Friday 13 September 2019

Idioms in hindi लोकोक्तियाँ Part - 1

Idioms in Hindi 
लोकोक्तियाँ
Part-1
| लोकोक्ति या कहावत

लोकोक्ति का अर्थ है-लोक में प्रचलित कथन। प्राय: बड़े-बड़े कवियों, लेखकों तथा विचारकों के कथन या कही गयी अनुभव की बात ही कहावत बन जाती है। कहावत एक पूर्ण वाक्य अथवा वाक्यांश होता है जो कि किसी प्रासंगिक घटना पर आधारित होता है और जिसका प्रयोग स्वतन्त्र रूप से होता है। लोकोक्तियों का प्रयोग करने से बातचीत में प्रभाव उत्पन्न हो जाता है; जैसे-ऊँची दुकान फीका पकवान' एक लोकोक्ति या कहावत है, जिसमें 'दुकान' के माध्यम से ऐसे व्यक्तियों के बारे में कहा गया है, जो तड़क-भड़क या दिखावा तो बहुत करते हैं, पर वास्तविकता में कुछ नहीं होते। लोकोक्ति (कहावत) स्वतन्त्र वाक्य के रूप में होती है और अपना स्वतन्त्र अर्थ प्रकट करती है, जबकि मुहावरा वाक्य का अंश होता है, जिसका स्वतन्त्र रूप में प्रयोग नहीं किया जा सकता।

महत्त्वपूर्ण लोकोक्तियाँ, उनके अर्थ एवं वाक्य में प्रयोग 
(1) अधजल गगरी छलकत जाय (कम होने पर अधिक का दिखावा करना)-नरेश कमाता तो है तीन हजार रुपए महीने और पाँच हजार रुपए का सूट बनवा लिया, जैसे बड़ा धनी हो। इसी को कहते हैं-अधजल गगरी छलकत जाय।
(2) अटका बनिया देय उधार (दबा हुआ मनुष्य सब कुछ कर सकता है)-राकेश के अजय के पास पच्चीस हजार रुपए बाकी थे। राकेश के बार-बार माँगने पर अजय ने उसे कई अन्य कामों में फँसा दिया। खीझकर राकेश बोल उठा कि 'अटका बनिया देय उधार' कहावत सही ही कही गयी है।
(3) अपनी-अपनी डफली,अपना-अपना राग (अपने-अपने मतलब की बात करना)-राकेश के परिवार का कोई भी सदस्य किसी की बात नहीं मानता। सभी 'अपनी-अपनी डफली अपना-अपना राग' अलापते हैं।
(4) अपनी गली में कुत्ता भीशेर होता है (अपने स्थान पर कमजोर व्यक्ति भी सबल होने का दम भरता है)-"क्या बड़बड़ कर रहा है ? शैलेश! बाहर निकल, वरना अभी मज़ा चखाता हूँ।" “जा रहा हूँ भाई", शैलेश बोला, “अपनी गली में तो कुत्ता भी शेर होता है।"
(5) अब पछताए होत क्या? जब चिड़ियाँचुग गयीं खेत (हानि हो जाने पर पछताना व्यर्थ होता है)-विनोद! फेल होकर क्यों व्यर्थ में रो रहे हो ? पहले ही परिश्रम करते तो ऐसी स्थिति होती, 'अब पछताये होत क्या जब चिड़ियाँ चुग गयीं खेत'
(6) अन्त भला तो सब भला (कार्य का अन्तिम चरण महत्त्वपूर्ण होता है)-यदि अन्त समय में भी ईश्वर का भजन करो तो अच्छा ही होगा। समय को ऐसे ही व्यर्थ बिताओ, अच्छी तरह से समझ लो कि 'अन्त भला तो सब भला'
(7) अपना हाथ जगन्नाथ (अपने पुरुषार्थ से ही मनुष्य को सफलता मिलती है)-परिश्रम करोगे, तभी अपनी रोजी-रोटी ठीक से कमा सकोगे। लगता है कि तुमने ये कहावत सुनी ही नहीं कि 'अपना हाथ जगन्नाथ।
(8) अन्धा क्या चाहे,दो आँखें (उपयोगी वस्तु का बिना प्रयास के मिल जाना)-घर पर आये हुए मेहमान से मेजबान ने कहा, "भाई साहब भोजन कीजिए।" इस पर मेहमान ने मुस्कराते हुए कहा-“हाँ, हाँ क्यों नहीं, 'अन्धा क्या चाहे, दो आँखें।" .
