कक्षा -12
N.C.E.R.T
अपठित गदयांश
17. साहित्य की शाश्वतता का प्रश्न एक महत्वपूर्ण प्रश्न है। क्या साहित्य शाश्वत होता है? यदि हाँ, तो किस मायने में? क्या कोई साहित्य अपने रचनाकाल के सौ वर्ष बीत जाने पर भी उतना ही प्रासंगिक रहता है, जितना वह अपनी रचना के समय था? अपने समय या युग का निर्माता साहित्यकार क्या सौ वर्ष बाद की परिस्थितियों का भी युग-निर्माता हो सकता है। समय बदलता रहता है, परिस्थितियाँ और भावबोध बदलते हैं, साहित्य बदलता है और इसी के समानांतर पाठक की मानसिकता और अभिरुचि भी बदलती है।
अत: कोई भी कविता अपने सामयिक परिवेश के बदल जाने पर ठीक वही उत्तेजना पैदा नहीं कर सकती, जो उसने अपने रचनाकाल के दौरान की होगी। कहने का तात्पर्य यह है कि एक विशेष प्रकार के साहित्य के श्रेष्ठ अस्तित्व मात्र से वह साहित्य हर युग के लिए उतना ही विशेष आकर्षण रखे, यह आवश्यक नहीं है। यही कारण है कि वर्तमान युग में इंगला-पिंगला, सुषुम्ना, अनहद, नाद आदि पारिभाषिक शब्दावली मन में विशेष भावोत्तेजन नहीं करती।
साहित्य की श्रेष्ठता मात्र ही उसके नित्य आकर्षण का आधार नहीं है। उसकी श्रेष्ठता का युगयुगीन आधार हैं, वे जीवन-मूल्य तथा उनकी अत्यंत कलात्मक अभिव्यक्तियाँ जो मनुष्य की स्वतंत्रता तथा उच्चतर मानव-विकास के लिए पथ-प्रदर्शक का काम करती हैं। पुराने साहित्य का केवल वही श्री-सौंदर्य हमारे लिए ग्राह्य होगा, जो नवीन जीवन-मूल्यों के विकास में सक्रिय सहयोग दे अथवा स्थिति-रक्षा में सहायक हो। कुछ लोग साहित्य की सामाजिक प्रतिबद्धता को अस्वीकार करते हैं।
वे मानते हैं कि साहित्यकार निरपेक्ष होता है और उस पर कोई भी दबाव आरोपित नहीं होना चाहिए। किंतु वे भूल जाते हैं कि साहित्य के निर्माण की मूल प्रेरणा मानव-जीवन में ही विद्यमान रहती है। जीवन के लिए ही उसकी सृष्टि होती है। तुलसीदास जब स्वांत:सुखाय काव्य-रचना करते हैं, तब अभिप्राय यह नहीं रहता कि मानव-समाज के लिए इस रचना का कोई उपयोग नहीं है, बल्कि उनके अंत:करण में संपूर्ण संसार की सुख-भावना एवं हित-कामना सन्निहित रहती है। जो साहित्यकार अपने संपूर्ण व्यक्तित्व को व्यापक लोक-जीवन में सन्निविष्ट कर देता है, उसी के हाथों स्थायी एवं प्रेरणाप्रद साहित्य का सृजन हो सकता है।
प्रश्न –
(क) प्रस्तुत गद्यांश का उपयुक्त शीर्षक दीजिए।
(ख) पुराने साहित्य के प्रति अरुचि का क्या कारण है?
(ग) जीवन के विकास में पुराने साहित्य का कौन-सा अंश स्वीकार्य है और कौन-सा नहीं?
(घ) साहित्य की शाश्वतता का आशय स्पष्ट करते हुए बताइए कि यह शाश्वत होता है या नहीं।
(ड) सामयिक परिवेश बदलने का कविता पर क्या प्रभाव पड़ता है और क्यों?
