Friday 13 September 2019

Proverbs in Hindi मुहावरे Part-4

Proverbs in Hindi 
मुहावरे 
Part-4
221. दिन में तारे नजर आना (मुसीबत में पड़ना)-यदि तुम्हें एक दिन भी खाना मिले तो तुमको दिन में तारे नजर जाएँगे।
222. दिन दूनी रात चौगुनी (बहुत अधिक)-ईश्वर करे तुम्हारी दिन दूनी रात चौगुनी उन्नति हो।
223. दालनगलना (काम बनना)-अजय ने पैसा देकर गबन का मामला दबाना चाहा, लेकिन ईमानदार अफसर के आगे उसकी दाल गली।
224. दधीचि होना (परोपकारी होना)-दूसरों का उपकार करने में तो वह दधीचि के समान है।
225. दाँतों तले अंगुली दबाना (चकित रह जाना)-अजन्ता-एलोरा की गुफाओं को देखकर दर्शकगण दाँतों तले अंगुली दबा लेते हैं।
226. दिल टूटना (आघात पहुँचना)-अजय के दुर्व्यवहार से तो मेरा दिल ही टूट गया।
227. दीपक लेकर ढूँढना (भली-भाँति खोजना)-आजकल ईमानदार व्यक्ति तो दीपक लेकर ढूँढ़ने से भी नहीं मिलते।
228. दूर के ढोल सुहावने होना (दूर की वस्तु अच्छी लगना)-अपने घर की बनी बर्फी तुम्हें अच्छी नहीं लगती, परन्तु सहारनपुर की जलेबी तुम्हें लुभाती हैं। सच ही कहा गया है कि दूर के ढोल सुहावने।
229. दूध की नदियाँ बहाना (धन का वैभव दिखलाना)-आजकल के नेतागण अपने पुत्र-पुत्रियों के वैवाहिक समारोहों में जमकर दूध की नदियाँ बहाते हैं।
230. दोनों हाथों में लड्डू (दोनों ही अवस्थाओं में लाभ होना)-बीमा कराने पर धन का धीरे-धीरे संचय भी हो जाता है और यदि बीच में दुर्घटना घट जाए तो घर वालों को पैसा भी मिल जाता है। इस प्रकार बीमा कराने वाले के तो दोनों ही हाथों में लड्डू होते हैं।
231. दाँत पीसकर रह जाना (क्रोध रोक लेना)-रमेश की बदतमीजी पर पिता जी को क्रोध तो बहुत आया, किन्तु अपने मित्रों के सामने वे दाँत पीसकर रह गये।
232. दाने-दाने को तरसना (भूखों मरना)-जिन लोगों ने देश की स्वतन्त्रता के लिए अपना सर्वस्व अर्पित कर दिया, उनके आश्रित आज दाने-दाने को तरस रहे हैं।
233. दिल बाग-बाग होना (अत्यधिक प्रसन्न होना)-आपके ड्राइंग रूम की सजावट देखकर मेरा दिल बाग-बाग हो गया।
234. दिल भर आना (दु:खी होना)-जाड़े की रात में भिखारिन और उसके बच्चे को ठिठुरते देखकर मेरा दिल भर आया।
235. दूध की मक्खी (मूल्यहीन वस्तु)-रामसिंह ने लाला जी की जीवन भर सेवा की, किन्तु उन्होंने बुढ़ापे में उसे दूध की मक्खी की तरह निकाल दिया।
236. दो नावों पर पैर रखना (दो पक्षों से मिलकर रहना)-जो व्यक्ति दो नावों पर पैर रखकर चलते हैं, वे ठीक मझधार में डूबते हैं।
237. दो टूक बात कहना (स्पष्ट कहना)-मोहन किसी से भी नहीं डरता। वह किसी भी व्यक्ति के सामने उचित बात को दो टूक कह देता है।
238. धूप में बाल सफेद नहीं होना (अनुभवी होना)-राजेश को धोखा देना आसान नहीं, क्योंकि उसके बाल धूप में सफेद नहीं हुए हैं।
239. धाक जमाना (प्रभाव स्थापित होना)-वाद-विवाद प्रतियोगिता में प्रथम आने पर विकास की अपनी कक्षा में धाक जम गयी।
240. धोती ढीली होना (घबड़ा जाना)-हिंसक जानवरों को अपने सामने देखते ही अच्छे-अच्छों की धोती ढीली हो जाती है। 
241. नाक कटना (इज्जत गँवाना)-अजय परीक्षा में नकल करते हुए रंगे हाथों पकड़ा गया, उसने तो विद्यालय की नाक ही कटा दी।
242. नानी याद आना (कष्ट में सुख याद आते हैं)-जब शहजादे को स्वयं परिश्रम करके रोटी कमानी पड़ेगी तो उसे नानी याद जाएगी।
