Tuesday 12 February 2019

कक्षा -12 N.C.E.R.T अपठित गदयांश Page-4

कक्षा -12
N.C.E.R.T

अपठित गदयांश



11. राष्ट्रीय भावना के अभ्युदय एवं विकास के लिए भाषा भी एक प्रमुख तत्व है। मानव-समुदाय अपनी संवेदनाओं, भावनाओं एवं विचारों की अभिव्यक्ति हेतु भाषा का साधन अपरिहार्यत: अपनाता है, इसके अतिरिक्त उसके पास कोई अन्य विकल्प नहीं है। दिव्य-ईश्वरीय आनंदानुभूति के संबंध में भले ही कबीर नेगूँगे केरी शर्कराउक्ति का प्रयोग किया था, पर इससे उनका लक्ष्य शब्द-रूपा भाषा के महत्व को नकारना नहीं था, प्रत्युत उन्होंने भाषा कोबहता नीरकहकर भाषा की गरिमा प्रतिपादित की थी।
विद्वानों की मान्यता है कि भाषा तत्व राष्ट्रहित के लिए अत्यावश्यक है। जिस प्रकार किसी एक राष्ट्र के भूभाग की भौगोलिक विविधताएँ तथा उसके पर्वत, सागर, सरिताओं आदि की बाधाएँ उस राष्ट्र के निवासियों के परस्पर मिलने-जुलने में अवरोधक सिद्ध हो सकती हैं, उसी प्रकार भाषागत विभिन्नता से भी उनके पारस्परिक संबंधों में निबांधता नहीं रह पाती। आधुनिक विज्ञान युग में यातायात एवं संचार के साधनों की प्रगति से भौगोलिक बाधाएँ अब पहले की तरह बाधित नहीं करतीं। इसी प्रकार यदि राष्ट्र की एक संपर्क भाषा का विकास हो जाए तो पारस्परिक संबंधों के गतिरोध बहुत सीमा तक समाप्त हो सकते हैं।
मानव-समुदाय को एक जीवित जाग्रत एवं जीवंत शरीर की संज्ञा दी जा सकती है और उसका अपना एक निश्चित व्यक्तित्व होता है। भाषा अभिव्यक्ति के माध्यम से इस व्यक्तित्व को साकार करती है, उसके अमूर्त, मानसिक, वैचारिक स्वरूप को मूर्त एवं बिंबात्मक रूप प्रदान करती है। मनुष्यों के विविध समुदाय हैं, उनकी विविध भावनाएँ हैं, विचारधाराएँ हैं, संकल्प एवं आदर्श हैं, उन्हें भाषा ही अभिव्यक्त करने में सक्षम होती है। साहित्य, शास्त्र, गीत-संगीत आदि में मानव-समुदाय अपने आदशों, संकल्पनाओं, अवधारणाओं एवं विशिष्टताओं को वाणी देता है, पर क्या भाषा के अभाव में काव्य, साहित्य, संगीत आदि का अस्तित्व संभव है?
वस्तुत: ज्ञानराशि एवं भावराशि का अपार संचित कोश, जिसे साहित्य का अभिधान दिया जाता है, शब्द-रूप ही तो है। अत: इस संबंध में वैमत्य की किंचित गुंजाइश नहीं है कि भाषा ही एक ऐसा साधन है, जिससे मनुष्य एक-दूसरे के निकट सकते हैं, उनमें परस्पर घनिष्ठता स्थापित हो सकती है। यही कारण है कि एक भाषा बोलने एवं समझने वाले लोग परस्पर एकानुभूति रखते हैं, उनके विचारों में ऐक्य रहता है। अत: राष्ट्रीय भावना के विकास के लिए भाषा तत्व परम आवश्यक है।
प्रश्न
() उपर्युक्त गद्यांश का एक उपयुक्त शीर्षक दीजिए।
(
) भाषा मानव-समुदाय के लिए आवश्यक क्यों है?
(
) कबीर नेगूँगे केरी शर्कराके माध्यम से क्या कहना चाहा था? उन्होंने भाषा की महत्ता किस तरह प्रतिपादित की थी?
(
) राष्ट्रहित में भाषागत एकता की महत्ता स्पष्ट कीजिए।
(
) ‘भाषा मनुष्य के व्यक्तित्व को साकार करती है।स्पष्ट कीजिए।
(
) साहित्य संगीत के अस्तित्व को बनाए रखने में भाषा किस प्रकार सहायक है?
