Tuesday 8 February 2022

Class 10 अध्याय - औद्योगीकरण का युग Important Question Answer

 


कक्षा 10

सामाजिक विज्ञान (इतिहास)

अध्याय - औद्योगीकरण का युग

 Important Question Answer


मूल बिन्दु

शहरीकरण के तरीके। 

सामाजिक परिवर्तन और शहरी जीवन। 

शहरों का विकास और प्रवासन। 

व्यापारी, मध्यम वर्ग के कामगार और शहरी गरीब वर्ग।

उद्देश्य

औद्योगीकरण और इसके प्रभावों को जानना। 

व्यापार वर्ग, मध्यम वर्ग, मजदूर और शहरी गरीबों के जीवन स्तर की जानकारी। 

वस्त्र उद्योग की जानकारी प्राप्त करना। 

ब्रिटेन में वस्त्र उद्योग का विकास और इसके भारतीय बुनकरों पर प्रभाव।

 

Part-1 अति लघु-उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1. आदि-औद्योगिक व्यवस्था की कोई दो विशेषताएँ बताओ।

उत्तर- () इस पर सौदागरों का नियंत्रण था।

() इसमें वस्तुओं का उत्पादन कारखानों की बजाय घरों में होता था।

प्रश्न 2. सत्रहवीं और अठारहवीं शताब्दियों में यूरोपीय शहरों के सौदागर गांवों की ओर क्यों रूख करने लगे थे?

उत्तर- शहरी प्रतिस्पर्धा से बचने के लिए।

प्रश्न 3. शहरी दस्तकारी तथा व्यापारिक गिल्ड्स मुख्यत: कौन-से काम करते थे? कोई दो कार्य बताओ।

उत्तर- इनके कार्य थे:

() कारीगरों को प्रशिक्षण देना।
(
) उत्पादकों पर नियंत्रण रखना।

प्रश्न 4. आदि-औद्योगिक उत्पादन से गाँवों के छोटे तथा ग़रीब किसानों को क्या लाभ पहुँचा? कोई दो बिंदु लिखिए।

उत्तर- () आदि-औद्योगिक उत्पादन ने किसानों की कम होती खेती की आय को नया सहारा दिया।

() इस व्यवस्था से किसानों को अपने पूरे परिवार के श्रम संसाधनों के प्रयोग का अवसर मिल गया।

प्रश्न 5. कपड़ा उत्पादन प्रक्रिया के कौन-कौन से चरण थे?

उत्तर- () कार्डिंग () ऐंठना कताई () लपेटना।

प्रश्न 6. भाप इंजन के संबंध में निम्नलिखित बातें बताएँ:

() आविष्कारक का नाम
(
) इसमें सुधार करने वाले व्यक्ति का नाम
(
) इसके पेटेंट का वर्ष
(
) नए मॉडल का उत्पादन करने वाला उद्योगपति।

उत्तर-  () न्यूकॉमेन
(
) जेम्स वॉट
(
) मेथ्यू बूल्टन।

प्रश्न 7. उन्नीसवीं सदी में अमेरिका के उद्योगपति मशीनों का प्रयोग करने लगे थे, जबकि ब्रिटेन में अभी मशीनों को इतना महत्त्व नहीं दिया जाता था। क्यों?

उत्तर- उन्नीसवीं सदी में अमेरिका में मजदूरों की कमी थी जबकि ब्रिटेन में मजदूरों की कोई कमी नहीं थीं। इसलिए अमेरिका में मशीनों का प्रयोग किया जाने लगा था, परन्तु ब्रिटेन में नहीं।

प्रश्न 8. स्पिनिंग जेनी का आविष्कार कब और किसने किया?

उत्तर- स्पिनिंग जेनी का आविष्कार 1764 में जेम्स हरग्रीब्ज ने किया।

प्रश्न 9. 1760 के दशक के आरंभिक वर्षों में ईस्ट इंडिया कंपनी भारतीय कपड़े के निर्यात में वृद्धि क्यों करना चाहती थी?

उत्तर-  इसका कारण यह था कि उस समय यूरोप में बारीक भारतीय कपड़े की बड़ी माँग थी।

प्रश्न 10. ‘गुमाश्तेकौन थे?

उत्तर- गुमाश्ते अंग्रेज़ी ईस्ट इंडिया कंपनी के वेतनभोगी कर्मचारी थे। जो भारतीय बुनकरों पर निगरानी और नियंत्रण रखते थे, ताकि वे अपना कपड़ा

प्रश्न 11. 1772 में ईस्ट इंडिया कंपनी के अफ़सर हेनरी पतूलो ने भारतीय कपड़े के बारे में क्या कहा था?

उत्तर- हेनरी पतूलो ने कहा था कि भारतीय कपड़े की माँग कभी कम नहीं हो सकती क्योंकि संसार के किसी भी अन्य देश में इतना अच्छा माल

प्रश्न 12. 1850 तक भारत के अधिकाँश बुनकर प्रदेशों में बेकारी क्यों फैल गई?

उत्तर- क्योंकि भारतीय बुनकरों द्वारा हाथ से बुना गया कपड़ा मानचेस्टर के मशीनी माल का मुकाबला नहीं कर पाया।

प्रश्न 13. भारत के किन्हीं दो प्रारंभिक उद्यमियों ने नाम बताओ।

उत्तर- () द्वारकानाथ टैगोर () डिनशॉ पेटिट
(
) जमशेदजी नुसरवान जी टाटा () सेठ हुकुमचंद। (कोई दो लिखें)

प्रश्न 14. द्वारकानाथ टैगोर कौन थे?

उत्तर- द्वारकानाथ टैगोर बंगाल के एक प्रारंभिक उद्यमी थे।

प्रश्न 15. भारत में पहली जूट मिल कहाँ लगाई गई ? यह मिल किसने लगाई?

उत्तर- भारत में पहली जूट मिल कलकत्ता में लगी। यह मिल एक मारवाड़ी सेठ हुकुमचंद ने लगाई।

प्रश्न 16. जमशेदजी जीजीभोए कौन थे? उन्हें अपने सभी जहाज़ क्यों बेचने पड़े?

उत्तर-  जमशेदजी जीजीभोए एक पारसी बुनकर के बेटे थे। जिनके पास जहाज़ों का एक विशाल बेड़ा था। अंग्रेज़ और अमेरिकी जहाज़ कंपनियों के साथ प्रतिस्पर्धा के कारण उन्हें सारे जहाज बेचने पड़े।

प्रश्न 17. भारत का पहला लौह एवं इस्पात संयंत्र कब और कहाँ स्थापित हुआ? यह संयंत्र किसने लगाया?

उत्तर- भारत का पहला लौह एवं इस्पात संयंत्र 1912 में जमशेदपुर में लगाया गया। यह संयंत्र जे० एन० टाटा ने लगाया।

प्रश्न 18. भारत में फैक्टरियों के विस्तार से मजदूरों की मांग बढ़ी। ये मज़दूर कहाँ से आए?

