहा आगे कदम, आगे कदम।
ओ बैठने वाले तुझे देगा न कोई बैठने।
पल-पल समर, नूतन सुमन-शय्यान देगा लेटने ।
आराम संभव है नहीं, जीवन सतत संग्राम है
बढ़ चल मुसाफ़िर धर कदम, आगे कदम, आगे कदम।
पल-पल समर, नूतन सुमन-शय्यान देगा लेटने ।
आराम संभव है नहीं, जीवन सतत संग्राम है
बढ़ चल मुसाफ़िर धर कदम, आगे कदम, आगे कदम।
ऊँचे हिमानी श्रृंग पर, अंगार के भ्रू-भृग पर
तीखे करारे खंग पर आरंभ कर अद्भुत सफ़र
ओ नौजवाँ निर्माण के पथ मोड़ दे, पथ खोल दे
जय-हार में बढ़ता रहे आगे कदम, आगे कदम।
तीखे करारे खंग पर आरंभ कर अद्भुत सफ़र
ओ नौजवाँ निर्माण के पथ मोड़ दे, पथ खोल दे
जय-हार में बढ़ता रहे आगे कदम, आगे कदम।
प्रश्न
(क) इस काव्यांश में कवि किसे क्या प्रेरणा दे रहा है?
(ख) किस पंक्ति का आशय है-‘जीवन के युद्ध में सुख-सुविधाएँ चाहना ठीक नहीं’?
(ग) अद्भुत सफ़र की अद्भुतता क्या है?
(घ) आशय स्पष्ट कीजिए-‘ जीवन सतत संग्राम है।’
(ङ) कविता का केंद्रीय भाव दो-तीन वाक्यों में लिखिए।
(ख) किस पंक्ति का आशय है-‘जीवन के युद्ध में सुख-सुविधाएँ चाहना ठीक नहीं’?
(ग) अद्भुत सफ़र की अद्भुतता क्या है?
(घ) आशय स्पष्ट कीजिए-‘ जीवन सतत संग्राम है।’
(ङ) कविता का केंद्रीय भाव दो-तीन वाक्यों में लिखिए।
उत्तर-
(क) इस काव्यांश में कवि मनुष्य को निरंतर आगे बढ़ने की प्रेरणा दे रहा है।
(ख) उक्त आशय प्रकट करने वाली पंक्ति है-
पल-पल समर, नूतन सुमन-शय्या न देगा लेटने।
(ग) कवि के अद्भुत सफ़र की अद्भुतता यह है कि यह सफ़र हिम से ढँकी ऊँची चोटियों पर, ज्वालामुखी के लावे पर तथा तीक्ष्ण तलवार की धार पर भी जारी रहता है।
(घ) इसका आशय यह है कि जीवन युद्ध की तरह है, जो निरंतर चलता रहता है। मनुष्य सफलता पाने के लिए बाधाओं से निरंतर संघर्ष करता रहता है।
(ङ) इस कविता में कवि ने जीवन को संघर्ष से युक्त बताया है। मनुष्य को बाधाओं से संघर्ष करते हुए जीवन पथ पर निरंतर आगे बढ़ते रहना चाहिए।
(ख) उक्त आशय प्रकट करने वाली पंक्ति है-
पल-पल समर, नूतन सुमन-शय्या न देगा लेटने।
(ग) कवि के अद्भुत सफ़र की अद्भुतता यह है कि यह सफ़र हिम से ढँकी ऊँची चोटियों पर, ज्वालामुखी के लावे पर तथा तीक्ष्ण तलवार की धार पर भी जारी रहता है।
(घ) इसका आशय यह है कि जीवन युद्ध की तरह है, जो निरंतर चलता रहता है। मनुष्य सफलता पाने के लिए बाधाओं से निरंतर संघर्ष करता रहता है।
(ङ) इस कविता में कवि ने जीवन को संघर्ष से युक्त बताया है। मनुष्य को बाधाओं से संघर्ष करते हुए जीवन पथ पर निरंतर आगे बढ़ते रहना चाहिए।
23.