(
) ‘भाषा मनुष्यों में निकटता लाती है।इससे आप कितना सहमत हैं?
(
) भौगोलिक बाधाओं के बावजूद आज भाषिक एकता किस प्रकार स्थापित की जा सकती है?
उत्तर
() शीर्षक-राष्ट्रीयता और भाषा-तत्व।
(
) भाषा मानव-समुदाय के लिए इसलिए आवश्यक है क्योंकि मनुष्य भाषा के माध्यम से ही अपने भाव-विचार दूसरों तक पहुँचाता है और भाषा के माध्यम से ही वह दूसरों के विचारों से अवगत होता है। इस प्रकार भाषा मानव-समाज में एकता बनाए रखने का सशक्त माध्यम है।
(
) ‘गूँगे केरी शर्कराके माध्यम से कबीर ने कहना चाहा था कि आनंद की अनुभूति के लिए भाषा आवश्यक नहीं है, क्योंकि गूंगा गुड़ का आनंद लेकर भी उसकी अभिव्यक्ति नहीं कर पाता। संत कबीर ने भाषा कोबहता नीरकहकर उसकी महत्ता प्रतिपादित की है।
(
) राष्ट्रहित के लिए भाषागत एकता परमावश्यक तत्व है। जिस प्रकार किसी राष्ट्र की भौगोलिक विविधताएँ, वहाँ के पर्वत, सागर, सरिताएँ आदि बाधाएँ राष्ट्र के लोगों के परस्पर मिलन में बाधक सिद्ध होती हैं, उसी प्रकार विभिन्न भाषाएँ भी एकता में बाधक सिद्ध होती हैं। अत: राष्ट्र के लिए भाषागत एकता आवश्यक है।
(
) मानव-समाज को एक जीवित, जाग्रत एवं जीवंत शरीर कहा जा सकता है। उसका अपना एक निश्चित व्यक्तित्व होता है। भाषा इस समाज के अमूर्त, मानसिक, वैचारिक स्वरूप को मूर्त एवं बिंबात्मक रूप प्रदान करती है। भाषा अभिव्यक्ति का सशक्त माध्यम है, जो मानव-समाज के व्यक्तित्व को साकार करती है।
(
) साहित्य, शास्त्र, गीत-संगीत आदि वे साधन हैं, जिनके माध्यम से मानव-समुदाय अपने आदशों, संकल्पनाओं, अवधारणाओं और विशिष्टताओं को मुखर रूप देता है। भाषा के अभाव में काव्य, साहित्य, संगीत आदि अस्तित्वविहीन हो जाते हैं। इस प्रकार साहित्य संगीत के अस्तित्व को बनाए रखने में सहायक है।
(
) भाषा वह साधन है, जिसके माध्यम से मनुष्य एक-दूसरे के निकट जाते हैं। उनमें परस्पर घनिष्ठता बढ़ती है। वे परस्पर एकानुभूति रखते हैं, उनके विचारों में एकता विद्यमान रहती है। इस प्रकार भाषा मनुष्यों में एकता बढ़ाती है। इससे मैं पूर्णतया सहमत हूँ।
(
) पर्वत, सागर, नदी तथा अन्य भौगोलिक बाधाओं के बावजूद इस विज्ञान युग में यातायात और संचार के साधनों की उन्नति के कारण भौगोलिक बाधाएँ छोटी पड़ गई हैं, जिससे भाषिक एकता आसानी से स्थापित की जा सकती है।
12. शिक्षा के क्षेत्र में पुनर्विचार की आवश्यकता इतनी गहन है कि अब तक बजट, कक्षा-आकार, शिक्षक-वेतन और पाठ्यक्रम आदि के परंपरागत मतभेद आदि प्रश्नों से इतनी दूर निकल गई है कि इसको यहाँ पर विवेचित नहीं किया जा सकता। द्रवितीय तरंग दूरदर्शन तंत्र की तरह (अथवा उदाहरण के लिए धूम्र भंडार उद्योग) हमारी जनशिक्षा-प्रणालियाँ बड़े पैमाने पर प्राय: लुप्त हैं।