(च) साहित्य की श्रेष्ठता के आधार क्या हैं?
(छ) कुछ लोग साहित्य की सामाजिक प्रतिबद्धता अस्वीकारने की भूल किस तरह करते हैं? यह किस तरह अनुचित है?
(ज) निर्देशानुसार उत्तर दीजिए—
(ख) पुराने साहित्य के प्रति अरुचि का क्या कारण है?
(ग) जीवन के विकास में पुराने साहित्य का कौन-सा अंश स्वीकार्य है और कौन-सा नहीं?
(घ) साहित्य की शाश्वतता का आशय स्पष्ट करते हुए बताइए कि यह शाश्वत होता है या नहीं।
(ड) सामयिक परिवेश बदलने का कविता पर क्या प्रभाव पड़ता है और क्यों?
(च) साहित्य की श्रेष्ठता के आधार क्या हैं?
(छ) कुछ लोग साहित्य की सामाजिक प्रतिबद्धता अस्वीकारने की भूल किस तरह करते हैं? यह किस तरह अनुचित है?
(ज) निर्देशानुसार उत्तर दीजिए—
1. ‘भावोत्तेजना’, ‘समानांतर’ शब्दों का संधि-विच्छेद कीजिए।
2. ‘जीवन-मूल्य’, ‘साहित्यकार’ शब्दों का विग्रह करके समास का नाम बताइए।
उत्तर –
(क) शीर्षक-साहित्य की प्रासंगिकता।
(ख) वर्तमान युग में पुराने साहित्य के प्रति अरुचि हो गई है, क्योंकि पाठक की अभिरुचि बदल गई है और वर्तमान युग में पुराने साहित्य को वह अपने लिए प्रासंगिक नहीं पाता। इसके अलावा देशकाल और परिस्थिति के अनुसार साहित्य की प्रासंगिकता बदलती रहती है।
(ग) जीवन के विकास में पुराने साहित्य का केवल वही अंश स्वीकार्य है, जो नवीन जीवन-मूल्यों के विकास में सक्रिय सहयोग दे। पुराने साहित्य का वह अंश अस्वीकार कर दिया जाता है, जो अपनी उपयोगिता और प्रासंगिकता खो चुका है तथा जीवन-मूल्यों से असंबद्ध हो चुका होता है।
(घ) साहित्य की शाश्वतता का तात्पर्य है-हर काल एवं परिस्थिति में अपनी उपयोगिता बनाए रखना एवं प्रासंगिकता को कम न होने देना। साहित्य को शाश्वत इसलिए नहीं कहा जा सकता, क्योंकि वह समय के साथ अपनी प्रासंगिकता खो बैठता है। इसके अलावा रचनाकार अपने काल की परिस्थितियों के अनुरूप ही साहित्य-सृजन करता है।
(ड) सामयिक परिवेश के बदलाव का कविता पर बहुत प्रभाव पड़ता है। परिवेश बदलने से कविता पाठक के मन में वह उत्तेजना नहीं उत्पन्न कर पाती, जो वह अपने रचनाकाल के समय करती थी। इसका कारण है-समय, परिस्थितियाँ और भावबोध बदलने के अलावा पाठकों की अभिरुचि और मानसिकता में भी बदलाव आ जाना।
(च) साहित्य की श्रेष्ठता के आधार हैं वे जीवन-मूल्य तथा उनकी अत्यंत कलात्मक अभिव्यक्तियाँ, जो मनुष्य की स्वतंत्रता तथा उच्चतर मानव-विकास के लिए पथ-प्रदर्शक का कार्य करती हैं।
(छ) कुछ लोग साहित्य की सामाजिक प्रतिबद्धता अस्वीकारने की भूल यह मानकर करते हैं कि साहित्य निरपेक्ष होता है तथा उस पर दबाव नहीं होना चाहिए। चूँकि साहित्य मानव-जीवन के सापेक्ष होता है और जीवन के लिए ही उसकी सृष्टि की जाती है, अत: कुछ लोगों द्वारा साहित्य को निरपेक्ष मानना अनुचित है।