उत्तर-  आरंभ में फैक्टरियों में काम करने के लिए मज़दूर आस-पास के जिलों (रत्नगिरी, कानपुर आदि) से आए थे।

प्रश्न 19. क्या कारण था कि मिलों की संख्या बढ़ने पर भी इनमें नौकरी मिल पाना कठिन था?

उत्तर-  मिलों में रोजगार की तुलना में रोज़गार चाहने वालों की संख्या अधिक थी।

प्रश्न 20. प्रथम विश्वयुद्ध के पश्चात् ब्रिटेन के कपड़ा निर्यात में गिरावट क्यों आई? कोई एक कारण लिखें।

उत्तर-  देश में कपास का उत्पादन कम हो गया था। ब्रिटिश उपनिवेशों पर स्थानीय उद्योगपतियों का नियंत्रण स्थापित हो गया।

प्रश्न 21. ‘फ्लाई शटलवाले करघों के प्रयोग के कौन-से दो महत्त्वपूर्ण परिणाम निकले?

उत्तर-  () कामगारों की उत्पादन क्षमता तथा उत्पादन में वृद्धि हुई।

प्रश्न 22. मोटे कपड़े की माँग में बहुत अधिक उतार-चढ़ाव आते थे, जबकि महीन (बारीक) कपड़े में उतार-चढ़ाव कम ही आते थे।

उत्तर-  मोटा कपड़ा निर्धन लोग खरीदते थे, जबकि महीन कपड़ा धनी लोग खरीदते थे।

प्रश्न 23. मैनचेस्टर के उद्योगपति अपने कपड़े के बंडलों पर लेबल लगाते थे। इसका क्या महत्त्व था? कोई एक बिंदु लिखिए।

उत्तर-  लेबल से खरीददारों को कंपनी का नाम तथा उत्पादन की जगह का पता चल जाता था। लेबल कपड़े की गुणवत्ता का प्रतीक था। :

प्रश्न 24. लेबलों पर भारतीय देवी-देवताओं की तस्वीरों को क्यों महत्त्व दिया जाता था?

उत्तर-  लेबलों पर भारतीय देवी-देवताओं की तस्वीरों द्वारा उत्पाद के निर्माता यह दिखाने का प्रयास करते थे कि ईश्वर भी चाहता है कि लोग इस उत्पाद को खरीदें।

प्रश्न 25. भारतीय निर्माताओं के विज्ञापनों की क्या विशेषता थी?

उत्तर भारतीय निर्माताओं के विज्ञापन राष्ट्रवादी संदेश देते थे।

 

 

Part-2 अति लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर

 

प्रश्न 1. पहली कपड़ा मिल किसने बनाई

[CBSE 2009]

उत्तर- रिचर्ड आर्थराईट ने पहली कपड़ा मिल बनाई। 

 

प्रश्न 2. भारत में पहली कपड़ा मिल कहाँ स्थापित हुई

[CBSE 2009]

उत्तर- पहली कपड़ा मिल भारत में 1854 में बम्बई (मुम्बई) में स्थापित हुई।

 

प्रश्न 3. उस उद्योग का नाम बताओं जिसने 19वीं सदी में भाप के इंजन की खोज की। 

[CBSE 2011]

उत्तर- कपड़ा उद्योग ने 19वीं सदी में भाप के इंजन की खोज की। 

 

प्रश्न 4. ब्रिटेन के दो सबसे गतिशील उद्योगों के नाम बताइए। 

[CBSE 2011]

उत्तर- ब्रिटेन के दो सबसे गतिशील उद्योग कपड़ा उद्योग और धातु उद्योग थे।

 

प्रश्न 5. इंग्लैंड के उस शहर का नाम बताओ जो परिष्करण केन्द्र के रूप में विकसित हुआ। 

[CBSE 2011] 

उत्तर- लंदन। 

 

प्रश्न 6. भारत आने वाले प्रथम यूरोपीय राष्ट्र का नाम बताइए।

[CBSE 2012] 

उत्तर- भारत आने वाला प्रथम यूरोपीय राष्ट्र पुर्तगाल था। 

 

प्रश्न 7. अठाहरवीं शताब्दी में भारतीय व्यापारियों की विदेश व्यापार की कड़ी को तोड़ने वाला मुख्य कारण क्या था?

[CBSE 2013] 

उत्तर- यूरोपियन कम्पनियाँ धीरे-धीरे शक्तिशाली हो गई।

(1) स्थानीय अदालतों से कई प्रकार की छूट और व्यापार का एकाधिकार।

(2) इससे पुराने पत्तनों का पतन हुआ जिनमें हुगली तथा सूरत मुख्य थे, जिन्हें स्थानीय व्यापारी चलाते थे। 

 

प्रश्न 8. ईस्ट इंडिया कम्पनी ने गुमाश्ता क्यों नियुक्त किए?

[CBSE 2013] 

उत्तर- 'गुमाश्ता' ईस्ट इंडिया कम्पनी के वेतन भोगी कर्मचारी थे जिनका कार्य बुनकरों का निरीक्षण था। 

 

प्रश्न 9. द्वारका नाथ टैगोर कौन थे?

[CBSE 2013] 

उत्तर- द्वारका नाथ टैगोर बंगाल के एक व्यवसायी थे, जिन्होंने जहाजरानी, शिप निर्माण, खदान, बैंकिंग, बागवानी तथा बीमा क्षेत्र में पूँजी निवेश किया। 

 

प्रश्न 10. "स्पिनिंग जेनी' क्या था?

[CBE 2013] 

उत्तर- 1764 में जेम्स हरगीज ने एक कताई मशीन की संरचना की। इस मशीन ने कताई प्रक्रिया को बढ़ाया और मजदूरों की माँग को कम किया। सिर्फ एक अकेले पहिये को घुमाकर मजदूर कई स्पिंडल को गति दे सकता था और कई धागों की एक बार में कताई कर सकता था। 

 

प्रश्न 11. यूरोपियन प्रबंधन एजेंसी के भारत में क्या काम थे?

[CBSE 2015] 

उत्तर- यूरोपियन प्रबंधन एजेंसी भारत में उद्योगों के वृहद क्षेत्रों पर नियंत्रण रख सकती थी। 

 

प्रश्न 12. उन दो भारतीय पत्तनों के नाम बताओं जिनके दक्षिण एशियाई देशों से सम्बंध थे

[CBSE 2016] 

उत्तर- 'मछलीपट्टनम' कोरोमंडल तट पर और हुगली प० बंगाल में दो प्रमुख पत्तन थे जो दक्षिणी एशियाई देशों से जुड़े थे। 

 

प्रश्न 13. इंग्लैंड में सबसे पहले फैक्ट्री कब स्थापित हुई?

