Part-4
Hindi Grammar
हिंदी व्याकरण
संधि
जब दो वर्ण पास-पास होते है, तो पहले शब्द के अंतिम वर्ण का दूसरे शब्द के प्रथम वर्ण के साथ मेल होता है, इनके संयोग से जो विकार उत्पन्न होता है उसे संधि कहते है|
संधि के भेद-
संधि तीन प्रकार की होती है|
(1) स्वर संधि
(2) व्यंजन संधि
(3) विसर्ग संधि
1. स्वर संधि
जब किसी स्वर वर्ण का मेल किसी दूसरे स्वर वर्ण से होता है तो उसे स्वर संधि कहा जाता है|
उदाहरण:-
जैसे- विद्या + अर्थी = विद्यार्थी
स्वर वर्ण + स्वर वर्ण = स्वर संधि
स्वर संधि के पाँच भेद होते है|
(i) गुण स्वर संधि
(ii) दीर्घ स्वर संधि
(iii) वृद्धि स्वर संधि
(iv) यण् स्वर संधि
(v) अयादी स्वर संधि
I. गुण स्वर संधि
नियम - यदि 'अ' या 'आ' के बाद 'इ' या 'ई ' 'उ' या 'ऊ ' और 'ऋ' आये ,तो दोनों मिलकर क्रमशः 'ए', 'ओ' और 'अर' हो जाते है।
जैसे- अ/आ + इ/ई = ए
अ/आ + उ/ऊ = ओ
अ/आ + ऋ = अर्
जैसे- विद्या + अर्थी = विद्यार्थी
स्वर वर्ण + स्वर वर्ण = स्वर संधि
उदाहरण:-
राजा + इन्द्र = राजेन्द्र
सूर्य + उदय = सूर्योदय
सप्त + ऋषि = सप्तर्षि
गंगा + ऊर्मि = गंगोर्मि
II. दीर्घ स्वर संधि
नियम - दो सवर्ण स्वर मिलकर दीर्घ हो जाते है। यदि 'अ'',' 'आ', 'इ', 'ई', 'उ', 'ऊ' और 'ऋ' के बाद वे ही ह्स्व या दीर्घ स्वर आये, तो दोनों मिलकर क्रमशः 'आ', 'ई', 'ऊ', 'ऋ' हो जाते है।
जैसे- अ/आ + अ/आ = आ
इ/ई + इ/ई = ई
उ/ऊ + उ/ऊ = ऊ
उदाहरण:-
गिरि + ईश = गिरीश
भानु + उदय = भानूदय
शिव + आलय = शिवालय
कोण+ अर्क = कोणार्क
देव + असूर = देवासूर
III. वृद्धि स्वर संधि
नियम - यदि 'अ' या 'आ' के बाद 'ए' या 'ऐ'आये, तो दोनों के स्थान में 'ऐ' तथा 'ओ' या 'औ' आये, तो दोनों के स्थान में 'औ' हो जाता है।
जैसे- अ + ए = ऐ
आ + ए = ऐ
अ + ओ = औ
अ + औ = औ
आ + ओ = औ
आ + औ = औ
उदाहरण:-
सदा + एव = सदैव
महा + ऐश्वर्य = महैश्वë#2352;्य
एक + एक = एकैक
वन + औषधि = वनौषधि
IV. यण् स्वर संधि
नियम- यदि'इ', 'ई', 'उ', 'ऊ' और 'ऋ'के बाद कोई भित्र स्वर आये, तो इ-ई का ' य् ', 'उ-ऊ' का 'व्' और 'ऋ' का 'र्' हो जाता हैं।
जैसे- इ+ अ = य्
ई + अ = य्
उ + अ = व्
ऊ + आ = व्
ऋ + अ = र्
लृ + आ = ल्
उदाहरण:-
अति + आवश्यक = अत्यावश्यक
प्रति + एक = प्रत्येक
अनु +एषण = अन्वेषण
सु + आगतम = स्वागतम
वि + आख्या = व्याख्या
V. अयादी स्वर संधि
नियम- यदि 'ए', 'ऐ' 'ओ', 'औ' के बाद कोई भिन्न स्वर आए, तो (क) 'ए' का 'अय्', (ख ) 'ऐ' का 'आय्', (ग) 'ओ' का 'अव्' और (घ) 'औ' का 'आव' हो जाता है।
जैसे- ए + अ = अय्
ऐ + अ = आय्ओ
उदाहरण:-
पो + अन =पवन
धातु + इक = धात्विक
नै + इका = नायिका
भो + अन = भवन
2. व्यंजन संधि