(9) अन्धा बाँटे रेवड़ी अपने-अपने को देय (स्वार्थी व्यक्ति केवल अपनों की ही सहायता करता है)-इस कार्यालय के मैनेजर ने सभी नियुक्तियाँ अपने भाई-भतीजों की ही की हैं और इस उक्ति को चरितार्थ किया है कि 'अन्धा बाँटे रेवड़ी, अपने-अपने को देय'
(10) अन्धीपीसे, कुत्तेखाएँ (कोई कमाये, कोई भोगे)-पिता जाने कैसे-कैसे परेशानी से धन कमा रहे हैं और बेटे होटलों में गुलछरें उड़ा रहे हैं। किसी ने सच ही कहा है कि 'अन्धी पीसे, कुत्ते खाएँ।।
(11)अन्धे के आगेरोये,अपने नैनाखोये (हृदयहीन के सामने रोना व्यर्थ है)-आलोक तो बहुत बड़े आदमी हैं, लेकिन अपने कर्मचारियों की पुकार नहीं सुनते। कर्मचारियों का भी कहना है कि उनसे प्रार्थना करना तो 'अन्धे के आगे रोना और अपने नैना खोना' है।
(12) अन्धे के हाथ बटेर (अयोग्य व्यक्ति को अच्छी चीज मिल जाना)-लखपत को यह घोड़ा क्या मिल गया कि 'अन्धे के हाथ बटेर लग गयी। अब लखपत हर समय उसी का बखान करता रहता है।
(13) अँधेर नगरी चौपट राजा, टका सेर भाजी टका सेर खाजा (अच्छे-बुरे अथवा योग्य-अयोग्य की पहचान नहीं)-यहाँ काम करने से क्या लाभ ? यहाँ तो दिनभर मेहनत करने वाले को और करने वालों को भी बराबर ही मजदूरी मिलती है। यहाँ तो 'अँधेर नगरी चौपट राजा, टका सेर भाजी टका सेर खाजा' लोकोक्ति सही उतरती है।
(14) अन्धों में काना राजा (मूों में थोड़ा-सा पढ़ा-लिखा)-ललित ने अपने परिवार में हाईस्कूल पास किया है, जबकि उसका पूरा परिवार अंगूठा टेक है। इसलिए वे उसे ही विद्वान् समझते हैं। ठीक ही कहा गया है कि 'अन्धों में काना ही राजा होता है।
(15) अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ सकता (अकेला आदमी कोई बड़ा काम नहीं कर सकता)-जब गाँव के लोग ही कोई सहयोग नहीं करते, तब अकेले प्रधान जी ही गाँव का कितना विकास कर सकेंगे। सच ही कहा है कि 'अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ सकता।
(16) बैल मुझे मार (जान-बूझकर विपत्ति को निमन्त्रण देना)- माधव की लड़ाई तो बहुत समय से गिरीश के साथ थी, तुम उन्हें छेड़कर बेकार झगड़े में फंसे और इस उक्ति को सिद्ध किया कि ' बैल मुझे मार'
(17) आटे के साथ घुन भी पिस जाता है (अपराधी के संग निरपराध भी मारा जाता है)-देख लो रामकिशोर का कोई दोष नहीं, कल्लू चोर के साथ घूमने-फिरने के कारण पुलिस ने उसे भी चोरी के एक मामले में लपेट लिया। उसे भी सजा हो ही जाएगी क्योकि 'आटे के साथ घुन भी पिस जाता है।
(18) आप भला तो जग भला (अच्छे के लिए सभी अच्छे होते हैं)-दूसरों से तुम्हें क्या मतलब, तुम अपना काम करो और उसी में मन लगाओ, क्योंकि 'आप भला तो जग भला'
(19) आम खाने हैं या पेड़ गिनने (अपने काम से मतलब रखना)-तुम्हारे यहाँ कल मोटर-साइकिल पहुँच जाएगी, चाहे मैं अपनी पहुँचाऊँगा या किसी दूसरे की। तुम्हें 'आम खाने हैं या पेड़ गिनने' हैं ?
