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राजस्व लेखपाल
राजस्व विभाग, उत्तर प्रदेश द्वारा आयोजित
ग्राम समाज एवं विकास
Part 1
ग्राम विकास कार्यक्रम : एक दृष्टि
■ ``ग्रामीण विकास'' का अर्थ है लोगों का बेहतर विकास एवं सामाजिक कायाकल्प।
■ ग्रामीण विकास विभाग एवं भूमि संसाधन विभाग को मिलाकर ग्रामीण विकास मंत्रालय का गठन हुआ है।
■ ग्रामीण संस्थाओं का विकास प्रक्रिया में सहयोग लेने के लिए ``हरियाली'' कार्यक्रम की शुरुआत की गयी।
■ महिलाओं को ग्रामीण विकास में भागीदारी देने के उद्देश्य से ही पंचायतों में महिला आरक्षण व्यवस्था को लागू किया गया है।
■ ग्रामीण क्षेत्रों में शहरी सुविधाओं को सुनिश्चित करने के ध्येय से ही ``पुरा'' नामक कार्यक्रम की शुरुआत की गयी है।
ग्राम विकास
कार्यक्रम
१५ अगस्त, १९४७ को देश की स्वतन्त्रता के पश्चात् तत्कालीन पदस्थ सरकार के मंत्रियों एवं अन्य विद्वत जनों द्वारा, जो कि अधिकतर ग्रामीण परिवेश से ही सम्बन्धित थे, ने ग्राम विकास व्यवस्था को लागू करने के लिये विभिन्न कार्यक्रमों पर विचार किया व उन्हें लागू किया तथा समय के साथ बदलते रूप में ग्रामीण विकास हेतु आज तक विभिन्न कार्यक्रम सतत रूप में चलाये जा रहे हैं जिनका उल्लेख अग्र रूप में हैं–
ग्रामीण विकास
`ग्रामीण विकास' का अभिप्राय एक ओर जहाँ लोगों का बेहतर आर्थिक विकास करना है, वहीं दूसरी ओर वृहत सामाजिक कायाकल्प भी करना है। ग्रामीण लोगों को आर्थिक विकास की बेहतर संभावनाएँ मुहैया कराने के उद्देश्य से ग्रामीण विकास कार्यक्रमों में लोगों की उत्तरोत्तर भागीदारी सुनिश्चित करने, योजना का विकेन्द्रीकरण करने, भूमि सुधार को बेहतर ढंग से लागू करने और ऋण प्राप्ति का दायरा बढ़ाने का प्रावधान किया गया है।
प्रारंभ में कृषि उद्योग, संचार, शिक्षा, स्वास्थ्य तथा इससे संबंधित क्षेत्रों के विकास पर मुख्य बल दिया गया था, लेकिन बाद में यह महसूस किया गया कि त्वरित विकास केवल तभी संभव हो सकता है, जब सरकारी प्रयासों में बुनियादी स्तर पर लोगों की प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से भागीदारी हो। इसीलिए ३१ मार्च, १९५२ को समुदाय परियोजना प्रशासन के रूप में ज्ञात एक संगठन को योजना आयोग के अधीन स्थापित किया गया, जिसका कार्य सामुदायिक विकास से संबंधित कार्यक्रमों का संचालन करना था। सामुदायिक विकास कार्यक्रम का उद्घाटन २ अक्टूबर, १९५२ को किया गया था और यह कार्यक्रम ग्रामीण विकास के इतिहास में एक महत्त्वपूर्ण र्कीितमान था।
स्थापना
