Tuesday, 12 February 2019

कार्यालयी हिंदी और रचनात्मक लेखन – अनुच्छेद कक्षा -12 N.C.E.R.T Page-2

कार्यालयी हिंदी और रचनात्मक लेखन – अनुच्छेद
5. आधुनिक युग में कंप्यूटर
वस्तुत: कंप्यूटर ऐसे यांत्रिक मस्तिष्कों का रूपात्मक और समन्वयात्मक योग है जो तेज गति से कम-से-कम समय में अधिक-से-अधिक काम कर सकता है। गणना करने में इसका कोई सानी नहीं है। अत: कंप्यूटर आधुनिक विज्ञान की सबसे बड़ी देन है। विज्ञान का प्रसार जिन-जिन क्षेत्रों में होता जा रहा है, उन-उन क्षेत्रों में कंप्यूटर की उपयोगिता, उसकी लोकप्रियता आवश्यकता निरंतर बढ़ती जा रही है। कंप्यूटर जीवन के हर क्षेत्र में पहुँच गया है। उसके प्रभाव का इतना असर है कि कोई भी व्यक्ति, चाहे वह उच्च वर्ग का हो या साधारण वर्ग का, कंप्यूटर सीखने की इच्छा रखता है। इसकी बढ़ती उपयोगिता को देखते हुए सरकारें भी स्कूल कॉलेज स्तर पर कंप्यूटर शिक्षा को अनिवार्य बना रही हैं। ,
आज रेलवे स्टेशनों, बस अड्डों, हवाई अड्डों, कारखानों से लेकर शिक्षण संस्थाओं अस्पतालों तक में कंप्यूटर ने अपनी जगह बना ली है। बैंकों के खातों के संचालन से लेकर पुस्तकों, पत्रिकाओं तथा समाचार-पत्रों के प्रकाशन के क्षेत्र में कंप्यूटर ने क्रांति ला दी है। संचार के क्षेत्र में तो कंप्यूटर का एकछत्र राज है। टेलीफोन, मोबाइल सेवा आदि कंप्यूटर के बिना संभव नहीं हैं। इंटरनेट नेविश्व ग्रामकी अवधारणा को सच किया है। यह भी कंप्यूटर की बदौलत हुआ ही है। अंतरिक्ष से चित्र लेने तथा उनका विश्लेषण करने का काम भी कंप्यूटर ही करता है।
मौसम संबंधी घोषणाएँ कंप्यूटर की गणनाओं पर आधारित होती हैं। यहाँ तक कि ज्योतिष विद्या भी कंप्यूटर-आधारित हो गई है। मेडिकल क्षेत्र में कंप्यूटर जीवन-रक्षक कवच बनकर अवतरित हुआ है। यह विभिन्न तरह के परीक्षणों का विश्लेषण करके तुरंत मरीज की स्थिति बता देता है। शल्य-चिकित्सा में कंप्यूटर अह भूमिका निभाता है। आधुनिक विज्ञान की सबसे बड़ी उपलब्धि रोबोट को माना जाता है, क्योंकि यह आज जटिल से जटिल कार्य विपरीत से विपरीत परिस्थितियों में सफलतापूर्वक संपन्न करता है। जैसे-वेलिंडग, पेंटिग, आयरन गलाना, परमाणु भट्ठी के पास काम करना, भारी सामान उठाना, कचरा साफ़ करना आदि।
यह सब कार्य रोबोट के मस्तिष्क में लगा छोटा-सा कंप्यूटर करता है। युद्ध में जासूसी करना, सही निशाने पर बम या मिसाइल फेंकना आदि कार्य भी कंप्यूटर आसानी से कर लेता है। साथ-साथ भवन-निर्माण, क्षेत्र-विकास, परिसर-नियोजन आदि के लिए शिल्पकार को अधिक समय लगता है। कंप्यूटर का डिजाइनिंग प्रोग्राम क्षेत्र की लंबाई, चौड़ाई और आँकड़ों के अनुसार कुछ ही घंटों में नक्शा तैयार कर देता है। नए डिजाइन बनाने में तो यह कलाकार की भूमिका निभाता है।
कंप्यूटर के इतने फ़ायदे देखकर कहा जा सकता है कि कंप्यूटर आज के युग की अनिवार्यता है। इसके बिना आधुनिक जीवन की कल्पना नहीं की जा सकती। इसके बावजूद यह एक मशीन है। इसका सदुपयोग या दुरुपयोग मानव की प्रवृत्ति पर निर्भर करता है। इससे भी बढ़कर, यह मानव मस्तिष्क का पर्याय नहीं बन सकता क्योंकि इसे मानव ने ही बनाया है।