243. नौ दो ग्यारह होना (भाग जाना)-चोर पुलिस को देखते ही नौ दो ग्यारह हो जाते हैं।
244. नाक रख लेना (इज्जत बचा लेना)-इस चुनाव में जनता ने श्री गाँधी की नाक रख ली, नहीं तो उनके जीतने के आसार नहीं थे।
245. नाक रगड़ना (दीनतापूर्वक प्रार्थना करना)-थोड़ी-बहुत सुविधाएँ प्राप्त करने के लिए अधिकारियों के सामने नाक रगड़ना अच्छा नहीं है।
246. नाकों चने चबाना (अत्यधिक परेशान करना)-रमेश ने सुरेश से कहा कि तुम मुझे कमजोर समझने की गलती हरगिज मत करना। मैं तुम्हें नाकों चने चबवा दूँ तो मेरा नाम बदल देना।
247. नमक-मिर्च लगाना (बात को बढ़ा-चढ़ाकर कहना)-कुछ चमचे अधिकारियों से नमक-मिर्च लगाकर अन्य कर्मियों की शिकायतें करते रहते हैं।
248. नाक नीची कराना (किसी के द्वारा बेइज्जती कराना)-रेशमा के द्वारा की गयी अनुचित हरकतों ने मुहल्ले में उसके माता-पिता की नाक नीची करा दी।
249. नाक में दम करना (तंग करना)-आजकल यूनियन के लोग अधिकारियों की नाक में दम किये रहते हैं।
250. नजर लग जाना (बुरी दृष्टि का प्रभाव पड़ना)-नजर लगने के भय से माताएँ अपने बच्चों के माथे पर काजल का टीका लगा देती हैं।
251. नज़र से गिरना (प्रतिष्ठा खो देना)-कुकर्मों के प्रकट होने के बाद राजेश सभी की नज़रों से गिर गया।
252. नमकहरामी करना (कृतघ्नता करना)-यदि कोई व्यक्ति हमारी भलाई करता है तो हमें उसका कृतज्ञ होना चाहिए, किन्तु बहुत से व्यक्ति सरासर नमकहरामी करते हैं।
253. पैर उखड़ना (डरकर पीछे भागना)-झाँसी की रानी की वीरता को देखकर शत्रु-सेना के पैर उखड़ गये।
254. पीठ दिखाना (युद्ध से भाग जाना)-भारतीय वीर लड़ते-लड़ते वीरगति को प्राप्त हो गये, परन्तु युद्ध में उन्होंने कभी पीठ नहीं दिखायी।
255. पीठ ठोंकना (शाबाशी देना)-नीलू के परीक्षा में प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण होने पर सभी ने उसकी पीठ ठोकी।
256. प्राण फूंकना (चेतना का संचार करना)-गाँधी जी ने अपने अहिंसात्मक आन्दोलन से सुषुप्त भारतीयों में नवजीवन के प्राण फूंक दिये।
257. पानी फेरना (व्यर्थ कर देना)-तुमने इंजीनियरिंग की पढ़ाई बीच में ही छोड़कर अपने पिता की आशाओं पर पानी फेर दिया।
258. पेट में चूहे दौड़ना (अधिक भूख लगना)-यदि आप मुझे छुट्टी दे दें तो मैं कुछ खा लूँ। मेरे तो पेट में चूहे दौड़ रहे हैं।
259. पत्थर की लकीर होना (पक्की बात)-रघुवंशियों का कथन सदैव पत्थर की लकीर होता था।
260. पानी-पानी होना (लज्जित होना)-मेहमान के सम्मुख अपने प्रति पुत्र के अशिष्ट व्यवहार को देखकर पिता पानी-पानी हो गया।
261. प्राणों की बाजी लगाना (जीवन को खतरे में डालना)-इन्दिरा गाँधी ने भारत की एकता और अखण्डता की रक्षा के लिए अपने प्राणों की बाजी लगा दी। 
262. पोलखोलना (भेद खोलना)-विभीषण ने राम से मिलकर रावण की समस्त पोल खोल दी।
263. पगड़ी उछालना (बेइज्जत करना)-किसी इज्जतदार आदमी की पगड़ी उछालना इंसानियत नहीं है।
264. पसीना-पसीना होना (पसीने से तर--तर होना)-भयंकर गर्मी में कार्य करते हुए मजदूर पसीना-पसीना हो गया।
265. पहाड़ टूट पड़ना (अत्यधिक मुसीबतें आना)-राम के पिता की मृत्यु से उसके परिवार पर मानो पहाड़ ही टूट पड़ा।
266. पौ बारह होना (खूब लाभ प्राप्त होना)-मुक्त अर्थव्यवस्था होने के कारण आजकल भारत में विदेशी व्यापारियों के पौ बारह हो रहे हैं।
267. प्राण हथेली पर रखना (मृत्यु के लिए तैयार रहना)-भारतीय सैनिक सदैव प्राण हथेली पर रखकर अपने शत्रुओं का सामना करते हैं।
