Saturday, 7 March 2020

Chemistry ( रसायन विज्ञान ) notes for class 11 / 12 / competitive exam like JEE main , JEE Advance , BITSAT ,MHTCET , EAMCET , KCET , UPTU in hindi Part-2

Extremely Useful for the students studying in Class 11 and 12 also for those who preparing for the competitive exam like JEE main , JEE Advance , BITSAT ,MHTCET , EAMCET , KCET , UPTU (UPSEE), WBJEE , VITEEE , CBSE PMT , AIIMS , AFMC ,CPMT and all other Engineering and Medical Entrance Exam



अकार्बनिक रसायन - 2
























लवण

 

1. अम्लों व क्षारकों की परस्पर क्रिया से लवण बनता हैं। 

2. साधारण नमक, जिसे सोडियम क्लोराइड कहते हैं, हाइड्रोक्लोरिक अम्ल व सोडियम हाइड्रोक्साइड की परस्पर अभिक्रिया से बनता है। 

3. इसके अतिरिक्त, पोटेशियम नाइट्रेट, सोडियम सल्फेट कुछ अन्य लवण है।

4. अम्ल और क्षारक रासायनिक क्रिया में एक दूसरे को 'सन्तुलित' करते हैं और ऐसा यौगिक बनाते हैं जो न ही अम्ल होता है और न ही क्षारक। इस यौगिक को लवण कहते हैं। 

5. अम्ल और क्षारकों की विशेषता समाप्त करने वाली उनके रासायनिक मिलन की इस क्रिया को उदासीनिकरण कहते हैं। 

उदासीनिकरण की क्रिया में, अम्ल में उपस्थित धनात्मक हाइड्रोजन आयन (H+), क्षारकों में उपस्थित ॠणात्मक हाइड्रोक्साइड आयन (H2O) बनाते हैं। अम्ल का शेष भाग, क्षारक के शेष भाग से मिलकर लवण बनाता है। उदासीनीकरण अभिक्रिया में सदैव केवल लवण और जल ही बनता है। 


★★★ लवणों के प्रकार:

1. उदासीन लवण

2. अम्लीय लवण

3. क्षारीय लवण
मिश्रण

 

★★★ वह पदार्थ जो दो या दो से अधिक तत्त्वों या यौगिकों के किसी भी अनुपात में मिलाने से प्राप्त होता है, मिश्रण कहलाता है। इसे सरल यांत्रिक विधि द्वारा पुनः प्रारंभिक अवयवों में प्राप्त किया जा सकता है। जैसे- हवा।

★★★ प्रकार :

★★ समांगी मिश्रण :

ऐसा मिश्रण जिनमें सभी अवयव एक ही अवस्था एवं प्रावस्था में होते हैं, उसे समांगी मिश्रण कहते हैं |

जैसे- वायु, विलियन आदि |


★★ विषमांगी मिश्रण :

ऐसा मिश्रण जिस में सभी अवयव भिन्न-भिन्न अवस्था एवं प्रावस्था में होते हैं ,उसे विषमांगी मिश्रण कहते हैं |

जैसे- दूध, बादल, धुँआ आदि |
क्वथन

 

★★★ सामान्य ताप पर वाष्पीकरण की क्रिया द्रव की सतह से होती है व धीमी होती है। यदि द्रव का ताप बढ़ाते जायें, तो द्रव के सम्पूर्ण आयतन से बड़े-बड़े बुलबुले निकलने लगते हैं तथा द्रव तेजी से वाष्प में परिवर्तित होने लगता है तथा एक स्थिति आती है, जब द्रव का ताप स्थिर हो जाता है तथा तब तक स्थिर रहता है जब तक सम्पूर्ण द्रव वाष्पीकृत नहीं हो जाता। इस क्रिया को ही द्रव का 'क्वथन' कहते हैं |
क्वथनांक

 

★★★ दाब के किसी दिए हुए नियत मान के लिए वह नियत ताप जिस पर कोई द्रव उबलकर द्रव अवस्था से वाष्प की अवस्था में परिणत हो जाय तो वह नियत ताप द्रव का क्वथनांक कहलाता है। अर्थात वह स्थिर ताप जिस पर क्वथन होता है, क्वथनांक कहलाता है।

1. दाब बढ़ाने से द्रव का क्वथनांक बढ़ जाता है और दाब घटने से द्रव का क्वथनांक घट जाता है।

2. किसी अशुद्धि जैसे- नमक मिलाने पर जल का क्वथनांक बढ़ जाता है।

3. यही कारण है कि प्रेशर कुकर में दाब बढ़ने से उसमें उपस्थित पानी का क्वथनांक बढ़ जाता है|
4. जिससे खाद्य पदार्थ उबलने से पूर्व पकने के लिए पर्याप्त ऊष्मा ग्रहण कर लेता है।
क्वाण्टम संख्या

 

