ध्वनि
(Sound)
"विक्षोभों के प्रतिरूप या पैटर्न जो द्रव्य के वास्तविक भौतिक स्थानांतरण अथवा समूचे द्रव्य के प्रवाह के बिना ही एक स्थान से दूसरे स्थान तक गति करते हैं, तरंग कहलाते हैं ।"
"तरंग ऊर्जा या विक्षोभों के संचरण की वह विधि है जिसमें माध्यम के कण अपने स्थान पर ही कम्पन करते हैं तथा ऊर्जा एक स्थान से दूसरे स्थान तक आगे जाती है।"
"तरंग ऊर्जा या विक्षोभों के संचरण की वह विधि है जिसमें माध्यम के कण अपने स्थान पर ही कम्पन करते हैं तथा ऊर्जा एक स्थान से दूसरे स्थान तक आगे जाती है।"
हम विभिन्न आधारों पर तरंगों का वर्गीकरण कर सकते हैं जिसमें से तीन प्रमुख आधार निम्नांकित है-
1. माध्यम के आधार पर
2. माध्यम के कणों के कंपन के आधार
3. ऊर्जा के गमन या प्रवाह के आधार पर
1. माध्यम के आधार पर
2. माध्यम के कणों के कंपन के आधार
3. ऊर्जा के गमन या प्रवाह के आधार पर
1. प्रत्यास्थ तरंगे 2. विद्युत चुम्बकीय तरंगे
1. प्रत्यास्थ या यांत्रिक तरंगे-
वे तरंगे जिनके संचरण के लिए ठोस, द्रव या गैस जैसे प्रत्यास्थ माध्यम की आवश्यकता होती है, उन्हें प्रत्यास्थ या यांत्रिक तरंग कहते हैं।
1. ये बिना माध्यम के संचरित नहीं हो सकती है।
2. इनका संचरण माध्यम के कणों के दोलनों के कारण संभव हो पाता है।
3. इनका संचरण माध्यम के प्रत्यास्थ गुणों पर निर्भर करता है।
उदाहरण-
1. ध्वनि तरंगे 2. रस्सी या तार में संचरित होने वाली तरंगे
3. पानी में संचरित होने वाली तरंगे 4. भूकंपी तरंगे
2. विद्युत चुम्बकीय तरंगे-
वे तरंगे जिनके संचरण के लिए ठोस, द्रव या गैसीय माध्यम की आवश्यकता नहीं होती है तथा जो निर्वात में भी गमन कर सकती है, उन्हें विद्युत चुम्बकीय तरंगे कहते हैं।
1. विद्युत-चुंबकीय तरंगों के संचरण के लिए माध्यम का होना आवश्यक नहीं है।
2. इनका संचरण निर्वात में भी होता है। निर्वात में सभी विद्युत-चुंबकीय तरंगों की चाल समान होती है जिसका मान हैः
c = 29,97,92,458 m s-1
उदाहरण-
1. दृश्य प्रकाश 2. अवरक्त किरणें 3. पराबैंगनी किरणें 4. एक्स किरणें
5. गामा किरणें 6. रेडियो तरंगे 7. सूक्ष्म तरंगे
1. प्रत्यास्थ या यांत्रिक तरंगे-
वे तरंगे जिनके संचरण के लिए ठोस, द्रव या गैस जैसे प्रत्यास्थ माध्यम की आवश्यकता होती है, उन्हें प्रत्यास्थ या यांत्रिक तरंग कहते हैं।
1. ये बिना माध्यम के संचरित नहीं हो सकती है।
2. इनका संचरण माध्यम के कणों के दोलनों के कारण संभव हो पाता है।
3. इनका संचरण माध्यम के प्रत्यास्थ गुणों पर निर्भर करता है।
उदाहरण-
1. ध्वनि तरंगे 2. रस्सी या तार में संचरित होने वाली तरंगे
3. पानी में संचरित होने वाली तरंगे 4. भूकंपी तरंगे
2. विद्युत चुम्बकीय तरंगे-