रोटी उसकी, जिसका अनाज, जिसकी जमीन, जिसका श्रम है;
अब कौन उलट सकता स्वतंत्रता का सुसिद्ध, सीधा क्रम है।
आज़ादी है अधिकार परिश्रम का पुनीत फल पाने का,
आज़ादी है अधिकार शोषणों की धज्जियाँ उड़ाने का।
गौरव की भाषा नई सीख, भिखमंगों-सी आवाज बदल,
सिमटी बाँहों को खोल गरुड़, उड़ने का अब अंदाज बदल।
स्वाधीन मनुज की इच्छा के आगे पहाड़ हिल सकते हैं;
रोटी क्या ? ये अंबर वाले सारे सिंगार मिल सकते हैं।
अब कौन उलट सकता स्वतंत्रता का सुसिद्ध, सीधा क्रम है।
आज़ादी है अधिकार परिश्रम का पुनीत फल पाने का,
आज़ादी है अधिकार शोषणों की धज्जियाँ उड़ाने का।
गौरव की भाषा नई सीख, भिखमंगों-सी आवाज बदल,
सिमटी बाँहों को खोल गरुड़, उड़ने का अब अंदाज बदल।
स्वाधीन मनुज की इच्छा के आगे पहाड़ हिल सकते हैं;
रोटी क्या ? ये अंबर वाले सारे सिंगार मिल सकते हैं।
प्रश्न
(क) आजादी क्यों आवश्यक है?
(ख) सच्चे अर्थों में रोटी पर किसका अधिकार है ?
(ग) कवि ने किन पंक्तियों में गिड़गिड़ाना छोड़कर स्वाभिमानी बनने को कहा है?
(घ) कवि व्यक्ति को क्या परामर्श देता है?
(ङ) आज़ाद व्यक्ति क्या कर सकता है?
(ख) सच्चे अर्थों में रोटी पर किसका अधिकार है ?
(ग) कवि ने किन पंक्तियों में गिड़गिड़ाना छोड़कर स्वाभिमानी बनने को कहा है?
(घ) कवि व्यक्ति को क्या परामर्श देता है?
(ङ) आज़ाद व्यक्ति क्या कर सकता है?
उत्तर-
(क) परिश्रम का फल पाने तथा शोषण का विरोध करने के लिए आजादी आवश्यक है।
(ख) सच्चे अर्थों में रोटी पर उसका अधिकार है, जो अपनी जमीन पर श्रम करके अनाज पैदा करता है।
(ग) कवि ने ” गौरव की भाषा नई सीख, भिखमंगों-सी आवाज बदल।” पंक्ति में गिड़गिड़ाना छोड़कर स्वाभिमानी बनने को कहा है।
(घ) कवि व्यक्ति को स्वतंत्रता के साथ जीवन जीने और उसके बल पर सफलता पाने का परामर्श देता है।
(ङ) आज़ाद व्यक्ति शोषण का विरोध कर सकता है, पहाड़ हिला सकता है तथा आकाश से तारे तोड़कर ला सकता है।
(ख) सच्चे अर्थों में रोटी पर उसका अधिकार है, जो अपनी जमीन पर श्रम करके अनाज पैदा करता है।
(ग) कवि ने ” गौरव की भाषा नई सीख, भिखमंगों-सी आवाज बदल।” पंक्ति में गिड़गिड़ाना छोड़कर स्वाभिमानी बनने को कहा है।
(घ) कवि व्यक्ति को स्वतंत्रता के साथ जीवन जीने और उसके बल पर सफलता पाने का परामर्श देता है।
(ङ) आज़ाद व्यक्ति शोषण का विरोध कर सकता है, पहाड़ हिला सकता है तथा आकाश से तारे तोड़कर ला सकता है।
24.
