यांत्रिकी
(Mechanics)
तिक संबंधी नियमों को- समय, बल, ताप, घनत्व जैसी तथा अन्य अनेक भौतिक राशियों के संबंध सूत्रों के रूप में व्यक्त किया जा सकता है। सभी भौतिक राशियों को सामान्यत: मूल (लंबाई, द्रव्यमान व समय) एवं व्युत्पन्न (गति, क्षेत्रफल, घनत्व इत्यादि) राशियों में बाँटा जा सकता है।
भौतिक राशियों को को दो वर्गों में बाँटा जा सकता है:
(1) अदिश (Scalar) (इनमें केवल परिमाण होता है) राशियाँ
(2) सदिश (vector) (इनमें परिमाण व दिशा दोनों होते हैं) राशियाँ।
भौतिक राशियों को को दो वर्गों में बाँटा जा सकता है:
(1) अदिश (Scalar) (इनमें केवल परिमाण होता है) राशियाँ
(2) सदिश (vector) (इनमें परिमाण व दिशा दोनों होते हैं) राशियाँ।
सदिश राशि वैसी भौतिक राशि जिनमें परिमाण के साथ-साथ दिशा भी रहती है और जो योग के निश्चित नियमों के अनुसार जोड़ी जाती हैं, उन्हें संदिश राशि कहते हैं: जैसे- वेग, विस्थपान, बल, त्वरण आदि.
अदिश राशि वैसी भौतिक राशि, जिनमें केवल परिमाण होता है. दिशा नहीं, उसे अदिश राशि कहा जाता है: जैसे - द्रव्यमान, चाल , आयतन, कार्य , समय, ऊर्जा आदि.
नोट: विद्युत धारा (current), ताप (temprature), दाब (pressure) ये सभी अदिश राशियां हैं.
अदिश राशि वैसी भौतिक राशि, जिनमें केवल परिमाण होता है. दिशा नहीं, उसे अदिश राशि कहा जाता है: जैसे - द्रव्यमान, चाल , आयतन, कार्य , समय, ऊर्जा आदि.
नोट: विद्युत धारा (current), ताप (temprature), दाब (pressure) ये सभी अदिश राशियां हैं.
कोई आवृत घटना (बार-बार दोहराई जाने वाली घटना), इकाई समय में जितनी बार घटित होती है उसे उस घटना की आवृत्ति (frequency) कहते हैं। आवृति को किसी साइनाकार (sinusoidal) तरंग के कला (phase) परिवर्तन की दर के रूप में भी समझ सकते हैं। आवृति की इकाई हर्त्ज (साकल्स प्रति सेकण्ड) होती है।
एक कम्पन पूरा करने में जितना समय लगता है उसे आवर्त काल (Time Period) कहते हैं।
आवर्त काल = 1 / आवृति
अर्थात, T = 1 / f
एक कम्पन पूरा करने में जितना समय लगता है उसे आवर्त काल (Time Period) कहते हैं।
आवर्त काल = 1 / आवृति
अर्थात, T = 1 / f
बल और समयान्तराल के गुणनफल को बल का आवेग कहते हैं।
यदि किसी पिंड पर एक नियम बल F को डेल्टा t समान्तराल के लिए लगाया जाये, तो इस बल का आवेग F * डेल्टा t होगा। आवेग एक राशि है। इसकी दशा वही होगी जो बल की है।
माना कि किसी पिण्ड का द्रव्यमान m है। इस पर नियम बल F को डेल्टा t समान्तराल के लिए लगाने पर वेग में डेल्टा v परिवर्तन हो जाता है। तब न्यूटन के नियमानुसार-
F = m*a = m * डेल्टा v / डेल्टा t
F डेल्टा t = m डेल्टा t
चुकी m डेल्टा v = डेल्टा p
इसलिए F डेल्टा t = डेल्टा p
अतः किसी पिंड को दिया गया आवेग, पिंड में उत्पन्न संवेग–परिवर्तन के बराबर होता है। अतः आवेग का मात्रक भी वही होता है जो संवेग (न्यूटन.सेकेण्ड) का है।
यदि किसी पिंड पर एक नियम बल F को डेल्टा t समान्तराल के लिए लगाया जाये, तो इस बल का आवेग F * डेल्टा t होगा। आवेग एक राशि है। इसकी दशा वही होगी जो बल की है।