वे तरंगे जिनके संचरण के लिए ठोस, द्रव या गैसीय माध्यम की आवश्यकता नहीं होती है तथा जो निर्वात में भी गमन कर सकती है, उन्हें विद्युत चुम्बकीय तरंगे कहते हैं।
1. विद्युत-चुंबकीय तरंगों के संचरण के लिए माध्यम का होना आवश्यक नहीं है।
2. इनका संचरण निर्वात में भी होता है। निर्वात में सभी विद्युत-चुंबकीय तरंगों की चाल समान होती है जिसका मान हैः
c = 29,97,92,458 m s-1
उदाहरण-
1. दृश्य प्रकाश 2. अवरक्त किरणें 3. पराबैंगनी किरणें 4. एक्स किरणें
5. गामा किरणें 6. रेडियो तरंगे 7. सूक्ष्म तरंगे
1. अनुप्रस्थ तरंगे 2. अनुदैर्ध्य तरंगे
1. अनुप्रस्थ तरंगे-
यदि माध्यम के कण तरंग की गति की दिशा के लंबवत् दोलन करते हैं तो ऐसी तरंग को हम उसे अनुप्रस्थ तरंग कहते हैं।
उदाहरण -
1. तनी हुई डोरी या तार में कंपन- किसी डोरी के एक सिरे को दीवार से बांध कर उसके दूसरे मुक्त सिरे को बार-बार आवर्ती रूप से ऊपर-नीचे झटका दिया जाए तो इस प्रकार कंपन करती हुई डोरी में इसके कणों के कंपन तरंग की गति की दिशा के लंबवत् होते हैं, अतः यह अनुप्रस्थ तरंग का एक उदाहरण है।
2. पानी की सतह पर बनने वाली तरंगे (लहरे)- पानी में जब लहरे बनती है तक पानी के कण अपने स्थान पर ऊपर नीचे तरंग (ऊर्जा) संचरण के लम्बवत दिशा में कम्पन करते हैं।
2. अनुदैर्ध्य तरंगे-
यदि माध्यम के कण तरंग की गति की दिशा के दिशा में ही दोलन करते हैं तो उसे अनुदैर्ध्य तरंग कहते हैं।
अनुदेर्ध्य तरंगों का संचरण संपीडन तथा विरलन के रूप में होता है।
संपीडन- माध्यम के जिस स्थान पर कण पास पास आ जाते हैं तथा घनत्व अधिक हो जाता हैं, उन्हें संपीडन कहते हैं। संपीडन पर माध्यम का घनत्व तथा दाब अधिकतम होता है।
विरलन- माध्यम के कण जिस स्थान पर दूर-दूर हो जाते हैं तथा घनत्व कम हो जाता हैं, उन्हें विरलन कहते हैं। विरलन पर माध्यम का घनत्व तथा दाब न्यूनतम होता है।
उदाहरण -
1. ध्वनि तरंग- चित्र में अनुदैर्ध्य तरंगों के सबसे सामान्य उदाहरण ध्वनि तरंगों की स्थिति प्रदर्शित की गई है। वायु से भरे किसी लंबे पाइप के एक सिरे पर एक पिस्टन लगा है। पिस्टन को एक बार अंदर की ओर धकेलते और फिर बाहर की ओर खींचने से संपीडन (उच्च घनत्व) तथा विरलन (न्यून घनत्व) का स्पंद उत्पन्न हो जाएगा। यदि पिस्टन को अंदर की ओर धकेलने तथा बाहर की ओर खींचने का क्रम सतत तथा आवर्ती (ज्यावक्रीय) हो तो एक ज्यावक्रीय तरंग उत्पन्न होगी, जो पाइप की लंबाई के अनुदिश वायु में गमन करेगी। स्पष्ट रूप से यह अनुदैर्ध्य तरंग का उदाहरण है।
2. छड़ों में रगड़ के कारण उत्पन्न तरंगे अनुदेर्ध्य होती है।
अनुप्रस्थ तरंगे केवल ठोस में ही संभव है-
