Monday 5 August 2019

Class 12 Psychology(Manovigyan) मनोवैज्ञानिक विकार (Psychological Disorders) - Ncert Solution with MCQ in hindi



Class - 12
Psychology(Manovigyan)


मनोवैज्ञानिक विकार (Psychological Disorders)




1)           अपसामान्य व्यवहार वह व्यवहार है जो विसामान्य, कष्टप्रद, अपक्रियात्मक और दु:खद होता है।
2)           'अपसामान्य' का शाब्दिक अर्थ है 'जो सामान्य से परे है' अर्थात् जो स्पष्ट रूप से परिभाषित मानकों या मापदंडों से हटकर है।
3)           वैसे व्यवहार जो सामाजिक मानकों से विचलित होते हैं और जो उपयुक्त संवृद्धि एवं क्रियाशीलता में बाधक होते हैं, अपसामान्य व्यवहार कहलाते हैं।
4)           सामान्य और अपसामान्य व्यवहार में विभेद करने के लिए प्रयुक्त उपागमों में दो मूल और द्वंद्वात्मक दृष्टिकोण उत्पन्न हुए हैं। पहला उपागम अपसामान्य व्यवहार को सामाजिक मानकों से विचलित व्यवहार मानता है तथा दूसरा उपागम अपसामान्य व्यवहार को दुरनुकूलक व्यवहार के रूप में समझता है।
5)           अपसामान्य व्यवहार, विचार और संवेग वे हैं जो उचित प्रकार्यों से संबंधित समाज के विचारों से काफी भिन्न हों।
6)           समाज के कुछ मानक समाज में उचित आचरण के लिए कथित या अकथित नियम होते हैं।
7)           वे व्यवहार, विचार और संवेग जो सामाजिक मानकों को तोड़ते हैं, अपसामान्य कहे जाते हैं।
8)           प्रत्येक समाज के मानक उसकी विशिष्ट संस्कृति, उसके इतिहास, मूल्यों, संस्थानों, आदतों, कौशलों, प्रौद्योगिकी और कला से विकसित होते हैं।
9)           दूसरे उपागम के अनुसार कोई अनुरूप व्यवहार अपसामान्य हो सकता है यदि वह दुरनुकूलक है, अर्थात् यदि यह इष्टतम प्रकार्य तथा वृद्धि में बाधा पहुँचाता है।
10)      अपसामान्य व्यवहार के इतिहास में तीन परिप्रेक्ष्य या दृष्टिकोण हैं-अतिप्राकृत, जैविक या आंगिक और मनोवैज्ञानिक।
11)      मनोवैज्ञानिक अंत:क्रियात्मक या जैव-मनो-सामाजिक उपागम में ये तीनों कारक-जैविक, मनोवैज्ञानिक तथा सामाजिक-मनोवैज्ञानिक विकारों में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
12)      अतिप्राकृत दृष्टिकोण के अनुसार अपसामान्य व्यवहार किसी अलौकिक और जादुई शक्तियों के कारण होता है। जैसे-बुरी आत्माएँ या शैतान।
13)      जैविक या आंगिक उपागम के अनुसार व्यक्ति इसलिए विचित्र ढंग से व्यवहार करता है क्योंकि उसका शरीर और मस्तिष्क उचित प्रकार से काम नहीं करते।
14)      मनोवैज्ञानिक उपागम के अनुसार मनोवैज्ञानिक समस्याएँ व्यक्ति के विचारों, भावनाओं तथा संसार को देखने के नजरिए में अपर्याप्तता के कारण उत्पन्न होती है।
15)      हिपोक्रेटस, सुकरात और विशेष रूप से प्लेटो ने सर्वांगिक उपागम को विकसित किया और बाधित व्यवहार को संवेग और तर्क के बीच द्वंद्व के कारण उत्पन माना।