माना कि किसी पिण्ड का द्रव्यमान m है। इस पर नियम बल F को डेल्टा t समान्तराल के लिए लगाने पर वेग में डेल्टा v परिवर्तन हो जाता है। तब न्यूटन के नियमानुसार-
F = m*a = m * डेल्टा v / डेल्टा t
F डेल्टा t = m डेल्टा t
चुकी m डेल्टा v = डेल्टा p
इसलिए F डेल्टा t = डेल्टा p
अतः किसी पिंड को दिया गया आवेग, पिंड में उत्पन्न संवेग–परिवर्तन के बराबर होता है। अतः आवेग का मात्रक भी वही होता है जो संवेग (न्यूटन.सेकेण्ड) का है।
साधारण बोलचाल में कार्य का अर्थ है कि शारीरिक अथवा मानसिक क्रिया। जब बल लगने पर वस्तु में गति (विस्थापन) हो तो बल द्वारा कार्य किया जाता है और बल व बल की दिशा में विस्थापन का गुणनफल कार्य को व्यक्त करता है।
कार्य = बल & बल की दिशा में चली गई दूरी।
W = F x d (कार्य का मात्रक जूल है)
कार्य = बल & बल की दिशा में चली गई दूरी।
W = F x d (कार्य का मात्रक जूल है)
कार्य करने की दर को शक्ति कहते हैं,
P =w/t (शक्ति का मात्रक वाट(w) है
P =w/t (शक्ति का मात्रक वाट(w) है
किसी वस्तु का भार वह बल है जो पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण के कारण उस पर लगता है तथा पृथ्वी के केंद्र की ओर कार्यरत होता है।। जबकि द्रव्यमान वस्तु में निहित पदार्थ की मात्रा का माप है। जब हम कहते हैं कि एक व्यक्ति का वजन 60 किग्रा. है तो वास्तव में हम उसका द्रव्यमान बताते हैं न कि भार।
प्रति इकाई क्षेत्रफल पर लगे बल को दाब कहते हैं।
दाब का मात्रक न्यूटन प्रति वर्ग मी. अथवा पास्कल है। वायुमंडलीय दाब: पृथ्वी के चारों ओर काफी ऊँचाई तक वायु है जिसे वायुमंडल कहते हैं। वायु का भार होता है अत: यह पृथ्वी की सतह पर ही नहीं, बल्कि पृथ्वी पर स्थित सभी वस्तुओं पर दाब डालती है। वास्तव में, मानव एवं समुद्र की वायुमंडलीय दाब को वायुदाबमापी (barometer) द्वारा मापा जाता है।
दाब का मात्रक न्यूटन प्रति वर्ग मी. अथवा पास्कल है। वायुमंडलीय दाब: पृथ्वी के चारों ओर काफी ऊँचाई तक वायु है जिसे वायुमंडल कहते हैं। वायु का भार होता है अत: यह पृथ्वी की सतह पर ही नहीं, बल्कि पृथ्वी पर स्थित सभी वस्तुओं पर दाब डालती है। वास्तव में, मानव एवं समुद्र की वायुमंडलीय दाब को वायुदाबमापी (barometer) द्वारा मापा जाता है।
इसमें न तो द्रव्यमान होता है और न ही यह स्थान घेरती है किन्तु यह समस्त ब्रह्माण्ड में विद्यमान है। ऊर्जा के कारण ही कार्य करने की क्षमता उत्पन्न होती है। कोई भी कार्य बिना ऊर्जा-व्यय के नहीं किया जा सकता है। ऊर्जा कई प्रकार की होती है, जैसे–यांत्रिक, ऊष्मीय, प्रकाशिक, ध्वनि, चुम्बकीय, विद्युत्, नाभिकीय, रासायनिक ऊर्जा इत्यादि।
न्यूटन के गुरुत्वाकर्षण के अनुसार दो पिंडो के बीच एक आकर्षण बल कार्य करता है. यदि इनमें से एक पिंड पृथ्वी हो तो इस आकर्षण बल को गुरुत्व कहते हैं. यानी कि, गुरुत्व वह आकर्षण बल है, जिससे पृथ्वी किसी वस्तु को अपने केंद्र की ओर खींचती है. इस बल के कारण जो त्वरण उत्पन्न होती है, उसे गुरुत्व जनित त्वरण (g) कहते हैं, जिनका मान 9.8 m/s^2 होता है.