(ज)
(ख) वर्तमान युग में पुराने साहित्य के प्रति अरुचि हो गई है, क्योंकि पाठक की अभिरुचि बदल गई है और वर्तमान युग में पुराने साहित्य को वह अपने लिए प्रासंगिक नहीं पाता। इसके अलावा देशकाल और परिस्थिति के अनुसार साहित्य की प्रासंगिकता बदलती रहती है।
(ग) जीवन के विकास में पुराने साहित्य का केवल वही अंश स्वीकार्य है, जो नवीन जीवन-मूल्यों के विकास में सक्रिय सहयोग दे। पुराने साहित्य का वह अंश अस्वीकार कर दिया जाता है, जो अपनी उपयोगिता और प्रासंगिकता खो चुका है तथा जीवन-मूल्यों से असंबद्ध हो चुका होता है।
(घ) साहित्य की शाश्वतता का तात्पर्य है-हर काल एवं परिस्थिति में अपनी उपयोगिता बनाए रखना एवं प्रासंगिकता को कम न होने देना। साहित्य को शाश्वत इसलिए नहीं कहा जा सकता, क्योंकि वह समय के साथ अपनी प्रासंगिकता खो बैठता है। इसके अलावा रचनाकार अपने काल की परिस्थितियों के अनुरूप ही साहित्य-सृजन करता है।
(ड) सामयिक परिवेश के बदलाव का कविता पर बहुत प्रभाव पड़ता है। परिवेश बदलने से कविता पाठक के मन में वह उत्तेजना नहीं उत्पन्न कर पाती, जो वह अपने रचनाकाल के समय करती थी। इसका कारण है-समय, परिस्थितियाँ और भावबोध बदलने के अलावा पाठकों की अभिरुचि और मानसिकता में भी बदलाव आ जाना।
(च) साहित्य की श्रेष्ठता के आधार हैं वे जीवन-मूल्य तथा उनकी अत्यंत कलात्मक अभिव्यक्तियाँ, जो मनुष्य की स्वतंत्रता तथा उच्चतर मानव-विकास के लिए पथ-प्रदर्शक का कार्य करती हैं।
(छ) कुछ लोग साहित्य की सामाजिक प्रतिबद्धता अस्वीकारने की भूल यह मानकर करते हैं कि साहित्य निरपेक्ष होता है तथा उस पर दबाव नहीं होना चाहिए। चूँकि साहित्य मानव-जीवन के सापेक्ष होता है और जीवन के लिए ही उसकी सृष्टि की जाती है, अत: कुछ लोगों द्वारा साहित्य को निरपेक्ष मानना अनुचित है।
(ज)
1. शब्द संधि-विच्छेद
भावोत्तेजना भाव + उत्तेजना
समानांतर समान + अंतर
भावोत्तेजना भाव + उत्तेजना
समानांतर समान + अंतर
2. शब्द विग्रह समास का नाम
जीवन-मूल्य जीवन के मूल्य संबंध तत्पुरुष
साहित्यकार साहित्य को रचना करने वाला कर्मधारय समास
जीवन-मूल्य जीवन के मूल्य संबंध तत्पुरुष
साहित्यकार साहित्य को रचना करने वाला कर्मधारय समास
18. भारतीय मनीषा ने कला, धर्म, दर्शन और साहित्य के क्षेत्र में नाना भाव से महत्वपूर्ण फल पाए हैं और भविष्य में भी महत्वपूर्ण फल पाने की योग्यता का परिचय वह दे चुकी है। परंतु भिन्न कारणों से समूची जनता एक ही धरातल पर नहीं है और सबकी चिंतन-दृष्टि भी एक नहीं है। जल्दी ही कोई फल पा लेने की आशा में अटकलपच्चू सिद्धांत कायम कर लेना और उसके आधार पर कार्यक्रम बनाना अभीष्ट सिद्ध में सब समय सहायक नहीं होगा।
