Friday 13 September 2019

Idioms in hindi लोकोक्तियाँ Part - 2

Idioms in Hindi 
लोकोक्तियाँ
Part-2
लोकोक्ति या कहावत | 

(71) चमड़ी जाए पर दमड़ी जाए (अत्यधिक कंजूस होना)-राहुल से कुछ भी प्राप्त होने की आशा मत रखना; क्योंकि उसने तो अपने जीवन का सिद्धान्त ही बना रखा है कि 'चमड़ी जाए पर दमड़ी जाए।'
(72) चार दिन की चाँदनी, फिर अँधेरी रात (सुख के दिन हमेशा नहीं रहते)-धन-दौलत पर गर्व नहीं करना चाहिए। यह तो तारों की तरह सवेरा होते ही विलीन हो जाती है। कहा भी गया है कि 'चार दिन की चाँदनी, फिर अँधेरी रात।
(73) चाँद पर थूको, मुँह पर ही गिरेगा (भले आदमी की निन्दा से अपना ही नुकसान होता है)-महात्मा जी का यश सर्वत्र फैला हुआ था। जुगल ने उनके विषय में यह अफवाह फैलाना भी शुरू कर दी कि ये महात्मा नहीं रँगा सियार हैं। महात्मा जी के भक्तों और मानने वालों ने जब यह सुना तो उन्होंने जुगल से अपने सम्बन्ध तोड़ लिये। ठीक ही कहा गया है कि 'चाँद पर थूको तो मुँह पर ही गिरेगा।
(74) चिरागतले अँधेरा (अपना दोष स्वयं को दिखाई देना)-दिल्ली देश की राजधानी है, यहाँ सभी प्रशासनिक व्यवस्थाएँ अपने चरमोत्कर्ष पर हैं, फिर भी राजधानी में लूट, हत्याएँ आदि होती ही रहती हैं। तभी तो कहा गया है कि 'चिराग तले अँधेरा होता ही है।
(75) चोर के साथी गिरहकट (अपने जैसा ही साथी ढूँढना)-राजेश इण्टरमीडिएट परीक्षा में अनुत्तीर्ण हो गया। उत्तीर्ण होने वाले सभी विद्यार्थियों से उसने मित्रता तोड़ दी। अब उसके वही मित्र रह गये थे, जो अनुत्तीर्ण हो गये थे। ठीक ही कहा है कि 'चोर के साथी गिरहकट' ही होते हैं।
(76) चोर के पैर नहीं होते (अपराधी में शक्ति/स्थिरता नहीं होती)-पुलिस के सघन पूछताछ करने पर उसने पूरा मामला ही उगल दिया। कहा भी गया है-'चोर के पैर नहीं होते।
(77) चोर की दाढ़ी में तिनका (दोषी सदैव सशंकित रहता है)-दीनदयाल की पुस्तक खोने पर अध्यापक ने सभी छात्रों से तलाशी देने के लिए कहा तो रामू ने सकपकाकर अपना बस्ता ही खिड़की से बाहर फेंक दिया। इससे स्पष्ट हो गया कि 'चोर की दाढ़ी में तिनका'
(78) चोली दामन का साथ (गहरा सम्बन्ध)-खेती से पानी को कैसे अलग किया जा सकता है, उन दोनों में तो 'चोली दामन का साथ' है।
(79) चोर-चोर मौसेरे भाई (बुरे व्यक्तियों में जल्दी मेल हो जाता है)-वीरू और राजू दोनों ही नियमित मद्यपान करते थे। एक दिन दोनों में परिचय हुआ और शीघ्र ही दोनों में घनिष्ठ मित्रता हो गयी। किसी ने ठीक ही कहा है कि 'चोर-चोर मौसेरे भाई' होते हैं।
(80) चोर चोरी से जाए हेरा-फेरी सेन जाए (बुरी आदत मुश्किल से ही छूट पाती है)-एक चोर ने एक महात्मा के समझाने पर चोरी करना छोड़ दिया, लेकिन अब वह लोगों के एक स्थान पर रखे हुए सामान को दूसरे स्थान पर रख देता था। उसकी इस आदत को जानने वाले कहा करते थे कि 'चोर चोरी से जाए हेरा-फेरी से जाए'