बिलकुल मीडिया की तरह शिक्षा में भी कार्यक्रम विविधता के व्यापक विस्तार और नए मार्गों की बहुतायत की आवश्यकता है। केवल आर्थिक रूप से उत्पादक भूमिकाओं के लिए ही निम्न विकल्प पद्धति की जगह उच्च विकल्प पद्धति को अपनाना होगा, यदि नई थर्ड वेव सोसायटी में शिष्ट जीवन के लिए विद्यालयों में लोग तैयार किए जाते हैं।
शिक्षा और नई संचार-प्रणाली के छह सिद्धांतों-पारस्परिक क्रियाशीलता, गतिशीलता, परिवर्तनीयता, संयोजकता, सर्वव्यापकता और सार्वभौमिकरण-के बीच बहुत ही कम संबंध खोजे गए हैं। अब भी भविष्य की शिक्षा-पद्धति औपिक संवार प्रल के बचसंधक उपेवा करना उना शिवार्थियों को धख देता है,जिक निमाणदनों से होना है। सार्थक रूप से शिक्षा की प्राथमिकता अब मात्र माता-पिता, शिक्षकों एवं मुट्ठी भर शिक्षा-सुधारकों के लिए ही नहीं है, बल्कि व्यापार के उस आधुनिक क्षेत्र के लिए भी प्राथमिकता में है, जब से वहाँ सार्वभौम प्रतियोगिता और शिक्षा के बीच संबंध को स्वीकारने वाले नेताओं की संख्या बढ़ रही है। दूसरी प्राथमिकता कप्यूटर वृद्ध, सूचना तकनीक और विकसित मीडिया के त्वरित सार्वभौमिकरण की है।
कोई भी राष्ट्र 21वीं सदी के इलेक्ट्रॉनिक आधारिक संरचना, एंब्रेसिंग कप्यूटर्स, डाटा संचार और अन्य नवीन मीडिया के बिना 21वीं सदी की अर्थव्यवस्था का संचालन नहीं कर सकता। इसके लिए ऐसी जनसंख्या की आवश्यकता है, जो इस सूचनात्मक आधारिक संरचना से परिचित हो, ठीक उसी प्रकार जैसे कि समय के परिवहन तंत्र और कारों, सड़कों, राजमार्गों, रेलों से सुपरिचित है। वस्तुत: सभी को टेलीकॉम इंजीनियर अथवा कप्यूटर विशेषज्ञ बनने की जरूरत नहीं है, जैसा कि सभी को कार मैकेनिक होने की आवश्यकता नहीं है, परंतु संचार-प्रणाली का ज्ञान कंप्यूटर, फ़ैक्स और विकसित दूरसंचार को सम्मिलित करते हुए, उसी प्रकार आसान और मुफ़्त होना चाहिए, जैसा कि आज परिवहन-प्रणाली के साथ है।
अत: विकसित अर्थव्यवस्था चाहने वाले लोगों का प्रमुख लक्ष्य होना चाहिए कि सर्वव्यापकता के नियम की क्रियाशीलता को बढ़ाया जाएवह है, यह निश्चित करना कि गरीब अथवा अमीर सभी नागरिकों को मीडिया की व्यापक संभावित पहुँच से अवश्य परिचित कराया जाए। अंतत: यदि नई अर्थव्यवस्था का मूल ज्ञान है, तब सतही बातों की अपेक्षा अभिव्यक्ति की स्वतंत्रताका लोकतांत्रिक आदर्श सर्वोपरि राजनीतिक प्राथमिकता बन जाता है।
प्रश्न
() उपर्युक्त गद्यांश का उपयुक्त शीर्षक दीजिए।
(
) लेखक पुनर्विचार की आवश्यकता कहाँ महसूस कर रहा है और क्यों?
(
) शिक्षा के क्षेत्र में मीडिया का उदाहरण क्यों दिया गया है?
(
) शिक्षा और नई संचार-प्रणाली के सिद्धांत लिखिए और बताइए कि इसे धोखा क्यों कहा गया है?
(
) शिक्षा की प्राथमिकता के क्षेत्र में आए बदलावों का उल्लेख कीजिए।
(
) 21वीं शताब्दी में किस तरह की जनसंख्या की जरूरत होगी और क्यों?
(
) विकसित अर्थव्यवस्था चाहने वालो का लक्ष्य क्या होना चाहिए?