16)      ग्लेन के अनुसार व्यक्तिगत चरित्र और स्वभाव में चार वृत्ति-रक्त, काला पित्त, पीला पित्त और श्लेष्मा की महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है और इन वृत्तियों में असंतुलन होने से विभिन्न विकार उत्पन्न होते हैं।
17)      मध्य युग में भूतविद्या यानि मानसिक समस्याओं से ग्रसित व्यक्ति में दुष्ट आत्माएँ होती हैं और अंधविश्वासों ने अपसामान्य व्यवहार के कारणों की व्याख्या करने में महत्त्व प्राप्त किया।
18)      पुनर्जागरण काल में अपसामान्य व्यवहार के बारे में जिज्ञासा और मानवतावाद पर बल दिया गया और मनोवैज्ञानिक द्वंद्व तथा अंतर्वैयक्तिक संबंधों में बाधा को मनोवैज्ञानिक विकारों का महत्त्वपूर्ण कारण माना।
19)      वर्तमान समय में अन्योन्य-क्रियात्मक तथा जैव-मूनो-सामाजिक उपागम का अभ्युदय हुआ है।
20)      मनोवैज्ञानिक विकारों का वर्गीकरण विश्व स्वास्थ्य संगठन और अमेरिकी मनोरोग संघ के द्वारा किया गया है।
21)      अमेरिकी मनोरोग संघ द्वारा प्रकाशित पुस्तक 'डायग्नोस्टिक एंड स्टैटिस्टिकल मैनुअल ऑफ मेंटल डिसआर्डर' चतुर्थ संस्करण रोगी के मानसिक विकार के पाँच आयामों जैविक, मनोवैज्ञानिक, सामाजिक तथा अन्य दूसरे पक्षों पर मूल्यांकन करता है।
22)      विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा तैयार बीमारियों के अंतर्राष्ट्रीय वर्गीकरण का दसवाँ संस्करण जिसे आई. सी. डी.-10 व्यवहारात्मक एवं मानसिक विकारों का वर्गीकरण कहा जाता है में प्रत्येक विकार के नैदानिक लक्षण और उनसे संबंधित अन्य लक्षणों तथा नैदानिक पथ-प्रदर्शिका का वर्णन किया गया है।
23)      अपसामान्य व्यवहार की व्याख्या करने के लिए कई प्रकार के मॉडल प्रयुक्त किये गये हैं। ये जैविक, मनोगतिक, व्यवहारात्मक, संज्ञानात्मक, मानवतावादी अस्तित्वपरक, रोगोन्मुखता दबाव तंत्र और सामाजिक सांस्कृतिक उपागम हैं।
24)      जैविक मॉडल के अनुसार अपसामान्य व्यवहार का एक जीव रासायनिक या शरीर-क्रियात्मक आधार होता है। जैविक कारक जैसे-दोषपूर्ण जीन, अंत:स्रोवी असंतुलन, कुपोषण, चोट तथा अन्य दशाएँ शरीर के कार्य एवं सामान्य विकास में बाधा पहुँचाते हैं।
25)      जब कोई विद्युत आवेग तत्रिका कोशिका के अंतिम छोर तक पहुँचता है तब अक्षतंतु उद्दीप्त होकर कुछ रसायन प्रवाहित करते हैं जिसे तत्रिका-संचारक या न्यूरोट्रांसमीटर कहते हैं।
26)      आनुवंशिक कारकों का संबंध भावदशा विकारों, मनोविदलता, मानसिक मंदन तथा अन्य मनोवैज्ञानिक विकारों से पाया गया हैं।
27)      मनोवैज्ञानिक मॉडल के अनुसार अपसामान्य व्यवहार में मनोवैज्ञानिक और अंतर्वैयक्तिक कारकों की महत्त्वपूर्ण भूमिका होती हैं।
28)      मनोगतिक, व्यवहारात्मक, संज्ञानात्मक तथा मानवतावादी अस्तित्वपरक मॉडल मनोवैज्ञानिक मॉडल के अंतर्गत आते हैं।
29)      मनोगतिक मॉडल के अनुसार व्यवहार चाहे सामान्य हो या अपसामान्य वह व्यक्ति के अंदर की मनोवैज्ञानिक शक्तियों के द्वारा निर्धारित होता है, जिनके प्रति वह स्वयं चेतन रूप से अनभिज्ञ होता है।