[CBSE 2016] 

उत्तर- सबसे पहले इंग्लैंड में फैक्ट्रियों की स्थापना 1730 में हुई। 

 

प्रश्न 14. 19वीं शताब्दी के दो भारतीय उद्योगपतियों के नाम बताइए।

[CBSE 2017] 

उत्तर- जमशेतजी नुशेरवानजी टाटा और द्वारका नाथ टैगोर।

 

लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर

 

प्रश्न 1. 19वीं शताब्दी में भारतीय बुनकरों की समस्याओं का वर्णन कीजिए।

[CBSE 2012] 

उत्तर- 19वीं सदी में भारतीय वस्त्र उत्पादक/बुनकर निम्नलिखित समस्याओं से ग्रसित थे

(1) उनका निर्यात व्यापार खत्म हो गया था। 

(2) स्थानीय बाजार मैनचेस्टर उत्पादों से भर गये थे, जिन्हें मशीन से सस्ती दरों पर उत्पादित किया जाता था। सस्ती होने के कारण खरीददार इन उत्पादों की ओर आकर्षित थे और भारतीय वस्त्र उद्योग इनसे प्रतिस्पर्धा नहीं कर पा रहे थे। 

(3) 1860 तक भारतीय बुनकरों को एक नई समस्या का सामना करना पड़ा। इन्हें उत्तम प्रकार के कपास की पर्याप्त उपलब्धता नहीं हो पा रही थी, कारण यह था कि अमेरिका में गृह युद्ध छिड़ गया और अमेरिका से ब्रिटेन को आने वाली कंपास की सप्लाई रोक दी गई थी। अत: ब्रिटेन ने भारत की ओर रूख किया। जैसे ही कपास का निर्यात बढ़ा, वैसे ही कपास के मूल्य में वृद्धि हो गयी। भारतीय बुनकरों को कच्चा कपास ऊँची दरों पर खरीदना पड़ा। अत: कताई का काम मुनाफ़ का सौदा नहीं रह गया था।

(4) भारतीय फैक्ट्रियों ने वृहद मात्रा में माल उत्पादन किया जिससे भारतीय बाजार पूरी तरह बह गये। इस प्रकार भारतीय बुनकरों के लिए यह एक मुश्किल समय था और उनको अपना अस्तित्व बनाए रखना कठिन हो रहा था। 

 

प्रश्न 2. आरम्भिक 19वीं सदी ब्रिटेन में तकनीकी परिवर्तन धीरे-धीरे क्यों हुए? व्याख्या कीजिए।

[CBSE 2012] 

उत्तर- ब्रिटेन में तकनीकी परिवर्तन निम्न कारणों से धीमी गति से हुए- .

(1) नई तकनीकी महँगी थी। उद्योगपति और व्यापारी इनके प्रयोग में सर्तक थे जैसे 19वीं सदी के आरम्भ में केवल 22 भाप के इंजन थे। कई वर्षों तक भाप के इंजन का खरीददार कोई भी नहीं था। 

(2) मशीनें ज्यादातर खराब हो जाती थी और उनका रखरखाव महँगा था। 

(3) मशीनें इतनी ज्यादा प्रभावशाली नहीं थी जितना कि उनके अविष्कारक और निर्माता दावा करते थे। 

(4) मशीनें एक प्रकार की स्तरीय व्यापक बाज़ारोन्मुख सामान उत्पादन उन्मुख थी। लेकिन बाजारों में आकर्षक और विशिष्ट आकार जो मानवकौशल युक्त सामान की माँग थी कि मशीनी तकनीकी थी। उस समय उच्च वर्ग हाथ से बने सामानों को प्राथमिकता देते थे। 

 

प्रश्न 3. 'गुमाश्ता कौन थे? उनकी नियुक्ति क्यों होती थी? वे बुनकरों से कैसा व्यवहार करते थे?

[CBSE 2012] 

उत्तर- 'गुमाश्ता' वेतन भोगी नौकर थे जिन्हें ईस्ट इंडिया कम्पनी ने बुनकरों के निरीक्षण के लिए नियुक्त किया था।

कम्पनी उन्हें बुनकरों से सीधा सम्बन्ध बनाने के लिए नियुक्त करती थी ताकि वस्त्र व्यापार से जुड़े व्यापारी और दलालों को समाप्त किया जा सके। 

गुमाश्ता बुनकरों से घमंड से व्यवहार करते थे और आपूर्ति में देरी होने पर उन्हें (बुनकरों) को दंडित करते थे, ज्यादातर मारते पीटते थे। कई बुनकर ग्रामों में बुनकरों और गुमाश्ता के बीच संघर्ष की सूचनाएँ थी क्योंकि वे गाँवों में सिपाही और नौकरों के साथ चलते थे। 

 

प्रश्न 4. ब्रिटिश और भारतीय उत्पादक एवं व्यापारी किन तीन प्रकारों से अपने सामान का प्रचार करते थे?

[CBSE 2012] 

उत्तर- मेनचेस्टर व्यापारियों ने भारत में कपड़े बेचने आरम्भ किए

(1) वे कपड़ों की गाँठों पर उत्पादन स्थान का नाम और खरीददारों से परिचित कम्पनी का लेबल लगाते थे। 

(2) जब ग्राहक 'मेड इन मेचेस्टर' वाले लेबल देखते थे तो वे इसे खरीदने में दिलचस्पी दिखाते थे। 

(3) लेबल में टेक्स्ट या शब्द नहीं होते थे। उनमें भारतीय देवी-देवताओं के चित्र होते थे, जिसका उद्देश्य विदेशी उत्पादकों को भारतीयों के जैसा दिखाने की कोशिश होती थी।

(4) निर्माता अपने सामान को बेचने के लिए कैलेन्डर छापते उनसे प्रचार करते थे। 

(5) जब भारतीय निर्माताओं ने प्रचार करना आरम्भ किया उसमें राष्ट्रवादी संदेश साफ़ दिखाई देता था। 'यदि आप राष्ट्र को चाहते हैं स्वदेशी खरीदे' विज्ञापन/प्रचार इस प्रकार स्वदेशी राष्ट्रवादी संदेश बन गये। 

 

प्रश्न 5. ब्रिटिश कालीन भारत के आरम्भिक दौर के किन्हीं तीन उद्योगपतियों की उपलब्धियों का वर्णन कीजिए।

[CBSE 2013] 

उत्तर- व्यापार से काफ़ी कमाई कर कुछ व्यापारियों का उद्देश्य औद्योगिक इकाईयों की भारत में स्थापना करना था

(1) बम्बई में पारसी व्यापारी जैसे-दिनशाँ पटेल और नुशेरवानजी टाटा ने एक बड़ा औद्योगिक साम्राज्य स्थापित किया। उन्होंने इसके लिए पूँज जी चीन को निर्यात कर तथा कच्चे सूत (कपास) का व्यापार कर इकटठा की।

(2) सेठ हुकुमचंद, जो एक मारवाडी व्यापारी थे, उन्होंने कलकत्ता में सन 1871 में जुट मिल स्थापित की तथा चीन से व्यापार किया। 

(3) बंगाल में द्वारका नाथ टैगोर ने अपने भाग्य का निर्माण चीन के साथ व्यापार करके बनाया। वह एक औद्योगिक निवेशक बने जिन्होंने 1830 से 1840 तक : संयुक्त स्टॉक कम्पनियाँ स्थापित की।

 

प्रश्न 6. 18वीं शताब्दी में अविष्कारों की श्रृंखला ने किस प्रकार सूती वस्त्र उद्योग उत्पादन प्रक्रिया की दक्षता को प्रत्येक स्तर पर बढ़ाया?