गुरुत्व जनित त्वरण (g) वस्तु के रूप, आकार, द्रव्यमान आदि पर निर्भर नहीं करता है.
गुरुत्व जनित त्वरण (g) वस्तु के रूप, आकार, द्रव्यमान आदि पर निर्भर नहीं करता है.
यदि कोई वस्तु अन्य वस्तुओं की तुलना में समय के सापेक्ष में स्थान परिवर्तन करती है, तो वस्तु की इस अवस्था को गति (motion/मोशन) कहा जाता है।
सामान्य शब्दों में गति का अर्थ - वास्तु की स्थिति में परिवर्तन गति कहलाती है।
सामान्य शब्दों में गति का अर्थ - वास्तु की स्थिति में परिवर्तन गति कहलाती है।
द्रव्यमान/आयतन इसका S.I. मात्रक किलोग्राम मीटर^-3 होता है।
किसी वस्तु के विस्थापन की दर को चाल कहते हैं। अथार्त चाल = दूरी / समय यह एक अदिश राशि है। इसका S.I. मात्रक मी/से है।
किसी वस्तु के वेग में परिवर्तन की दर को त्वरण कहते हैं। इसका S.I. मात्रक मी/से2 है। यदि समय के साथ वस्तु का वेग घटता है तो त्वरण ऋणात्मक होता है, जिसे मंदन (retardation ) कहते हैं।
किसी दिए गए समयान्तराल में वस्तु द्वारा तय किए गए मार्ग की लंबाई को दूरी कहते हैं। यह एक अदिश राशि है। यह सदैव धनात्मक (+ve) होती हैं।
द्रव्यमान संख्या परमाणु भार को कहा जाता है। यह प्रोटान और न्यूट्रान की कुल सख्या होती है। यह परमाणु क्रमांक की तरह समान नहीं होता है।
color="#000"> "न्यूटन का गति -नियम (newton 's laws of motion ): भौतिकी के पिता न्यूटन ने सन 1687 ई० में अपनी किताब ""प्रिन्सिपिया"" में गति के पहले नियम को प्रतिपादित किया था.
न्यूटन का पहला गति-नियम (newton's first law of motion ): यदि कोई वस्तु विराम अवस्था में है तो वह विराम अवस्था में रहेगी या यदि वह एक समान चाल से सीधी रेखा में चल रही है, तो वैसी हे चलती रहेगी, जब तक उस पर कोई बाहरी बल लगाकर उसकी वर्तमान अवस्था में परिवर्तन न किया जाए.
प्रथम नियम को गैलिलियो का नियम या जड़त्व का नियम भी कहते हैं.
बाह्य बल के आभाव में किसी वस्तु की अपनी विरामावस्था या समान गति की अवस्था को बनाए रखने की प्रवत्ति को जड़त्व कहते हैं.
प्रथम नियम से बल की परिभाषा मिलती है.
बल की परिभाषा: बल वह बाह्य कारक है जो किसी वास्तु की प्रारम्भिक अवस्था में परिवर्तन करता है या परिवर्तन करने की चेष्टा करता है. बल एक सदिश राशि है. इसका S.I. मात्रक न्यूटन है.
जड़त्व के कुछ उदाहरण: (i) ठहरी हुई मोटर या रेलगाड़ी के अचानक चल पड़ने पर उसमे बैठे यात्री पीछे की ओर झुक जाते हैं.
(ii) चलती हुई मोटर कार के अचानक रुकने पर उसमें बैठे यात्री आगे की ओर झुक जाते हैं.