(81) चादर के बाहर पैर पसारना (क्षमता से अधिक खर्च करना)-रमेश ने मोहन से कहा कि किसी भी कार्य को चादर से बाहर पैर पसार कर नहीं करना चाहिए अन्यथा हानि उठानी पड़ती है।
(82) छछूदर के सिर पर चमेली का तेल (अपात्र को ऐसी वस्तु मिलना, जिसका वह पात्र हो)-नीलम जैसी रूप-यौवन-सम्पन्ना कन्या का विवाह मद्यप अनिल के साथ! लोगों ने कहा-यह तो ठीक वैसा ही हुआ, जैसे 'छछूदर के सिर पर चमेली का तेल'
(83) छाती पर साँप लोटना (ईर्ष्या होना)-गुरुदयाल की पदोन्नति का समाचार सुनकर कार्यालय के सभी लिपिकों की छाती पर साँप लोटने लगा।
(84) जल में रहकर मगरमच्छ से बैर (एक स्थान पर रहने वालों से बैर नहीं करना चाहिए)-तुम्हें सुरेश की बात मान लेनी चाहिए। वह तुम्हारा मकान मालिक है, धनवान है तथा लम्बे-चौड़े परिवार वाला है। भई, 'जल में रहकर मगरमच्छ से बैर' ठीक नहीं होता।
(85) जब तक साँस तब तक आस (जीवन के अन्त तक निराश नहीं होना चाहिए)-तुम हिम्मत क्यों हारते हो? कैन्सर है तो उसके विशेषज्ञ डॉक्टर को दिखलाओ; क्योंकि जब तक साँस तब तक आस।
(86) जहाँन पहुँचे रवि वहाँ पहुँचे कवि (कवि-कल्पना का अन्त नहीं होता)-सूरदास वात्सल्य वर्णन का कोना-कोना झाँक आये हैं। उनके वर्णन को पढ़कर मुँह से यही निकलता है कि जहाँ पहुँचे रवि वहाँ पहुँचे कवि'
(87) जहाँ चाह वहाँ राह (इच्छा हो तो काम हो जाता है)-प्रीति ने अध्यापिका बनने के लिए बी०ए० तृतीय वर्ष से ही बी०एड० में प्रवेश के लिए रात-दिन पढ़ना आरम्भ कर दिया। वह प्रवेश-परीक्षा में सर्वोत्तम आयी और बी०एड० भी उसने एक वर्ष में ही कर लिया। इसी को कहते हैं किजहाँ चाह, वहाँ राह"
(88) जो गरजते हैं सो बरसते नहीं (बातें करने वाले काम नहीं करते)-मनीष सड़क पर खड़े होकर जोर-जोर से जेबकतरे को पकड़ने के लिए चिल्लाता ही रहा। दौड़कर जेबकतरे को पकड़ने की उसकी हिम्मत नहीं हुई। उसके जैसे लोगों के लिए ही कहा गया है, "जो गरजते हैं सो बरसते नहीं।
(89) जाको राखे साइयाँ, मारिन सकिहै कोय (जिसका ईश्वर रक्षक है, उसका कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता है)-सन्त कवि कबीरदास ने ठीक ही कहा है किजाको राखे साइयाँ, मारि सकिहै कोय। बाल बाँका करि सकै, जो जग बैरी होय।।"
(90) जिस हाँडी में खाना, उसी में छेद करना (विश्वासघात करना, कृतघ्न होना)-किशोरीलाल एक साल तक हमारे घर रहा और हमारे यहाँ ही खाना खाया। आज हमारे ही लोगों से हमारी मिथ्या बुराई करता घूम रहा है। वह तो 'जिस हाँडी में खाया, उसी में छेद किया' वाली कहावत को सही सिद्ध कर रहा है।
(91) जिसकी लाठी उसकी भैंस (अधिकार शक्तिशाली का ही होता है)-समाचार-पत्र में छपा था कि एक राजनीतिक दल के सदस्यों ने लखनऊ की रैली में जाने के लिए नौचन्दी एक्सप्रेस पर कब्जा कर लिया और जिन लोगों का पहले से आरक्षण था, उन्हें गाड़ी से बाहर निकाल दिया। इसी को कहते हैं—'जिसकी लाठी उसकी भैंस'