विकास की अलग-अलग सीढ़ियों पर खड़ी जनता के लिए नाना प्रकार के कार्यक्रम आवश्यक होंगे। उद्देश्य की एकता ही विविध कार्यक्रमों में एकता ला सकती है, परंतु इतना निश्चित है कि जब तक हमारे सामने उद्देश्य स्पष्ट नहीं हो जाता, तब कोई भी कार्य, कितनी ही व्यापक शुभेच्छा के साथ क्यों न आरंभ किया जाए, वह फलदायक नहीं होगा।
बहुत-से हिंदू- एकता को या हिंदू-संगठन को ही लक्ष्य मानकर उपाय सोचने लगते हैं। वस्तुत: हिंदू-मुस्लिम एकता साधन है, साध्य नहीं। साध्य है, मनुष्य को पशु समान स्वार्थी धरातल से ऊपर उठाकर ‘मनुष्यता’ के आसन पर ।
हिंदू और मुस्लिम अगर मिलकर संसार में लूट-खसोट मचाने के लिए साम्राज्य स्थापित करने निकल पड़े, तो हिंदू-मुस्लिम मिलन से मनुष्यता काँप उठेगी। परंतु हिंदू-मुस्लिम मिलन का उद्देश्य है-मनुष्य को दासता, जड़ता, , कुसंस्कार और परमुखापेक्षिता से बचाना; मनुष्य को क्षुद्र स्वार्थ और अहमिका की दुनिया से ऊपर उठाकर सत्य, और दुनिया में ले जाना; मनुष्य द्वारा मनुष्य के शोषण को हटाकर परस्पर सहयोगिता के पवित्र धन में बाँधना। मनुष्य का सामूहिक कल्याण ही हमारा लक्ष्य हो सकता है। वही मनुष्य का सर्वोत्तम प्राप्य है।
आर्य, नाग, आभीर आदि जातियों के सैकड़ों वर्षों के संघर्ष के बाद हिंदू दृष्टिकोण बना है। नए सिरे से भारतीय दृष्टिकोण बनाने के लिए इतने ही लंबे अरसे की जरूरत नहीं है। आज हम इतिहास को अधिक यथार्थ ढंग से समझ सकते हैं और तदनुकूल अपने विकास की योजना बना सकते हैं। धैर्य हमें कभी नहीं छोड़ना चाहिए। इतिहास-विधाता समझकर ही हम अपनी योजना बनाएँ, तो सफलता की आशा कर सकते हैं।
प्रश्न –
(क) उपर्युक्त गद्यांश का उपयुक्त शीर्षक दीजिए।
(ख) गद्यांश के आधार पर भारतीय मनीषा की विशेषताएँ लिखिए।
(ग) जनता के विकास के लिए किस तरह के कार्यक्रम की आवश्यकता होती है? और क्यों?
(घ) ‘हिंदू-मुस्लिम एकता भी साधन है, साध्य नहीं’ का क्या अर्थ है? यहाँ लेखक क्या ध्यान रखना चाहता है?
(ड) हिंदू-मुस्लिम ऐक्य किस तरह मानवता के लिए घातक हो सकता है?
(च) हिंदू-मुस्लिम एकता का उद्देश्य क्या है?
(छ) मनुष्य का सर्वोत्तम प्राप्य क्या है? इस प्राप्य के लिए हिंदू दृष्टिकोण कैसे विकसित हुआ है?
(ज) निर्देशानुसार उत्तर दीजिए—
(ख) गद्यांश के आधार पर भारतीय मनीषा की विशेषताएँ लिखिए।
(ग) जनता के विकास के लिए किस तरह के कार्यक्रम की आवश्यकता होती है? और क्यों?