(
) निर्देशानुसार उत्तर दीजिए
1.    विकल्प’, ‘शिक्षामेंइकप्रत्यय लगाकर शब्द बनाइए।
2.    (ii) विलोम बताइए-लोकतंत्र, व्यापक।
उत्तर
() शीर्षक-शिक्षा पर पुनर्विचार की आवश्यकता।
(
) लेखक शिक्षा के क्षेत्र में पुनर्विचार की आवश्यकता महसूस कर रहा है, क्योंकि वर्तमान में शिक्षा बजट, कक्षा आकार, शिक्षक-वेतन और पाठ्यक्रम आदि के परंपरागत मतभेद आदि के प्रश्नों से पर्याप्त आगे निकल चुकी है। समय के साथ कदम-से-कदम मिलाकर चलने के लिए शिक्षा में भी पुनर्विचार की आवश्यकता है।
(
) वर्तमान में मीडिया का स्तर और पर्याप्त ऊँचा तथा विस्तार व्यापक हुआ है। मीडिया की तरह ही शिक्षा का स्तर ऊँचा करने, उसका विस्तार करने और जन-जन तक पहुँचाने के लिए नए-नए मार्गों और साधनों की आवश्यकता है, इसलिए शिक्षा में मीडिया का उदाहरण दिया गया है।
(
) शिक्षा और नई संचार-प्रणाली के छह सिद्धांत हैं-पारस्परिक क्रियाशीलता, गतिशीलता, परिवर्तनीयता, संयोजकता, सार्वभौमिकता और सर्वव्यापकता। इनके बीच संबंधों की बहुत कम खोज हुई है। इसे धोखा इसलिए कहा गया है, क्योंकि भविष्य की शिक्षा-पद्धति और भविष्य की संचार-प्रणाली के बीच संबंधों को महत्व नहीं दिया गया।
(
) अब तक शिक्षा की प्राथमिकता माता-पिता, शिक्षक एवं मुट्ठी पर शिक्षा सुधारकों के लिए ही थी, पर जब से व्यापार में सार्वभौम प्रतियोगिता और शिक्षा के बीच संबंध स्वीकारने वाले नेताओं की संख्या बढ़ी है, तब से व्यापार का क्षेत्र भी शिक्षा की प्राथमिकता में गया है।
(
) 21वीं सदी में सूचनात्मक आधारिक संरचना से परिचित जनसंख्या की आवश्यकता होगी, क्योंकि एंब्रेसिंग कंप्यूटर्स, डाटा संचार और नवीन मीडिया के बिना 21वीं सदी की अर्थव्यवस्था का संचालन नहीं किया जा सकता।
(
) विकसित अर्थव्यवस्था चाहने वालो का निम्नलिखित लक्ष्य होना चाहिए
1.    संचार-प्रणाली, कंप्यूटर, फ़ैक्स, विकसित दूरसंचार आसान और सर्वसुलभ हों।
2.    अमीर-गरीब सभी नागरिकों को मीडिया की पहुँच से परिचित कराएँ।
()
1.    विकल्प + इक = वैकल्पिक, शिक्षा + इक = शैक्षिक।
2.    शब्द            विलोम
लोकतंत्र       राजतत्र
व्यापक        अव्यापक
13. तुलसी जैसा कवि काव्य की विशुद्ध, मनोमयी, कल्पना-प्रवण तथा श्रृंगारात्मक भावभूमियों के प्रति उत्साही नहीं हो सकता। उनका संत-हृदय परम कारुणिक राम के प्रति ही उन्मुख हो सकता है, जो जीवन के धर्ममय सौंदर्य, मर्यादापूर्ण शील और आत्मिक शौर्य के प्रतीक हैं।
विजय-रथ के रूपक में उन्होंने संत जीवन की रूपरेखा उभारी है और अपनी रामकथा को इसी संतत्व की चरितार्थता बना दिया है। उनका काव्य भारतीय जीवन की सबसे बड़ी आकांक्षा मर्यादित जीवन-चर्या अथवासंत-रहनिको वाणी देता है। धर्ममय जीवन की आकांक्षा भारतीय संस्कृति का वैशिष्ट्य है। तुलसी के काव्य में धर्म का अनाविल, अनावरित और अक्षुण्ण रूप ही प्रकट हुआ है।
मध्ययुग की आध्यात्मिकता का प्रतिनिधित्व करते हुए भी उनका काव्य भारतीय आत्मा के चिरंतन सौंदर्य का प्रतिनिधि है, जो सत्य, तप, करुणा और मैत्री में ही आरोहण के देवधर्मी मूल्यों को अनावृत करता है। उनके काव्य में हमें श्रेष्ठ कवित्व ही नहीं मिलता, उसके आधार पर हम संत-कवित्व की रूपरेखा भी निर्धारित कर सकते हैं। भक्ति उनके संतत्व की आंतरिक भाव-साधना है। इस भाव-साधना की वाणी की अप्रतिम क्षमता देकर उन्होंने निष्कंप दीपशिखा की भाँति अपनी काव्य-कला को नि:संग और निवैयक्तिक दीप्ति से भरा है।
प्रश्न
() उपर्युक्त गद्यांश का उपयुक्त शीर्षक बताइए।
(
) कवि तुलसी में किसके प्रति उत्साह नहीं है? तुलसी के काव्य की विशेषता का उल्लेख कीजिए
(
) गद्यांश में तुलसी के राम की क्या विशेषताएँ बताई गई हैं?