(iii) कंबल को हाथ से पकड़ कर डंडे से पीटने पर धूल के कण झड़कर गिर पड़ते हैं.
संवेग: किसी वस्तु के द्रव्यमान तथा वेग के गुणनफल को उस वस्तु का संवेग कहते हैं. अथार्त् संवेग = वेग x द्रव्यमान
यह एक सदिश राशि है. इसका S.I. मात्रक किग्राम x मी./से. है.
न्यूटन का द्वितीय गति नियम ( newton's second law of motion): किसी वस्तु के संवेग में परिवर्तन की दर उस वस्तु पर आरोपित बल के समानुपाती होती है. तथा संवेग परिवर्तन की दिशा में होता हैं अब यदि आरोपित बल F, बल की दिशा में उत्पन्न त्वरण a एवं वस्तु का द्रव्यमान m हो, तो न्यूटन के गति के दूसरे नियम से f = ma यानी कि न्यूटन के दूसरे नियम दे बल का व्यंजक प्राप्त होता है.
नोट: प्रथम नियम दूसरे नियम का ही अंग हैं.
न्यूटन का तृतीय गति नियम (newton's third law of motion): प्रत्येक क्रिया के बराबर, परन्तु विपरीत दिशा में प्रतिक्रिया होती है. उदाहरण:
(i) बंदूक से गोली चलाने पर, चलाने वाले को पीछे की ओर धक्का लगना
(ii): नाव से किनारे पर कूदने पर पीछे की ओर हट जाना
(iii): रॉकेट को उड़ाने में.
न्यूटन का पहला गति-नियम (newton's first law of motion ): यदि कोई वस्तु विराम अवस्था में है तो वह विराम अवस्था में रहेगी या यदि वह एक समान चाल से सीधी रेखा में चल रही है, तो वैसी हे चलती रहेगी, जब तक उस पर कोई बाहरी बल लगाकर उसकी वर्तमान अवस्था में परिवर्तन न किया जाए.
प्रथम नियम को गैलिलियो का नियम या जड़त्व का नियम भी कहते हैं.
बाह्य बल के आभाव में किसी वस्तु की अपनी विरामावस्था या समान गति की अवस्था को बनाए रखने की प्रवत्ति को जड़त्व कहते हैं.
प्रथम नियम से बल की परिभाषा मिलती है.
बल की परिभाषा: बल वह बाह्य कारक है जो किसी वास्तु की प्रारम्भिक अवस्था में परिवर्तन करता है या परिवर्तन करने की चेष्टा करता है. बल एक सदिश राशि है. इसका S.I. मात्रक न्यूटन है.
जड़त्व के कुछ उदाहरण: (i) ठहरी हुई मोटर या रेलगाड़ी के अचानक चल पड़ने पर उसमे बैठे यात्री पीछे की ओर झुक जाते हैं.
(ii) चलती हुई मोटर कार के अचानक रुकने पर उसमें बैठे यात्री आगे की ओर झुक जाते हैं.
(iii) कंबल को हाथ से पकड़ कर डंडे से पीटने पर धूल के कण झड़कर गिर पड़ते हैं.
संवेग: किसी वस्तु के द्रव्यमान तथा वेग के गुणनफल को उस वस्तु का संवेग कहते हैं. अथार्त् संवेग = वेग x द्रव्यमान
यह एक सदिश राशि है. इसका S.I. मात्रक किग्राम x मी./से. है.
न्यूटन का द्वितीय गति नियम ( newton's second law of motion): किसी वस्तु के संवेग में परिवर्तन की दर उस वस्तु पर आरोपित बल के समानुपाती होती है. तथा संवेग परिवर्तन की दिशा में होता हैं अब यदि आरोपित बल F, बल की दिशा में उत्पन्न त्वरण a एवं वस्तु का द्रव्यमान m हो, तो न्यूटन के गति के दूसरे नियम से f = ma यानी कि न्यूटन के दूसरे नियम दे बल का व्यंजक प्राप्त होता है.
नोट: प्रथम नियम दूसरे नियम का ही अंग हैं.