(20) आम के आम गुठलियों के दाम (दुहरा लाभ प्राप्त करना)-सोहन ने चावल तो पहले ही अच्छे दामों पर बेच दिये थे। अब धान की भूसियों को बेचकर भी पैसे बना रहा है। इसी को कहते हैं-'आम के आम गुठलियों के दाम'
(21) आँख के अन्धे गाँठ के पूरे (मूर्ख लेकिन धनी)-लाभचन्द मूर्ख तो है लेकिन है धनपति। ऐसे ही लोगों के लिए कहा गया है-'आँख के अन्धे गाँठ के पूरे'
(22) आँख का अन्धा नाम नयनसुख (नाम के विपरीत गुण होना)-करोड़ीमल नाम के व्यक्ति को भीख माँग कर अपना पेट पालना पड़ता है। यह तो वही बात हुई कि 'आँख का अन्धा नाम नयनसुख'
(23) आसमान से गिरा खजूर पर अटका (एक मुसीबत से छूटा तो दूसरी मुसीबत में पड़ गया)-चुनाव आयोग ने जयललिता को चुनाव लड़ने से रोक दिया था। तब राज्यपाल फातिमा बीबी ने उन्हें मुख्यमन्त्री तो बना दिया, परन्तु सर्वोच्च न्यायालय के फैसले के बाद जयललिता को मुख्यमन्त्री पद भी छोड़ना पड़ा। इसी को कहते हैं आसमान से गिरा,खजूर पर अटका'
(24) ओखली में सिर दिया तो मूसलों से क्या डरना (कोई कार्य शुरू करने पर कठिनाइयों से नहीं घबराना चाहिए)-जब अमेरिका ने यह ठान ही लिया है कि वह हर हालत में ओसामा बिन लादेन को जिन्दा या मुर्दा पकड़ेगा, चाहे अरबों डालर खर्च ही क्यों हो जाएँ; क्योंकि जब 'ओखली में सिर दिया है तो मूसलों से क्या डरना।
(25) अण्डे सेवे कोई, बच्चे लेवे कोई (परिश्रम करे कोई और लाभ उठाये कोई)-पूरे समारोह की व्यवस्था और आयोजन किया अग्रवाल जी ने और ऐन वक्त पर मुख्य अतिथि के पास बैठ गये गुप्ता जी। इस पर अग्रवाल जी के मित्र ने कहा-'अण्डे सेवे कोई और बच्चे लेवे कोई'
(26) अन्त बुरे का बुरा (बुरा कार्य करने वाले का अन्त बुरा ही होता है)-कालाबाजारी और रिश्वतखोरी से रस्तोगी ने करोड़ों रुपये कमाये, लेकिन अन्तत: आयकर विभाग के चंगुल में फंस गये और जेल जाना पड़ा। इसीलिए कहा है कि 'अन्त बुरे का बुरा'
(27) आँख दीदा काढ़े कसीदा (योग्यता के अभाव में कार्य करना)-यह आदमी कैसे मूर्ति बनाएगा; तो इससे छेनी-हथौड़ी सही चलती है और ही इसे मूर्तिकला का कुछ भी ज्ञान है। यह आदमी तो इस कहावत को सही सिद्ध करता है कि 'आँख दीदा काढ़े कसीदा'
(28) आटे का चिराग,घर रखू तोचूहा खाय बाहर रखू तो कौआ ले जाय (बचाव की कोई भी सूरत होना)-मकान को खाली छोड़ो तो चोरी का डर होता है और किराये पर दो तो किरायेदार परेशान करते हैं। सही ही कहा है कि 'आटे का चिराग, वर पर रखू तो चूहा खाय बाहर रखू तो कौआ ले जाय'
(29) इधर कुआँ उधर खाई (सभी आर परेशानी)-शेर से बचने के लिए हेनरी पेड़ पर चढ़ गया। घबराहट में जिस डाल पर वह बैठा उस पर एक विषैला सर्प पहले से था। इसी परिस्थिति को कहते हैं-'इधर कुआँ उधर खाई।