व्यंजन से स्वर अथवा व्यंजन के मेल से उत्पत्र विकार को व्यंजन संधि कहते है।
नियम-
(1) यदि 'म्' के बाद कोई व्यंजन वर्ण आये तो 'म्' का अनुस्वार हो जाता है या वह बादवाले वर्ग के पंचम वर्ण में भी बदल सकता है।
जैसे- सम् + गम = संगम
अहम् + कार = अहंकार
(2) दि 'त्-द्' के बाद 'ल' रहे तो 'त्-द्' 'ल्' में बदल जाते है और 'न्' के बाद 'ल' रहे तो 'न्' का अनुनासिक के बाद 'ल्' हो जाता है।
जैसे- उत् + लास = उल्लास
(3) यदि 'क्', 'च्', 'ट्', 'त्', 'प', के बाद किसी वर्ग का तृतीय या चतुर्थ वर्ण आये, या, य, र, ल, व, या कोई स्वर आये, तो 'क्', 'च्', 'ट्', 'त्', 'प',के स्थान में अपने ही वर्ग का तीसरा वर्ण हो जाता है।
जैसे- अच + अन्त = अजन्त
दिक् + गज = दिग्गज
(4) यदि 'क्', 'च्', 'ट्', 'त्', 'प', के बाद 'न' या 'म' आये, तो क्, च्, ट्, त्, प, अपने वर्ग के पंचम वर्ण में बदल जाते हैं।
जैसे- जगत् + नाथ = जगत्राथ
षट् + मास = षण्मास
(5) यदि वर्गों के अन्तिम वर्णों को छोड़ शेष वर्णों के बाद 'ह' आये, तो 'ह' पूर्ववर्ण के वर्ग का चतुर्थ वर्ण हो जाता है और 'ह्' के पूर्ववाला वर्ण अपने वर्ग का तृतीय वर्ण।
जैसे- उत् + हार =उद्धार
(6) हस्व स्वर के बाद 'छ' हो, तो 'छ' के पहले 'च्' जुड़ जाता है। दीर्घ स्वर के बाद 'छ' होने पर यह विकल्प से होता है।
जैसे- परि + छेद = परिच्छेद
3. विसर्ग संधि
विसर्ग के साथ स्वर या व्यंजन मेल से जो विकार होता है, उसे 'विसर्ग संधि' कहते है।
नियम-
(1) यदि विसर्ग के पहले 'अ' आये और उसके बाद वर्ग का तृतीय, चतुर्थ या पंचम वर्ण आये या य, र, ल, व, ह रहे तो विसर्ग का 'उ' हो जाता है और यह 'उ' पूर्ववर्ती 'अ' से मिलकर गुणसन्धि द्वारा 'ओ' हो जाता है।
जैसे- मनः + रथ = मनोरथ
सरः + ज = सरोज
मनः + भाव = मनोभाव
सरः+ वर = सरोवर
मनः+ योग = मनोयोग
(2) यदि विसर्ग के पहले इकार या उकार आये और विसर्ग के बाद का वर्ण क, ख, प, फ हो, तो विसर्ग का ष् हो जाता है।
जैसे- निः + फल =निष्फल
दुः + कर = दुष्कर
(3) यदि विसर्ग के पहले 'अ' हो और परे क, ख, प, फ मे से कोइ वर्ण हो, तो विसर्ग ज्यों-का-त्यों रहता है।
जैसे- पयः + पान = पयःपान
प्रातः + काल = प्रातःकाल
(5) यदि 'इ' - 'उ' के बाद विसर्ग हो और इसके बाद 'र' आये, तो 'इ' - 'उ' का 'ई' - 'ऊ' हो जाता है और विसर्ग लुप्त हो जाता है।
जैसे- निः + रस = नीरस
निः + रोग = नीरोग
(6) यदि विसर्ग के पहले 'अ' और 'आ' को छोड़कर कोई दूसरा स्वर आये और विसर्ग के बाद कोई स्वर हो या किसी वर्ग का तृतीय, चतुर्थ या पंचम वर्ण हो या य, र, ल, व, ह हो, तो विसर्ग के स्थान में 'र्' हो जाता है।
जैसे- दुः + गन्ध = दुर्गन्ध
निः + गुण = निर्गुण
निः + झर = निर्झर