खुलकर चलते डर लगता है
बातें करते डर लगता है
बातें करते डर लगता है
क्योंकि शहर बेहद छोटा है।
ऊँचे हैं, लेकिन खजूर से
मुँह है इसीलिए कहते हैं,
जहाँ बुराई फूले-पनपे-
वहाँ तटस्थ बने रहते हैं,
नियम और सिद्धांत बहुत
दंगों से परिभाषित होते हैं-
जो कहने की बात नहीं है,
वही यहाँ दुहराई जाती,
जिनके उजले हाथ नहीं हैं,
उनकी महिमा गाई जाती
यहाँ ज्ञान पर, प्रतिभा पर
अवसर का अंकुश बहुत कड़ा है
सब अपने धंधे में रत हैं
यहाँ न्याय की बात गलत है
मुँह है इसीलिए कहते हैं,
जहाँ बुराई फूले-पनपे-
वहाँ तटस्थ बने रहते हैं,
नियम और सिद्धांत बहुत
दंगों से परिभाषित होते हैं-
जो कहने की बात नहीं है,
वही यहाँ दुहराई जाती,
जिनके उजले हाथ नहीं हैं,
उनकी महिमा गाई जाती
यहाँ ज्ञान पर, प्रतिभा पर
अवसर का अंकुश बहुत कड़ा है
सब अपने धंधे में रत हैं
यहाँ न्याय की बात गलत है
क्योंकि शहर बेहद छोटा है।
बुद्धि यहाँ पानी भरती है,
सीधापन भूखों मरता है–
उसकी बड़ी प्रतिष्ठा है,
जो सारे काम गलत करता है।
यहाँ मान के नाप-तौल की
इकाई कंचन है, धन है
कोई सच के नहीं साथ है
यहाँ भलाई बुरी बात है
सीधापन भूखों मरता है–
उसकी बड़ी प्रतिष्ठा है,
जो सारे काम गलत करता है।
यहाँ मान के नाप-तौल की
इकाई कंचन है, धन है
कोई सच के नहीं साथ है
यहाँ भलाई बुरी बात है
क्योंकि शहर बेहद छोटा है।
प्रश्न
(क) कवि शहर को छोटा कहकर किस ‘ छोटेपन ‘ को अभिव्यक्त करता चाहता है ?
(ख) इस शहर के लोगों की विशेषताएँ क्या हैं ?
(ग) आशय समझाइए :
बुद्धि यहाँ पानी भरती है,
सीधापन भूखों मरता है-
(घ) इस शहर में असामाजिक तत्व और धनिक क्या-क्या प्राप्त करते हैं?
(ङ) ‘जिनके उजले हाथ नहीं हैं”-कथन में ‘हाथ उजले न होना’ से कवि का क्या आशय है? [CBSE (Delhi), 2013]
(ख) इस शहर के लोगों की विशेषताएँ क्या हैं ?
(ग) आशय समझाइए :
बुद्धि यहाँ पानी भरती है,
सीधापन भूखों मरता है-
(घ) इस शहर में असामाजिक तत्व और धनिक क्या-क्या प्राप्त करते हैं?