न्यूटन का तृतीय गति नियम (newton's third law of motion): प्रत्येक क्रिया के बराबर, परन्तु विपरीत दिशा में प्रतिक्रिया होती है. उदाहरण:
(i) बंदूक से गोली चलाने पर, चलाने वाले को पीछे की ओर धक्का लगना
(ii): नाव से किनारे पर कूदने पर पीछे की ओर हट जाना
(iii): रॉकेट को उड़ाने में.
बल वह बाह्य कारक है जो किसी वास्तु की प्रारम्भिक अवस्था में परिवर्तन करता है या परिवर्तन करने की चेष्टा करता है. बल एक सदिश राशि है. इसका S.I. मात्रक न्यूटन है |
जब कोई कण एकसमान चाल से वृत्तीय गति करता है तो उसके केन्द्र की ओर एक त्वरण कार्य करता है जिसे उसका अभिकेन्द्र त्वरण कहते हैं। न्यूटन के गति के नियम से कण में त्वरण सदैव बल से ही उत्पन्न होता है तथा बल की दिशा त्वरण के अनुदिश होती है।अतः वृत्तीय गति करने वाले कण पर केन्द्र की दिशा में सदैव एक बल कार्य करता है। इस
बल को अभिकेन्द्र बल कहते हैं। किसी कण की वृत्तीय गति के लिए इस बल का उस पर लगा होना आवश्यक है।
बल को अभिकेन्द्र बल कहते हैं। किसी कण की वृत्तीय गति के लिए इस बल का उस पर लगा होना आवश्यक है।
किसी भौतिक राशि का मापन करने के लिए हम इस राशि की तुलना एक निश्चित, आधारभूत, यादृच्छिक रूप से चुने गए मान्यता प्राप्त, संदर्भ-मानक से करते हैं। इस संदर्भ-मानक को मानक मात्रक कहते हैं।
भौतिक राशि का परिमाण-
किसी भी भौतिक राशि की माप को मात्रक के आगे एक आंकिक संख्या लिखकर व्यक्त किया जाता है। इसे उस भौतिक राशि का परिमाण कहते हैं।
मूल मात्रक-
यद्यपि हमारे द्वारा मापी जाने वाली भौतिक राशियों की संख्या बहुत अधिक है, फिर भी, हमें इन सब भौतिक राशियों को व्यक्त करने के लिए, मात्रकों की सीमित संख्या की ही आवश्यकता होती है, क्योंकि ये राशियाँ एक दूसरे से परस्पर संबंधित हैं।
‘‘मूल राशियों को व्यक्त करने के लिए प्रयुक्त मात्रकों को मूल मात्रक कहते हैं। ये मात्रक अन्य मात्रकों पर निर्भर नहीं करते हैं अपितु ये अपने आप में स्वतंत्र होते हैं।’’
व्युत्पन्न मात्रक-
मूल राशियों के अतिरिक्त अन्य सभी भौतिक राशियों के मात्रकों को मूल मात्रकों के संयोजन द्वारा व्यक्त किया जा सकता है। इस प्रकार प्राप्त किए गए व्युत्पन्न राशियों के मात्रकों को व्युत्पन्न मात्रक कहते हैं। व्युत्पन्न मात्रक मूल मात्रकों पर निर्भर करते हैं।
मात्रकों की प्रणाली (या पद्धति)-
मूल-मात्रकों और व्युत्पन्न मात्रकों के सम्पूर्ण समुच्चय को मात्रकों की प्रणाली (या पद्धति) कहते हैं।
मात्रकों की विभिन्न प्रणालियां-
बहुत वर्षों तक मापन के लिए, विभिन्न देशों के वैज्ञानिक, अलग-अलग मापन प्रणालियों का उपयोग करते थे। अब से कुछ समय-पूर्व तक ऐसी तीन प्रणालियाँ प्रमुखता से प्रयोग में लाई जाती थी-