[CBSE 2013] 

उत्तर- 18वीं सदी में अविष्कारों की श्रृंखला ने सूती वस्त्र उद्योग उत्पादन प्रक्रिया को प्रत्येक स्तर पर आगे बढ़ाया। वस्त्र निर्माण प्रक्रिया में कार्डिंग, ट्विस्टिंग, स्पिनिंग तथा मिलिंग प्रक्रिया सम्मिलित हैं। 

(1) अविष्कारों ने प्रति कामगार उत्पादन बढ़ाया, जिसने प्रत्येक कामगार को अधिक उत्पादन योग्य बनाया और प्रेरित किया और कामगारों ने मजबूत धागा उत्पादन को संभव बनाया। 

(2) रिचर्ड आर्कराईट ने एक कपडा मिल बनाई। कपड़ा उत्पादन उस समय देहातो में एक गृह उद्योग के रूप में किया जाता था। 

(3) नई मशीनें खरीदकर एक छत के अंदर स्थापित और मरम्मत की जा सकती थी। इससे अधिक सावधानी पूर्ण निरीक्षण, देखरेख तथा गुणवत्ता और श्रमिक नियंत्रण संभव हुआ। उत्पादन जब देहाती क्षेत्रों में चल रहा था तब यह सब करना कठिन था। 

 

प्रश्न 7. ब्रिटिश सरकार द्वारा लगाये गए कठोर आर्थिक नियंत्रणों के उपरान्त कितने भारतीय उद्यमी अपने आपको बचा पाये? स्पष्ट कीजिए।

(CBSE 2013] 

उत्तर- (1) कई भारतीय चीनी व्यापार, पूँजी उपलब्धता, आपूर्ति प्राप्त करने में और माल परिवहन में छोटे खिलाड़ी बन गए।

(2) कुछ मद्रास के व्यापारी बर्मा, मध्यपूर्व, पूर्वी अफ्रीका से पूँजी प्राप्त करने के लिए व्यापार करते थे। 

(3) कुछ अन्य व्यापारिक समूह भारत के अंदर ही माल एक स्थान से दूसरे स्थान तक ले जाकर, महाजनी का कार्य करके, पूँजी को स्थानान्तरित करके और व्यापारियों को ऋण देकर काम करते थे। 

 

प्रश्न 8. 19वीं सदी में भारत में वस्त्र उद्योग के पतन के लिए उत्तरदायी तीन कारणों की व्याख्या कीजिए।

[CBSE 2013] 

उत्तर- जैसे ही इंग्लैंड में वस्त्र उद्योग का विकास हआ. औद्योगिक समहों ने सरकार पर वस्त्र उद्योग में आयात शल्क लगाने का दबाव बनाया ताकि मैनचेस्टर निर्मित वस्त्र ब्रिटेन में बिना किसी बाहरी प्रतिस्पर्धा के बेचे जा सकें। 

(1) इसी समय उद्योगों ने ईस्ट इंडिया कम्पनी पर दबाव बनाया कि वे ब्रिटिश उत्पादों को भारतीय बाजारों में बेचे। 19वीं सदी में ब्रिटिश वस्त्र निर्यात नाटकीय रूप से बढ़ गया। 

(2) भारतीय बुनकरों का निर्यात बाजार आयात ठप हो गया और स्थानीय बाज़ार मैनचेस्टर निर्मित आयात माल से हट गए। 

(3) आयातित सूती वस्त्र सस्ते थे और हमारे बुनकर उनसे प्रतिस्पर्धा नहीं कर पा रहे थे। 

(4) जब अमेरिकी गृह युद्ध आरम्भ हुआ तथा अमेरिकी कपास की ब्रिटेन को आपूर्ति कट गई तो कच्चे माल के रूप में भारतीय कपास का ब्रिटेन को निर्यात बढ़ गया। कच्चे कपास के मूल्यों में वृद्धि हुई। भारतीय बुनकर भूखे मरने लगे और उन्हें ऊँची कीमतों पर कपास खरीदने के लिए मजबूर होना पड़ा। 

 

प्रश्न 9. ब्रिटिश उत्पादों के लिए नये उपभोक्ता बनाने में विज्ञापनों की भूमिका की व्याख्या कीजिए।

[CBSE 2014] 

उत्तर- ब्रिटिश उत्पादों के लिए नये उपभोक्ता बनाने में विज्ञापनों द्वारा अदा की गई भूमिका:-

(1) जब मैनचेस्टर के उद्योगपतियों ने भारत में अपने द्वारा निर्मित कपडा बेचना आरम्भ किया वे अपने कपडे की गाँठों पर अपने खरीददारों से परिचय कराने के लिए निर्माण स्थान और कम्पनी का लेबल लगा देते थे। 

(2) जब खरीददार 'मेड इन मैनचेस्टर' या मेनचेस्टर निर्मित बड़े अक्षरों में लेबल देखते तो वे कपड़ा खरीदने में निश्चित हो जाते। 

(3) लेकिन इन लेबल में कोई अक्षर या भाषा नहीं लिखी होती थी वरन् उनमें चित्र छपे होते थे। वे चित्र बड़े सुंदर ढंग से चित्रित भारतीय देवी देवताओं के चित्र होते थे। इसके उद्देश्य उत्पादों का विदेशी जमीन पर भारतीयों को परिचित कराना था। 

(4) निर्माता कैलेन्डर भी छपवाते थे ताकि वे अपने उत्पादों को लोगों में प्रसिद्ध कर सकें। कैलेन्डर चाय की दुकानों, गरीब लोगों के घरों, यहाँ तक कि कार्यालयों, तथा मध्यवर्गीय घरों में भी टंगे होते थे।

 

प्रश्न 10. गुमाश्ता कौन थे? ये ब्रिटिश प्रबन्धन प्रणाली के अच्छे सहायक कैसे बने?