(30) इस हाथ दे उस हाथ ले (दान कभी व्यर्थ नहीं जाता/नकद सौदा होना)-दान धर्म करना सुख का मूल है। प्रदीप इसी के बल पर फल-फूल रहा है। किसी ने ठीक ही तो कहा है-'इस हाथ दे, उस हाथ ले।
(31) ईश्वर की माया धूप कहीं कहीं छाया (ईश्वर की लीला बड़ी विचित्र है)-गली में भगवानदास की बेटी मर गयी और पड़ोसी के यहाँ बेटी के लिए बारात रही है। सही है-'ईश्वर की माया धूप कहीं कहीं छाया'
(32) उधार दो, दुश्मन बनाओ (उधार देना बला मोल लेना है)-एक तो अजय का काम बिना पैसा लिये कर दिया और जब उससे पैसा माँगने गया तो उसने हाथा-पायी कर ली। यह तो वही बात हो गयी कि 'उधार दो, दुश्मन बनाओ।
(33) उल्टा चोर कोतवाल कोडाँटे (अपना दोष स्वीकार करके निर्दोष को दोष देना)-सुनील से जब प्रधानाचार्य से की गयी उसकी उद्दण्डता के बारे में मैंने पूछा तो वह मुझे ही दोषी ठहराने लगा। ठीक ही कहा गया है कि 'उल्टा चोर कोतवाल को डाँटे'
(34) उल्टे बाँस बरेली को (विपरीत कार्य वाला)-मन्त्री जी ने बाँस से बने फर्नीचर मँगाने का आदेश मुम्बई की एक कम्पनी को दिलाकर 'उल्टे बाँस बरेली को' कहावत चरितार्थ की।
(35) ऊँची दुकान, फीका पकवान (दिखावा अधिक और वास्तविकता कम)-'मॉडल स्कूल' में बच्चे का दाखिला क्यों करा रहे हो? विद्यालयों के नाम पर तो वह ऊँची दुकान, फीका पकवान' वाली कहावत को चरितार्थ करता है।
(36) एक हाथ से ताली नहीं बजती (एक पक्ष की ओर से झगड़ा नहीं हो सकता)-यह तो असम्भव है कि तुमने उसे कुछ कहा हो और वह तुम्हें पीटने लगा हो, क्योंकिएक हाथ से ताली नहीं बजती'
(37) एक म्यान में दो तलवार (एक ही स्थान पर दो विचारधाराएँ नहीं रह सकती)-राहुल ने अजय से कहा कि तुम या तो मुझसे मित्रता कर लो या रिशी से। दोनों से सम्बन्ध निभाना उसी प्रकार सम्भव नहीं है जिस प्रकारएक म्यान में दो तलवार' का रहना सम्भव नहीं है।
(38) एक मछली सारेतालाब को गन्दा कर देती है (एक के बुरा होने पर पूरे समूह को दोष लगता है)-कक्षा में नकल करते हुए टीपू पकड़ा गया, लेकिन पूरी कक्षा के विद्यार्थियों की परीक्षा रद्द कर दी गयी, क्योंकि ठीक ही कहा गया है—“एक मछली सारे तालाब को गन्दा कर देती है।
(39) एक चुप सौ को हराए (विवाद में चुप रहना ही अति उत्तम है)-रविवार को ललित और हरीश में किसी बात पर भयंकर वाद-विवाद हो रहा था। यदि हरीश चुप नहीं रहता तो निश्चित ही कोई--कोई अनहोनी घटना घट जाती। सच ही कहा है कि 'एक चुप सौ को हराए। 
(40) एकै साधे सब सधै, सब साधे सब जाय (कार्य-सिद्धि के लिए एक का ही सहयोग लेना चाहिए)-विकास एक बार किसी मुसीबत में पड़ गया। उसने कई लोगों से सलाह माँगी और उन पर अमल भी किया। लेकिन उसकी मुसीबत घटने के स्थान पर बढ़ गयी। किसी ने सच ही कहा है कि 'एकै साधे सब सधै, सब साधे सब जाय।