यांत्रिक तरंगें माध्यम के प्रत्यास्थ गुणधर्म से संबंधित हैं। अनुप्रस्थ तरंगों में माध्यम के कण संचरण की दिशा के लंबवत दोलन करते हैं, जिससे माध्यम की आकृति में परिवर्तन होता है अर्थात माध्यम के प्रत्येक अवयव में अपरूपण विकृति होती है। ठोसों एवं डोरियों में अपरूपण गुणांक होता है अर्थात इनमें अपरूपक प्रतिबल कार्य कर सकते हैं। तरलों का अपना कोई आकार नहीं होता है इसलिए तरल अपरूपक प्रतिबल कार्य नहीं कर सकते हैं। अतः अनुप्रस्थ तरंगें ठोसों एवं डोरियों (तार) में संभव हैं परन्तु तरलों में नहीं।
अनुदैर्ध्य तरंगे ठोस, द्रव और गैस तीनों ही माध्यम में संभव है-
1. अनुदैर्ध्य तरंगें संपीडन विकृति (दाब) से संबंधित होती हैं। ठोसों तथा तरलों दोनों में आयतन प्रत्यास्थता गुणांक होता है अर्थात ये संपीडन विकृति का प्रतिपालन कर सकते हैं। अतः ठोसों तथा तरलों दोनों में अनुदैर्ध्य तरंगें संचरण कर सकती हैं।
2. वायु में केवल आयतन प्रत्यास्थता गुणांक होता है अर्थात ये संपीडन विकृति का प्रतिपालन कर सकते हैं। अतः वायु में केवल अनुदैर्ध्य दाब तरंगों (ध्वनि) का संचरण ही संभव है।
3. स्टील की छड़ में अनुदैर्ध्य तथा अनुप्रस्थ दोनों प्रकार की तरंगें संचरित हो सकती हैं क्योंकि स्टील की छड़ में अपरूपण तथा आयतन प्रत्यास्थता गुणांक दोनों होता है। जब स्टील की छड़ जैसे माध्यम में अनुदैर्ध्य एवं अनुप्रस्थ दोनों प्रकार की तरंगें संचरित होती हैं तो उनकी चाल अलग-अलग होती है क्योंकि अनुदैर्ध्य एवं अनुप्रस्थ दोनों तरंगें अलग-अलग प्रत्यास्थता गुणांक के फलस्वरूप संचरित होती हैं।
1. अनुप्रस्थ तरंगे-
यदि माध्यम के कण तरंग की गति की दिशा के लंबवत् दोलन करते हैं तो ऐसी तरंग को हम उसे अनुप्रस्थ तरंग कहते हैं।
उदाहरण -
1. तनी हुई डोरी या तार में कंपन- किसी डोरी के एक सिरे को दीवार से बांध कर उसके दूसरे मुक्त सिरे को बार-बार आवर्ती रूप से ऊपर-नीचे झटका दिया जाए तो इस प्रकार कंपन करती हुई डोरी में इसके कणों के कंपन तरंग की गति की दिशा के लंबवत् होते हैं, अतः यह अनुप्रस्थ तरंग का एक उदाहरण है।
2. पानी की सतह पर बनने वाली तरंगे (लहरे)- पानी में जब लहरे बनती है तक पानी के कण अपने स्थान पर ऊपर नीचे तरंग (ऊर्जा) संचरण के लम्बवत दिशा में कम्पन करते हैं।
2. अनुदैर्ध्य तरंगे-
यदि माध्यम के कण तरंग की गति की दिशा के दिशा में ही दोलन करते हैं तो उसे अनुदैर्ध्य तरंग कहते हैं।
अनुदेर्ध्य तरंगों का संचरण संपीडन तथा विरलन के रूप में होता है।
संपीडन- माध्यम के जिस स्थान पर कण पास पास आ जाते हैं तथा घनत्व अधिक हो जाता हैं, उन्हें संपीडन कहते हैं। संपीडन पर माध्यम का घनत्व तथा दाब अधिकतम होता है।