यह मंत्रालय दो विभागों से मिलकर बनता है─`ग्रामीण विकास विभाग' और `भूमि संसाधन विभाग'। अक्टूबर १९७४ के दौरान `ग्रामीण विकास विभाग', `खाद्य और कृषि मंत्रालय' के अंग के रूप में यह मंत्रालय अस्तित्व में आया। १८ अगस्त, १९७९ को `ग्रामीण विकास विभाग' का दर्जा बढ़ा कर उसे `ग्रामीण पुनर्गठन मंत्रालय' का नाम दिया गया। २३ जनवरी, १९८२ को इस मंत्रालय का नामकरण `ग्रामीण विकास मंत्रालय' किया गया। जनवरी, १९८५ के दौरान `ग्रामीण विकास मंत्रालय' को फिर से `कृषि तथा ग्रामीण विकास मंत्रालय' के अधीन एक विभाग के रूप में बदल दिया गया, जिसे बाद में, सितम्बर, १९८५ के दौरान `कृषि मंत्रालय' का नाम दिया गया। ५ जुलाई, १९९१ को इस विभाग को पुन: `ग्रामीण विकास मंत्रालय' का दर्जा दिया गया। २ जुलाई, १९९२ को इस मंत्रालय के अधीन `बंजर भूमि विकास विभाग' के नाम से एक और विभाग का गठन किया गया। मार्च, १९९५ के दौरान इस मंत्रालय का पुन: नाम बदलकर `ग्रामीण क्षेत्र तथा रोजगार मंत्रालय' रख दिया गया और इसमें तीन विभाग भी शामिल किये गये─
१. ग्रामीण रोजगार तथा गरीबी उन्मूलन विभाग
२. ग्रामीण विकास विभाग
३. बंजर भूमि विकास विभाग
उद्देश्य
सन् १९९९ में `ग्रामीण क्षेत्र तथा रोजगार मंत्रालय' का फिर से नाम बदलकर `ग्रामीण विकास मंत्रालय' रखा गया। यह मंत्रालय व्यापक कार्यक्रमों का कार्यान्वयन करके ग्रामीण क्षेत्रों में बदलाव लाने के उद्देश्य से एक उत्प्रेरक मंत्रालय का कार्य करता आ रहा है। इन कार्यक्रमों का उद्देश्य गरीबी उन्मूलन, रोजगार सृजन, अवसंरचना विकास तथा सामाजिक सुरक्षा है। समय के साथ-साथ कार्यक्रमों के कार्यान्वयन में प्राप्त अनुभव के आधार पर तथा गरीब लोगों की जरूरतों का ध्यान रखते हुए, कई कार्यक्रमों में संशोधन किये गये और नये कार्यक्रम लागू किये गए। इस मंत्रालय का मुख्य उद्देश्य ग्रामीण गरीबी को दूर करना तथा ग्रामीण आबादी, विशेष रूप से गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन कर रहे लोगों को बेहतर जीवन स्तर मुहैया करना है। इन उद्देश्यों की पूर्ति ग्रामीण जीवन और कार्यकलापों के विभिन्न क्षेत्रों से संबंधित कार्यक्रमों को तैयार करके, उनका विकास करके तथा उनका कार्यान्वयन करके की जाती है। इस बात को सुनिश्चित करने के उद्देश्य से कि आर्थिक सुधारों का लाभ समाज के सभी वर्गों को मिले, ग्रामीण क्षेत्रों में जीवन स्तर के लिए महत्त्वपूर्ण सामाजिक तथा आर्थिक अवसंरचना के पांच कारकों की पहचान की गई─
१. स्वास्थ्य
२. शिक्षा
३. पेयजल
४. आवास
५. सड़कें
इन क्षेत्रों में किये जा रहे प्रयासों को और बढ़ाने के लिए सरकार ने `प्रधानमंत्री ग्रामीण योजना' (पीएमजीवाई) शुरू की और `ग्रामीण विकास मंत्रालय' को `प्रधानमंत्री योजना' (पीएमजीवाई) के निम्नलिखित भागों को कार्यान्वित करने का दायित्व सौंपा─
¤पेयजल आपूर्ति