[CBSE 2014] 

उत्तर- गुमाश्ता वेतनभोगी कर्मचारी थे जिनका कार्य बुनकरों का निरीक्षण करना, आपूर्ति इकट्ठा करना, वस्त्रों की गुणवत्ता निर्धारित करना था। गुमाश्ता नियुक्त करने के पीछे ईस्ट इंडिया कम्पनी का एक उद्देश्य प्रबन्धन की एक ऐसी कार्यप्रणाली विकसित करना और नियंत्रण की प्रणाली विकसित करना था जिससे प्रतियोगिता समाप्त हो, मूल्य नियंत्रण हो, कपास तथा सिल्क वस्त्रों की नियमित आपूर्ति हो। 

गुमाश्ता मुख्य कार्य - इसने प्रबन्धन का एक ऐसा तरीका विकसित किया जिसने प्रतिस्पर्धा को समाप्त किया तथा वस्तु एवम् मूल्य नियंत्रण, कपास तथा सूती कपड़ों की नियमित आपूर्ति सुनिश्चित की, जिस कारण गुमाश्ता की नियुक्ति की गयी। इनका कार्य निरीक्षण, आपूर्ति एकत्र करना तथा गुणवत्ता जाँच था। 

ये कम्पनी के बुनकरों को अपने द्वारा निर्मित उत्पादों को अन्यत्र बेचने की अनुमति नहीं देते थे। एक बार आर्डर दिए जाने के बाद कच्चा माल खरीदने के लिए बुनकरों को ऋण दिया जाता था। जिन बुनकरों ने एक बार कम्पनी का ऋण स्वीकार कर लिया उन्हें अपना तैयार माल केवल गुमाश्ता को ही देना पड़ता था। 

 

प्रश्न 11. प्रथम विश्वयुद्ध के दौरान भारत में औद्योगिक उत्पादन क्यों बढ़ गया? तीन काःों को स्पष्ट कीजिए।

[CBSE 2014] 

उत्तर- प्रथम विश्वयुद्ध भारतीय उद्योगों के लिए वरदान सिद्ध हुआ

(1) युद्ध ने नाटकीय रूप से ब्रिटेन के साथ नई परिस्थितियाँ पैदा की। ब्रिटिश मिलें सेना की आवश्यकता पूर्ति हेतु युद्ध सामग्री के उत्पादन में व्यस्त हो गईं ताकि सेना की आवश्यकता पूरी की जा सके। मैनचेस्टर से भारतीय आयात घट गया। 

(2) अचानक भारतीय मिलों को आपूर्ति हेतु एक बड़ा घरेलू बाज़ार मिल गया। 

(3) जैसे-जैसे युद्ध खिंचता चला गया, भारतीय फैक्ट्रियों को भी युद्ध आवश्यकता की आपूर्ति के लिए कहा गया, जिनमें-जूट के थैले (बोरे), यूनिफार्म का कपड़ा, टैन्ट, चमड़े के बूट, खच्चर, घोडों की काठी और जीन तथा अन्य सामग्री प्रमुख थीं। 

(4) नई मिलों की स्थापना हुई तथा पुरानी कई शिफ्टों में काम करने लगीं। 

(5) नये कामगारों की भर्ती भी की गई और उन्हें कई-कई घंटों तक काम करना पड़ा। जब तक युद्ध चला, तब तक औद्योगिक उत्पादन में बाढ़ गई। स्थानीय उद्योगपतियों ने अपनी स्थिति संगठित की,विदेशी निर्माताओं को स्थानापन्न कर अपनी स्थिति मज़बूत की तथा स्थानीय बाजार पर कब्जा कर लिया। 

 

प्रश्न 12. 19वीं सदी में ब्रिटिश मिलों में कामगारों को रोजगार पाना हमेशा कठिन क्यों था? कारणों का उल्लेख कीजिए।

[CBSE 2015] 

उत्तर- यद्यपि मिलों की संख्या बढ़ गई तथा कामगारों की माँग बढ़ी परन्तु मिलों में रोजगार पाना कठिन कार्य था, जिसके निम्नलिखित कारण थे :-

(1) उपलब्ध रोजगार की अपेक्षा रोज़गार चाहने वाले लोगों की संख्या हमेशा ज्यादा रही। 

(2) उस समय खेती करना सम्पन्न नहीं था इसीलिए बेरोज़गारी की बाढ़ गई। ग्रामीण युवा जो शहरों और कस्बों में आते वे नई स्थापित मिलों या फैक्ट्रियों में काम की तलाश में रहते थे। 

(3) मिलों में प्रवेश भी प्रतिबंधित था। उद्योगपति सामान्यत: आड़तियों या दलालों को नियुक्त करते थे ताकि वे नए कामगारों को ठेके पर भर्ती करें। ज्यादातर दलाल पुराने और विश्वासपात्र कामगार होते थे, वे लोगें को अपने गाँव से लेकर आते थे, उन्हें काम का भरोसा दिलाते थे और उन्हें शहर में स्थापित होने में मदद करते थे। धीरे-धीरे उन्होंने बदले में धन या उपहार की माँग शुरू की और अपने द्वारा दी गई सहायता के बदले कामगारों की जिन्दगी पर नियंत्रण करना आरम्भ किया। 

 

प्रश्न 13. मशीनी उद्योगों से पूर्व भारत का विदेशी व्यापार कैसे होता था? व्याख्या कीजिए। 

[CBSE 2015] 

उत्तर- (1) मशीन निर्मित औद्योगिक युग से पहले भारत के रेशम और सूती वस्त्र पूरे विश्व में छाये हुए थे और इनकी अंतर्राष्ट्रीय बाजार में पहचान थी। यद्यपि कई देशों में खुरदरा कपड़ा बनाया जाता था परन्तु भारत से कई अच्छी वैरायटी का कपड़ा आता था। अमेरिकी और फारसी व्यापारी तैयार माल पंजाब, अफगानिस्तान से ले जाते थे। पूर्वी फारस तथा मध्य एशिया तक भी भारत निर्मित कपड़ा जाता था। 

(2) महीन (पतले) कपड़े की गांठे ऊँटों द्वारा उत्तर पश्चिमी सीमांत प्रदेशों तक ले जायी जाती थीं। 

(3) पूर्व औपनिवेशिक पत्तनों द्वारा एक जीवन्त समुद्री व्यापार किया जाता था। सूरत भारत को दक्षिणी पूर्वी एशियाई पत्तनों से जोड़ता था। 

 

प्रश्न 14. औद्योगिक विकास में द्वारकानाथ टैगोर के योगदान का विश्लेषण कीजिए। 

[CBSE 2015] 

उत्तर- (1) बंगाल में, द्वारकानाथ टैगोर ने औद्योगिक पूँजी निवेशक बनने से पूर्व चीन के साथ व्यापार कर अपनी सम्पत्ति अर्जित की। 1830 से 1840 के मध्य इन्होंने : संयुक्त स्टाक कम्पनियाँ स्थापित की। 

(2) 1840 के बिजनेस संकट में टैगोर उपक्रम स्वयं तथा दूसरों के साथ डूब गए परन्तु बाद में 19वीं सदी में चीन के साथ व्यापार करने वाले सफल उद्योगपति बने। 

(3) द्वारकानाथ टैगोर का विश्वास था कि भारत पाश्चात्यीकरण से विकसित हुआ। उन्होंने शिपिंग,खदान,बैंकिंग, बागबानी और बीमा क्षेत्र में निवेश किया। उनका भारत में औद्योगिक उपक्रमों के विकास का सपना था। 

 

प्रश्न 15. 18वीं सदी में शुरूआती फैक्ट्रियाँ कैसे बढ़ी? व्याख्या कीजिए।

[CBSE 2017] 

