Tuesday, 12 February 2019

कक्षा -12 N.C.E.R.T अपठित गदयांश Page-2

कक्षा -12
N.C.E.R.T

अपठित गदयांश


5. संस्कृतियों के निर्माण में एक सीमा तक देश और जाति का योगदान रहता है। संस्कृति के मूल उपादान तो प्राय: सभी सुसंस्कृत और सभ्य देशों में एक सीमा तक समान रहते हैं, किंतु बाहय उपादानों में अंतर अवश्य आता है। राष्ट्रीय या जातीय संस्कृति का सबसे बड़ा योगदान यही है कि वह हमें अपने राष्ट्र की परंपरा से संपृक्त बनाती है, अपनी रीति-नीति की संपदा से विच्छिन्न नहीं होने देती। आज के युग में राष्ट्रीय एवं जातीय संस्कृतियों के मिलन के अवसर अति सुलभ हो गए हैं, संस्कृतियों का पारस्परिक संघर्ष भी शुरू हो गया है। कुछ ऐसे विदेशी प्रभाव हमारे देश पर पड़ रहे हैं, जिनके आतंक ने हमें स्वयं अपनी संस्कृति के प्रति संशयालु बना दिया है। हमारी आस्था डिगने लगी है। यह हमारी वैचारिक दुर्बलता का फल है।
अपनी संस्कृति को छोड़, विदेशी संस्कृति के विवेकहीन अनुकरण से हमारे राष्ट्रीय गौरव को जो ठेस पहुँच रही है, वह किसी राष्ट्रप्रेमी जागरूक व्यक्ति से छिपी नहीं है। भारतीय संस्कृति में त्याग और ग्रहण की अद्भुत क्षमता रही है। अत: आज के वैज्ञानिक युग में हम किसी भी विदेशी संस्कृति के जीवंत तत्वों को ग्रहण करने में पीछे नहीं रहना चाहेंगे, किंतु अपनी सांस्कृतिक निधि की उपेक्षा करके नहीं। यह परावलंबन राष्ट्र की गरिमा के अनुरूप नहीं है। यह स्मरण रखना चाहिए कि सूर्य की आलोकप्रदायिनी किरणों से पौधे को चाहे जितनी जीवनशक्ति मिले, किंतु अपनी जमीन और अपनी जड़ों के बिना कोई पौधा जीवित नहीं रह सकता। अविवेकी अनुकरण अज्ञान का ही पर्याय है।
प्रश्न
() आधुनिक युग में संस्कृतियों में परस्पर संघर्ष प्रारंभ होने का प्रमुख कारण बताइए।
(
) हम अपनी संस्कृति के प्रति शंकालु क्यों हो गए हैं?
(
) राष्ट्रीय संस्कृति की हमारे प्रति सबसे बड़ी देन क्या है?
(
) हम अपनी सांस्कृतिक संपदा की उपेक्षा क्यों नहीं कर सकते?
(
) हम विदेशी संस्कृति से क्या ग्रहण कर सकते हैं तथा क्यों?
(
) निर्देशानुसार उत्तर दीजिए
प्रत्यय बताइए-जातीय, सांस्कृतिक।
पर्यायवाची बताइए-देश, सूर्य।
() गद्यांश में युवाओं के किस कार्य को राष्ट्र की गरिमा के अनुकूल नहीं माना गया है तथा उन्हें क्या संदेश दिया गया है?
