Tuesday, 19 March 2019

Hindi Grammar हिंदी व्याकरण Part-4







Part-4

Hindi Grammar


हिंदी व्याकरण



संधि

जब दो वर्ण पास-पास होते हैतो पहले शब्द के अंतिम वर्ण का दूसरे शब्द के प्रथम वर्ण के साथ मेल होता हैइनके संयोग से जो विकार उत्पन्न होता है उसे संधि कहते है|

संधि के भेद-

संधि तीन प्रकार की होती है|

(1) स्वर संधि
(2) व्यंजन संधि
(3) विसर्ग संधि

1. स्वर संधि

जब किसी स्वर वर्ण का मेल किसी दूसरे स्वर वर्ण से होता है तो उसे स्वर संधि कहा जाता है|
उदाहरण:-
जैसेविद्या + अर्थी = विद्यार्थी
स्वर वर्ण + स्वर वर्ण = स्वर संधि

स्वर संधि के पाँच भेद होते है|

 (iगुण स्वर संधि
 (ii) दीर्घ स्वर संधि
 (iii) वृद्धि स्वर संधि
 (iv) यण् स्वर संधि
 (v) अयादी स्वर संधि

I. गुण स्वर संधि

नियम - यदि 'या 'के बाद 'या ' ' 'या ' ' और 'आये ,तो दोनों मिलकर क्रमशः '', 'और 'अरहो जाते है।

जैसे/ + / = 
/ + / = 
/ +  = अर्

जैसेविद्या + अर्थी = विद्यार्थी
स्वर वर्ण + स्वर वर्ण = स्वर संधि

उदाहरण:-
राजा + इन्द्र = राजेन्द्र
सूर्य + उदय = सूर्योदय
सप्त + ऋषि = सप्तर्षि
गंगा + ऊर्मि = गंगोर्मि

II. दीर्घ स्वर संधि

नियम - दो सवर्ण स्वर मिलकर दीर्घ हो जाते है। यदि ''',' '', '', '', '', 'और 'के बाद वे ही ह्स्व या दीर्घ स्वर आयेतो दोनों मिलकर क्रमशः '', '', '', 'हो जाते है।

जैसे/ + / = 
/ + / = 
/ + / = 

उदाहरण:-
गिरि + ईश = गिरीश
भानु + उदय = भानूदय
शिव + आलय = शिवालय
कोणअर्क कोणार्क
देव + असूर = देवासूर

  III. वृद्धि स्वर संधि

नियम - यदि 'या 'के बाद 'या ''आयेतो दोनों के स्थान में 'तथा 'या 'आयेतो दोनों के स्थान में 'हो जाता है।

जैसे +  = 
  +  = 
  +  = 
  +  = 
  +  = 
  + औ 

उदाहरण:-

सदा + एव = सदैव
महा + ऐश्वर्य = महैश्वë#2352;्य
एक + एक = एकैक
वन + औषधि = वनौषधि

IV. यण् स्वर संधि
नियम- यदि'', '', '', 'और ''के बाद कोई भित्र स्वर आयेतो इ-ई का ' य् ', '-का 'व्और 'का 'र्हो जाता हैं।

जैसे-  = य्
 ई  = य्
  +  = व्
  +  = व्
  +  = र्
 लृ +  = ल्

उदाहरण:-
अति + आवश्यक = अत्यावश्यक
प्रति + एक = प्रत्येक
अनु +एषण = अन्वेषण
सु + आगतम = स्वागतम
वि + आख्या = व्याख्या

V. अयादी स्वर संधि
नियम- यदि '', '' '', 'के बाद कोई भिन्न स्वर आएतो () 'का 'अय्', ( ) 'का 'आय्', () 'का 'अव्और () 'का 'आवहो जाता है।

जैसे-  +  = अय्
 +  = आय्ओ

उदाहरण:-
पो + अन =पवन
धातु + इक = धात्विक
नै + इका = नायिका
भो + अन = भवन
2. व्यंजन संधि