30)      मनोगतिक मॉडल सर्वप्रथम फ्रॉयड द्वारा प्रतिपादित किया गया था जिनके अनुसार तीन केन्द्रीय शक्तियाँ-मूल प्रवृतिक आवश्यकताएँ, अंतर्नाद तथा आवेग तार्किक चिंतन तथा नैतिक मानक व्यक्तित्व का निर्माण करती है।
31)      फ्रॉयड के अनुसार अपसामान्य व्यवहार अचेतन स्तर पर होने वाले मानसिक द्वंद्रों की प्रतीकात्मक अभिव्यक्ति है।
32)      व्यवहारात्मक मॉडल बताता है कि सामान्य और अपसामान्य दोनों व्यवहार अधिगत होते हैं और मनोवैज्ञानिक विकार व्यवहार करने के दुरनुकूलक तरीके सीखने के परिणामस्वरूप होते हैं।
33)      संज्ञानात्मक मॉडल भी मनोवैज्ञानिक कारकों पर जोर देता है। इस मॉडल के अनुसार अपसामान्य व्यवहार संज्ञानात्मक समस्याओं के कारण घटित हो सकते हैं।
34)      मानवतावादीअस्तित्वपरक मॉडल मनुष्य के अस्तित्व के व्यापक पहलुओं पर जोर देता है।
35)      सामाजिक-सांस्कृतिक मॉडल के अनुसार जिन लोगों में कुछ समस्याएँ होती हैं उनमें अपसामान्य व्यवहारों की उत्पत्ति | सामाजिक संज्ञाओं और भूमिकाओं से प्रभावित होती है। जब लोग समाज के मानकों को तोड़ते हैं तो उन्हें 'विसामान्य' और | 'मानसिक रोगी' की संज्ञाएँ दी जाती हैं।
36)      रोगोन्मुखता दबाव मॉडल का मानना है कि जब कोई रोगोन्मुखता किसी दबावपूर्ण स्थिति के कारण सामने जाती है तब मनोविकार उत्पन्न होते हैं।
37)      रोगोन्मुखता दबाव मॉडल के तीन घटक हैं-1. रोगोन्मुखता या कुछ जैविक विपथन जो वंशगत हो सकते हैं, 2. रोगोन्मुखता के कारण किसी मनोवैज्ञानिक विकार के प्रति दोषपूर्णता उत्पन्न हो सकती है और 3. विकारी प्रतिबलकों की उपस्थिति है।
38)      प्रमुख मनोवैज्ञानिक विकारों में दुश्चिता, कायरूप, विच्छेदी, भावदशा, मनोविदलन, विकासात्मक एवं व्यवहारात्मक तथा मादक द्रव्यों के सेवन से संबद्ध विकार आते हैं।
39)      सामान्यत: दुश्चिता शब्द को भय और आशंका की विस्रत, अस्पष्ट और अप्रीतिकर भावना के रूप में परिभाषित किया जाता है। एक दुश्चित व्यक्ति में निम्न लक्ष्ण होते हैं-हदयगति का तेज होना, साँस की कमी होना, दस्त होना, भूख लगना, बेहोशी, चक्कर आना, पसीना आना, निद्रा की कमी, कँपकँपी आना, बार-बार मूत्र त्याग करना आदि।
40)      लम्बे समय तक चलने वाले, अस्पष्ट, अवर्णनीय तथा तीव्र भय जो किसी भी विशिष्ट वस्तु के प्रति जुड़े हुए नहीं होते हैं तथा भविष्य के प्रति आकुलता एवं आशंका तथा अत्यधिक सतर्कता यहाँ तक कि पर्यावरण में किसी भी प्रकार के खतरे की छानबीन शामिल होती है सामान्यीकृत दुश्चिता विकार कहलाता है।
41)      सामान्यीकृत दुश्चिता विकार में पेशीय तनाव होता है। परिणामस्वरूप व्यक्ति विश्राम नहीं कर पाता है, बेचैन रहता है तथा स्पष्ट रूप से कमजोर और तनावग्रस्त दिखाई देता है।
42)      आतंक विकार में दुरिंचता के दौरे लगातार पड़ते रहते हैं और व्यक्ति तीव्र त्रास या दहशत का अनुभव करता है। आतंक विकार में निम्न लक्षण होते हैं-साँस की कमी, चक्कर आना, कँपकँपी, दिल धड़कना, दम घुअना, जी मिचलाना, छाती में दर्द या बेचैनी, सनकी होने का भय आदि।