(
) उपर्युक्त गद्यांश के लिए उपयुक्त शीर्षक दीजिए।
उत्तर
() आधुनिक युग में संस्कृतियों में परस्पर संघर्ष प्रारंभ होने का प्रमुख कारण यह है कि भिन्न संस्कृतियों के निकट आने के कारण अतिक्रमण एवं विरोध स्वाभाविक है।
(
) हम अपनी संस्कृति के प्रति शंकालु इसलिए हो गए हैं, क्योंकि नई पीढ़ी ने विदेशी संस्कृति के कुछ तत्वों को स्वीकार करना प्रारंभ कर दिया है।
(
राष्ट्रीय संस्कृति की हमारे प्रति सब्से बड़ी देन यही है कि वह हमें अपने राष्ट्र की परंपरा और रीतिनीति से जोड़े रखती है।
(
) हम अपनी सांस्कृतिक संपदा की उपेक्षा इसलिए नहीं कर सकते, क्योंकि ऐसा करने से हम जडविहीन पौधे के समान हो जाएँगे।
(
) हम विदेशी संस्कृति के जीवंत तत्वों को ग्रहण कर सकते हैं, क्योंकि भारतीय संस्कृति में त्याग ग्रहण की अद्भुत क्षमता रही है।
(
) प्रत्यय-ईय, इक।
पर्यायवाचीदेश-राष्ट्र, राज्य।
सूर्य-रवि, सूरज।
(
) गद्यांश में युवाओं द्वारा विदेशी संस्कृति का अविवेकपूर्ण अंधानुकरण करना राष्ट्र की गरिमा के अनुकूल नहीं माना गया है। साथ-ही-साथ युवाओं के लिए यह संदेश दिया गया है कि उन्हें भारतीय संस्कृति की अवहेलना करके विदेशी संस्कृति का अंधानुकरण नहीं करना चाहिए।
(
) शीर्षक-भारतीय संस्कृति का वैचारिक संघर्ष।
6. परियोजना शिक्षा का एक बहुत ही महत्वपूर्ण अंग है। इसे तैयार करने में किसी खेल की तरह का ही आनंद मिलता है। इस तरह परियोजना तैयार करने का अर्थ है-खेल-खेल में बहुत कुछ सीख जाना। यदि आपको कहा जाए कि दशहरा पर निबंध लिखिए, तो आपको शायद उतना आनंद नहीं आएगा। लेकिन यदि आपसे कहा जाए कि अखबारों में प्राप्त जानकारियों के अलावा भी आपको देश-दुनिया की बहुत सारी जानकारियाँ प्रदान करती है। यह आपको तथ्यों को जुटाने तथा उन पर विचार करने का अवसर प्रदान करती है। इससे आप में नए-नए तथ्यों के कौशल का विकास होता है। इससे आपमें एकाग्रता का विकास होता है। लेखन संबंधी नई-नई शैलियों का विकास होता है।
आपमें चिंतन करने तथा किसी पूर्व घटना से वर्तमान घटना को जोड़कर देखने की शक्ति का विकास होता है। परियोजना कई प्रकार से तैयार की जा सकती है। हर व्यक्ति इसे अलग ढंग से, अपने तरीके से तैयार कर सकता है। ठीक उसी प्रकार जैसे हर व्यक्ति का बातचीत करने का, रहने का, खाने-पीने का अपना अलग तरीका होता है। ऐसा निबंध, कहानी कविता लिखते या चित्र बनाते समय भी होता है। लेकिन ऊपर कही गई बातों के आधार पर यहाँ हम परियोजना को मोटे तौर पर दो भागों में बाँट सकते हैं-एक तो वे परियोजनाएँ, जो समस्याओं के निदान के लिए तैयार की जाती हैं और दूसरी वे, जो किसी विषय की समुचित जानकारी प्रदान करने के लिए तैयार की जाती हैं।
समस्याओं के निदान के लिए तैयार की जाने वाली परियोजनाओं में संबंधित समस्या से जुड़े सभी तथ्यों पर प्रकाश डाला जाता है और उस समस्या के निदान के लिए भी दिए जाते हैं। इस तरह की परियोजनाएँ प्राय: सरकार अथवा संगठनों  द्वारा किसी समस्या पर कार्ययोजना तैयार करते समय बनाई जाती हैं। इससे उस समस्या के विभिन्न पहलुओं पर कार्य करने में आसानी हो जाती हैं।
किंतु दूसरे प्रकार की परियोजना को आप आसानी से तैयार कर सकते हैं। इसेशैक्षिक परियोजनाभी कहा जाता है। इस तरह की परियोजनाएँ तैयार करते समय आप संबंधित विषय पर तथ्यों को जुटाते हुए बहुत सारी नई-नई बातों से अपने-आप परिचित भी होते हैं।
प्रश्न
() उपर्युक्त गद्यांश के लिए उपयुक्त शीर्षक दीजिए।
(
) परियोजना क्या है? इसका क्या महत्व है?
(
) शैक्षिक परियोजना क्या है?
(
) परियोजना हमें क्या-क्या प्रदान करती है?
(
) परियोजना किस प्रकार तैयार की जा सकती है? यह कितने प्रकार की होती है?
(
) समस्या का निदान करने वाली परियोजना कैसी होनी चाहिए?
(
) फोटो-फीचर परियोजना से आप क्या समझते हैं?