(92) जितने मुँह उतनी बात (जितने व्यक्ति उतना ही मतभेद)-विधवा लड़की से विवाह करने के विषय में किस-किस से राय लोगे, जो तुम्हें उचित समझ में आये वह करो; क्योंकि इस विषय में जितने मुँह उतनी बात' सुनने को मिलेगी।
(93) जैसी करनी वैसी भरनी/जैसा बोओगे वैसा काटोगे (बुरे काम का बुरा नतीजा)-यदि आप अच्छे काम करेंगे तो आपको अच्छा फल मिलेगा और यदि बुरे काम करेंगे तो बुरा फल मिलेगा। सही ही कहा गया है कि 'जैसी करनी वैसी भरनी'
(94) जो तोको काँटा बुवै ताहि बोइ तू फूल (पीड़ा पहुँचाने वाले को भी पीड़ा नहीं पहुँचानी चाहिए)-राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी अहिंसा के पोषक थे। उनका मानना था कि यदि कोई आपके एक गाल पर तमाचा लगाता है तो अपना दूसरा गाल भी उसके सामने कर दो। उनकी यह भावना इसी कहावत 'जो तोको काँटा बुवै ताहि बोइ तू फूल' को चरितार्थ करती है।
(95) जिन खोजा तिन पाइयाँ, गहरे पानी पैठ (परिश्रम से ही सफलता मिलती है)-सन्त कवि कबीरदास की यह उक्ति अक्षरशः सत्य उतरती है किजिन खोजा तिन पाइयाँ, गहरे पानी पैठ। मैं बपुरा बूड़न डरा, रहा किनारे बैठ॥"
(96) डूबते हुए को तिनके का सहारा (घोर संकट में जरा-सी सहायता ही पर्याप्त होती है)-उसका लड़का अस्पताल में मौत से जूझ रहा है। इस अवसर पर उसकी सहायता करना अति आवश्यक है, क्योंकि 'डूबते हुए को तिनके का सहारा' ही बहुत होता है।
(97) तवेले की बला बन्दर के सिर (किसी के दोष की सजा दूसरे के सिर मढ़ना)-अस्पताल का शीशा गुण्डों ने तोड़ा और रिपोर्ट हुई ग्राम प्रधान जी के नाम की। इसी को कहते हैं कितवेले की बला बन्दर के सिर'
(98) तीन में तेरह में मृदंग बजाये डेरा में (बिना काम-काज का व्यक्ति दूसरों को परेशान ही करता है)-आजकल अनेक सरकारी कार्यालयों में ऐसे अधिकारियों और कर्मचारियों का बोलबाला है, जो कि स्वयं तो तीन में हैं और तेरह में लेकिन वे डेरे में मृदंग बजाते ही रहते हैं।
(99) तुरन्त दान, महा कल्याण (शुभकार्य में देर ठीक नहीं होती)-सरकारी रोजगार योजनाओं में भ्रष्टाचारी, रिश्वतखोर अधिकारी एवं कर्मचारी 'तुरन्त दान, महा कल्याण' नहीं होने देते।
(100) तेते पाँव पसारिए, जेती लांबी सौर (सामर्थ्यानुसार खर्च करना)-जो व्यक्ति अपनी सामर्थ्यानुसार खर्च नहीं करते, उन्हें दुःख उठाना पड़ता है। ठीक ही कहा गया है—'तेते पाँव पसारिए, जेती लांबी सौर'
(101) थोथा चना बाजे घना (कम योग्यता होने पर भी अधिक योग्यता का दिखावा करना)-इसे राजनीति का कुछ भी ज्ञान नहीं है, फिर भी बड़े-बड़े नेताओं की आलोचना करने से इसका जी नहीं भरता। तभी तो किसी ने कहा है कि 'थोथा चना बाजे घना'