विरलन- माध्यम के कण जिस स्थान पर दूर-दूर हो जाते हैं तथा घनत्व कम हो जाता हैं, उन्हें विरलन कहते हैं। विरलन पर माध्यम का घनत्व तथा दाब न्यूनतम होता है।
उदाहरण -
1. ध्वनि तरंग- चित्र में अनुदैर्ध्य तरंगों के सबसे सामान्य उदाहरण ध्वनि तरंगों की स्थिति प्रदर्शित की गई है। वायु से भरे किसी लंबे पाइप के एक सिरे पर एक पिस्टन लगा है। पिस्टन को एक बार अंदर की ओर धकेलते और फिर बाहर की ओर खींचने से संपीडन (उच्च घनत्व) तथा विरलन (न्यून घनत्व) का स्पंद उत्पन्न हो जाएगा। यदि पिस्टन को अंदर की ओर धकेलने तथा बाहर की ओर खींचने का क्रम सतत तथा आवर्ती (ज्यावक्रीय) हो तो एक ज्यावक्रीय तरंग उत्पन्न होगी, जो पाइप की लंबाई के अनुदिश वायु में गमन करेगी। स्पष्ट रूप से यह अनुदैर्ध्य तरंग का उदाहरण है।
2. छड़ों में रगड़ के कारण उत्पन्न तरंगे अनुदेर्ध्य होती है।
अनुप्रस्थ तरंगे केवल ठोस में ही संभव है-
यांत्रिक तरंगें माध्यम के प्रत्यास्थ गुणधर्म से संबंधित हैं। अनुप्रस्थ तरंगों में माध्यम के कण संचरण की दिशा के लंबवत दोलन करते हैं, जिससे माध्यम की आकृति में परिवर्तन होता है अर्थात माध्यम के प्रत्येक अवयव में अपरूपण विकृति होती है। ठोसों एवं डोरियों में अपरूपण गुणांक होता है अर्थात इनमें अपरूपक प्रतिबल कार्य कर सकते हैं। तरलों का अपना कोई आकार नहीं होता है इसलिए तरल अपरूपक प्रतिबल कार्य नहीं कर सकते हैं। अतः अनुप्रस्थ तरंगें ठोसों एवं डोरियों (तार) में संभव हैं परन्तु तरलों में नहीं।
अनुदैर्ध्य तरंगे ठोस, द्रव और गैस तीनों ही माध्यम में संभव है-
1. अनुदैर्ध्य तरंगें संपीडन विकृति (दाब) से संबंधित होती हैं। ठोसों तथा तरलों दोनों में आयतन प्रत्यास्थता गुणांक होता है अर्थात ये संपीडन विकृति का प्रतिपालन कर सकते हैं। अतः ठोसों तथा तरलों दोनों में अनुदैर्ध्य तरंगें संचरण कर सकती हैं।
2. वायु में केवल आयतन प्रत्यास्थता गुणांक होता है अर्थात ये संपीडन विकृति का प्रतिपालन कर सकते हैं। अतः वायु में केवल अनुदैर्ध्य दाब तरंगों (ध्वनि) का संचरण ही संभव है।
3. स्टील की छड़ में अनुदैर्ध्य तथा अनुप्रस्थ दोनों प्रकार की तरंगें संचरित हो सकती हैं क्योंकि स्टील की छड़ में अपरूपण तथा आयतन प्रत्यास्थता गुणांक दोनों होता है। जब स्टील की छड़ जैसे माध्यम में अनुदैर्ध्य एवं अनुप्रस्थ दोनों प्रकार की तरंगें संचरित होती हैं तो उनकी चाल अलग-अलग होती है क्योंकि अनुदैर्ध्य एवं अनुप्रस्थ दोनों तरंगें अलग-अलग प्रत्यास्थता गुणांक के फलस्वरूप संचरित होती हैं।
1. प्रगामी तरंगे 2. अप्रगामी तरंगे
1. प्रगामी तरंगें-
वे तरंगें जो माध्यम के एक बिन्दु से दूसरे बिंदु तक गमन कर सकती हैं, उन्हें प्रगामी तरंगें कहते हैं।