(
) निर्देशानुसार उत्तर दीजिए
1.     विशेषण बनाइए-शिक्षा, संबंध
2.    सरल वाक्य में बदलिए
इस तरह से केवल आपने चित्र काटे और चिपकाए, बल्कि कई शहरों में मनाए जाने वाले दशहरे के तरीके को भी जाना।
उत्तर
() शीर्षक-परियोजना का स्वरूप।
(
) गद्यांश के आधार पर हम कह सकते हैं कि परियोजना नियमित एवं व्यवस्थित रूप से स्थिर किया गया विचार एवं स्वरूप है। इसके द्वारा खेल-खेल में ज्ञानार्जन तथा समस्या-समाधान आदि की तैयारी की जाती है।
(
) शैक्षिक परियोजना में संबंधित विषय पर तथ्यों को जुटाते हुए, चित्र इकट्ठे करके एक स्थान पर चिपकाए जाते हैं। इनसे नई-नई बातों की जानकारी दी जाती है।
(
) परियोजना हमें हमारी समस्याओं का निदान प्रदान करती है तथा देश-दुनिया की बहुत सारी जानकारियाँ प्रदान करती है। साथ-ही-साथ यह हमको नए-नए तथ्यों को जुटाने तथा उन पर विचार करने का अवसर भी प्रदान करती है।
(
) परियोजना कई प्रकार से तैयार की जाती है। हर व्यक्ति इसे अपने ढंग से तैयार कर सकता है। परियोजनाएँ दो प्रकार की होती हैं
1.    समस्या का निदान करने वाली परियोजना, तथा
2.    विषय की समुचित जानकारी देने वाली परियोजना।
() समस्या का निदान करने वाली परियोजना में संबंधित समस्या से जुड़े सभी तथ्यों पर प्रकाश डालना चाहिए और समस्या-निदान के सुझाव भी दिए जाने चाहिए।
(
) फोटो-फीचर परियोजना समस्या-निदान और ज्ञानार्जन दोनों के लिए हो सकती है। इसके अंतर्गत फोटो-फीचर के माध्यम से देश-दुनिया की जानकारियाँ प्राप्त की जाती हैं या किसी समस्या के निदान हेतु एक निश्चित निष्कर्ष तक पहुँचा जाता है।
(
)
1.    विशेषण-शैक्षिक, संबंधित।
2.    सरल वाक्य-इस तरह आपने चित्र काटना, चिपकाना और विभिन्न शहरों में मनाए जाने वाले दशहरे को जाना।
7. सुचारित्र्य के दो सशक्त स्तंभ हैं-प्रथम सुसंस्कार और द्रवितीय सत्संगति। सुसंस्कार भी पूर्व जीवन की सत्संगति सत्कर्मों की अर्जित संपत्ति है और सत्संगति वर्तमान जीवन की दुर्लभ विभूति है। जिस प्रकार कुधातु की कठोरता और कालिख पारस के स्पर्श मात्र से कोमलता और कमनीयता में बदल जाती है, ठीक उसी प्रकार कुमार्गी का कालुष्य सत्संगति से स्वर्णिम आभा में परिवर्तित हो जाता है। सतत सत्संगति से विचारों को नई दिशा मिलती है और अच्छे विचार मनुष्य को अच्छे कार्यों में प्रेरित करते हैं।
परिणामत: सुचरित्र का निर्माण होता है। आचार्य हजारीप्रसाद विवेदी ने लिखा है-‘महाकवि टैगोर के पास बैठने मात्र से ऐसा प्रतीत होता था, मानो भीतर का देवता जाग गया हो।वस्तुत: चरित्र से ही जीवन की सार्थकता है। चरित्रवान व्यक्ति समाज की शोभा है, शक्ति है। सुचारित्र्य से व्यक्ति ही नहीं, समाज भी सुवासित होता है और इस सुवास से राष्ट्र यशस्वी बनता है। विदुर जी की उक्ति अक्षरश: सत्य है कि सुचरित्र के बीज हमें भले ही वंश-परंपरा से प्राप्त हो सकते हैं, पर चरित्र-निर्माण व्यक्ति के अपने बलबूते पर निर्भर है।
आनुवंशिक परंपरा, परिवेश और परिस्थिति उसे केवल प्रेरणा दे सकते हैं, पर उसका अर्जन नहीं कर सकते; वह व्यक्ति को उत्तराधिकार में प्राप्त नहीं होता। व्यक्ति-विशेष के शिथिल-चरित्र होने से पूरे राष्ट्र पर चरित्र-संकट उपस्थित हो जाता है, क्योंकि व्यक्ति पूरे राष्ट्र का एक घटक है। अनेक व्यक्तियों से मिलकर एक परिवार, अनेक परिवारों से एक कुल, अनेक कुलों से एक जाति या समाज और अनेकानेक जातियों और समाज-समुदायों से मिलकर ही एक राष्ट्र बनता है। आज जब लोग सूचित्र-नमाण की बात कते हैं तब वे स्वायं इसराष्ट्र के एक आवक घट्क हैं-इस बात को विस्तक देते हैं।
प्रश्न
() सत्संगति कुमार्गी को कैसे सुधारती है? सोदाहरण स्पष्ट कीजिए।
(
) चरित्र के बारे में विदुर के क्या विचार हैं?