6. भूकंप त्रासदी
भूकंपशब्द सुनते ही सब कुछ हिलता नजर आता है। इसका अर्थ होता है-पृथ्वी का कंपन। पृथ्वी के गर्भ में किसी प्रकार की हलचल के कारण जब पृथ्वी का कोई भाग हिलने लगता है, कंपित होने लगता है तो उसे भूकंप की संज्ञा दी जाती है। पृथ्वी लगभग हर समय हिलती रहती है, परंतु हम उन्हीं झटकों को भूकंप कहते हैं जिनका हम अनुभव करते हैं। भूकंप के अनेक कारण होते हैं-पृथ्वी के अंदर की चट्टानों का हिलना, ज्वालामुखी फटना, परमाणु विस्फोट, बड़े बाँध, भूस्खलन, बम फटना आदि। भूकंप प्राकृतिक आपदाओं में सर्वाधिक विनाशकारी होता है।
यह प्रलय का दूसरा नाम है। यह पल भर में मानव की प्रगति ताकत को तहस-नहस कर देता है तथा मनुष्य को यह अहसास करा देता है कि वह प्रकृति पर कभी नियंत्रण नहीं कर सकता। यह विज्ञान वैज्ञानिकों का दंभ क्षण-भर में खत्म कर देता है। भूकंप के आने से ऊँची-ऊँची इमारतें धराशायी हो जाती हैं, बड़ी संख्या में लोग असमय ही काल के मुँह में समा जाते हैं। कभी-कभी पूरा शहर ही धरती के गर्भ में समा जाते हैं। इससे नदियाँ अपना मार्ग तक बदल लेती हैं। कहीं-कहीं नए भू-आकार भी जन्म ले लेते हैं।
देश के इतिहास में सर्वाधिक विनाशकारी भूकंप 11 अक्तूबर, 1737 को बंगाल में आया था जिसमें लगभग तीन लाख लोग काल के गाल में समा गए थे। महाराष्ट्र के लातूर उस्मानाबाद जिले में 40 गाँव भूकंप के कहर से तबाह हो गए। 26 जनवरी, 2001 का दिन भारतीय गणतंत्र में काला दिन बन गया। इस दिन गुजरात पर भूकंप ने अपना तीसरा नेत्र खोला। क्षणमात्र में भुज, अंजार और भचाऊ क्षेत्र कब्रिस्तान में बदल गए। गुजरात का वैभव खंडहरों में परिवर्तित हो गया। इस भूकंप की तीव्रता रिक्टर पैमाने पर 6.9 थी तथा इसका केंद्र भुज से 20 कि०मी० उत्तर-पूर्व में था। इस त्रासदी में हजारों लोग मारे गए, कई हजार घायल हुए तथा लाखों बेघर हो गए। सारा देश स्तब्ध था।
भयंकर विनाश देखकर सहायता के लिए अनेक हाथ आगे आए। स्वयंसेवी संस्थाओं ने राहत बचाव-कार्य में दिन-रात एक कर दिया। मीडिया के प्रचार से भारत सरकार की नींद खुली और समूचा विश्व सहायता के लिए आगे आया। विश्व के अनेक देशों भारत के कोने-कोने से सहायता सामग्री का अंबार लग गया। इस प्रकार भूकंप प्रभावित क्षेत्रों में जिंदगी ठहर-सी गई। अरबों की संपत्ति नष्ट हो गई। विकास-कार्य रुक गया।
भूकंप जनित घटनाएँ मानव के अनिश्चित भविष्य को दर्शाती हैं। एक तरफ हम विकास तकनीक की श्रेष्ठता का दावा करते हैं, दूसरी तरफ हम भूकंप की पूर्व सूचना तक नहीं दे पाते। भूकंप को रोकना अभी तक मानव के वश से बाहर है परंतु क्या हम ऐसी तकनीक विकसित कर पाएँगे जिससे भूकंप आने के पूर्व ही सूचना प्राप्त कर सकें? यदि ऐसा संभव हुआ तो निश्चय ही हम असमय होने वाली जन-धन-हानियों को बचा पाएँगे।
7. पर्यटन का महत्व