व्यंजन से स्वर अथवा व्यंजन के मेल से उत्पत्र विकार को व्यंजन संधि कहते है।

नियम-

(1) यदि 'म्के बाद कोई व्यंजन वर्ण आये तो 'म्का अनुस्वार हो जाता है या वह बादवाले वर्ग के पंचम वर्ण में भी बदल सकता है।

जैसेसम् + गम = संगम
अहम् + कार = अहंकार

(2) दि 'त्-द्के बाद 'रहे तो 'त्-द्' 'ल्में बदल जाते है और 'न्के बाद 'रहे तो 'न्का अनुनासिक के बाद 'ल्हो जाता है।

जैसेउत् + लास = उल्लास

(3) यदि 'क्', 'च्', 'ट्', 'त्', '', के बाद किसी वर्ग का तृतीय या चतुर्थ वर्ण आयेयाया कोई स्वर आयेतो 'क्', 'च्', 'ट्', 'त्', '',के स्थान में अपने ही वर्ग का तीसरा वर्ण हो जाता है।

जैसे- अच + अन्त = अजन्त
दिक् + गज = दिग्गज

(4) यदि 'क्', 'च्', 'ट्', 'त्', '', के बाद 'या 'आयेतो क्च्ट्त्अपने वर्ग के पंचम वर्ण में बदल जाते हैं।

जैसे- जगत् + नाथ = जगत्राथ
षट् + मास = षण्मास

(5) यदि वर्गों के अन्तिम वर्णों को छोड़ शेष वर्णों के बाद 'आयेतो 'पूर्ववर्ण के वर्ग का चतुर्थ वर्ण हो जाता है और 'ह्के पूर्ववाला वर्ण अपने वर्ग का तृतीय वर्ण।

जैसे- उत् + हार =उद्धार

(6) हस्व स्वर के बाद 'होतो 'के पहले 'च्जुड़ जाता है। दीर्घ स्वर के बाद 'होने पर यह विकल्प से होता है।

जैसे- परि + छेद = परिच्छेद


3. विसर्ग संधि

विसर्ग के साथ स्वर या व्यंजन मेल से जो विकार होता हैउसे 'विसर्ग संधिकहते है।

नियम-

(1) यदि विसर्ग के पहले 'आये और उसके बाद वर्ग का तृतीयचतुर्थ या पंचम वर्ण आये या यह रहे तो विसर्ग का 'हो जाता है और यह 'पूर्ववर्ती 'से मिलकर गुणसन्धि द्वारा 'हो जाता है।

जैसे- मनः + रथ = मनोरथ
 सरः +  = सरोज
 मनः + भाव = मनोभाव
 सरःवर = सरोवर
 मनःयोग = मनोयोग

 (2) यदि विसर्ग के पहले इकार या उकार आये और विसर्ग के बाद का वर्ण कफ होतो विसर्ग का ष् हो जाता है।

 जैसे- निः + फल =निष्फल
 दुः + कर = दुष्कर

 (3) यदि विसर्ग के पहले 'हो और परे कफ मे से कोइ वर्ण होतो विसर्ग ज्यों-का-त्यों रहता है।

 जैसे- पयः + पान = पयःपान
 प्रातः + काल = प्रातःकाल

 (5) यदि '' - 'के बाद विसर्ग हो और इसके बाद 'आयेतो '' - 'का '' - 'हो जाता है और विसर्ग लुप्त हो जाता है।

 जैसे- निः + रस = नीरस
 निः + रोग = नीरोग

 (6) यदि विसर्ग के पहले 'और 'को छोड़कर कोई दूसरा स्वर आये और विसर्ग के बाद कोई स्वर हो या किसी वर्ग का तृतीयचतुर्थ या पंचम वर्ण हो या यह होतो विसर्ग के स्थान में 'र्हो जाता है।

  जैसे-  दुः + गन्ध = दुर्गन्ध
 निः + गुण = निर्गुण
 निः + झर = निर्झर
 दुःनीति = दुर्नीति
 निः + मल = निर्मल