(घ) ‘हिंदू-मुस्लिम एकता भी साधन है, साध्य नहीं’ का क्या अर्थ है? यहाँ लेखक क्या ध्यान रखना चाहता है?
(ड) हिंदू-मुस्लिम ऐक्य किस तरह मानवता के लिए घातक हो सकता है?
(च) हिंदू-मुस्लिम एकता का उद्देश्य क्या है?
(छ) मनुष्य का सर्वोत्तम प्राप्य क्या है? इस प्राप्य के लिए हिंदू दृष्टिकोण कैसे विकसित हुआ है?
(ज) निर्देशानुसार उत्तर दीजिए—
1. “हम इतिहास को अधिक यथार्थ ढंग से समझकर तद्नुकूल अपने विकास की योजना बना सकते हैं” मिश्र वाक्य में बदलिए।
2. विलोम बताइए-एकता, पवित्र।
उत्तर –
(क) शीर्षक-हमारा लक्ष्य-मानव-कल्याण।
(ख) भारतीय मनीषा ने कला, धर्म, दर्शन और साहित्य आदि इस बात का भी प्रमाण दिया है कि भविष्य में भी वह P जनता न तो एक धरातल पर है और न सभी की चिंतन दृष्टि में समानता है।
(ग) जनता के विकास के लिए ऐसे कार्यक्रमों की आवश्यकता होती है, जिसमें
(ख) भारतीय मनीषा ने कला, धर्म, दर्शन और साहित्य आदि इस बात का भी प्रमाण दिया है कि भविष्य में भी वह P जनता न तो एक धरातल पर है और न सभी की चिंतन दृष्टि में समानता है।
(ग) जनता के विकास के लिए ऐसे कार्यक्रमों की आवश्यकता होती है, जिसमें
1. विविधता हो अर्थात् जिससे सभी की आवश्यकताएँ पूरी हो सकें।
2. फल पाने की जल्दी में काल्पनिक सिद्धांत के लिए जगह न हो। ऐसा इसलिए आवश्यक है, क्योंकि जनता विकास की अलग-अलग सीढ़ियों पर खड़ी है।
(घ) इसका अर्थ यह है कि मात्र हिंदू-मुस्लिम ऐक्य स्थापित करना ही हमारा लक्ष्य नहीं होना चाहिए, बल्कि इसे मानव-कल्याण का उद्देश्य पाने का साधन भी समझना चाहिए। हमें इस बात का ध्यान रखना होगा कि हिंदू-मुस्लिम की यह एकता अपने उद्देश्य से भटककर मानवता-विरोधी कार्य में न संलग्न हो जाए।
(ड) हिंदू-मुस्लिम एकता मानवता के लिए तब घातक हो सकती है, जब दोनों संप्रदाय आपस में मिलकर नया राज्य स्थापित करना चाहें अर्थात यह एकता मानव-कल्याण के उद्देश्य से भटक जाए।
(च) हिंदू-मुस्लिम एकता का उद्देश्य है-मनुष्य को दासता, जड़ता, मोह, कुसंस्कार और अपने कार्यों के लिए दूसरों का मुँह ताकने से बचाते हुए क्षुद्र स्वार्थ की भावना का त्याग करना। इसके अलावा मनुष्य को न्याय और उदारता की दुनिया में ले जाना तथा मनुष्य को मनुष्य के शोषण से बचाकर परस्पर सहयोग के बंधन में बाँधना है।
(छ) मनुष्य का सर्वोत्तम प्राप्य है-मनुष्य का सामूहिक कल्याण करने का लक्ष्य। इस प्राप्य के लिए हिंदू दृष्टिकोण आर्य, द्रविड़, शक, नाग, आभीर आदि जातियों के सैकड़ों वर्षों के संघर्ष के बाद बना है।
(ज)