(ङ) ‘जिनके उजले हाथ नहीं हैं”-कथन में ‘हाथ उजले न होना’ से कवि का क्या आशय है? [CBSE (Delhi), 2013]
उत्तर-
(क) कवि शहर को छोटा कहकर लोगों की संकीर्ण मानसिकता, उनके स्वार्थपूर्ण बात-व्यवहार, बुराई का प्रतिरोध न करने की भावना, अन्याय के प्रति तटस्थता जैसी बुराइयों में लिप्त रहने के कारण उनके छोटेपन को अभिव्यक्त करना चाहता है।
(ख) इस शहर के लोग बुराई का विरोध न करके तटस्थ बने रहते हैं। अर्थात वे बुराई के फैलने का उचित वातावरण प्रदान करते हैं।
(ग) इन पंक्तियों का आशय यह है कि बुद्धमान लोग धनिकों के गुलाम बनकर रह गए हैं। वे वही काम करते हैं जो सत्ता के शीर्ष पर बैठे व्यक्ति करवाना चाहते हैं। यहाँ सीधेपन का कोई महत्त्व नहीं है। यहाँ वही व्यक्ति सम्मानित होता है जो हिंसा, आतंक से भय का वातावरण बनाए रखता है।
(घ) इस शहर में असामाजिक तत्त्व और धनिक प्रतिष्ठा तथा मान-सम्मान प्राप्त करते हैं।
(ङ) ‘ जिनके उजले हाथ नहीं हैं ‘ कथन में ‘हाथ उजले न होने’ का आशय है
अनैतिक, अमर्यादित, अन्यायपूर्वक कार्य करना तथा गलत तरीके एवं बेईमानी से धन, मान-सम्मान, पद-प्रतिष्ठा प्राप्त करके दूसरों का शोषण करने जैसे कार्यों में लिप्त रहना।
(ख) इस शहर के लोग बुराई का विरोध न करके तटस्थ बने रहते हैं। अर्थात वे बुराई के फैलने का उचित वातावरण प्रदान करते हैं।
(ग) इन पंक्तियों का आशय यह है कि बुद्धमान लोग धनिकों के गुलाम बनकर रह गए हैं। वे वही काम करते हैं जो सत्ता के शीर्ष पर बैठे व्यक्ति करवाना चाहते हैं। यहाँ सीधेपन का कोई महत्त्व नहीं है। यहाँ वही व्यक्ति सम्मानित होता है जो हिंसा, आतंक से भय का वातावरण बनाए रखता है।
(घ) इस शहर में असामाजिक तत्त्व और धनिक प्रतिष्ठा तथा मान-सम्मान प्राप्त करते हैं।
(ङ) ‘ जिनके उजले हाथ नहीं हैं ‘ कथन में ‘हाथ उजले न होने’ का आशय है
अनैतिक, अमर्यादित, अन्यायपूर्वक कार्य करना तथा गलत तरीके एवं बेईमानी से धन, मान-सम्मान, पद-प्रतिष्ठा प्राप्त करके दूसरों का शोषण करने जैसे कार्यों में लिप्त रहना।
25.
अचल खड़े रहते जो ऊँचा शीश उठाए तूफानों में,
सहनशीलता, दृढ़ता हँसती जिनके यौवन के प्राणों में।
वही पंथ बाधा को तोड़े बहते हैं जैसे हों निझर,
प्रगति नाम को सार्थक करता यौवन दुर्गमता पर चलकर।
आज देश की भावी आशा बनी तुम्हारी ही तरुणाई,
नए जन्म की श्वास तुम्हारे अंदर जगकर है लहराई।
आज विगत युग के पतझर पर तुमको नव मधुमास खिलाना,
नवयुग के पृष्ठों पर तुमको है नूतन इतिहास लिखाना।
उठो राष्ट्र के नवयौवन तुम दिशा-दिशा का सुन आमंत्रण,
जगो, देश के प्राण जगा दो नए प्राप्त का नया जागरण।
आज विश्व को यह दिखला दो हममें भी जागी। तरुणाई,
नई किरण की नई चेतना में हमने भी ली ऑगड़ाई।
सहनशीलता, दृढ़ता हँसती जिनके यौवन के प्राणों में।
वही पंथ बाधा को तोड़े बहते हैं जैसे हों निझर,
प्रगति नाम को सार्थक करता यौवन दुर्गमता पर चलकर।
आज देश की भावी आशा बनी तुम्हारी ही तरुणाई,
नए जन्म की श्वास तुम्हारे अंदर जगकर है लहराई।
आज विगत युग के पतझर पर तुमको नव मधुमास खिलाना,
नवयुग के पृष्ठों पर तुमको है नूतन इतिहास लिखाना।
उठो राष्ट्र के नवयौवन तुम दिशा-दिशा का सुन आमंत्रण,
जगो, देश के प्राण जगा दो नए प्राप्त का नया जागरण।
आज विश्व को यह दिखला दो हममें भी जागी। तरुणाई,
नई किरण की नई चेतना में हमने भी ली ऑगड़ाई।
प्रश्न
(क) मार्ग की रुकावटों को कौन तोड़ता है और कैसे?