 (7) यदि विसर्ग के बाद '--हो तो विसर्ग का 'श्', '--हो तो 'ष्और '--हो तो 'स्हो जाता है। जैसेनिः + तार = निस्तार
 जैसे-  निः + शेष = निश्शेष
 निः + छल = निश्छल

 (8) यदि विसर्ग के आगे-पीछे 'हो तो पहला 'और विसर्ग मिलकर 'हो जाता है और विसर्ग के बादवाले 'का लोप होता है तथा उसके स्थान पर लुप्ताकार का चिह्न (लगा दिया जाता है।

 जैसे-  प्रथमः + अध्याय = प्रथमोध्याय
 यशः + अभिलाषीयशोभिलाषी




समास 

दो या दो से अधिक शब्दों के मिलने से बने शब्द को समास कहते है|

समास के भेद-

समास के छभेद होते है|

(1) अव्ययी भाव समास 
(2) तत्पुरुष समास 
(3) कर्मधारय समास 
(4) द्विगु समास 
(5) द्वंद्व समास 
(6) बहुब्रीहि समास

1. अव्ययी भाव समास

जिस सामासिक शब्द में प्रथम पद प्रधान व दूसरा पद अव्यव होता हैउसे अव्ययीभाव समास कहते है|
उदाहरण:-
जैसेप्रत्येक – हर एक
 परोपकार – दूसरों का उपकार
 आजीवन – जीवन भर
 यथारूप – रूप के अनुसार
 प्रतिकूल – परिस्थिति के विपरीत
 प्रत्यक्ष – आँखों के सामने
 रातोंरात – रात ही रात में

2. तत्पुरुष समास

जिस समास में बाद का अथवा उत्तरपद प्रधान होता है तथा दोनों पदों के बीच का कारक-चिह्न लुप्त हो जाता हैउसे तत्पुरुष समास कहते है।

जैसे-
तुलसीकृततुलसी से कृत
शराहतशर से आहत

कारक         विभक्त चिन्ह
कर्ता   =>    ने
कर्म    =>    को
करण   =>    से (के द्वारा)
संप्रदान =>   के लिए
अपादान =>    से
सम्बन्ध =>    काकीके
अधिकरण =>  मेंपर
सम्बोधन =>   अरे जीओजी

तत्पुरुष समास के भेद
तत्पुरुष समास के छह भेद होते है-

(i) कर्म तत्पुरुष
(ii) करण तत्पुरुष
(iii) सम्प्रदान तत्पुरुष
(iv) अपादान तत्पुरुष
(v) सम्बन्ध तत्पुरुष
(vi) अधिकरण तत्पुरुष

I. कर्म तत्पुरुष समास (द्वितीय तत्पुरुष समास)

इसमें सामासिक पदों में कर्म कारक की विभक्ति ‘को’ का लोप होता है|
उदाहरण:-
जैसेमनोहर – मन को हरने वाला
रथचालक - रथ को चलाने वाला
जेबकतरा – जेब को कतरने वाला

II. करण तत्पुरुष समास

इसमें करण कारक की विभक्ति 'से', 'के द्वाराका लोप हो वहाँ करण तत्पुरुष या तृतीय तत्पुरुष समास होता है|
उदाहरण:-
जैसे :- तुलसीकृततुलसी के द्वारा कृत
सूररचित - सूर द्वारा रचित
रेखांकित - रेखा से अंकित
रोग ग्रस्त – रोग से ग्रस्त

III. सम्प्रदान तत्पुरुष / चतुर्थ तत्पुरुष समास

इसके सामाजिक पदों में संप्रदान कारक की विभक्ति ‘के लिए’ का लोप होता है|
उदाहरण:-
जैसेविद्यालय - विद्या (के लिएआलय
पुत्रशोक - पुत्र (के लिएशोक
रसोईघर - रसोई (के लिएघर
सभाभवन - सभा के लिए भवन
बैलगाड़ी – बैल के लिए गाड़ी