(102) दान की बछिया के दाँत नहीं देखे जाते (मुफ्त की वस्तुओं में दोष नहीं देखा जाता)-रवीन्द्र ने अपने कर्मचारियों में 100 कम्बल वितरित किये, जो कि बेहद सस्ते थे। किसी ने कुछ भी नहीं कहा क्योंकि सभी इस कहावत को समझते थे कि 'दान की बछिया के दाँत नहीं देखे जाते'
(103) दूध का जला मट्ठा भी फूंक-फूंक कर पीता है (एक बार धोखा खाकर आदमी सावधान हो जाता है)-भाजपा ने मायावती को दो बार उत्तर प्रदेश का मुख्यमन्त्री बनाया था। तब के अनुभव अच्छे नहीं थे। अब तीसरी बार मायावती को मुख्यमन्त्री बनाते समय उन्होंने सभी पहलुओं पर गम्भीरता से विचार . किया, क्योंकि 'दूध का जला मट्ठा भी फूंक-फूंक कर पीता है।
(104) दुविधा में दोनोंगये,माया मिली नराम (एक साथ दो काम नहीं होते)-चौबे जी जनप्रिय नेता थे और अपने क्षेत्र से तीन बार विधानसभा के लिए चुने गये थे। इस बार उन्होंने यह सोचकर चुनाव लड़ने से इन्कार कर दिया कि पार्टी में अच्छी छवि और पहुँच के कारण उन्हें राज्यसभा का सदस्य बना दिया जाएगा। परन्तु पार्टी ने उन्हें राज्यसभा का सदस्य नहीं बनाया। अब वे कहते हैं—'दुविधा में दोनों गये, माया मिली राम'
(105) देखें ऊँट किस करवट बैठता है (देखते हैं परिणाम कैसा निकलता है)-चुनाव-परिणाम निकलने ही वाला है, 'देखते हैं कि ऊँट किस करवट बैठता है।
(106) धोबी का कुत्ता घर का घाट का (कहीं का रहना)-मन्त्री पद पाने के लिए उसने अपना दल छोड़ दिया। जब दूसरे दल में मन्त्री पद मिला तो शीर्ष नेताओं की निन्दा करने के कारण वह वहाँ से भी निकाल दिया गया। अब लोग कहते हैं कि 'धोबी का कुत्ता घर का घाट का।।
(107) नौ मन तेल होगा, राधा नाचेगी (किसी काम को करने के लिए असम्भव-सी शर्त लगाना)-प्रधानमन्त्री ने भाषण दिया कि जिस दिन भारत के सभी नेता ईमानदार हो जाएंगे, उसी दिन देश से गरीबी हट जाएगी। इस कथन को सुनकर एक श्रोता ने कहा कि ' नौ मन तेल होगा, राधा नाचेगी।
(108) रहेगा बाँस, बजेगी बाँसुरी (झगड़े को समूल नष्ट करना)-यदि तुम अपने अन्य दाँतों को खराब होने से बचाना चाहते हो तो जिन दो दाँतों में कीड़े लग गये हैं, उन्हें निकलवा दो",डॉक्टर ने मरीज को सलाह दी; क्योंकि कहा गया है—' रहेगा बाँस, बजेगी बाँसुरी'
(109) नाच जाने आँगन टेढ़ा (योग्यता होने पर बहाने बनाना)-निशान्त से गणित का एक प्रश्न हल हो पाया तो वह कहने लगा कि कलम ही ठीक नहीं चल रही है। इसी को कहते हैं- 'नाच जाने आँगन टेढ़ा।
(110) नाम बड़े और दर्शन छोटे (व्यक्ति जैसा दिखाई देता है उसमें वैसे गुण होना)-वह दुकान तो केवल नाम की ही बड़ी दुकान है, सामानों की गुणक्ता तो है ही नहीं। उसे देखकर तो 'नाम बड़े और दर्शन छोटे' कहावत याद जाती है।
(111) निर्बल के बल राम (असहाय की सहायता भगवान करता है)-परमानन्द के पास लड़की की शादी करने को पर्याप्त पैसा नहीं था। कल उसे लॉटरी में एक लाख रुपये मिल गये। किसी ने ठीक ही कहा है कि 'निर्बल के बल राम'।।