मानव अपनी जिज्ञासु प्रवृत्ति के कारण दूसरे देशों या अलग-अलग स्थानों की यात्रा करना चाहता है। उसे दूसरे क्षेत्र की संस्कृति, सभ्यता, प्राकृतिक सौंदर्य, ऐतिहासिक जानकारी के बारे में जानने की इच्छा होती है। इसी कारण वह अपना सुखचैन छोड़कर अनजान, दुर्गम बीहड़ रास्तों पर घूमता रहता है। आधुनिक युग में इंटरनेट पुस्तकों के माध्यम से वह हर स्थान की जानकारी प्राप्त कर सकता है, परंतु यह सब कागज के फूल की तरह होते हैं।
आदिमानव एक ही स्थान पर रहता तो क्या दुनिया विकसित हो पाती। एक स्थान पर टिके रहने के कारण ही मानव कोघुमक्कड़कहा गया है। महापंडित राहुल सांस्कृत्यायन का कहना है-‘घुमक्कड़ दुनिया की सर्वश्रेष्ठ विभूति है इसलिए कि उसी ने आज की दुनिया को बनाया है। अगर घुमक्कड़ों के काफिले आते-जाते, तो सुस्त मानव-जातियाँ सो जातीं और पशु स्तर से ऊपर नहीं उठ पातीं।
घुमक्कड़ीका आधुनिक रूपपर्यटनबन गया है। पहले घुमक्कड़ी अत्यंत कष्टसाध्य थी क्योंकि संचार यातायात के साधनों का अभाव था। संसाधन भी कम थे तथा पर्यटन-स्थल पर सुविधाएँ भी विकसित नहीं थीं। आज विज्ञान का प्रताप है कि मनुष्य को बाहर जाने में कोई कठिनाई नहीं होती। आज सिर्फ़ मनुष्य में बाहर घूमने का उत्साह, धैर्य, साहस, जोखिम उठाने की तत्परता होनी चाहिए, शेष सुविधाएँ विज्ञान उन्हें प्रदान कर देता है।
20वीं सदी से पर्यटन एक उद्योग के रूप में विकसित हो गया है। विश्व के लगभग सभी देशों में पर्यटन मंत्रालय बनाए गए हैं। हर देश अपने ऐतिहासिक स्थलों, अद्भुत भौगोलिक स्थलों को सजा-सँवारकर दुनिया के सामने प्रस्तुत करना चाहता है। मनोरम पहाड़ी स्थलों पर पर्यटक आवास स्थापित किए जा रहे हैं।
पर्यटकों के लिए आवास, भोजन, मनोरंजन आदि की व्यवस्था के लिए नए-नए होटलों, लॉजों और पर्यटन-गृहों का निर्माण किया जा रहा है। यातायात के सभी प्रकार के सुलभ आवश्यक साधनों की व्यवस्था की जा रही है। पर्यटन आज मुनाफ़ा देने वाला व्यवसाय बन गया है। पर्यटन के लिए रंग-बिरंगी पुस्तिकाएँ आकर्षक पोस्टर, पर्यटन-स्थलों के रंगीन चित्र, आवास, यातायात आदि सुविधाओं का विस्तृत ब्यौरा लगभग सभी प्रमुख सार्वजनिक स्थलों पर मिलता है। पर्यटन के प्रति रुचि जगाने के लिए लघु फ़िल्में भी तैयार की जाती हैं।
कई पर्यटन-स्थलों पर पर्यटकों को आकर्षित करने के लिए संगीत, नृत्य, नाटक आदि का आयोजन किया जाता है। पर्यटन के अनेक लाभ हैं, जैसे-आनंद-प्राप्ति, जिज्ञासा की पूर्ति आदि। इसके अतिरिक्त, पर्यटन से अंतर्राष्ट्रीयता की समझ विकसित होती है। मनुष्य का दृष्टिकोण विस्तृत होता है। प्रेम सौहाद्र का प्रसार होता है। सभ्यता-संस्कृतियों का परिचय मिलता-बढ़ता है। अंतर्राष्ट्रीय सहयोग की भावना को पर्यटन से ही बढ़ावा मिलता है। पर्यटन के दौरान ही व्यक्ति को यथार्थ जीवन का आभास होता है तथा जीवन की एकरसता भी पर्यटन से ही समाप्त होती है।
8. पूंजीवाद का विश्वव्यापी संकट