(41) एक तो करेला दूजा नीम चढ़ा (बुरे व्यक्ति में अन्य बुरे व्यक्ति की संगति से अवगुणों में वृद्धि हो जाना)-रमेश तो वैसे ही सबसे बेवजह उलझता रहता था और अब तो उसकी शादी भी झगड़ालू लड़की से हो गयी। अब तो वह वैसा ही हो गया है। जैसे—“एक तो करेला दूजा नीम चढ़ा।
(42) ओछे की प्रीत, बालू की भीत (नीच की मित्रता टिकाऊ नहीं होती)-कल तक माधव की रमेश के साथ अच्छी मित्रता थी, किन्तु आज माधव मामूली-सी बात पर रमेश का शत्रु बन गया है। ठीक ही कहा है कि 'ओछे की प्रीत, बालू की भीत'
(43) क्या काबुल में गधे नहीं होते (अच्छे समाज में भी मूर्ख होते हैं)-पण्डित जी का लड़का अपने परिवार की मर्यादा के विपरीत आचरण कर रहा था। गणेश द्वारा उसके परिवार की प्रशंसा करने पर उसके मित्र ने कहा, अरे! व्यर्थ की बात मत करो—'क्या काबुल में गधे नहीं होते' ?
(44) कहाँ राजा भोज, कहाँ गंगू तेली (आकाश-पाताल का अन्तर)-तुम बार-बार सुरेश की बात करते हो। वह भला राधेश्याम की बराबरी क्या करेगा ? 'कहाँ राजा भोज, कहाँ गंगू तेली'
(45) कहने से धोबी गधे पर नहीं चढ़ता (हठी व्यक्ति किसी का कहना नहीं मानता)-सुरेश अच्छा गा लेता है, लेकिन एक दिन मित्रों द्वारा अनेक बार कहने पर भी उसने गाना नहीं सुनाया। अन्त में उसके एक मित्र ने कहा कि मैं तो जानता हूँ सुरेश लेकिन ये नहीं जानते कि कहने से धोबी गधे पर नहीं चढ़ता।
(46) का वर्षा जब कृषी सुखाने (अवसर बीतने पर साधन प्राप्त होना व्यर्थ ही होता है)-गोस्वामी तुलसीदास जी ने ठीक ही कहा है किका वर्षा जब कृषी सुखाने। समय चूकि पुनि का पछिताने।।"
(47) कागज की नाव नहीं चलती (दिखावटी किन्तु सारहीन वस्तु समय पर काम नहीं देती)-केवल फैशन से कुछ भी हासिल नहीं होगा, अपने में कुछ गुण पैदा करो, क्योंकि 'कागज की नाव नहीं चलती।
(48) कानी के ब्याह में सौ जोखिम (एक दोष होने पर अनेक विघ्न आना)-घर से निकलने में तुमने देर कर दी, अब उस मार्ग की अनेकों बसें निकल गयीं और कोई अन्य वाहन भी नहीं मिल पा रहा है। सच ही कहा है कि 'कानी के ब्याह में सौ जोखिम'
(49) काठ की हाँड़ी एक बार ही चढ़ती है (धोखा एक बार ही दिया जा सकता है)-एक बार एक हजार रुपये देकर ही मैं पछता रहा हूँ। आगे आपके बहकावे में नहीं सकता, क्योंकि आप नहीं जानते कि 'काठ की हाँड़ी एक बार ही चढ़ती है।
(50) कुत्ते को घी हजम नहीं होता (तुच्छ व्यक्ति बड़ी वस्तु प्राप्त कर शान्त नहीं बैठता)-दीनानाथ दो समय भोजन मुश्किल से कर पाता था। जब से उसकी पचास हजार की लॉटरी खुली है, वह किसी--किसी से आये दिन झगड़ता ही रहता है। किसी ने ठीक ही कहा है कि 'कुत्ते को घी हजम नहीं होता।