1. प्रगामी तरंगे अनुप्रस्थ अथवा अनुदैर्ध्य दोनों प्रकार की हो सकती है।
2. वह द्रव्य माध्यम जिसमें तरंग संचरित होती है, वह स्वयं गति नहीं करता है बल्कि विक्षोभ या ऊर्जा ही आगे बढ़ती है। प्रगामी तरंग में भी विक्षोभ या ऊर्जा का ही संचरण होता है।
उदाहरणार्थ, किसी नदी की धारा में जल की पूर्ण रूप से गति होती है। परन्तु जल में बनने वाली तरंग में केवल विक्षोभ गति करते हैं न कि पूर्ण रूप से जल। इसमें जल केवल ऊपर नीचे कंपन करता है।
इसी प्रकार, पवन के बहने में वायु पूर्ण रूप से एक स्थान से दूसरे स्थान तक गति करता है लेकिन ध्वनि तरंग के संचरण में वायु में कंपन होता है और इसमें विक्षोभ (या दाब घनत्व) में वायु में संचरण होता है जिससे संपीडन व विरलन के द्वारा विक्षोभ या तरंग आगे बढ़ती है। अतः हम कह सकते हैं कि ध्वनि तरंग की गति में वायु (माध्यम) पूर्ण रूपेण गति नहीं करता है।
अनुप्रस्थ प्रगामी तरंग के श्रृंग या शीर्ष एवं गर्त-
श्रृंग या शीर्ष - किसी अनुप्रस्थ प्रगामी तरंग में अधिकतम धनात्मक विस्थापन वाले बिंदु को शीर्ष कहते हैं।
गर्त - किसी अनुप्रस्थ प्रगामी तरंग में अधिकतम ऋणात्मक विस्थापन वाले बिंदु को गर्त कहते हैं।
कोई अनुप्रस्थ प्रगामी तरंग कैसे गति करती है-
किसी माध्यम में जब कोई प्रगामी तरंग गति करती है तब माध्यम के कण अपनी माध्य स्थिति के इर्द-गिर्द सरल आवर्त गति (या कंपन) करते हैं तथा माध्यम में श्रृंग (या शीर्ष) और गर्त बनते हैं। विक्षोभ (या तरंग-ऊर्जा) के आगे बढ़ने के साथ-साथ ये श्रृंग या गर्त भी आगे बढ़ते जाते हैं।
2. अप्रगामी तरंगें-
जब विपरीत दिशाओं में गति करती हुई दो सर्वसम तरंगों का व्यतिकरण होता है तो एक अपरिवर्ती तरंग पैटर्न बन जाता है, जिसे अप्रगामी तरंगें कहते हैं। अप्रगामी तरंग में तरंग या ऊर्जा किसी भी दिशा में आगे नहीं बढ़ती है अपितु माध्यम की निश्चित सीमाओं के मध्य सीमित हो जाती है। इसीलिए इन तरंगों को अ-प्रगामी (अर्थात आगे नहीं बढ़ने वाली) कहते हैं।
जैसे किसी डोरी के दोनों सिरों को दृढ़ परिसीमाओं पर बांध देते हैं तथा बाईं ओर के सिरे पर झटका दे कर तरंग बनाते हैं। तब दाईं ओर गमन करती तरंग दृढ़ परिसीमा से परावर्तित होती है। यह परावर्तित तरंग दूसरी दिशा में बाईं ओर गमन करके दूसरे सिरे से परावर्तित होती है। आपतित एवं परावर्तित तरंगों के व्यतिकरण से डोरी में एक अपरिवर्ती तरंग पैटर्न बन जाता है, ऐसे तरंग पैटर्न अप्रगामी तरंगें कहलाते हैं।
अप्रगामी तरंगों के प्रकार-
1. अनुदैर्ध्य अप्रगामी तरंग- जब दो सर्वसम अनुदैर्ध्य प्रगामी तरंगे एक ही सरल रेखा में विपरीत दिशा में चलती हुई अध्यारोपित होती है तो माध्यम में जो तरंग पैटर्न बनता है उसे अनुदैर्ध्य अप्रगामी तरंग कहते हैं।