43)      दुर्थीति-जिन लोगों को दुर्भीति होती है उन्हें किसी विशिष्ट वस्तु, लोभ या स्थितियों के प्रति अविवेकी या अतर्क भय होता है। दुर्भीति बहुधा धीरे-धीरे या सामान्यीकृत दुश्चिता विकार से उत्पन्न होती है। 
44)      दुर्थीति मुख्यतया तीन प्रकार के होते हैं-1. विशिष्ट दुर्मीति, 2. सामाजिक दुर्मीति तथा 3. विवृत्ति भीति।
45)      सामान्यतः घटित होने वाली दुर्थीति जिसमें अविवेकी यी अर्तक भय होता है, विशिष्ट दुर्मीति कहलाती है।
46)      सापाजिक दुर्थीति-दूसरों के साथ बर्ताव करते समय तीव्र और अक्षम करने वाला भय तथा उलझन अनुभव करने का लक्षण है।
47)      ववृतिभीति-जब लोग अपरिचित स्थितियों में प्रवेश करने के भय से ग्रसित हो जाते हैं तथा जीवन की सामान्य गतिविधियों का निर्वहन करने की उनकी योग्यता भी अत्यधिक सीमित हो जाती है।
48)      पनोग्रस्ति-बाध्यता विकार से पीड़ित व्यक्ति कुछ विशिष्ट विचारों में अपनी ध्यानमग्नत को नियत्रत करने में असमर्थ होते | हैं या अपने आपको बार-बार कोई विशेष क्रिया करने से रोक नहीं पाते हैं।
49)      किसी विशेष विचार या विषय पर चिंतन को रोक पाने की असमर्थता को मनोग्रस्ति व्यवहार कहते हैं।
50)      किसी व्यवहार को बार-बार करने की आवश्यकता बाध्यता व्यवहार कहलाता है। बाध्यता में गिनना, आदेश देना, जाँचना, छूना और धोनी सम्मिलित होते हैं।
51)      उत्तर अभिघतज दबाव विकार-बार-बार आने वाले स्वप्न, अतोताक्तोकन, एकाग्रता में कमी और सांवेगिक शून्यता का | होना जो किसी अभिघातज या दबावपूर्ण घटना, जैसे-प्राकृतिक विपदा, गंभीर दुर्घटना इत्यादि के पश्चात् व्यक्ति द्वारा अनुभव किये जाते हैं।
52)      कायरूप विकारों में व्यक्ति को मनोवैज्ञानिक कठिनाइयाँ होती हैं और वह शिकायत उन शारीरिक लक्षणों की करता है जिसका कोई जैविक कारण नहीं होता, जैसे-पीड़ा विकार, काय-आलंबिती विकार परिवर्तन विकार, तथा स्वकायदुश्चिता रोग।
53)      पीड़ा विकार में अति तीव्र और अक्षम करने वाली पीड़ा होती है जो या तो बिना किसी अभिज्ञेय जैविक लक्षणों के होता है। या जितना जैविक लक्षण होना चाहिए उससे कहीं ज्यादा बताया जाता है।
54)      क़ाय-आलंबिता विकार-व्यक्ति अस्पष्ट और बार-बार घटित होने वाले तथा बिना किसी आंगिक कारण के शारीरिक लक्षण जैसे-पीड़ा, अम्लता इत्यादि को प्रदर्शित करता है।
55)      परिवर्तन विकार-व्यक्ति संवेदी या पेशीय प्रकार्यों जैसे-पक्षाघात, अंधापन इत्यादि में क्षति या हानि प्रदर्शित करता है जिसका कोई शारीरिक कारण नहीं होता किंतु किसी दबाव या मनोवैज्ञानिक समस्याओं के प्रति व्यक्ति की अनुक्रिया के कारण हो सकता है।
56)      व्यक्तित्व लोप-व्यक्तित्व लोप में एक स्वप्न जैसी अवस्था होती है जिसमें व्यक्ति को स्व और वास्तविकता दोनों से अलग होने की अनुभूति होती है। आत्म-प्रत्यक्षण में परिवर्तन होता है और व्यक्ति का कस्तविकता बो अस्थायी स्तर पर लुप्त हो जाता है।