(112) नीम मीठा होय, भले सींचो घी गुड़ से (स्वभाव अपरिवर्तनीय होता है)-गिरधर तो कपटी है, झूठ बोलने वाला है। उसे कितने ही उपदेश दे दीजिए, उसके स्वभाव में कोई परिवर्तन नहीं आने वाला; क्योंकि नीम मीठा होय, भले सींचो घी गुड़ से'
(113) नौ दिन चले अढ़ाई कोस (अति मन्द गति से कार्य करना)-परदे की सिलाई का मामूली-सा कार्य और इसी में तुमने सात दिन लगा दिये। तुम्हारे जैसे लोगों के लिए ही कहा गया है कि 'नौ दिन चले अढ़ाई कोस'
(114) नौ नकद तेरह उधार (उधार की अपेक्षा थोड़ा नकद अच्छा)-श्यामू ने अपने मित्र से कहा कि अभी लोगे तो अस्सी रुपये दूंगा और दीपावली के बाद लोगे तो सौ रुपये, इस पर उसके मित्र ने कहा- नहीं भाई, 'नौ नकद तेरह उधार', अत: मुझे अभी ही दे दो।
(115) पराधीन सपनेहुँ सुख नाहीं (पराधीनता में कभी सुख नहीं होता)-नौकरी में कभी समय नहीं मिलता, एक मिनट को भी चैन नहीं है। खान-पान का भी कोई ठिकाना नहीं, सोने बैठने के लिए क्या कहा जाए। ठीक ही कहा गया है-'पराधीन सपनेहुँ सुख नाहीं करि बिचार देखहुँ मन माहीं।।
(116) पढ़े फारसी बेचे तेल, यह देखो कुदरत का खेल (योग्यता के अनुरूप आजीविका का साधन मिलना)-राजीव अपने भाई-बहनों में सबसे अधिक प्रतिभाशाली था, लेकिन काफी समय तक उसे नौकरी मिली। अन्तत: उसे मामूली नौकरी करनी पड़ी। राजीव जैसे लोगों परपढ़े फारसी बेचे तेल, यह देखो कुदरत का खेल' कहावत चरितार्थ होती है।
(117) प्यासा ही कुएँ के पास जाता है (कार्य-सिद्धि के लिए स्वयं प्रयास करना पड़ता है)-राजीव को किसी व्यक्ति से काम के मद में रुपए लेने थे। जब राजीव ने उससे कहा तो उसने उत्तर दिया कि जब मेरा काम था तो मैं तुम्हारे पास आया, अब अपने रुपए लेने के लिए तो तुमको मेरे पास आना ही होगा। लगता है कि तुमने यह कहावत नहीं सुनी कि 'प्यासा ही कुएँ के पास जाता है।
(118) पाँचों अँगुली बराबर नहीं होतीं (सभी लोग एक समान नहीं हो सकते)-किसी गाँव में सभी चोर हों, यह बात सम्भव नहीं। कुछ तो भले आदमी अवश्य ही होंगे; क्योंकि कहा गया है कि 'पाँचों अँगुलियाँ बराबर नहीं होती।
(119) पैसा पैसे को कमाता है (पैसों से ही कमाई के साधन बनते हैं)-धनीराम का व्यापार अच्छा खासा चल रहा है, उसने महीने भर पहले ही कार खरीदी थी और अब ट्रक भी खरीद लिया। ठीक ही कहा गया है कि 'पैसा पैसे को कमाता है। 
(120) पर उपदेशकुशल बहुतेरे (दूसरों को उपदेश देने वाले बहुत हैं, पर स्वयं उन सिद्धान्तों का पालन करने वाले बिरले होते हैं)-महात्मा जी! तुम हमें तो उपदेश देते हो कि नशीली चीजों का सेवन करो और स्वयं भाँग और चरस का सेवन करते हो। तुम्हारे जैसे लोगों के लिए ही कहा गया है-'पर उपदेश कुशल बहुतेरे'

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