1. CGS प्रणाली
2. FPS (ब्रिटिश) प्रणाली
3. MKS प्रणाली
इन प्रणालियों में लम्बाई, द्रव्यमान एवं समय के मूल मात्रक क्रमशः इस प्रकार हैं:-
1. CGS प्रणाली - सेन्टीमीटर, ग्राम एवं सेकंड।
2. FPS प्रणाली- फुट, पाउन्ड एवं सेकंड।
3. MKS प्रणाली- मीटर, किलोग्राम एवं सेकंड।
मात्रकों की अंतर्राष्ट्रीय प्रणाली-
आजकल अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मान्य प्रणाली अर्थात मात्रकों की अंतर्राष्ट्रीय प्रणाली (एस आई प्रणाली) प्रयुक्त की जाती है। इसको फ्रेंच भाषा में ‘सिस्टम इन्टरनेशनल डि यूनिट्स’ कहते हैं। इसे संकेताक्षर में SI लिखा जाता है। SI प्रतीकों, मात्रकों और उनके संकेताक्षरों की योजना को 1971 में, मापतोल के महासम्मेलन द्वारा विकसित कर, वैज्ञानिक, तकनीकी, औद्योगिक एवं व्यापारिक कार्यों में अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर उपयोग हेतु अनुमोदित किया गया था।
SI मात्रकों की 10 की घातों पर आधारित (दाश्मिक या दशमलव) प्रवृति के कारण, इस प्रणाली के अंतर्गत रूपांतरण अत्यंत सुगम एवं सुविधाजनक है।
SI प्रणाली के सात मूल मात्रक-
मूल राशि SI मात्रक का नाम SI मात्रक का प्रतीक
1. लंबाई मीटर m
2. द्रव्यमान किलोग्राम kg
3. समय सेकंड s
4. विद्युत धारा ऐम्पियर A
5. ऊष्मागतिक ताप केल्विन K
6. पदार्थ की मात्रा मोल mol
7. ज्योति-तीव्रता कैण्डेला cd
भौतिक राशि का परिमाण-
किसी भी भौतिक राशि की माप को मात्रक के आगे एक आंकिक संख्या लिखकर व्यक्त किया जाता है। इसे उस भौतिक राशि का परिमाण कहते हैं।
मूल मात्रक-
यद्यपि हमारे द्वारा मापी जाने वाली भौतिक राशियों की संख्या बहुत अधिक है, फिर भी, हमें इन सब भौतिक राशियों को व्यक्त करने के लिए, मात्रकों की सीमित संख्या की ही आवश्यकता होती है, क्योंकि ये राशियाँ एक दूसरे से परस्पर संबंधित हैं।
‘‘मूल राशियों को व्यक्त करने के लिए प्रयुक्त मात्रकों को मूल मात्रक कहते हैं। ये मात्रक अन्य मात्रकों पर निर्भर नहीं करते हैं अपितु ये अपने आप में स्वतंत्र होते हैं।’’
व्युत्पन्न मात्रक-
मूल राशियों के अतिरिक्त अन्य सभी भौतिक राशियों के मात्रकों को मूल मात्रकों के संयोजन द्वारा व्यक्त किया जा सकता है। इस प्रकार प्राप्त किए गए व्युत्पन्न राशियों के मात्रकों को व्युत्पन्न मात्रक कहते हैं। व्युत्पन्न मात्रक मूल मात्रकों पर निर्भर करते हैं।
मात्रकों की प्रणाली (या पद्धति)-
मूल-मात्रकों और व्युत्पन्न मात्रकों के सम्पूर्ण समुच्चय को मात्रकों की प्रणाली (या पद्धति) कहते हैं।
मात्रकों की विभिन्न प्रणालियां-
बहुत वर्षों तक मापन के लिए, विभिन्न देशों के वैज्ञानिक, अलग-अलग मापन प्रणालियों का उपयोग करते थे। अब से कुछ समय-पूर्व तक ऐसी तीन प्रणालियाँ प्रमुखता से प्रयोग में लाई जाती थी-