(ख) नवयुवक प्रगति के नाम को कैसे सार्थक करते हैं?
(ग) ‘विगत युग के पतझर’ से क्या आशय है?
(घ) कवि देश के नवयुवकों का आहवान क्यों कर रहा है?
(ङ) कविता का मूल संदेश अपने शब्दों में लिखिए। [CBSE (Delhi), 2014]
(ख) नवयुवक प्रगति के नाम को कैसे सार्थक करते हैं?
(ग) ‘विगत युग के पतझर’ से क्या आशय है?
(घ) कवि देश के नवयुवकों का आहवान क्यों कर रहा है?
(ङ) कविता का मूल संदेश अपने शब्दों में लिखिए। [CBSE (Delhi), 2014]
उत्तर-
(क) मार्ग की रुकावटों को वे तोड़ते हैं जो संकटों से घबराए बिना उनका सामना करते हैं। ऐसे लोग अपनी मूल रिदृढ़ता से जवना में आने वाले संक्टरूपा तुमानों का निहारता से मुकबल कते हैं और विजयी होते हैं।
(ख) जिस प्रकार झरना अपने वेग से अपने रास्ते में आने वाली चट्टानों और पत्थरों को तोड़कर आगे निकल जाता है, उसी प्रकार नवयुवक भी बाधाओं को जीतकर आगे बढ़ते हैं और प्रगति के नाम को स्रार्थक करते हैं।
(ग) ‘विगत युग के पतझर’ का आशय है-बीता हुआ वह समय जब देश के लोग विशेष सफलता और उपलब्धियाँ अर्जित नहीं कर पाए।
(घ) कवि देश के नवयुवकों का आहवान इसलिए कर रहा है क्योंकि नवयुवक उत्साह, साहस, उमंग से भरे हैं। उनके स्वभाव में निडरता है। वे बाधाओं से हार नहीं मानते। उनका यौवन देश की आशा बना हुआ है। वे देश को प्रगति के पथ पर ले जाने में समर्थ हैं।
(ङ) कवि नवयुवकों का आहवान कर रहा है कि वे देश को प्रगति के पथ पर अग्रसर करने के लिए आगे आएँ। उनका यौवन दुर्गम पथ पर विपरीत परिस्थितियों में उन्हें विजयी बनाने में सक्षम है। देशवासी उन्हें आशाभरी निगाहों से देख रहे हैं। अब समय आ गया है कि वे अपने यौवन की ताकत दुनिया को दिखा दें।
(ख) जिस प्रकार झरना अपने वेग से अपने रास्ते में आने वाली चट्टानों और पत्थरों को तोड़कर आगे निकल जाता है, उसी प्रकार नवयुवक भी बाधाओं को जीतकर आगे बढ़ते हैं और प्रगति के नाम को स्रार्थक करते हैं।
(ग) ‘विगत युग के पतझर’ का आशय है-बीता हुआ वह समय जब देश के लोग विशेष सफलता और उपलब्धियाँ अर्जित नहीं कर पाए।
(घ) कवि देश के नवयुवकों का आहवान इसलिए कर रहा है क्योंकि नवयुवक उत्साह, साहस, उमंग से भरे हैं। उनके स्वभाव में निडरता है। वे बाधाओं से हार नहीं मानते। उनका यौवन देश की आशा बना हुआ है। वे देश को प्रगति के पथ पर ले जाने में समर्थ हैं।
(ङ) कवि नवयुवकों का आहवान कर रहा है कि वे देश को प्रगति के पथ पर अग्रसर करने के लिए आगे आएँ। उनका यौवन दुर्गम पथ पर विपरीत परिस्थितियों में उन्हें विजयी बनाने में सक्षम है। देशवासी उन्हें आशाभरी निगाहों से देख रहे हैं। अब समय आ गया है कि वे अपने यौवन की ताकत दुनिया को दिखा दें।
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