268. पाँचों अंगुली घी में होना (आनन्द-ही-आनन्द होना)-सोने का भाव तेज हो जाने के कारण आजकल व्यापारियों की पाँचों अंगुलियाँ घी में हैं।
269. पापड़ बेलना (कष्ट झेलना)-राम को नौकरी प्राप्त करने के लिए अनेकानेक पापड़ बेलने पड़े।
270. फूटी आँखों देखना (ईर्ष्या रखना)-निम्न मानसिक स्तर रखने वाले व्यक्ति अपने से उच्च क्षमता रखने वाले को फूटी आँखों नहीं देख सकते।
271. फूला समाना (अत्यधिक प्रसन्न होना)-पुत्र के परीक्षा में प्रथम स्थान प्राप्त करने पर उसके माता-पिता फले नहीं समाते।
272. बिजली गिरना (बड़ी आपत्ति पड़ना)-राकेश अभी बी०टेक० अन्तिम वर्ष की परीक्षा देने ही जा रहा था कि पिताजी की मृत्यु के रूप में उसके ऊपर मानो बिजली ही गिर पड़ी।
273. बीड़ा उठाना (किसी कार्य की जिम्मेदारी लेना)-पिताजी की असामयिक मृत्यु के बाद राकेश ने छोटे भाई-बहनों और माता के पालन-पोषण का बीड़ा उठा लिया।
274. बीरबल की खिचड़ी (बहुत विलम्ब से कार्य करना)-पाँच मिनट में जो प्रश्न हल करना था, उसे तुम एक घण्टे में भी हल कर सके तो बताओ बीरबल की खिचड़ी कब तक पक सकेगी?
275. बाल-बाँका होना (कुछ भी हानि पहुँचना)-इस मुकदमे में तुम चाहे कितना ही धन व्यय कर लो, किन्तु उनका बाल-बाँका नहीं हो सकता।
276. बालू की दीवार (दुर्बल आधार)-बालू की दीवार पर जीवन का महल बनाना नितान्त अनुचित है।
277. बे-सिर-पैर की बात करना (निरर्थक बात करना)-सुनील को काम तो कुछ है नहीं, वह हर समय बे-सिर-पैर की बात करता रहता है।
278. बगलें झाँकना (निरुत्तर होना)-अध्यापक के प्रश्न को सुनकर तथा उत्तर समझ में आने पर छात्रगण बगलें झाँकने लगे।
279. बात जमाना (प्रभावित करना)-कथावाचक व्यास जी ने बहुत उपदेश दिया पर वे श्रोताओं पर अपनी बात जमा नहीं पाये।
280. बाल-बाल बचना (कठिनाई से बचना)-रोहन जैसे ही रेलवे लाइन पार कर रहा था, वैसे ही गाड़ी गयी। वह बाल-बाल ही बचा।
281. बगुला भगत बनना (पाखण्डी बनना)-साधु दुकान से माल चोरी करते हुए रंगे हाथों पकड़ लिया गया। गेरुए वस्त्र पहने हुए वह तो बड़ा बगुला भगत निकला।
282. बात बिगड़ना (काम बिगड़ जाना)-आपस की फूट से बात बिगड़ ही जाती है।
283.बेड़ियाँ कट जाना (स्वतन्त्र हो जाना)-सन् 1947 ई० में भारतमाता की बेड़ियाँ कट गयीं। 284. बेहाल होना (बुरी दशा होना)-भूख के मारे रोते-रोते बच्चा बेहाल हो गया।
285. बातें बनाना (बढ़-चढ़कर कहना)-आजकल के नेता चुनाव के समय बहुत बातें बनाते हैं, किन्तु जीतने के बाद अपनी शक्ल भी नहीं दिखाते।
286. बाल की खाल निकालना (बारीकी से दोष निकालना)-तुम्हारी तो बाल की खाल निकालने की आदत हो गयी है, कितने भी अच्छे कपड़े ला दो, तुम्हारी समझ में नहीं आते।
287. भण्डाफोड़ करना (भेद खोलना)-कल तक तो गोपाल भक्त बना हुआ था और लोगों का धन-हरण कर रहा था। मगर आज महेश ने अन्ततः उसका भण्डाफोड़ कर ही दिया।
288. भीगी बिल्ली बनना (डर जाना)-प्रधानाचार्य के कक्षा में प्रवेश करते ही छात्रों का शोर बन्द हो गया तथा सभी छात्र भीगी बिल्ली बन गये।
289. भूत सवार होना (किसी बात की धुन लग जाना)-वह क्रिकेट खेलना कभी नहीं छोड़ेगा; क्योंकि उस पर क्रिकेट का भूत सवार है।
290. मुँह में पानी भर आना (खाने को जी ललचाना)-ताजी जलेबी बनते देखकर तुम्हारे तो मुँह में पानी भर आया।

No comments:

Post a Comment