उत्तर- 18वीं सदी में अविष्कारों की एक श्रृंखला ने उत्पादन प्रक्रिया की क्षमता प्रत्येक स्तर पर बढ़ा दी। इन्होंने प्रति कामगार उत्पादन बढ़ाया तथा कामगारों को अधिक उत्पादन के योग्य बनाया और मज़बूत धागे बनाना संभव किया। तब रिचर्ड आर्कराईट ने एक सूती कपड़ा मिल स्थापित की। इससे पूर्व सभी प्रकार के वस्त्र निर्माण का कार्य ग्रामीण क्षेत्रों के घरों में किया जाता था, लेकिन महँगी मशीने खरीदकर एक ही स्थान पर स्थापित तथा रखरखाव की जा सकती थी। 

 

प्रश्न 16. 18वीं सदी के अंत में सूरत तथा हुगली पत्तन क्यों ठप पड़ गये? किन्हीं तीन कारणों की व्याख्या कीजिए।

[CBSE 2017] 

उत्तर- (1) इन पत्तनों से निर्यात नाटकीय रूप से घटा।

(2) जिन साख ने पूर्व व्यापार में निवेश किया था वे शोषक बन गए। 

(3) स्थानीय बैंकर दिवालिया हो गये। 

(4) सत्रहवीं सदी के आखिरी वर्षों में, सूरत से निकलने वाले व्यापारिक उत्पाद का कुल मूल्य 16 मिलियन था, जो 1740 के अंत तक 3 मिलियन रह गया।

 

दीर्घ उत्तरीय प्रश्नोत्तर

 

प्रश्न 1. गाँवों में गुमाश्ता और बुनकरों के मध्य संघर्ष अधिक क्यों थे?

[CBSE 2012] 

उत्तर- गुमाश्ता वेतनभोगी नौकर थे जिनका काम बुनकरों का निरीक्षण, आपूर्ति एकत्र करना और निर्मित कपड़े की जाँच था। कई बुनकर गाँवों में गुमाश्ता और बुनकरों के मध्य संघर्ष आम बात थी क्योंकि गुमाश्ते बुनकरों से र्दुव्यवहार करते थे। 

(1) पहले आपूर्तिकर्ता व्यापारी गाँवों में रहते थे और उनके बुनकरों से घनिष्ठ रिश्ते होते थे, जो उनकी आवश्यकताओं की पूर्ति करते तथा संकटकाल में उनकी मदद करते थे।

(2) गुमाश्ते बाहरी व्यक्ति होते थे और उनके ग्रामीण लोगों से कोई लम्बे सामाजिक रिश्ते नहीं थे। 

(3) वे घमन्डी व्यवहार करते थे और आपूर्ति में देर होने पर बुनकरों को दंडित करते थे। मारपीट तथा सिपाही या पदाति लोगों से कोड़ों से पिटवाते थे। 

(4) बुनकरों ने मूल्यों के मोलभाव तथा दूसरं व्यापारी से अपने सामान को बेचने का अधिकार खो दिया। कम्पनी उनका माल बहुत कम दामों पर खरीदती थी।

(5) उन्होंने ब्रिटिश कम्पनी से जो कर्जा स्वीकार किया था, उसने उन्हें बाँध दिया था। 

 

प्रश्न 2. इंग्लैंड में फैक्ट्रियों के धीमे विकास प्रक्रिया का उल्लेख इसके द्वारा सामना की गई समस्याओं के परिप्रेक्ष्य में कीजिए।

[CBSE 2012] 

उत्तर- सर्वप्रथम इंग्लैण्ड में फैक्ट्रियाँ 1730 में अस्तित्व में आई। इनकी संख्या 18वीं शताब्दी में द्विगुणित हुई। 18वीं सदी के अविष्कारों की श्रृंखला में उत्पादन प्रक्रिया की क्षमता हर स्तर पर बढ़ी। प्रत्येक कामगार को अधिक उत्पादन योग्य बनाकर प्रति कामगार की उत्पादन उपलब्धी को बढ़ाया। रिचर्ड आर्थराईट द्वारा सूती कपड़ा मिल बनाकर, वस्त्र उत्पादन की समस्त प्रक्रिया एक छत के नीचे होने लगी और एकल प्रबंधन के अंदर होने लगी जिसके कारण उत्पादन में सावधानीपूर्वक निरीक्षण, गुणवत्ता नियंत्रण और मज़दूरों का नियंत्रण, जो नव देहाती क्षेत्रों में उत्पादन होता था कठिन था। 

 

प्रश्न 3. किन्हीं पाँच बिन्दुओं का उल्लेख कीजिए जिसने हथकरघा क्षेत्र को मशीनी उत्पादन की प्रतियोगिता में रखा तथा प्रतियोगिता का सामना करने योग्य बनाया।

[CBSE 2013]

उत्तर- (1) यह तकनीकी विकास के कारण संभव हुआ। 20वीं सदी के दूसरे दशक के उपरांत बुनकरों ने फ्लाई शटल का प्रयोग करना आरंभ किया। इससे उत्पादन बढ़ा और मजदूरों की माँग कम हुई। 1941 तक भारत में हथकरघे फ्लाई शटल युक्त थे। ट्रावनकोर, मद्रास, मैसूर, कोचीन और बंगाल में 70 से 80 प्रतिशत करघे फ्लाई शटल युक्त थे। 

(2) कुछ अन्य छोटे-छोटे अविष्कार भी थे जिन्होंने बुनकरों को उत्पादकता बढ़ाने में मदद की तथा मिलों से प्रतियोगिता योग्य बनाया। 

(3) अभिजात्य वर्ग द्वारा उच्च क्वालिटी के महीन वस्त्रों की वैरायटी की मात्रा स्थिर थी। यहाँ तक कि अकाल के समय में भी बनारसी साड़ी तथा वालचुरी साड़ी की माँग कम नहीं हुई। 

(4) विशेषज्ञ बुनकरों के उत्पादन को मिल उत्पादन नकल नहीं कर सकते थे। जैसे वार्डर नली कताई बार्डर वाली साड़ी, और प्रसिद्ध मद्रास लुंगी तथा रूमाल आदि।। 

 

प्रश्न 4. प्रथम विश्व युद्ध भारतीय उद्योग के लिए किस प्रकार वरदान सिद्ध हुआ

[CBSE 2013] 

उत्तर- प्रथम विश्व युद्ध निम्न प्रकार से भारतीय उद्योगों के लिए वरदान सिद्ध हुआ

(1) युद्ध ने नाटकीय रूप से नई परिस्थितियाँ पैदा की। ब्रिटिश मिलें युद्ध सामग्री के निर्माण में व्यस्त हो गयी ताकि वे युद्ध की मॉग आपूर्ति कर सके। मानचेस्टर निर्मित उत्पादों का आयात भारत में घट गया। 