पहले विश्व में केवल दो व्यवस्थाएँ थीं-पूँजीवाद साम्यवाद। सोवियत संघ के विघटन के बाद विश्व में पूँजीवाद का आधिपत्य हो गया। हालाँकि 21वीं सदी में विश्व के पूँजीवाद के चिर स्थायित्व की पोल खुल गई। आज पूँजीवादी व्यवस्था दीर्घकालीन मंदी की चपेट में है। आज अमेरिका जैसे सबल देश की अर्थव्यवस्था भी आर्थिक मंदी से जूझ रही है। अत: सारे विश्व में हड़कंप मचा है। उत्पादन, रोजगार और उपभोग में हो रही कमी से सारे देश प्रभावित हो रहे हैं। यह मंदी कितनी भयानक होगी, इसका आकलन नहीं किया जा सकता।
पूँजीवाद के पहले प्राकृतिक कारणों के परिणामस्वरूप मुख्यतया उत्पादन में, उतार-चढ़ाव आते थे या विदेशी हमलों और शासकों के उत्पीड़न से प्रजा के राज्य छोड़कर भागने पर भी उत्पादन में गिरावट आती थी। हालाँकि इन सबके प्रभाव सीमित होते थे। औद्योगिक पूँजीवाद के उदय के साथ उत्पादक शक्तियों का अभूतपूर्व विकास हुआ और भारी मात्रा में अधिशेष उत्पादन संभव हुआ। बाज़ार समाज से अलग होकर स्वतंत्र हस्ती बन गया। आवागमन के साधनों के विस्तार और सूचना के क्षेत्र में हुए परिवर्तनों के फलस्वरूप उत्पादन, माँग, कीमत, भविष्य की स्थिति आदि को देखते हुए व्यापार के परिमाण और स्वरूप में भारी बदलाव आया। उत्पादन अब उपभोग के लिए होकर अधिकतम मुनाफ़े के लिए होने लगा।
आधुनिक पूँजीवाद के उदय के साथ ही आर्थिक उतार-चढ़ाव एक नियमित परिघटना के रूप में सामने आया। अनेक विद्वानों ने बाजार के उतार-चढ़ाव को अवश्यंभावी बताया और राज्य के सक्रिय हस्तक्षेप की सलाह दी। पूँजी बाजार का उदय आधुनिक पूँजीवाद के साथ हुआ। यह मुद्रा बाजार से भिन्न है। मुद्रा बाजार में लेन-देन अल्पकाल के लिए होता है, जबकि पूँजी बाजार में लंबे समय के लिए। पूँजी बाजार आधुनिक पूँजीवाद का सहजीवी है। आधुनिक पूँजीवाद की धुरीज्वायंट स्टॉक कंपनीहै, इसके जरिए असीमित मात्रा में पूँजी इकट्ठी की जाती है। इसमें पूँजी लगाने वालों का जोखिम सीमित रहता है।
कंपनी के घाटे में जाने या धराशायी होने पर निवेशक की निजी संपत्ति पर कोई असर नहीं होता, बल्कि उसके द्वारा खरीदे गए शेयरों पर अंकित राशि भर डूब जाती है। शेयर बाज़ार में कंपनी के शेयर अंकित कीमत से अधिक भाव पर बिकने से कंपनी की तरक्की का पता चलता है। पूँजी बाजार परियोजना का मूल्यांकन करता है। नई परियोजना शुरू करने से पहले उसकी रूपरेखा संभावनाओं के बारे में बाज़ार को बताना होता है। बाजार का निर्णय अनुकूल होने पर उसके शेयरों की खरीद-फ़रोख्त होती है। शेयरों की बिक्री होने का मतलब उस परियोजना को बाजार द्वारा अस्वीकृत होना माना जाता है।
अमेरिका में पूँजी बाजार के विनियमन के लिएसेकऔर भारत मेंसेबीहै, परंतु व्यापारीहेज फेजजैसे तरीके निकाल लेते हैं जो कानून के दायरे से बाहर हैं। शेयर बाजार और धोखाधड़ी एक-दूसरे के पर्याय हैं। यहाँ हेराफेरी, अफ़वाह आदि की भारी भूमिका होती है। शेयर बाजार वस्तुत: पूँजीपति वर्ग के मनोबल का प्रतिबिंब है। यहाँ वे एक-दूसरे का शोषण करते हैं। अगर शेयरों का सूचकांक बढ़ या गिर रहा है तो इसका मतलब यह होता है कि पूँजीपति वर्ग का मनोबल बढ़ या घट रहा है। गिरावट की स्थिति लंबे समय तक रहने पर सरकार की नीतियों में पूँजीपति वर्ग का विश्वास घटने का पर्याय माना जाता है। इसी कारण सरकार पूँजीपति वर्ग को आश्वस्त करने की कोशिश में रहती है और राहत पैकेजों की घोषणा करती हैं। हालाँकि वित्तीय नीतियों की समीक्षा करके उनमें सुधार की कोशिशें जारी हैं। साथ-साथ विकासशील देशों को सहयोगी बनाने की कवायद जारी है।