(ड) हिंदू-मुस्लिम एकता मानवता के लिए तब घातक हो सकती है, जब दोनों संप्रदाय आपस में मिलकर नया राज्य स्थापित करना चाहें अर्थात यह एकता मानव-कल्याण के उद्देश्य से भटक जाए।
(च) हिंदू-मुस्लिम एकता का उद्देश्य है-मनुष्य को दासता, जड़ता, मोह, कुसंस्कार और अपने कार्यों के लिए दूसरों का मुँह ताकने से बचाते हुए क्षुद्र स्वार्थ की भावना का त्याग करना। इसके अलावा मनुष्य को न्याय और उदारता की दुनिया में ले जाना तथा मनुष्य को मनुष्य के शोषण से बचाकर परस्पर सहयोग के बंधन में बाँधना है।
(छ) मनुष्य का सर्वोत्तम प्राप्य है-मनुष्य का सामूहिक कल्याण करने का लक्ष्य। इस प्राप्य के लिए हिंदू दृष्टिकोण आर्य, द्रविड़, शक, नाग, आभीर आदि जातियों के सैकड़ों वर्षों के संघर्ष के बाद बना है।
(ज)
1. जब हम इतिहास को अधिक यथार्थ ढंग से समझेंगे तब तदनुकूल अपने विकास की योजना बना सकते हैं।
2. शब्द विलोम
एकता अनेकता
पवित्र अपवित्र
एकता अनेकता
पवित्र अपवित्र
19. स्वतंत्र व्यवसाय की अर्थनीति के नए वैश्चिक वातावरण ने विदेशी पूँजी-निवेश की खुली छूट है रखी है, जिसके कारण दूरदर्शन में ऐसे विज्ञापनों की भरमार हौ गई है, जो उन्मुक्त वासना, हिंसा, अपराध, लालच और ईर्ष्या जैसे मानव की हीनतम प्रवृस्तिओं को आधार मानकर चल रहै हैं। अत्यंत खेद का विषय है कि राष्टीय दूरदर्शन ने भी उनकी भौंडी नकल कौ ठान ली हैं।
आधुनिकता के नाम पर जो कुछ दिखाया जा रहा है, सुनाया जा रहा है, उससे भारतीय जीवन-मुख्या का दूर का भी रिश्ता नहीं है, वे सत्य से भी कोसों दूर हैं। नई पीढी, जो स्वयं में रचनात्मक गुणों का विकास करने की जगह दूरदर्शन के सामने बैठकर कुछ सीखना, जानना और मनोरंजन करना चाहती है, उसका भगवान ही मालिक है।
जो असत्य है, वह सत्य नहीं हो सकता। समाज को शिव बनाने का प्रयत्न नहीं होगा तो समाज शव बनेगा ही। आज यह मज़बूरी हो गई है कि दूरदर्शन पर दिखाए जाने वाले वासनायुक्त, अश्लील दृश्यों से चार पीढ़ियाँएक साथ आँखें चार कर रही हैं। नतीजा सामने हैं। बलात्कार, अपहरण, छोटी बच्चियों के साथ निकट संबंधियों द्वारा शर्मनाक यौनाचार की घटनाओं में वृदूधि।
ठुमक कर चलते शिशु दूरदर्शन पर दिखाए और सुनाए जा रहे स्वर और भंगिमाओं, पर अपनी कमर लचकाने लगे हैं। ऐसे कार्यक्रम न शिव हैं, न समाज को शिव बनाने को शक्ति है इनमें। फिर जी शिव नहीं, वह सुंदर जैसे हो सकता है।
प्रश्न –
(क) उपर्युक्त गद्यांश का एक उपयुक्त शीर्षक दीजिए।
(ख) नई आर्थिक व्यवस्था से भारतीय दूरदर्शन किस तरह प्रभावित है?
(ग) नई आर्थिक नीति ने मानवीय मूल्यों को किस तरह प्रभावित किया है?