57)      विच्छेदी स्मृतितोप-व्यक्ति अपनी महत्त्वपूर्ण, व्यक्तिगत सूचनाएँ जो अक्सर दबावपूर्ण और अभिघातज सूचना से संबंधित हो सकती हैं का पुनः स्मरण करने में असमर्थ होता है।
58)      स्वकायरिंचता रोग-जब चिकित्सा आश्वासने, किसी भी शारीरिक लक्षणों को पाया जाना या बीमारी के बढ़ने के बावजूद रोगी लगातार यह मानता है कि उसे गंभीर बीमारी है स्वकायदुश्चिता रोग कहलाता है।
59)      चेतना में अचानक और अस्थायी परिवर्तन जो कष्टकर अनुभवों को रोक देता है विच्छेदी विकार की मुख्य विशेषता होती है। विच्छेदी स्मृतिलोप, विच्छेदी आत्मविस्मृति, विच्छेदी पहचान विकार तथा व्यक्तित्व-लोप विच्छेदी विकार की चार स्थितियाँ हैं।
60)      विच्छेदी-स्मृतिलोप में अत्यधिक किन्तु चयनात्मक स्मृतिभ्रंश होता है जिसका कोई ज्ञात आंगिक कारण नहीं होता है।
61)      विच्छेदी आत्मविस्मृति में व्यक्ति एक विशिष्ट विकार से ग्रसित होता है जिसमें स्मृतिलोप और दबावपूर्ण पर्यावरण से भाग जाना दोनों का मेल होता है।
62)      विच्छेदी पहचान में व्यक्ति दो अधिक भिन्न और वैषम्यात्मक व्यक्तित्व को प्रदर्शित करता है जो अक्सर शारीरिक दुर्व्यवहार से जुड़ा होता है।
63)      व्यक्ति की भावदशा या लम्बी संवेगात्मक स्थिति में जब बाधाएँ जाती हैं तो वह भावदशा विकार कहलाती है। सबसे अधिक होने वाला भावदशा विकार अवसाद होता है जिसमें कई प्रकार के नकारात्मक भावदशा और व्यवहार परिवर्तन होते हैं।
64)      मुख्य अवसादी विकार में अवसादी भाषदशा की अवधि होती है तथा अधिकांश गतिविधियों में अभिरुचि या आनंद नहीं रह जाता।
65)      उन्माद एक कम सामान्य भावदशा विकार है। उन्माद से पीड़ित व्यक्ति उल्लासोन्मादी, अत्यधिक सक्रिय, अत्यधिक बोलने वाले तथा आसानी से चित्त-अस्थिर हो जाते हैं।
66)      मनोविदतता शब्द मनस्तापी विकारों के एक समूह के लिए उपयोग किया जाता है जिसमें व्यक्ति की चिंतन प्रक्रिया में वाधा, विचित्र प्रत्यक्षण, अस्वाभाविक सांवेगिक स्थितियाँ तथा पेशीय अपसामान्यता के परिणामस्वरूप उसकी व्यक्तिगत, सामाजिक और व्यावसायिक गतिविधियों में अवनति हो जाती है।
67)      कुछ रोग किसी भी प्रकार का संवेग प्रदर्शित नहीं करते जिसे कुंठित भाव की स्थिति कहते हैं।
68)      मनोविदलता के रोगी इच्छाशक्ति न्यूनता अर्थात् किसी काम को शुरू करने या पूरा करने में उभसर्थता तथा उदासीनता प्रदर्शित करते हैं।
69)      क्षुधतिशयता में व्यक्ति बहुत अधिक मात्रा में खाना खा सकता है, उसके बाद रेचक और मूत्रवर्धक दवाओं के सेवन से या उल्टी करके, खाने को अपने शरीर से साफ कर सकता है।
70)      नियमित रूप से लगातार मादक द्रव्यों के सेवन से उत्पन्न होने वाले दुरनुकूलक व्यवहारों से संबंधित विकारों को मादक द्रव्य दुरुपयोग विकार कहा जाता है।