उदाहरण- वायुस्तम्भ (बंद व खुले ऑर्गन पाइप) में बनने वाली अप्रगामी तरंगे।
अनुप्रस्थ अप्रगामी तरंग- जब दो सर्वसम अनुप्रस्थ प्रगामी तरंगे एक ही सरल रेखा में विपरीत दिशा में चलती हुई अध्यारोपित होती है तो माध्यम में जो तरंग पैटर्न बनता है उसे अनुप्रस्थ अप्रगामी तरंग कहते हैं।
उदाहरण- स्वरमापी के तार या सितार/गिटार के तार में, मेल्डीज के प्रयोग में डोरी में बनाए वाली अप्रगामी तरंगे।
अप्रगामी तरंग बनने के लिए शर्त-
अप्रगामी तरंग आपतित तथा परावर्तित तरंगों के अध्यारोपण से होता है अतः इनके बनने के लिए माध्यम असीमित नहीं होना चाहिए बल्कि माध्यम दो परिसीमाओं में बद्ध होना चाहिए।
1. प्रगामी तरंगें-
वे तरंगें जो माध्यम के एक बिन्दु से दूसरे बिंदु तक गमन कर सकती हैं, उन्हें प्रगामी तरंगें कहते हैं।
1. प्रगामी तरंगे अनुप्रस्थ अथवा अनुदैर्ध्य दोनों प्रकार की हो सकती है।
2. वह द्रव्य माध्यम जिसमें तरंग संचरित होती है, वह स्वयं गति नहीं करता है बल्कि विक्षोभ या ऊर्जा ही आगे बढ़ती है। प्रगामी तरंग में भी विक्षोभ या ऊर्जा का ही संचरण होता है।
उदाहरणार्थ, किसी नदी की धारा में जल की पूर्ण रूप से गति होती है। परन्तु जल में बनने वाली तरंग में केवल विक्षोभ गति करते हैं न कि पूर्ण रूप से जल। इसमें जल केवल ऊपर नीचे कंपन करता है।
इसी प्रकार, पवन के बहने में वायु पूर्ण रूप से एक स्थान से दूसरे स्थान तक गति करता है लेकिन ध्वनि तरंग के संचरण में वायु में कंपन होता है और इसमें विक्षोभ (या दाब घनत्व) में वायु में संचरण होता है जिससे संपीडन व विरलन के द्वारा विक्षोभ या तरंग आगे बढ़ती है। अतः हम कह सकते हैं कि ध्वनि तरंग की गति में वायु (माध्यम) पूर्ण रूपेण गति नहीं करता है।
अनुप्रस्थ प्रगामी तरंग के श्रृंग या शीर्ष एवं गर्त-
श्रृंग या शीर्ष - किसी अनुप्रस्थ प्रगामी तरंग में अधिकतम धनात्मक विस्थापन वाले बिंदु को शीर्ष कहते हैं।
गर्त - किसी अनुप्रस्थ प्रगामी तरंग में अधिकतम ऋणात्मक विस्थापन वाले बिंदु को गर्त कहते हैं।
कोई अनुप्रस्थ प्रगामी तरंग कैसे गति करती है-
किसी माध्यम में जब कोई प्रगामी तरंग गति करती है तब माध्यम के कण अपनी माध्य स्थिति के इर्द-गिर्द सरल आवर्त गति (या कंपन) करते हैं तथा माध्यम में श्रृंग (या शीर्ष) और गर्त बनते हैं। विक्षोभ (या तरंग-ऊर्जा) के आगे बढ़ने के साथ-साथ ये श्रृंग या गर्त भी आगे बढ़ते जाते हैं।
2. अप्रगामी तरंगें-