(
) व्यक्ति-विशेष का चरित्र समूचे राष्ट्र को कैसे प्रभावित करता है?
(
) व्यक्ति के चरित्र-निर्माण में किस-किस का योगदान होता है तथा व्यक्ति सुसंस्कृत कैसे बनता है?
(
) संगति के संदर्भ में पारस के उल्लेख से लेखक क्या प्रतिपादित करना चाहता है?
(
) किसी व्यक्ति-विशेष के शिथिल-चरित्र होने से राष्ट्र की क्या क्षति होती है?
(
) निर्देशानुसार उत्तर दीजिए
1.    विलोम शब्द लिखिए-दुर्लभ, निर्माण।
2.    मिश्र वाक्य में बदलिए-
सतत सत्संगति से विचारों को नई दिशा मिलती है और अच्छे विचार मनुष्य को अच्छे कार्यों में प्रेरित करते हैं।
() प्रस्तुत गद्यांश के लिए एक उपयुक्त शीर्षक दीजिए।
उत्तर
() सत्संगति से विचारों को नई दिशा मिलती है और अच्छे विचार मनुष्य को अच्छे कार्यों में प्रेरित करते हैं। इससे कुमार्गी व्यक्ति उसी तरह सुधर जाता है, जैसे पारस के संपर्क में आने से लोहा सोना बन जाता है।
(
) चरित्र के बारे में विदुर का विचार है कि अच्छे चरित्र के बीज वंश-परंपरा से मिल जाते हैं, परंतु चरित्र-निर्माण व्यक्ति को स्वयं करना पड़ता है। सुचरित्र कभी उत्तराधिकार में नहीं मिलता।
(
) यदि व्यक्ति-विशेष का चरित्र कमजोर हो, तो पूरे राष्ट्र के चरित्र पर संकट उपस्थित हो जाता है, क्योंकि व्यक्ति पूरे राष्ट्र का एक आचरक घटक होता है।
(
) व्यक्ति के चरित्र के निर्माण में सुसंस्कार, सत्संगति, परिवार, कुल, जाति, समाज आदि का योगदान होता है। व्यक्ति में अच्छे संस्कारों सत्संगति से अच्छे गुणों का विकास होता है। इस कारण व्यक्ति सुसंस्कृत बनता है।
(
) संगति के संदर्भ में लेखक ने पारस का उल्लेख किया है। पारस के संपर्क में आने से हर किस्म का लोहा सोना बन जाता है, इसी तरह अच्छी संगति से हर तरह का बुरा व्यक्ति भी अच्छा बन जाता है।
(
) किसी व्यक्ति-विशेष के शिथिल-चरित्र होने पर संपूर्ण राष्ट्र के चरित्र पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है, क्योंकि व्यक्तियों के समूह से ही किसी राष्ट्र का निर्माण होता है। इस प्रकार व्यक्ति राष्ट्र का एक आचरक घटक है। अत: राष्ट्रीय चरित्र किसी राष्ट्र के संपूर्ण व्यक्तियों के चरित्र का समावेशित रूप है। निष्कर्षत: हम कह सकते हैं कि किसी एक व्यक्ति के शिथिल-चरित्र होने पर राष्ट्रीय चरित्र की क्षति होती है।
(
)
1.    विलोम शब्द-सुलभ, विध्वंस।
2.    मिश्र वाक्य-जब सतत सत्संगति से विचारों को नई दिशा मिलती है, तब अच्छे विचार मनुष्य को अच्छे कार्यों में प्रेरित करते हैं।
() शीर्षक-चरित्र-निर्माण और सत्संगति।

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