(2) अचानक भारतीय मिलों को आपूर्ति के लिए घरेलू बाज़ार का मिलना। 

(3) जैसे युद्ध लम्बा खिंच गया भारतीय मिलों को युद्ध सामग्री तैयार करने के आर्डर मिलने लगे। जूट के थैले, सैनिकों की वर्दी टैन्ट. चमडे के जते. घोडे खच्चरों की काठी, और कई अन्य सामग्री प्रमख थी। 

(4) नई फैक्ट्रियाँ खलने लगी और पुरानी कई शिफ्टों में काम करने लगी। 

(5) कई नये कामगारों की भर्ती होने लगी तथा कामगारों को लम्बे समय तक काम का अवसर मिलने लगा।

यद्ध काल में औद्योगिक उत्पादनों की बाढ़ गई। स्थानीय उत्पादकों ने अपनी स्थिति संकलित की तथा विदेशी उत्पादकों को पीछे छोड़ते हुए स्थानीय बाजार पर कब्जा कर लिया। 

 

प्रश्न 5. 19वीं सदी में ब्रिटेन में औद्योगीकरण प्रक्रिया की व्याख्या कीजिए।

[CBSE 2014] 

उत्तर- ब्रिटेन के सबसे महत्त्वपूर्ण उद्योग कपड़ा और धातु उद्योग थे। तीव्र गति से वृद्धि करते हुए वस्त्र निर्माण एक मुख्य क्षेत्र था, जो औद्योगीकरण के प्रथम चरण 1840 तक रहा। इसके उपरांत लोहास्पात उद्योग का रेलवे के विकास के साथ विकास हुआ तथा अग्रणी बन गया। 1840 से 1860 तक उपनिवेशों के विस्तार के साथ यह संभव हुआ तथा लोहा इस्पात की माँग बढ़ने लगी। 

नये उद्योग पुराने उद्योगों को विस्थापित नहीं कर सके। 19वीं सदी के अंत तक 20 प्रतिशत से कम कार्य दल तकनीकी रूप से अग्रणी तकनीकी क्षेत्र में कार्यरत थे। परिवर्तन की गति सूती वस्त्र निर्माण एवं धातु उद्योग में स्थापित नहीं हो सकी। 

सामान्य और छोटे-छोटे अविष्कारों का विकास कई गैर वणिज्यिक क्षेत्रों में विकास का आधार बने, जैसे खाद्य प्रसंस्करण निर्माण, मिट्टी के बर्तन, शीशे/काँच का काम, चमड़ा कमाने का काम, फर्नीचर बनाना। तकनीकी परिवर्तन धीरे-धीरे हए। नई तकनीकी महँगी थी तथा व्यापारी और उद्योगपति इन्हें लाग करने में सतर्क थे। मशीनें ज्यादातर खराब हो जाती थी और उनका रख-रखाव महंगा था। 

 

प्रश्न 6. किन्हीं पाँच तरीकों की व्याख्या कीजिए जिनके द्वारा नये बाजारों और ग्राहकों का उद्भव ब्रिटिश उत्पादकों द्वारा भारत में किया गया।

[CBSE 2014] 

उत्तर- (1) जब मानचेस्टर उद्योगपतियों ने भारत में कपड़ा बेचना आरम्भ किया, वे कपड़े की गाँठों पर लेबल लगाते थे ताकि खरीददार उसके उत्पादक और कम्पनी से परिचित हो सकें। 

(2) जब खरीददार 'मैनचेस्टर निर्मित' बड़े अक्षरों में लिखा लेबल देखते थे तो वे कपड़ा खरीदने में निश्चित हो जाते थे।

(3) लेकिन लेबल में शब्द का अक्षर नहीं लिखे होते थे। उनमें आकृतियाँ छपी होती थीं और ये आकृतियाँ हिन्दू देवी देवताओं के चित्र होते थे। कृष्ण और सरस्वती के चित्र बनाने का उद्देश्य यह होता था कि विदेशी धरती पर लोग भारत से परिचित हैं। 

(4) अपने उत्पाद को प्रसिद्धि दिलाने के लिए उत्पादक कैलेन्डर भी छपवाते थे। ये कैलेंडर अशिक्षितों द्वारा भी उपयोग में लाये जाते थे। वे या तो चाय की दुकानों, गरीबों के घरों यहाँ तक कि ऑफिस और मध्यवर्गीय अपार्टमेंट में भी टंगे होते थे। 

(5) जब भारतीय उत्पादकों ने विज्ञापन करना आरम्भ किया तो राष्ट्रवादी संदेश जोर शोर से छापे गए। जैसे 'यदि आप राष्ट्र का ख्याल रखते हैं तो भारतीय उत्पाद ही खरीदें' विज्ञापन स्वदेशी राष्ट्रीय आंदोलन के एक माध्यम बन गये। 

 

प्रश्न 7. ब्रिटेन के आधुनिक शहरों के निर्माण में औद्योगीकरण के योगदान की व्याख्या कीजिए। [CBSE 2015] 

उत्तर-

औद्योगीकरण ने वर्तमान समय में शहरीकरण का रूप बदल दिया। प्राचीन ब्रिटेन के औद्योगिक शहर जैसे लीड्स और मानचेस्टर ने बहुतायत में प्रवासियों को 18वीं सदी में कपड़ा मिलों में स्थापित होने के लिए आकर्पित किया। 

अठाहरवीं और उन्नीसवीं सदी में लंदन अंतर्राष्ट्रीय वाणिज्य और व्यापार का केन्द्र बन गया। इसने पूरी दुनिया के बहुसंख्यक व्यापारियों और उत्पादकों को अपनी ओर आकर्षित किया। यह प्रजातंत्रवादी लोगों का तानाशाही प्रणाली से भागने वाले लोगों की शरणस्थली बन गया। उदाहरणार्थ-सारे यूरोप से लोग लंदन में बसने लगे। 

लंदन प्रवासी जनसंख्या के लिए एक शक्तिशाली धुरी था। यह तब भी आकर्षण का केन्द्र था जब यहाँ बड़ी फैक्ट्रियाँ नहीं थी। इतिहासकार गैरेथ स्टीडमैन जोन्स के अनुसार यह लिपिकों, छोटे स्वामित्व वाले दुकानदारों, कुशल पसीना बहाने वाले कामगारों, सैनिकों और नौकरों, अंशकालिक मज़दूरों और गलियों में बेचने वालों और भिखारियों का शहर बन गया था।

गोदी बाड़े के अतिरिक्त पाँच मुख्य उद्योगों ने बहुसंख्या में कामगारों को रोजगार दिया था।

(i) वस्त्र एवं जूता निर्माण

(ii) धातु और यांत्रिकी

(iii) लकड़ी और फर्नीचर

(iv) पेंटिग और स्टेशनरी

(v) शोधन उत्पाद जैसे शल्य चिकित्सा उपकरण, घडियाँ और बहुमूल्य धातुओं का निर्माण।

• 1950 तक इंग्लैण्ड और वेल्स के 9 लोग लंदन में रहते थे। यह शहर 4 मिलियन जनसंख्या वाला बहुत बड़ा शहर था (1810 से 1840 के मध्य) इसके अतिरिक्त 1840 के बाद शहर में निर्माण क्रियाकलाप सघन हो गए (सड़क निर्माण, रेलवे लाइनें, स्टेशन, सुरंगे, नालियाँ और सीवर इत्यादि) और इन सब ने कई बाहर के मजदूरों को यहाँ आकर्षित किया तथा शहर को और घना बनाने में योगदान किया। 

प्रथम विश्व युद्ध के दौरान लंदन ने मोटरकार निर्माण और बिजली का सामान बनाना आरम्भ किया और बहुतायत में फैक्ट्रियों की संख्या बढ़ गई। 

 

प्रश्न 8. मैनचेस्टर उद्योगपतियों द्वारा भारत में अपना सामान बेचने की तकनीकी का वर्णन करो?