(
) ‘संत-रहनिका आशय स्पष्ट करते हुए भारतीय जीवन में इसकी महत्ता स्पष्ट कीजिए।
(
) तुलसी के काव्य में देवधर्मी मूल्य किस प्रकार अनावृत हुए हैं?
(
) तुलसी की भक्ति-साधना पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
(
) तुलसी के काव्य में धर्म किस रूप में प्रकट हुआ है? स्पष्ट कीजिए।
(
) निर्देशानुसार उत्तर दीजिए
1.    पर्यायवाची बताइए-संत, वाणी।
2.    मूल शब्द और प्रत्यय अलग-अलग करके लिखिए-कारुणिक, मर्यादित।
उत्तर
() शीर्षक-संत कवि तुलसीदास।
(
) तुलसी के काव्य में विशुद्ध मन की उपज, काल्पनिकता की अधिकता तथा श्रृंगारिक भावभूमियों के प्रति अत्यधिक लगाव नहीं है। उनके काव्य में राम के प्रति उन्मुखता है। तुलसी के संत हृदय का असर उनके काव्य पर स्पष्ट रूप से दिखाई देता है।
(
) गद्यांश में तुलसी के राम को आदर्श पुरुष बताते हुए उन्हेंधर्ममय सौंदर्ययुक्तकहा गया है। उनका शील मर्यादापूर्ण है। तथा उनमें वीरता एवं करुणा कूट-कूटकर भरी है।
(
) ‘संत-रहनिका आशय है-संतों जैसी जीवन-शैली या संतों जैसा जीवन जीना। भारतीय जीवन में संतों जैसी मर्यादित जीवन-चर्या की आकांक्षा की गई है। ऐसी जीवन-चर्या भारतीय संस्कृति की विशेषता एवं धर्ममय रही है।
(
) तुलसी के काव्य में आध्यात्मिकता का प्रतिनिधित्व है, जिसमें भारतीय काव्य-आत्मा के चिरंतन सौंदर्य के दर्शन होते हैं। इसमें निहित सत्य, तप, करुणा और मित्रता के आरोहण में देवधर्मी मूल्यों का आरोहण किया गया है।
(
) तुलसी के काव्य में उनके संतत्व और भक्ति-साधना का मणिकांचन योग है। इसी भक्ति-साधना की वाणी को अद्वतीय क्षमता से युक्त करके तुलसी ने उसे उस दीपशिखा के समान प्रज्वलित कर दिया है, जिसकी लौ युगों-युगों तक प्रकाश रहेगी।
(
) तुलसी के काव्य में धर्म अपने पंकरहित, निष्कलंकित, खुले रूप में, अक्षुण्ण या अपने संपूर्ण रूप में प्रकट हुआ है। काव्य में धर्म का जो रूप है, उसके मूल में लोक-कल्याण की भावना भी समाहित किए हुए है।
(
)
1.    शब्द पर्यायवाची
संत साधु, अवधूत
वाणी वचन, वाक्शक्ति
2.    शब्द मूल शब्द प्रत्यय
कारुणिक करुणा इक
मर्यादित मर्यादा इत

No comments:

Post a Comment