(Multiple Choice Questions)
सही विकल्प पर (ü) के चिह्न लगाइए :


1. सभी ऐल्कोहॉल पेय पदार्थों में होता है
() मिथाइल ऐल्कोहॉल 
() एथाइल ऐल्कोहॉल 
() कीटोन 
() इनमें से कोई नहीं 

2. निम्नलिखित में कौन सा मादक पदार्थ है
() केफीन 
() गाँजा 
() भांग
() उपरोक्त सभी 

3. निम्नलिखित में कौन निकोटिन की श्रेणी में आता है
() हशीश
() हेरोइन 
() तंबाकू
() इनमें से कोई नहीं 

4. गांजा एक प्रकार का
() केफीन है। 
() कोकीन है। 
() केनेबिस है 
() निकोटिन है।

5. निम्नलिखित में कौन मादक पदार्थ की श्रेणी में आते हैं
() गोंद
() पेंट 
() सिगरेट
() उपरोक्त सभी 

6. अग्रलिखित में कौन केफीन नहीं है
() कॉफी
() चॉकलेट 
() कफ सिरप 
() कोको 

7. मेस्कालाइन एक
() विभ्रांति उत्पादक है 
() निकोटिन है। 
() शामक है 
() ओपिऑयड है।

8. विसामान्य कष्टप्रद अपक्रियात्मक और दु:खद व्यवहार को कहा जाता है
() सामान्य व्यवहार 
() अपसामान्य व्यवहार 
() विचित्र व्यवहार 
() इनमें से कोई नहीं

9. निम्नलिखित में अपसामान्य व्यवहार के कौन-से परिप्रेक्ष्य नहीं हैं ?
() अतिप्राकृत
() अजैविक 
() जैविक
() आगिक 

10. हेरोइन एक प्रकार का
() कोकीन है 
() केनेबिस है। 
() ओपिऑयड है 
() केफीन है।

11. निम्नलिखित में कौन ओपिऑयड नहीं है ?
() मोरफोन
() कफसिरप
() पीडानाशक गोलियाँ
() एल. एल. डी.

12. निम्नलिखित में कौन काय-आलंबिता विकार के लक्षण नहीं हैं ?
() खूब खाना
() सिरदर्द
() थकान
() उलटी करना

13. निम्नलिखित में कौन कायरूप विकार नहीं है ?
() परिवर्तन विकार
() स्वकीयदुश्चिता रोग
() विच्छेदी विकार
() पीड़ा विकार

14. किस विकार में व्यक्ति प्रत्यावर्ती व्यक्तित्वों की कल्पना करता है जो आपस में एक-दूसरे के प्रति जानकारी रख सकते हैं या नहीं रख सकते हैं ?
() विच्छेदी पहचान विकार
() पीड़ा विकार
() विच्छेदी स्मृतिलोप
() इनमें से कोई नहीं

15. उत्तर अभिघातज दबाव विकार के लक्षण होते हैं।
() बार-बार आने वाले स्वप्न
() एकाग्रता में कमी
() सांवेगिक शून्यता का होना
() उपरोक्त सभी

16. किसी विशिष्ट वस्तु, दूसरों के साथ अंतःक्रिया तथा अपरिचित स्थितियों के प्रति अविवेकी भय का होना कहलाता है :
() आतंक विकार
() दुभींति
() उत्तर अभिघातज दबाव विकार
() इनमें से कोई नहीं

17. दुश्चितित व्यक्ति में कौन-से लक्षण पाए जाते हैं?
() हृदय गति का तेज होन
() साँस की कमी होना
() दस्त होना
() उपरोक्त सभी

18. आनुवंशिक कारकों का संबंध कहाँ पाया गया है?
() भावदशा विकारों
() मनोविदलता
() मानसिक मंदन
() उपरोक्त सभी

19. दुश्चिता विकार का संबंध किससे है ?
() डोपामाइन से
() सीरोटोनिन से
() गामा एमिनोब्यूटिरिकएसिड से
() इनमें से कोई नहीं

20. निम्नलिखित में किसने सर्वांगीण उपागम को विकसित किया ?
() प्लेटो
() एडलर
() पार्कर
() फौकमैन

21. ग्लेन ने व्यक्तिगत चरित्र और स्वभाव में किस वृत्ति की भूमिका को बताया ?
() पृथ्वी
() वायु
() अग्नि और जल
() उपरोक्त सभी

22. निम्नलिखित में कौन जैविक कारक हैं ?
() दोषपूर्ण जीन
() अंत:स्रावी असंतुलन
() कुपोषण
() उपरोक्त सभी

23. निम्नलिखित में कौन एमफिटामाइंस नहीं है ?
() डायट गोलियाँ
() चाय
() मेटाएमफिटामाइंस
() डेक्स्ट्रोफिटापाइंस

24, पीड़ानाशक गोलिय एक प्रकार का :
() केफीन है।
() ओपिऑयड है।
() निकोटिन है।
() इनमें से कोई नहीं

उत्तर
1. (),
2. (),
3. (),
4. (),
5. (),
6. (),
7. (),
8. (),
9. (),
10. (),
11. (),
12. (),
13. (),
14. (),
15. (),
16. (),
17. ()
18. (),
19. (),
20. (),
21. (),
22. (),
23. (),
24. ()


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