¤ आवास निर्माण
¤ ग्रामीण सड़कों का निर्माण करना
गरीबी उन्मूलन कार्यक्रम
नौंवी योजना अवधि के दौरान कई गरीबी उन्मूलन कार्यक्रमों का पुनर्गठन किया गया, ताकि ग्रामीण क्षेत्रों में रह रहे गरीब लोगों को लाभ देने के लिए कार्यक्रमों की दक्षता बढ़ाई जा सके। `एकीकृत ग्रामीण विकास कार्यक्रम' (आईआरडीपी), ग्रामीण क्षेत्रों में महिला और बाल विकास कार्यक्रम, ग्रामीण दस्तकारों को बेहतर औजारों की आपूर्ति से संबंधित कार्यक्रम (एसआईटीआरए), स्वरोजगार के लिए ग्रामीण युवाओं के प्रशिक्षण से संबद्ध कार्यक्रम (टीआरवाईएसईएम), गंगा कल्याण योजना (जीकेवाई) तथा मिलियन कूप स्कीम (एमडब्यूक एस) का विलय समग्र स्व-रोजगार योजना में किया गया, जिसे स्वर्णजयंती ग्राम स्वयं-रोजगार योजना (एसजीएसवाई) का नाम दिया गया।
स्थानीय लोगों की जरूरतों और उनकी आकांक्षाओं को ध्यान में रखते हुए पंचायती राज संस्थाओं का सहयोग इस कार्यक्रम के कार्यान्वयन में लिया गया। ये संस्थाएं योजना तथा उसके कार्यान्वयन के विकेन्द्रीकृत विकास का रूप हैं। मंत्रालय राज्य सरकारों से जोर देकर यह कह रहा है कि वे पंचायती राज संस्थाओं को अपेक्षित प्रशासनिक तथा वित्तीय शक्तियाँ शीघ्र दें, जैसा कि भारत के ७३वें संविधान संशोधन में कहा गया है। २५ दिसम्बर, २००२ को पेयजल क्षेत्र के अधीन `स्व-जलधारा' नामक नया कार्यक्रम शुरू किया गया, जिसके अधीन पेयजल परियोजनाएं तैयार करने, उन्हें कार्यान्वित करने, उनका संचालन करने तथा उनका रख-रखाव करने की शक्तियाँ पंचायतों को देने का प्रावधान है। पंचायती राज संस्थाओं का विकास प्रक्रिया में और सहयोग लेने के उद्देस्य से प्रधानमंत्री द्वारा २७ जनवरी, २००३ को `हरियाली' नामक एक नया कार्यक्रम शुरू किया गया। हरियाली नामक कार्यक्रम शुरू करने का उद्देश्य बंजर भूमि विकास कार्यक्रमों अर्थात् `आईडब्यूडीपी', `डीपीएपी' और `डीडीपी' के कार्यान्वयन में पंचायती राज संस्थाओं का सहयोग प्राप्त करना है।
ग्रामीण महिलाओं का सशक्तिकरण
ग्रामीण महिलाओं का सशक्तिकरण ग्रामीण भारत के विकास के लिए महत्त्वपूर्ण है। महिलाओं को विकास की मुख्य धारा में लाना भारत सरकार का मुख्य दायित्व रहा है। इसलिए गरीबी उन्मूलन कार्यक्रमों में महिलाओं के योगदान का भी प्रावधान किया गया है, ताकि समाज के इस वर्ग के लिए पर्याप्त निधियों की व्यवस्था की जा सके। संविधान (७३वाँ) संशोधन अधिनियम, १९९२ में महिलाओं के लिए चुनिन्दा पदों के आरक्षण की व्यवस्था है। भारतीय संविधान में आर्थिक विकास तथा सामाजिक न्याय से संबंधित विभिन्न कार्यक्रमों को तैयार करके निष्पादित करने का दायित्व पंचायतों को सौंपा है,