(51) कोउनृपहोय,हमें काहानी (उदासीन होना)-श्री अटलबिहारी वाजपेयी प्रधानमन्त्री बनें या श्रीमती सोनिया गाँधी; हमें तो नौकरी ही करनी है; क्योंकिकोउ नृप होय, हमें का हानी'।।
(52) कोयले की दलाली में हाथ काले (जैसा काम वैसा परिणाम)-मैं तो हुकुमसिंह के साथ केवल सैर करने गया था, किया कुछ भी नहीं था; लेकिन मुझे व्यर्थ में ही सजा मिल गयी; क्योंकि कोयले की दलाली में हाथ काले' होते ही हैं।
(53) कंगाली में आटा गीला (कमी में और नुकसान होना)-रहीम की नौकरी तो कहीं लग नहीं पा रही थी और पिता की बीमारी का खर्चा उसके ऊपर अलग से पड़ा। इसी को कहते हैं- कंगाली में आटा गीला'
(54) खग जाने खगही की भाषा (निकट सम्पर्क का व्यक्ति ही किसी के गुण-दोषों को जान सकता है)-तुम्हें तो रामू की पत्नी में सारे गुण ही दिखाई देते हैं। उसकी वास्तविकता तो रामू की माँ से पूछो; क्योंकि 'खग जाने खग ही की भाषा'
(55) खरबूजे को देखकर खरबूजा रंग बदलता है (संगति का असर अवश्य पड़ता है)-नीलाम्बर बड़ा सज्जन था, लेकिन जब से वह तुम्हारे साथ रहने लगा है उसका तो दिमाग ही पलट गया, क्योंकि ठीक ही कहा गया है-'खरबूजे को देखकर खरबूजा रंग बदलता है'
(56) खिसियानी बिल्ली खम्भा नोचे (लज्जित होकर क्रोध प्रकट करना)-तुम नरेश का कुछ नहीं बिगाड़ पाये, तो मुझे शरीफ समझ लड़ने के लिए बार-बार छेड़ रहे हो, क्योंकि 'खिसियानी बिल्ली खम्भा नोचती' ही है।
(57) खोदा पहाड़ निकली चुहिया (अत्यधिक परिश्रम का नगण्य फल मिलना)-बोफोर्स तोपों के सौदे में दलाली के प्रकरण पर वर्षों से चल रही जाँच-पड़ताल का नतीजा 'खोदा पहाड़ निकली चुहिया' जैसा ही है।
(58) खरी मजूरी चोखा काम (बिना किसी समस्या के अच्छी आय)-मुझे हलवाई की दुकान से पन्द्रह सौ रुपए प्रति माह नकद एवं दोनों समय का भोजन मिल जाता है, ऊपर से ग्राहकों की बख्शीश, -कोई झगड़ा झंझट और समय-समय पर छुट्टियाँ भी मिल जाती हैं। इसी को कहते हैं-'खरी मजूरी चोखा काम।
(59) खुदागंजे को नाखून नदे (अत्याचारी को पूरी ताकत नहीं मिलनी चाहिए)-अजय बड़ा ही अत्याचारी और क्रूर है। यदि वह अधिकारी बन जाता, तो अधीनस्थ कर्मचारियों और आम जनता को कुचल कर रख देता। यह तो अच्छा ही है कि 'खुदा गंजे को नाखून नहीं देता।
(60) गरीब की जोरू सबकी भाभी (निर्बलों को सभी दबाते हैं)-मोहनदास ठाकुर साहब की चापलूसी करता है, पटवारी की बेगार करता है तथा लाला जी का सौदा लाया करता है। इतना ही नहीं गाँववासी भी उसे चैन नहीं लेने देते हैं। ठीक ही कहा गया है कि 'गरीब की जोरू सबकी भाभी'