(घ) ‘अर्थनीति के नए वैश्विक वातावरण’ से लेखक का क्या तात्पर्य है?
(ड) लेखक ने कहा है कि ‘नई पीढ़ी का भगवान ही मालिक है।’ उसने ऐसा क्यों कहा होगा?
(च) ‘समाज को शिव बनाने का प्रयत्न नहीं होगा तो समाज शव बनेगा ही।’ के माध्यम से लेखक क्या कहना चाहता है?
(छ) दूरदर्शन पर दिखाए जाने वाले कार्यक्रम उपयोगी क्यों नहीं हैं?
(ज) निर्देशानुसार उत्तर दीजिए—
(ख) नई आर्थिक व्यवस्था से भारतीय दूरदर्शन किस तरह प्रभावित है?
(ग) नई आर्थिक नीति ने मानवीय मूल्यों को किस तरह प्रभावित किया है?
(घ) ‘अर्थनीति के नए वैश्विक वातावरण’ से लेखक का क्या तात्पर्य है?
(ड) लेखक ने कहा है कि ‘नई पीढ़ी का भगवान ही मालिक है।’ उसने ऐसा क्यों कहा होगा?
(च) ‘समाज को शिव बनाने का प्रयत्न नहीं होगा तो समाज शव बनेगा ही।’ के माध्यम से लेखक क्या कहना चाहता है?
(छ) दूरदर्शन पर दिखाए जाने वाले कार्यक्रम उपयोगी क्यों नहीं हैं?
(ज) निर्देशानुसार उत्तर दीजिए—
1. संधि-विच्छेद कीजिए-अत्यंत, उन्मुक्त।
2. विलोम बताइए-स्वतंत्र, सत्य।
उत्तर –
(क) शीर्षक-भारतीय दूरदर्शन की अनर्थकारी भूमिका।
(ख) नई आर्थिक व्यवस्था से भारतीय दूरदर्शन बुरी तरह प्रभावित है। इसके कारण दूरदर्शन पर जो विज्ञापन और कार्यक्रम दिखाए जा रहे हैं, उनमें हिंसा, यौनाचार, बलात्कार, अपहरण आदि मानव की हीनतम वृत्तियों की बाढ़-सी आ गई है। इससे समाज पर बुरा प्रभाव पड़ रहा है।
(ग) नई आर्थिक नीति के कारण दूरदर्शन पर जो कार्यक्रम दिखाए जा रहे हैं, उनके आधुनिक होने का दावा किया जाता है। ऐसे कार्यक्रमों ने भारतीय जीवन-मूल्यों को बुरी तरह प्रभावित किया है। इनमें पाश्चात्य जीवन-मूल्यों का प्रचार-प्रसार किया जा रहा है और भारतीय जीवन-मूल्यों को हासिए पर डालने का कार्य किया जा रहा है।
(घ) इसका अर्थ यह है कि आर्थिक नीति में राष्ट्रीय प्रतिबंधों को हटाकर उसका उदारीकरण करना, जिससे कोई देश अन्य किसी देश में व्यवसाय करने, उद्योग लगाने आदि आर्थिक कार्यक्रमों में स्वतंत्र हो।
(ड) लेखक के अनुसार, ‘नई पीढ़ी का भगवान ही मालिक है।’ उसने ऐसा इसलिए कहा है, क्योंकि बाल्यावस्था एवं युवावस्था जीवन-निर्माण का काल होता है। इसी काल में रचनात्मक गुण विकसित होते हैं। इसके लिए पिजवना-मृत्य हिता एवं सय से कस दू वाले कर्यक्म देक सखना जाना औरमोजना करता चाहती है।
(च) इस कथन के माध्यम से लेखक यह कहना चाहता है कि दूरदर्शन पर ऐसे कार्यक्रम प्रसारित किए जाने चाहिए, जिनसे भारतीय जीवन-मूल्य संबंधित हों। इससे समाज शिव अर्थात सुंदर बनेगा। यदि इसके लिए सही प्रयास किया गया, तो समाज में हिंसा, अपहरण, यौनाचार जैसी घटनाएँ बढ़ेगीं और समाज शव की भाँति विकृत एवं घृणित हो जाएगा।