और कई केन्द्र प्रायोजित योजनाएँ पंचायतों के जरिये कार्यान्वित की जा रही हैं। इस प्रकार पंचायतों की महिला सदस्यों और महिला अध्यक्षों, जो बुनियादी रूप से पंचायतों की नई सदस्या हैं, को अपेक्षित कौशल प्राप्त करना होगा और उन्हें नेतृत्व का निर्वाह करने तथा निर्णय में सहभागी होने के लिए अपनी उचित भूमिकाओं को निभाने हेतु उचित प्रशिक्षण देना होगा। पंचायती राज संस्थाओं के चुिंनदा प्रतिनिधियों को प्रशिक्षण देने का दायित्व बुनियादी रूप से राज्य सरकारों, संघ राज्य क्षेत्र प्रशासनों का है। ग्रामीण विकास मंत्रालय राज्यों, संघ राज्य क्षेत्रों को भी कुछ वित्तीय सहायता मुहैया कराता है, ताकि प्रशिक्षण कार्यक्रमों के स्तर को बेहतर बनाया जा सके और पंचायती राज संस्थाओं के चुने हुए सदस्यों और कार्यकर्ताओं के लिए क्षमता निर्माण की पहल हो सके।
मंत्रालय के विभाग
मंत्रालय दो अन्तर्राष्ट्रीय संगठनों अर्थात् `सेंटर ऑन इंटीग्रेटिड रूरल डेवलेपमेंट ऑफ एशिया एंड पेसिफिक' (सीआईआरडीएपी) तथा ` एप्रâो-एशियन रूरल डेवलेपमेंट ऑर्गनाइजेशन’
(एएआरडीओ) के लिए नोडल विभाग है। मंत्रालय के निम्नलिखित तीन विभाग हैं─
१. ग्रामीण विकास विभाग
२. भूमि संसाधन विभाग
३. पेयजल और स्वच्छता विभाग
संचालित कार्यक्रम
`ग्रामीण विकास विभाग' द्वारा स्व-रोजगार सृजन योजना तथा मजदूरी रोजगार योजना, ग्रामीण गरीबों के लिए मकानों के प्रावधान और लघु िंसचाई साधन योजना, बेसहारा लोगों के लिए सामाजिक सहायता योजनाओं और ग्रामीण सड़क निर्माण योजना का क्रियान्वयन किया जाता है। इसके अलावा, इस विभाग द्वारा डीआरडीए प्रशासन, पंचायती राज संस्थाओं, प्रशिक्षण तथा अनुसंधान, मानव संसाधन विकास, स्वैच्छिक कार्य विकास आदि के लिए सहायक सेवाएँ एवं अन्य गुणवत्ता संसाधन उपलब्ध कराए जाते हैं, ताकि कार्यक्रमों का समुचित कार्यान्वयन हो सके।
नोट – केन्द्र सरकार तथा प्रदेश सरकारों द्वारा संचालित मुख्य
ग्राम विकास कार्यक्रम इस प्रकार हैं–
राष्ट्रीय सामाजिक सहायता कार्यक्रम – यह कार्यक्रम केंद्र सरकार द्वारा प्रायोजित किया गया है और १५ अगस्त, १९९५ से प्रदेश में चलाया जा रहा है।
इसका उद्देश्य:
(क) चयनित परिवारों के ६५ वर्ष से अधिक बूढ़ों को पेंशन (आर्थिक सहायता) प्रदान करना, (ख) गरीबी की रेखा में शामिल परिवारों की सदस्यों की सामान्य तथा दुर्घटना के कारणों से हुई मृत्यु पर आर्थिक सहायता करना। (ग) चयनित परिवारों की गर्भवती महिलाओं (दो जीवित बच्चों तक) को आर्थिक सहायता प्रदान करना।