IV. अपादान तत्पुरुष (पंचम तत्पुरुषसमास

इसमे अपादान कारक की विभक्ति 'से' (अलग होने का भावलुप्त हो जाती है।
IV. अपादान तत्पुरुष (पंचम तत्पुरुषसमास
उदाहरण:-
जैसेधनहीन - धन (सेहीन
पापमुक्त - पाप से मुक्त
कामचोर - काम से जी चुरानेवाला
गुण हीनगुण से हीन

V. सम्बन्ध तत्पुरुष (षष्ठी तत्पुरुषसमास

इसके सामासिक पदों में काकीके का लोप होता है|
उदाहरण:-
जैसेराजभवन – राजा का भवन
कृष्णलीला – कृष्ण की लीला
शिवालय - शिव का आलय
श्रमदान - श्रम (कादान

VI. अधिकरण तत्पुरुष (सप्तमी तत्पुरुषसमास

इसमें अधिकरण कारक की विभक्ति 'में', 'परलुप्त जो जाती है।
उदाहरण:-
जैसेदहीबड़ा – दही में बड़ा
पुरुषोत्तम – पुरुषों में उत्तम
आपबीती – आप पर बीती
कर्तव्य परिणयता – कर्तव्य में परिणयता

3. कर्मधारय समास

जिस समस्त-पद का उत्तरपद प्रधान हो तथा पूर्वपद व उत्तरपद में उपमान-उपमेय अथवा विशेषण-विशेष्य संबंध होकर्मधारय समास कहलाता है।
दूसरे शब्दों में-कर्ता-तत्पुरुष को ही कर्मधारय कहते हैं।

पहचानविग्रह करने पर दोनों पद के मध्य में 'है जो', 'के समानआदि आते है।
उदाहरण:-
नवयुवक - नव है जो युवक
पीतांबर – पीला है जो अंबर
महात्मा - महान है जो आत्मा
नीलकंठ - नीला है जो कंठ

कर्मधारय तत्पुरुष के चार भेद है-

(iविशेषणपूर्वपद
(ii) विशेष्यपूर्वपद 
(iii) विशेषणोभयपद
(iv) विशेष्योभयपद

4. द्विगु समास

जिसका पूर्वपद संख्यावाचक विशेषण होवह द्विगु समास कहलाता है।
उदाहरण:-
जैसे – त्रिलोक - तीनों लोको का समाहार
तिरंगा - तीन रंगों का समूह
नवरात्रि - नौ रात्रियों का समूह
पंचरत्न - पाँच रत्नों का समूह
दोपहरदो पहरों का समूह

5. द्वन्द्व समास

इस समास में दो पद होते हैं तथा दोनों पदों की प्रधानता होती हैइनका विग्रह करने के लिए  ( और , एवं , तथा , या , अथवा ) शब्दों का प्रयोग किया जाता है|
उदाहरण:-
जैसे – नर - नारी  -   नर और नारी
लेन - देन  - लेना और देना
भला - बुरा - भला या बुरा
हरिशंकर   -  विष्णु और शंकर
माता - पिता – माता और पिता
रात – दिन – रात और दिन


6. बहुब्रीहि समास

अन्य पद प्रधान समास को बहुब्रीहि समास कहते हैं|
इसमें दोनों पद किसी अन्य अर्थ को व्यक्त करते हैं और वे किसी अन्य संज्ञा के विशेषण की भांति कार्य करते हैं|
उदाहरण:-
जैसे – दशानन - दश हैं आनन जिसके (रावण)
पंचानन - पांच हैं मुख जिनके (शंकर जी)
गिरिधर - गिरि को धारण करने वाले   (श्री कृष्ण)
चतुर्भुज - चार हैं भुजायें जिनके  ( विष्णु )
गजानन - गज के समान मुख वाले  ( गणेश जी )
सरोज – तालाब से जन्म लेने वाला (कमल)
महादेव – देवों में महान (शिव)
पंकज – कीचड़ में जन्म लेने वाला (कमल)

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