(छ) दूरदर्शन पर दिखाए जाने वाले कार्यक्रमों में आधुनिकता की नकल है। इस आधुनिकता के दिखाया-सुनाया जा रहा है, वे भारतीय मूल्यों से संबंधित नहीं हैं। ये कार्यक्रम सत्य नहीं होते। पीढ़ी में रचनात्मक गुणों का विकास नहीं करते, इसलिए ये उपयोगी नहीं हैं।
(ज)
(ख) नई आर्थिक व्यवस्था से भारतीय दूरदर्शन बुरी तरह प्रभावित है। इसके कारण दूरदर्शन पर जो विज्ञापन और कार्यक्रम दिखाए जा रहे हैं, उनमें हिंसा, यौनाचार, बलात्कार, अपहरण आदि मानव की हीनतम वृत्तियों की बाढ़-सी आ गई है। इससे समाज पर बुरा प्रभाव पड़ रहा है।
(ग) नई आर्थिक नीति के कारण दूरदर्शन पर जो कार्यक्रम दिखाए जा रहे हैं, उनके आधुनिक होने का दावा किया जाता है। ऐसे कार्यक्रमों ने भारतीय जीवन-मूल्यों को बुरी तरह प्रभावित किया है। इनमें पाश्चात्य जीवन-मूल्यों का प्रचार-प्रसार किया जा रहा है और भारतीय जीवन-मूल्यों को हासिए पर डालने का कार्य किया जा रहा है।
(घ) इसका अर्थ यह है कि आर्थिक नीति में राष्ट्रीय प्रतिबंधों को हटाकर उसका उदारीकरण करना, जिससे कोई देश अन्य किसी देश में व्यवसाय करने, उद्योग लगाने आदि आर्थिक कार्यक्रमों में स्वतंत्र हो।
(ड) लेखक के अनुसार, ‘नई पीढ़ी का भगवान ही मालिक है।’ उसने ऐसा इसलिए कहा है, क्योंकि बाल्यावस्था एवं युवावस्था जीवन-निर्माण का काल होता है। इसी काल में रचनात्मक गुण विकसित होते हैं। इसके लिए पिजवना-मृत्य हिता एवं सय से कस दू वाले कर्यक्म देक सखना जाना औरमोजना करता चाहती है।
(च) इस कथन के माध्यम से लेखक यह कहना चाहता है कि दूरदर्शन पर ऐसे कार्यक्रम प्रसारित किए जाने चाहिए, जिनसे भारतीय जीवन-मूल्य संबंधित हों। इससे समाज शिव अर्थात सुंदर बनेगा। यदि इसके लिए सही प्रयास किया गया, तो समाज में हिंसा, अपहरण, यौनाचार जैसी घटनाएँ बढ़ेगीं और समाज शव की भाँति विकृत एवं घृणित हो जाएगा।
(छ) दूरदर्शन पर दिखाए जाने वाले कार्यक्रमों में आधुनिकता की नकल है। इस आधुनिकता के दिखाया-सुनाया जा रहा है, वे भारतीय मूल्यों से संबंधित नहीं हैं। ये कार्यक्रम सत्य नहीं होते। पीढ़ी में रचनात्मक गुणों का विकास नहीं करते, इसलिए ये उपयोगी नहीं हैं।
(ज)
1. शल्द संधि-विच्छेद
अत्यत अति + अंत
उन्मुक्त उन् + मुक्त
अत्यत अति + अंत
उन्मुक्त उन् + मुक्त
2. शब्द विलोम
स्वतंत्र परतत्र
सत्य असत्य
स्वतंत्र परतत्र
सत्य असत्य
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