9. भाषाई साम्राज्यवाद की चुनौती
दुनिया में अंग्रेजी भाषा का विस्तार और प्रचार-प्रसार बहुत ज्यादा तेजी के साथ हो रहा है। इसका कारण अंग्रेजी भाषा की खूबी नहीं है। यह भाषाई साम्राज्यवाद है। साम्राज्यवाद यह प्रचार करता है कि अंग्रेजी ही ऐसी भाषा है जिसके बिना दुनिया का काम नहीं चल सकता; यह ज्ञान-विज्ञान के साथ-साथ अंतर्राष्ट्रीय संवाद संचार की भाषा है। आज अंग्रेजी जानने वाला पिछड़ जाएगा भले ही वह कितना ही विद्वान क्यों हो, आदि-आदि। 17वीं, 18वीं 19वीं सदियों में ब्रिटिश साम्राज्य के प्रसार के साथ अंग्रेजी भाषा का भी प्रसार हुआ।
बीसवीं सदी से अमेरिका ने यह कार्यभार सँभाला। यह कार्य अमेरिकी साम्राज्यवाद को बढ़ाने-फैलाने के लिए किया गया। हालाँकि आज का साम्राज्यवाद पहले की तरह कार्य नहीं करता। पहले के साम्राज्यवादी देश अपने उपनिवेशों पर अपनी भाषा थोपकर अपने साम्राज्यवाद को सुदृढ़ बनाते थे। मैकाले भारत में एक ऐसा दुभाषिया वर्ग बनाना चाहता था जो रक्त और वर्ण से भारतीय हो, लेकिन रुचि, सोच नैतिकता आदि से अंग्रेज हो। अब भाषाई साम्राज्यवाद का रूप बदल गया है। अब अमेरिका अंग्रेजी को सारी दुनिया पर थोपना चाहता है। यह कार्य परोक्ष रूप से किया जा रहा है; जैसे-रोजी-रोटी कमाने के लिए अंग्रेजी जानना अनिवार्य कर दिया गया है।
भाषाई साम्राज्यवाद का एक और रूप सामने आया है। अब वह दुनिया की दूसरी भाषाओं के माध्यम से भी साम्राज्यवाद को फैलाने मजबूती से जमाने का कार्य करता है। आज का साम्राज्यवाद दूसरी भाषाओं में अपनी विचारधारा बेचता है और अन्य देशों की भाषा को उसने अनुवाद की भाषा बना दिया है। मौलिक चिंतन यूरोप या अमेरिका में होगा और दुनिया के बाकी देश अपनी भाषा में उसका अनुवाद करेंगे। उदाहरण के लिए संरचनावाद, विखंडनवाद, उत्तर आधुनिकवाद, विमर्श आदि सब कुछ बाहर की देन हैं। कुल मिलाकर भाषाई साम्राज्यवाद एक चुनौती है। उससे हमें संघर्ष करना है।
कुछ लोग लड़ाने के पुराने तरीके अपनाते हैं। वेअंग्रेजी हटाओका नारा देकर हिंदी को बैठाना चाहते हैं, इससे देश में अंग्रेजी भाषा या अन्य भाषाओं के लोग उनके विरोधी बन जाते हैं। वे इसे हिंदी का भाषाई साम्राज्यवाद कहने लगते हैं। साम्राज्यवाद से लड़ने के लिए राष्ट्रवाद जरूरी है, परंतु अब राष्ट्रवाद एक बेहतर दुनिया बनाने का संकल्प होना चाहिए। भाषाई साम्राज्यवाद के विरुद्ध जनतांत्रिक नारा है-दुनिया में सब हों समान, सब भाषाएँ बनें महान।
इसका अभिप्राय यह है कि भाषा किसी की बपौती नहीं होती। हर व्यक्ति किसी भी भाषा को सीख सकता है, उसमें दैनिक कार्य कर सकता है। किसी भाषा को दूसरी भाषाओं से श्रेष्ठ बताना और उसे दूसरों पर थोपना अमानवीय है।

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