[CBSE 2015] 

उत्तर- मैनचेस्टर के उद्योगपतियों द्वारा भारत में सामान बेचने के लिए प्रयुक्त तकनीकी:-

(1) मैनचेस्टर उद्योगपतियों ने भारत में कपड़ा बेचना आरंभ किया। वे कपड़े की गाँठों पर बनने वाले स्थान, निर्माता तथा कम्पनी के नाम का लेबल लगा देते थे ताकि खरीददार उनसे वाकिफ हो सकें ये लेबल गुणवत्ता के निशान/मुहर होते थे। 

(2) जब खरीददार 'मैनचेस्टर निर्मित' का बड़े अक्षरों में लेबल देखते वे कपडा खरीदने में निश्चित हो जाते थे। 

(3) लेकिन लेवल में अक्षर या शब्द नहीं लिखे जाते थे। उनमें चित्र छपे होते थे। उन चित्रों में हिन्दू देवी-देवताओं के चित्र अंकित होते थे। कृष्ण और सरस्वती की छपी आकृतियाँ इस उद्देश्य से अंकित होती थीं विदेशी निर्माता भारत से अच्छी तरह परिचित हैं। 

(4) अपने उत्पाद को प्रसिद्धि दिलाने के लिए निर्माता कैलेन्डर छपवाते थे। ये कैलेन्डर अनपढ़ व्यक्तियों द्वारा भी उपयोग किये जाते थे। ये नाई तथा चाय की दुकानों, गरीब लोगों के घरों यहाँ तक कि ऑफिस या मध्यवर्गीय अपार्टमेंट में भी टंगे होते थे। 

(5) महत्त्वपूर्ण व्यक्तियों या शासकों के चित्र नवाबों की फोटों इन विज्ञापन कैलेन्डरों में सजाई जाती थी, जिसका सीधा संदेश होता था यदि आप इन राजसी व्यक्तित्व का सम्मान करते हैं, तब इस उत्पाद का भी सम्मान कीजिए क्योंकि इसका प्रयोग राजाओं द्वारा भी किया जा रहा है। 

 

प्रश्न 9. बीसवीं सदी के इंग्लैण्ड कामगारों के जीवन की व्याख्या कीजिए।

[CBSE 2017] 

उत्तर- बीसवी सदी के इंग्लैण्ड के मजदूरों का जीवन स्तर बाज़ार में मजदूरों की प्रचुरता ने मजदूरों के जीवनस्तर को प्रभावित किया। जैसे ही देहाती क्षेत्रों में नये रोज़गारों की लहर आई,सैकड़ों शहर की ओर पलायन कर गए। रोजगार पाने की संभावनाएँ इनके दोस्ती के विस्तार, रिश्तेदारी पर निर्भर करती थीं। यदि आपकी मित्र या रिश्तेदार किसी मिल या फैक्ट्री में कार्यरत होता तो आपके रोज़गार जल्दी पाने के अच्छे अवसर होते थे परन्तु सभी के सामाजिक संबंध नहीं थे। कई लोगों को काम की तलाश में हफ्तों तक पुलों के नीचे या रैन बसेरों में रहना पड़ता था। कुछ रैन बसेरों में सकते, जिनका स्वामित्व निजी होता था। कुछ उन कैजुवल कार्ड में रह जाते थे जो गरीब कल्याण हेतु कानूनी अथॉरिटी द्वारा चलाये जाते थे। 

कई फैक्ट्रियों में मौसमी काम होने के कारण लम्बे समय तक बिना काम के रहना पड़ता था। व्यस्त मौसम के समाप्त होने के बाद मजदूर पुन: सड़कों पर जाते थे। कुछ गाँव देहातों को वापस लौट जाते थे, जहाँ जाड़ों के बाद ग्रामीण क्षेत्र में मजदूरी की माँग बढ़ जाती थी। कुछ लोग छोटे मोटे काम तलाश लेते थे जो 19वीं सदी के मध्य तक पाने कठिन थे। 

19वीं सदी के आरम्भ में मजदूरी कुछ बढ़ी, परंतु मजदूरों के कल्याण के बारे में बहुत कम पता चल पाता है। लेकिन औसत संख्या इस अंतर को छिपा देती है। जो साल दर साल अलग-अलग थी। 

उदाहरणार्थ जब नेपोलियन युद्ध के बाद मूल्यों में बेहताशा वृद्धि हुई, जो वास्तविक मजदूरी मजदूर कमाते थे। तेज़ी से गिर गई क्योंकि उस मजदूरी में वे बहुत कम चीज़े खरीद सकते थे। मजदूर की मजदूरी दर पर ही निर्भर नहीं करती महत्त्वपूर्ण था रोजगार का समय, काम के दिनों की संख्या मजदूर की औसत आय निर्धारित करती थी 19वीं शताब्दी के मध्य तक सबसे अच्छे समय में 10 प्रतिशत शहरी आबादी बहुत गरीब थी, आर्थिक मंदी के समय जैसे 1830 में बेरोजगारी की दर विभिन्न क्षेत्रों में 35 से 75 प्रतिशत तक हो गई। बेरोजगारी के डर ने कामगारों को नयी टैक्नोलॉजी के विरूद्ध कर दिया। जब स्पिनिंग जैनी का आर्विभाव हुआ ऊनी वस्त्र उद्योग में जो महिलाएँ हाथ से कताई का कार्य करती थीं, ने नई मशीनों पर धावा बोलना आरम्भ कर दिया। जैनी के शुरूआत करने का यह संघर्ष लंबे समय तक चला। 

1840 के बाद शहरों में निर्माण कार्य बढ़ गया जिसने रोजगार के नये अवसर पैदा किये, सड़के चौड़ी हुईं। नये रेलवे स्टेशन बने, रेलवे लाईने बढ़ाई गई, सुरंगे खोदी गई, नालियाँ, सीवर बिछाये गए, नदियों के तटबंध बने। परिवहन उद्योग में लगे मजदूरों की संख्या 1840 में दुगुनी हो गई तथा बाद के 30 वर्षों में इनकी संख्या पुनः दुगनी हो गई।

 


No comments:

Post a Comment