जब विपरीत दिशाओं में गति करती हुई दो सर्वसम तरंगों का व्यतिकरण होता है तो एक अपरिवर्ती तरंग पैटर्न बन जाता है, जिसे अप्रगामी तरंगें कहते हैं। अप्रगामी तरंग में तरंग या ऊर्जा किसी भी दिशा में आगे नहीं बढ़ती है अपितु माध्यम की निश्चित सीमाओं के मध्य सीमित हो जाती है। इसीलिए इन तरंगों को अ-प्रगामी (अर्थात आगे नहीं बढ़ने वाली) कहते हैं।
जैसे किसी डोरी के दोनों सिरों को दृढ़ परिसीमाओं पर बांध देते हैं तथा बाईं ओर के सिरे पर झटका दे कर तरंग बनाते हैं। तब दाईं ओर गमन करती तरंग दृढ़ परिसीमा से परावर्तित होती है। यह परावर्तित तरंग दूसरी दिशा में बाईं ओर गमन करके दूसरे सिरे से परावर्तित होती है। आपतित एवं परावर्तित तरंगों के व्यतिकरण से डोरी में एक अपरिवर्ती तरंग पैटर्न बन जाता है, ऐसे तरंग पैटर्न अप्रगामी तरंगें कहलाते हैं।
अप्रगामी तरंगों के प्रकार-
1. अनुदैर्ध्य अप्रगामी तरंग- जब दो सर्वसम अनुदैर्ध्य प्रगामी तरंगे एक ही सरल रेखा में विपरीत दिशा में चलती हुई अध्यारोपित होती है तो माध्यम में जो तरंग पैटर्न बनता है उसे अनुदैर्ध्य अप्रगामी तरंग कहते हैं।
उदाहरण- वायुस्तम्भ (बंद व खुले ऑर्गन पाइप) में बनने वाली अप्रगामी तरंगे।
अनुप्रस्थ अप्रगामी तरंग- जब दो सर्वसम अनुप्रस्थ प्रगामी तरंगे एक ही सरल रेखा में विपरीत दिशा में चलती हुई अध्यारोपित होती है तो माध्यम में जो तरंग पैटर्न बनता है उसे अनुप्रस्थ अप्रगामी तरंग कहते हैं।
उदाहरण- स्वरमापी के तार या सितार/गिटार के तार में, मेल्डीज के प्रयोग में डोरी में बनाए वाली अप्रगामी तरंगे।
अप्रगामी तरंग बनने के लिए शर्त-
अप्रगामी तरंग आपतित तथा परावर्तित तरंगों के अध्यारोपण से होता है अतः इनके बनने के लिए माध्यम असीमित नहीं होना चाहिए बल्कि माध्यम दो परिसीमाओं में बद्ध होना चाहिए।
भौतिकी में, कोई साइन-आकार की तरंग, जितनी दूरी के बाद अपने आप को पुनरावृत (repeat) करती है, उस दूरी को उस तरंग का तरंगदैर्घ्य(wavelength) कहते हैं। दीर्घ (= लम्बा) से 'दैर्घ्य' बना है।
तरंगदैर्घ्य, तरंग के समान कला वाले दो क्रमागत बिन्दुओं की दूरी है। ये बिन्दु तरंगशीर्श (crests) हो सकते हैं, तरंगगर्त (troughs) या शून्य-पारण (zero crossing) बिन्दु हो सकते हैं। तरंग दैर्घ्य किसी तरंग की विशिष्टता है। इसे ग्रीक अक्षर 'लैम्ब्डा' (λ) द्वारा निरुपित किया जाता है। इसका SI मात्रक मीटर है।
तरंगदैर्घ्य, तरंग के समान कला वाले दो क्रमागत बिन्दुओं की दूरी है। ये बिन्दु तरंगशीर्श (crests) हो सकते हैं, तरंगगर्त (troughs) या शून्य-पारण (zero crossing) बिन्दु हो सकते हैं। तरंग दैर्घ्य किसी तरंग की विशिष्टता है। इसे ग्रीक अक्षर 'लैम्ब्डा' (λ) द्वारा निरुपित किया जाता है। इसका SI मात्रक मीटर है।
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