एकीकृत ग्रामीण विकास कार्यक्रम – यह योजना प्रदेश में केंद्र सरकार तथा राज्य सरकार ५०-५०ज्ञ् की आर्थिक सहायता से कार्यान्वित की जा रही है। इस योजना का उद्देश्य गरीबी की रेखा से नीचे के परिवारों का उत्थान करना है। सस्ती ब्याज दरों पर ऋण उपलब्ध करवाना, रोजगार के अवसर उपलब्ध करवाना, सरकारी क्षेत्र में नौकरियों में आरक्षण का प्रावधान, आईआरडीपी के परिवारों के स्कूली बच्चों को आर्थिक सहायता देना आदि इस कार्यक्रम के अंतर्गत आता है।
सघन कृषि विकास कार्यक्रम─ सन् १९५९-६० में फोर्ड फाउण्डेशन के कृषि उत्पादन मण्डल ने अपनी रिपोर्ट India's Food Crisis and steps
to Meet it में खाद्यान्न उत्पादन पर बल देते हुए अनुकूल क्षेत्रों में अन्न की फसलों पर सघन कार्यक्रम द्वारा सामूहिक प्रयास करने का सुझाव प्रमुख था। केन्द्र सरकार द्वारा १९६०-६१ में देश के ७ जिलों में सघन कृषि जिला कार्यक्रम (IADP) प्रारम्भ किया गया। इन जिलों में तंजौर (तमिलनाडु), पश्चिमी गोदावरी (आन्ध्र प्रदेश), सम्बलपुर (उड़ीसा), रायपुर (छत्तीसगढ़), लुधियाना (पंजाब), अलीगढ़ (उ.प्र.) प्रमुख थे। केन्द्र सरकार ने वर्ष १९६४-६५ में देश के ११४ जिलों में सघन कृषि क्षेत्र कार्यक्रम प्रारम्भ किया। फसलों के क्षेत्र वितरण को ध्यान में रखते हुए, उन विशेष क्षेत्रों का व फसलों का चुनाव किया गया जिनमें विकास की सम्भावना अन्य की अपेक्षा अधिक थी।
अधिक उपज प्रजाति कार्यक्रम─ भारत में सन् १९६३ ई. में शुरू किया गया। अन्तर्राष्ट्रीय गेहूँ अनुसन्धान संस्थान मैक्सिको के निदेशक डॉ. एन. ई. बोरलाग ने भारत में गेहूँ के क्षेत्रों का दौरा किया और परीक्षण के लिए बौने गेहूँ की ४ किस्मों के बीज थोड़ी-सी मात्रा में भारत भेजा। सन् १९६८ में १२० लाख टन से बढ़कर १७० लाख टन गेहूँ के चमत्कारिक उत्पादन के प्रभाव को अमेरिका के वैज्ञानिक विलियम गाड (William God) ने हरित-क्रांति की संज्ञा से सम्बोधित किया।
मरुभूमि विकास कार्यक्रम (DDP)─ यह कार्यक्रम
मरुभूमि को बढ़ने से रोकने, मरुभूमि में सूखे के प्रभावों को समाप्त करने, प्रभावित क्षेत्रों में पारिस्थितिकीय सन्तुलन बहाल करने व इन क्षेत्रों में भूमि की उत्पादकता तथा जल्ा संसाधनों को बढ़ाने के उद्देश्य से चुने हुए क्षेत्रों में वर्ष १९७७-७८ में प्रारम्भ किया गया था, यह कार्यक्रम शत-प्रतिशत केन्द्रीय सहायता के आधार पर कार्यान्वित किया जा रहा है।
सूखा आशंकित क्षेत्र कार्यक्रम─ यह कार्यक्रम सूखे की सम्भावना वाले (Drought-Prone) चुिंनदा क्षेत्रों में १९७३ में प्रारम्भ किया गया था। कार्यक्रम का उद्देश्य इन क्षेत्रों में भूमि, जल एवं अन्य प्राकृतिक संसाधनों का अनुकूलतम विकास करके पर्यावरण सन्तुलन को बहाल करना है। कार्यक्रम हेतु वित्त की व्यवस्था केन्द्र व सम्बन्धित राज्य द्वारा १ अप्रैल, १९९९ से ७५ : २५ के अनुपात में की जाती है। वर्तमान में यह कार्यक्रम १६ राज्यों के १८२ जिलों के ९७२ ब्लॉकों में चलाया जा रहा है।