(61) गागर में सागर भरना (संक्षेप में बड़ी-से-बड़ी बात कह जाना)-बिहारी ने अपने दोहों में अर्थ-गाम्भीर्य की बातें भरकर 'गागर में सागर' भर दिया है।
(62) गुड़ खाये गुलगुलों से परहेज (दिखावटी परहेज)-प्याज से बनी पकौड़ियाँ तो तुम बड़े चाव से खाते हो, लेकिन प्याज खाने से इतना परहेज करते हो। तुम जैसों के लिए ही कहा गया है कि 'गुड़ खाये गुलगुलों से परहेज।
(63) गंगा गये गंगादास,जमुना गये जमुनादास (सिद्धान्तहीन व्यक्ति, दलबदलू)-आजकल के नेता राजनीति में जिस दल में अपना फायदा देखते हैं उसी दल की सदस्यता ग्रहण कर लेते हैं। जिस दल में जाते हैं, उस के होकर स्थायी रूप से नहीं रह पाते। उनके विषय में तो यही कहना उचित है कि 'गंगा गये गंगादास, जमुना गये जमुनादास'
(64) घर की मुर्गी दाल बराबर (घर की चीज का महत्त्व नहीं होता है)-बाजार से परदे के लिए कपड़ा खरीदना था, लेकिन जेब में पैसा नहीं था। ससुराल से आयी बेशकीमती चादर रखी थी उसी को परदे. के स्थान पर लटका दिया। उचित ही कहा है कि 'घर की मुर्गी दाल बराबर'
(65) घर में नहीं दाने अम्मा चली भुनाने (झूठा दिखावा करना)-पैसे तो नहीं साइकिल खरीदने के लिए, इरादा करते हो मोटर साइकिल खरीदने का। तुम्हारे जैसे लोगों के लिए ही कहा गया है-'घर में नहीं दाने अम्मा चली भुनाने'
(66) घरखीर तो बाहर खीर (जो हमारे पास है, वही दूसरों से भी मिलता है)-आज हमने हलवा बनाया तो पड़ोसी के यहाँ से भी गया। सही ही कहा गया है कि 'घर खीर तो बाहर खीर'
(67) घर का भेदी लंका ढावे (आपस की फूट विनाश कर देती है)-जयचन्द ने मुहम्मद गोरी को बुलावा भेजा होता तो देश दीर्घकालीन गुलामी से बच जाता। इसीलिए कहा गया है कि 'घर का भेदी लंका ढावे।
(68) घर का जोगी जोगड़ा, आन गाँव का सिद्ध (घर के गुणी व्यक्ति का आदर नहीं होता)-दूसरों के लिए तो मैं योग्य चिकित्सक हूँ लेकिन मुझे अपने गाँव के लोग अभी भी लड़का ही समझते हैं। ठीक ही कहा है-'घर का जोगी जोगड़ा, आन गाँव का सिद्ध'
(69) घोड़ा घास से यारी करेगा तो खाएगा क्या (व्यापार में लाभ लेने से काम नहीं चलता)-व्यवसायी ने ग्राहक से कहा कि श्रीमान् जी कुछ लाभ लेने का तो हमारा भी हक बनता है, आखिर इसे कैसे छोड़ सकते हैं? यह तो सभी जानते हैं कि यदि 'घोड़ा घास से यारी करेगा तो खाएगा क्या?'
(70) घोड़े को लात और आदमी को बात (जानवर को मार से और मनुष्य को बात से नियन्त्रण में किया जाता है)-हाथी को अंकुश से, घोडे को लगाम से, सिंह को कोड़े से नियन्त्रित किया जाता है, जब कि मनुष्य का दण्ड से नियन्त्रित करने की आवश्यकता कम ही होती है। ठीक ही कहा गया है किघोड़े को लात और आदमी को बात।"

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