1. CGS प्रणाली
2. FPS (ब्रिटिश) प्रणाली
3. MKS प्रणाली
इन प्रणालियों में लम्बाई, द्रव्यमान एवं समय के मूल मात्रक क्रमशः इस प्रकार हैं:-
1. CGS प्रणाली - सेन्टीमीटर, ग्राम एवं सेकंड।
2. FPS प्रणाली- फुट, पाउन्ड एवं सेकंड।
3. MKS प्रणाली- मीटर, किलोग्राम एवं सेकंड।
मात्रकों की अंतर्राष्ट्रीय प्रणाली-
आजकल अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मान्य प्रणाली अर्थात मात्रकों की अंतर्राष्ट्रीय प्रणाली (एस आई प्रणाली) प्रयुक्त की जाती है। इसको फ्रेंच भाषा में ‘सिस्टम इन्टरनेशनल डि यूनिट्स’ कहते हैं। इसे संकेताक्षर में SI लिखा जाता है। SI प्रतीकों, मात्रकों और उनके संकेताक्षरों की योजना को 1971 में, मापतोल के महासम्मेलन द्वारा विकसित कर, वैज्ञानिक, तकनीकी, औद्योगिक एवं व्यापारिक कार्यों में अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर उपयोग हेतु अनुमोदित किया गया था।
SI मात्रकों की 10 की घातों पर आधारित (दाश्मिक या दशमलव) प्रवृति के कारण, इस प्रणाली के अंतर्गत रूपांतरण अत्यंत सुगम एवं सुविधाजनक है।
SI प्रणाली के सात मूल मात्रक-
मूल राशि SI मात्रक का नाम SI मात्रक का प्रतीक
1. लंबाई मीटर m
2. द्रव्यमान किलोग्राम kg
3. समय सेकंड s
4. विद्युत धारा ऐम्पियर A
5. ऊष्मागतिक ताप केल्विन K
6. पदार्थ की मात्रा मोल mol
7. ज्योति-तीव्रता कैण्डेला cd
भौतिक राशियों के व्युत्पन्न मात्रक निकालने के लिए मात्रकों पर जो घातें लगानी पड़ती हैं, उन्हें उस राशि की विमाएँ कहते हैं। यदि किसी राशि की विमाएँ लम्बाई में a द्रव्यमान में b समय में c तथा ताप में d हो तो उस राशि की विमाओं को निम्नलिखित प्रकार से प्रदर्शित किया जाता है—
(La Mb Tc Qd)
प्रमुख भौतिक रशियों के विमीय सूत्र
व्युत्पन्न भौतिक राशि अन्य भौतिक राशियों से सम्बन्ध विमीय सूत्र
क्षेत्रफल = लम्बाई ×चौड़ाई ( L2)
आयतन = लम्बाई ×चौड़ाई × मोटाई (L3)
वेग = विस्थापन / समय ( LT-1)
त्वरण वेग परिवर्तन / समय LT-2
आवेग बल × समय MLT-1
बल द्रव्यमान × त्वरण MLT-2
कार्य बल × विस्थापन ML2T-2
शक्ति कार्य / समय ML2T-3
घनत्व द्रव्यमान / आयतन ML-3
संवेग द्रव्यमान × वेग MLT-1
दाब बल / क्षेत्रफल ML-1T-2
बल आघूर्ण बल × दूरी ML2T-2
प्रतिबल बल / क्षेत्रफल ML-1T-2
विकृति लम्बाई में वृद्धि / प्रारम्भिक वृद्धि L0
पृष्ठ तनाव बल / लम्बाई MT-2
कोणीय वेग कोण / समय T-1
जड़त्व आघूर्ण द्रव्यमान × (दूरी)2 ML2
(La Mb Tc Qd)
प्रमुख भौतिक रशियों के विमीय सूत्र
व्युत्पन्न भौतिक राशि अन्य भौतिक राशियों से सम्बन्ध विमीय सूत्र
क्षेत्रफल = लम्बाई ×चौड़ाई ( L2)
आयतन = लम्बाई ×चौड़ाई × मोटाई (L3)
वेग = विस्थापन / समय ( LT-1)