केंद्रीय ग्रामीण स्वच्छता कार्यक्रम- वर्ष १९८६ में केन्द्र प्रायोजित इस कार्यक्रम का उद्देश्य ग्रामीण क्षेत्रों के लोगों के जीवन में गुणात्मक सुधार लाना और महिलाओं को समुचित स्थान देना है। स्वच्छता में मलमूत्र एवं अन्य मानवीय निष्क्रिय पदार्थों का उचित रूप से निष्पादन करके पर्यावरण को स्वच्छ बनाना सम्मिलित है। इस कार्यक्रम में गरीबी की रेखा के नीचे रहने वाले व्यक्तियों विशेष रूप से अनुसूचित जाति/जनजाति तथा मुक्त बँधुआ मजदूरों के लिए व्यक्तिगत सुलभ शौचालय का निर्माण किया जाता है। १ अप्रैल, १९९९ से कार्यक्रम में संशोधन किया गया है। अब यह गरीबी आधारित कार्यक्रम न रहकर एक माँग आधारित कार्यक्रम हो गया है। सम्पूर्ण स्वच्छता अभियान के क्रियान्वयन में तेजी लाने के लिए भारत सरकार ने पूर्णत: स्वच्छ और खुले में मल त्याग विहीन ग्राम पंचायतों, ब्लॉकों और जिलों के लिए ‘निर्मल ग्राम पुरस्कार’ योजना शुरू की।
वाटरशेड विकास कार्यक्रम─ बाढ़ की अपेक्षा वर्षा पर आश्रित क्षेत्र में सूखे की समस्या, पारिस्थितिकी असन्तुलन, रेतीले मैदान, भूमि आर्द्रता में कमी, जल का अभाव आदि गम्भीर समस्याओं से निपटने के लिए पिछले तीन दशकों से कमान्ड क्षेत्र विकास कार्यक्रम, सूखा क्षेत्र विकास कार्यक्रम एवं मरुक्षेत्र विकास कार्यक्रम कार्यान्वित किये जा रहे हैं। सरकार ने श्री हनुमंत राव समिति की अनुशंसानुसार प्राय: सभी क्षेत्र विशेष कार्यक्रमों को एकीकृत कर वाटरशेड विकास कार्यक्रम तैयार किया गया। इस कार्यक्रम का कार्यान्वयन व्यावहारिक रूप में वर्ष १९९५-९६ में प्रारम्भ हुआ। वाटरशेड विकास परियोजना की परिधि औसतन ५०० हेक्टेयर मानी गई हैं और प्रति योजना पर औसतन २० लाख रुपये व्यय का प्रावधान रखा गया है।
ग्रामीण रोजगार सृजन कार्यक्रम (REGP)─ वर्ष १९९५ में ग्रामीण इलाकों और छोटे शहरों में स्व-रोजगार के अवसर पैदा करने के उद्देश्य से शुरू किया गया `आर.ई.जी.पी.' खादी और ग्रामोद्योग आयोग द्वारा कार्यान्वित किया जा रहा है। इसके अन्तर्गत, अधिकतम २५ लाख रुपये लागत वाली परियोजनाओं के लिए उद्यमी खादी एवं ग्रामोद्योग आयोग और बैंक ऋणों से प्राप्त मार्जिन धन सहायता का लाभ उठाकर ग्राम-उद्योग स्थापित कर सकते हैं।
समन्वित ग्राम विकास कार्यक्रम (IRDP)- ग्रामीण क्षेत्र में महिला एवं बाल विकास कार्यक्रम (DWCRA), स्वरोजगार के लिए ग्रामीण युवाओं का प्रशिक्षण कार्यक्रम (TRYSEM), दस लाख कुआँ योजना (MWS), ग्रामीण दस्तकारों को उन्नत औजारों की किट की आपूर्ति का कार्यक्रम (SITRA), गंगा कल्याण योजना (GKY)