दुः+ नीति = दुर्नीति
निः + मल = निर्मल
(7) यदि विसर्ग के बाद 'च-छ-श' हो तो विसर्ग का 'श्', 'ट-ठ-ष' हो तो 'ष्' और 'त-थ-स' हो तो 'स्' हो जाता है। जैसे- निः + तार = निस्तार
जैसे- निः + शेष = निश्शेष
निः + छल = निश्छल
(8) यदि विसर्ग के आगे-पीछे 'अ' हो तो पहला 'अ' और विसर्ग मिलकर 'ओ' हो जाता है और विसर्ग के बादवाले 'अ' का लोप होता है तथा उसके स्थान पर लुप्ताकार का चिह्न (ऽ) लगा दिया जाता है।
जैसे- प्रथमः + अध्याय = प्रथमोध्याय
यशः + अभिलाषी= यशोभिलाषी
समास
दो या दो से अधिक शब्दों के मिलने से बने शब्द को समास कहते है|
समास के भेद-
समास के छ: भेद होते है|
(1) अव्ययी भाव समास
(2) तत्पुरुष समास
(3) कर्मधारय समास
(4) द्विगु समास
(5) द्वंद्व समास
(6) बहुब्रीहि समास
1. अव्ययी भाव समास
जिस सामासिक शब्द में प्रथम पद प्रधान व दूसरा पद अव्यव होता है, उसे अव्ययीभाव समास कहते है|
उदाहरण:-
जैसे- प्रत्येक – हर एक
परोपकार – दूसरों का उपकार
आजीवन – जीवन भर
यथारूप – रूप के अनुसार
प्रतिकूल – परिस्थिति के विपरीत
प्रत्यक्ष – आँखों के सामने
रातोंरात – रात ही रात में
2. तत्पुरुष समास
जिस समास में बाद का अथवा उत्तरपद प्रधान होता है तथा दोनों पदों के बीच का कारक-चिह्न लुप्त हो जाता है, उसे तत्पुरुष समास कहते है।
जैसे-
तुलसीकृत= तुलसी से कृत
शराहत= शर से आहत
कारक विभक्त चिन्ह
कर्ता => ने
कर्म => को
करण => से (के द्वारा)
संप्रदान => के लिए
अपादान => से
सम्बन्ध => का, की, के
अधिकरण => में, पर
सम्बोधन => अरे जी, ओजी
तत्पुरुष समास के भेद
तत्पुरुष समास के छह भेद होते है-
(i) कर्म तत्पुरुष
(ii) करण तत्पुरुष
(iii) सम्प्रदान तत्पुरुष
(iv) अपादान तत्पुरुष
(v) सम्बन्ध तत्पुरुष
(vi) अधिकरण तत्पुरुष
I. कर्म तत्पुरुष समास (द्वितीय तत्पुरुष समास)
इसमें सामासिक पदों में कर्म कारक की विभक्ति ‘को’ का लोप होता है|
उदाहरण:-
जैसे- मनोहर – मन को हरने वाला
रथचालक - रथ को चलाने वाला
जेबकतरा – जेब को कतरने वाला
II. करण तत्पुरुष समास
इसमें करण कारक की विभक्ति 'से', 'के द्वारा' का लोप हो वहाँ करण तत्पुरुष या तृतीय तत्पुरुष समास होता है|
उदाहरण:-
जैसे :- तुलसीकृत- तुलसी के द्वारा कृत
सूररचित - सूर द्वारा रचित
रेखांकित - रेखा से अंकित
रोग ग्रस्त – रोग से ग्रस्त
III. सम्प्रदान तत्पुरुष / चतुर्थ तत्पुरुष समास
इसके सामाजिक पदों में संप्रदान कारक की विभक्ति ‘के लिए’ का लोप होता है|
उदाहरण:-
जैसे- विद्यालय - विद्या (के लिए) आलय
पुत्रशोक - पुत्र (के लिए) शोक
रसोईघर - रसोई (के लिए) घर
सभाभवन - सभा के लिए भवन
बैलगाड़ी – बैल के लिए गाड़ी
IV. अपादान तत्पुरुष (पंचम तत्पुरुष) समास