त्वरण वेग परिवर्तन / समय LT-2
आवेग बल × समय MLT-1
बल द्रव्यमान × त्वरण MLT-2
कार्य बल × विस्थापन ML2T-2
शक्ति कार्य / समय ML2T-3
घनत्व द्रव्यमान / आयतन ML-3
संवेग द्रव्यमान × वेग MLT-1
दाब बल / क्षेत्रफल ML-1T-2
बल आघूर्ण बल × दूरी ML2T-2
प्रतिबल बल / क्षेत्रफल ML-1T-2
विकृति लम्बाई में वृद्धि / प्रारम्भिक वृद्धि L0
पृष्ठ तनाव बल / लम्बाई MT-2
कोणीय वेग कोण / समय T-1
जड़त्व आघूर्ण द्रव्यमान × (दूरी)2 ML2
एक निश्चित दिशा में दो बिन्दुओं के बीच की लंबवत दूरी को विस्थापित कहते है। यह सदिश राशि है। इसका S.I. मात्रक मीटर है। विस्थापन धनात्मक, ऋणात्मक और शून्य कुछ भी हो सकता है।
किसी वस्तु के विस्थापन की दर को या एक निश्चित दिशा में प्रति सेकंड वस्तु द्वारा तय की दूरी को वेग कहते हैं। यह एक सदिश राशि है। इसका S.I. मात्रक मी/से है।
एक अथवा एक से अधिक मूल मात्रकों पर उपयुक्त घातें लगाकर प्राप्त किए गए मात्रकों को व्युत्पन्न मात्रक कहते हैं, अर्थात् व्युत्पन्न मात्रक मूल मात्रकों पर निर्भर करते हैं। कुछ व्युत्पन्न मात्रक निम्नलिखित हैं—
• क्षेत्रफल = लम्बाई × चौड़ाई
क्षेत्रफल का मात्रक = मीटर × मीटर = मीटर2
• आयतन = लम्बाई × चौड़ाई × ऊँचाई
आयतन का मात्रक = मीटर × मीटर ×मीटर = मीटर3
• घनत्व = द्रव्यमान/आयतन
घनत्व का मात्रक = किग्रा/मीटर3
• वेग = विस्थापन/समय
वेग का मात्रक = मीटर/सेकेण्ड
• चाल = दूरी/समय
चाल का मात्रक = मीटर/सेकेण्ड
• त्वरण = वेग–परिवर्तन/समय
त्वरण का मात्रक = मीटर/सेकेण्ड/सेकेण्ड = मीटर/सेकेण्ड2
• बल = द्रव्यमान ×त्वरण
बल का मात्रक = किग्रा ×मीटर/सेकेण्ड2 = किग्रा–मीटर/सेकेण्ड2 = न्यूटन
• क्षेत्रफल = लम्बाई × चौड़ाई
क्षेत्रफल का मात्रक = मीटर × मीटर = मीटर2
• आयतन = लम्बाई × चौड़ाई × ऊँचाई
आयतन का मात्रक = मीटर × मीटर ×मीटर = मीटर3
• घनत्व = द्रव्यमान/आयतन
घनत्व का मात्रक = किग्रा/मीटर3
• वेग = विस्थापन/समय
वेग का मात्रक = मीटर/सेकेण्ड
• चाल = दूरी/समय
चाल का मात्रक = मीटर/सेकेण्ड
• त्वरण = वेग–परिवर्तन/समय
त्वरण का मात्रक = मीटर/सेकेण्ड/सेकेण्ड = मीटर/सेकेण्ड2
• बल = द्रव्यमान ×त्वरण
बल का मात्रक = किग्रा ×मीटर/सेकेण्ड2 = किग्रा–मीटर/सेकेण्ड2 = न्यूटन
किसी वस्तु के द्रव्यमान तथा वेग के गुणनफल को उस वस्तु का संवेग कहते हैं. अथार्त् संवेग = वेग x द्रव्यमान
यह एक सदिश राशि है. इसका S.I. मात्रक किग्राम x मी./से. है.
यह एक सदिश राशि है. इसका S.I. मात्रक किग्राम x मी./से. है.
स्थितिज ऊर्जा वस्तु के द्रव्यमान, केन्द्र से दूरी और गुरुत्वाकर्षण बल पर निर्भर करती है। इसका अंतर्राष्ट्रीय इकाई मात्रक जुल है।
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