एकीकृत बंजर भूमि विकास कार्यक्रम- १९८९-९० से कार्यान्वित किया जा रहा है। इस कार्यक्रम के तहत सामान्यत: उन इलाकों में परियोजनाएं मंजूर की जाती हैं जो मरुभूमि विकास कार्यक्रम या सूखा-प्रभावित क्षेत्र कार्यक्रम के अंतर्गत नहीं आते। एकीकृत बंजर भूमि विकास कार्यक्रम के मामले में केन्द्र और राज्यों के बीच लागत का बंटवारा ११ : १ के अनुपात में होता है। १९८६ में, राष्ट्रीय पेयजल प्रौद्योगिकी मिशन नामक योजना की शुरुआत हुई थी। इसे १९९१ में ‘राजीव गाँधी राष्ट्रीय पेयजल मिशन’ का नाम दिया गया।
स्वजलधारा कार्यक्रम─ यह कार्यक्रम ग्रामीण क्षेत्रों में पेयजल की समस्या के समाधान के लिए केंद्र सरकार ने दिसम्बर, २००२ में किया। प्रारम्भ में आठ राज्यों─आन्ध्र प्रदेश, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, प. बंगाल, उड़ीसा, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश व उत्तर प्रदेश में कुल मिलाकर ८८२ परियोजनाएँ इस कार्यक्रम के तहत स्वीकृत की गई हैं। ग्राम पंचायतों के माध्यम से लागू किए जाने वाले इस कार्यक्रम में गाँववासियों को कुएँ, बावड़ी बनाने व हैण्डपम्प लगाने की सुविधा प्रदान की गई है। योजना लागत का १० प्रतिशत भाग को गाँववासियों को वहन करना होता है, शेष ९० प्रतिशत राशि की स्वीकृति केन्द्र सरकार द्वारा की जाती है।
ग्रामीण क्षेत्रों में शहरी सुविधाओं की उपलब्धता का
कार्यक्रम- पुरा─इस कार्यक्रम को प्रारम्भ करने की घोषणा प्रधानमंत्री ने १५ अगस्त, २००३ को की थी। इस कार्यक्रम में अगले पाँच वर्षों में ५००० ग्रामीण क्लस्टर्स में प्रारम्भ किया जाना है तथा इसमें पूर्वोत्तर क्षेत्र को प्राथमिकता दी जाएगी। इनमें सड़क परिवहन व विद्युत कनेक्टिविटी, इलेक्ट्रानिक कनेक्टिविटी, नॉलेज कनेक्टिविटी तथा बाजार कनेक्टिविटी शामिल हैं। पहला `पुरा' कार्यक्रम उड़ीसा में लाहांडी-बोलनगीर कोरापुट क्षेत्र में प्रारम्भ किया जाएगा इनके अतिरिक्त बायो-ईंधन तथा बम्बू के विकास के लिए दो अलग-अलग राष्ट्रीय कार्य योजनाएँ प्रारम्भ की जाएँगी।
काम के बदले अनाज का राष्ट्रीय कार्यक्रम─ यह कार्यक्रम राष्ट्रीय न्यूनतम साझा कार्यक्रम के अनुरूप, १४ नवम्बर, २००४ को देश के १५० सर्वाधिक पिछड़े जिलों में इस उद्देश्य के साथ शुरु किया गया था कि पूरक वेतन रोजगार के सृजन को बढ़ाया जाए। यह कार्यक्रम ऐसे सभी ग्रामीण गरीबों के लिए हैं जिन्हें वेतन रोजगार की जरूरत है और जो शारीरिक अकुशल श्रम करना चाहते हैं। यह कार्यक्रम १०० प्रतिशत केन्द्रीय प्रायोजित योजना के रूप में कार्यान्वित किया जाता है और राज्यों को खाद्यान्न मुफ्त में मुहैया कराया जाता है।
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