इसमे अपादान कारक की विभक्ति 'से' (अलग होने का भाव) लुप्त हो जाती है।
IV. अपादान तत्पुरुष (पंचम तत्पुरुष) समास
उदाहरण:-
जैसे- धनहीन - धन (से) हीन
पापमुक्त - पाप से मुक्त
कामचोर - काम से जी चुरानेवाला
गुण हीन- गुण से हीन
V. सम्बन्ध तत्पुरुष (षष्ठी तत्पुरुष) समास
इसके सामासिक पदों में का, की, के का लोप होता है|
उदाहरण:-
जैसे- राजभवन – राजा का भवन
कृष्णलीला – कृष्ण की लीला
शिवालय - शिव का आलय
श्रमदान - श्रम (का) दान
VI. अधिकरण तत्पुरुष (सप्तमी तत्पुरुष) समास
इसमें अधिकरण कारक की विभक्ति 'में', 'पर' लुप्त जो जाती है।
उदाहरण:-
जैसे- दहीबड़ा – दही में बड़ा
पुरुषोत्तम – पुरुषों में उत्तम
आपबीती – आप पर बीती
कर्तव्य परिणयता – कर्तव्य में परिणयता
3. कर्मधारय समास
जिस समस्त-पद का उत्तरपद प्रधान हो तथा पूर्वपद व उत्तरपद में उपमान-उपमेय अथवा विशेषण-विशेष्य संबंध हो, कर्मधारय समास कहलाता है।
दूसरे शब्दों में-कर्ता-तत्पुरुष को ही कर्मधारय कहते हैं।
पहचान: विग्रह करने पर दोनों पद के मध्य में 'है जो', 'के समान' आदि आते है।
उदाहरण:-
नवयुवक - नव है जो युवक
पीतांबर – पीला है जो अंबर
महात्मा - महान है जो आत्मा
नीलकंठ - नीला है जो कंठ
कर्मधारय तत्पुरुष के चार भेद है-
(i) विशेषणपूर्वपद
(ii) विशेष्यपूर्वपद
(iii) विशेषणोभयपद
(iv) विशेष्योभयपद
4. द्विगु समास
जिसका पूर्वपद संख्यावाचक विशेषण हो, वह द्विगु समास कहलाता है।
उदाहरण:-
जैसे – त्रिलोक - तीनों लोको का समाहार
तिरंगा - तीन रंगों का समूह
नवरात्रि - नौ रात्रियों का समूह
पंचरत्न - पाँच रत्नों का समूह
दोपहर- दो पहरों का समूह
5. द्वन्द्व समास
इस समास में दो पद होते हैं तथा दोनों पदों की प्रधानता होती है| इनका विग्रह करने के लिए ( और , एवं , तथा , या , अथवा ) शब्दों का प्रयोग किया जाता है|
उदाहरण:-
जैसे – नर - नारी - नर और नारी
लेन - देन - लेना और देना
भला - बुरा - भला या बुरा
हरिशंकर - विष्णु और शंकर
माता - पिता – माता और पिता
रात – दिन – रात और दिन
6. बहुब्रीहि समास
अन्य पद प्रधान समास को बहुब्रीहि समास कहते हैं|
इसमें दोनों पद किसी अन्य अर्थ को व्यक्त करते हैं और वे किसी अन्य संज्ञा के विशेषण की भांति कार्य करते हैं|
उदाहरण:-
जैसे – दशानन - दश हैं आनन जिसके (रावण)
पंचानन - पांच हैं मुख जिनके (शंकर जी)
गिरिधर - गिरि को धारण करने वाले (श्री कृष्ण)
चतुर्भुज - चार हैं भुजायें जिनके ( विष्णु )
गजानन - गज के समान मुख वाले ( गणेश जी )
सरोज – तालाब से जन्म लेने वाला (कमल)
महादेव – देवों में महान (शिव)
पंकज – कीचड़ में जन्म लेने वाला (कमल)
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