★★★ वर्णक्रम (स्पेक्ट्रम) रेखाओं की सूक्ष्म प्रकृति समझाने तथा इलेक्ट्रॉन की ठीक-ठीक स्थिति का वर्णन करने हेतु चार क्वाण्टम संख्याओं का प्रयोग किया जाता है, ये हैं:
1. मुख्य क़्वाण्टम संख्या 'n'- यह इलेक्ट्रॉन के मुख्य ऊर्जा स्तर को प्रदर्शित करती है।
2. दिगंशी क़्वाण्टम संख्या 'l'- यह इलेक्ट्रॉन कक्षक की आकृति को प्रकट करती है। 'l' का न्यूनतम मान शून्य तथा अधिकतम (n-1) होता है।
3. चुम्बकीय क़्वाण्टम संख्या 'm'- यह उप ऊर्जा स्तरों के कक्षकों को प्रदर्शित करती है। m का मान l के मान पर निर्भर करता है। किसी l के लिए m का मान +l से लेकर -l तक होते है (शून्य सहित)।
4. चक्रण क़्वाण्टम संख्या 's'- यह इलेक्ट्रॉन के चक्रण की दिशा को प्रदर्शित करती है। किसी चुम्बकीय क़्वाण्टम संख्या (m) के लिए चक्रण क़्वाण्टम संख्या (s) का मान +1/2 और -1/2 होता है।
क्षारक

 

1. क्षारक वे पदार्थ हैं जिनमें हाइड्राक्सिल समूह पाया जाता है तथा जिनके जलीय विलयन में हाइड्राक्सिल आयन (OH-) उपस्थित रहते हैं। 

2. क्षारक लाल लिटमस पेपर को नीला कर देते हैं। 

3. कास्टिक सोडा (सोडियम हाइड्राक्साइड) व कास्टिक पोटाश (पोटेशियम हाइड्राक्साइड) प्रमुख क्षारक हैं।

4. कास्टिक सोडा का प्रयोग पेट्रोलियम के शुद्धीकरण व काग़ज़ बनाने में किया जाता है। 

5. कास्टिक पोटाश विभिन्न साबुन बनाने में व कार्बन डाइऑक्साइड गैस को अवशोषित करने में काम आता है। 

क्षारक ऐसे यौगिक होते हैं जिनका प्रत्येक अणु एक या अधिक प्रतिस्थापित कर सकने योग्य हाइड्रोक्लिस आयन (OH-) से मिलकर बना होता है।
खनिज

 

★★★ ऐसे भौतिक पदार्थ हैं जो खान से खोद कर निकाले जाते हैं खनिज कहलाते है । 

कुछ उपयोगी खनिज पदार्थों के नाम हैं - लोहा, अभ्रक, कोयला, बॉक्साइट (जिससे अलुमिनियम बनता है), नमक, जस्ता, चूना पत्थर इत्यादि |

★★ खनिजों का वर्गीकरण:

1. सिलिकेट वर्ग

2. कार्बोनेट वर्ग

3. सल्फेट वर्ग

4. हैलाइड वर्ग

5. ऑक्साइड वर्ग

6. सल्फाइड वर्ग

7. फास्फेट वर्ग

8. तत्व वर्ग

9. कार्बनिक वर्ग
खनिज लवण

 

★★★ शरीर में जल,कार्बोहाइड्रेट,वसा व प्रोटीन के अतिरिक्त कुछ और अकार्बनिक तत्व भी सूक्ष्म मात्रा में उपस्थित रहते हैं जो मानव की विभिन्न चयापचयी क्रियाओं में सहायक होते हैं जिन्हें खनिज लवण कहा जाता हैं। 

1. यह शरीर में 4% भार की पूर्ति करते हैं तथापि शरीर में इनकी उपस्थिति बहुत अनिवार्य है। 

2. ये तत्व शरीर की वृद्धि व निर्माण की क्रियाओं में सहायक भूमिका अदा करते हैं। 

3. ये खनिज तत्व भूमि में उपस्थित होते हैं। 

4. मिट्टी में भी विभिन्न पादप वनस्पति उगते हैं जो जल के साथ ही इन लवणों को अपनी जड़ द्वारा भूमि से शोषित कर लेते हैं। 

जब जान्तव इन वनस्पतियों को खाते हैं तो ये खनिज लवण उनके शरीर में पहुँच जाते हैं। इस प्रकार भूमि से प्राप्त खनिज तत्व वनस्पति स्रोत से अन्ततः मानव शरीर में पहुँच जाते हैं 


★★★ विभिन्न प्रकार के खनिज लवण :

शरीर के लिए आवश्यक पाँच तत्व - कार्बोहाइट्रेट, वसा, प्रोटीन, विटामिन व जल की भाँति ये भी अनिवार्य व आवश्यक तत्व हैं। शरीर के लिए आवश्यक कुल 24 खनिज तत्वों की उपस्थिति का पता अभी तक लग पाया हैं। ये खनिज तत्व निम्नलिखित हैं-

1- कैल्शियम

2- फास्फोरस

3- पोटेशियम 

4- सोडियम 

5- सल्फ़र (गन्धक )

6- मैग्नीशियम 

7- लोहा 

8- मैंग्नीज 

9- ताँबा 

10- आयोडीन 

11- कोबाल्ट 

12- जिंक (जस्ता )

13- एल्युमिनियम 

14- आसेंनिक 

15- ब्रोमीन 

16- क्लोरीन 

17- फ्लुओरिन 

18- निकिल 

19- क्रोमियम 

20- कैडमियम 

21- सैलेनियम 

22- सिलिकन 

23- मालिबॉडेनम 

24- क्लोराइड्स
द्रवणांक

 

★★★ पदार्थ को गर्म करने पर ठोस पदार्थ द्रव अवस्था में परिवर्तित होते हैं, तो उनमें से अधिकांश में यह परिवर्तन एक विशेष दाब पर तथा एक नियत ताप पर होता है। यह नियत ताप वस्तु का द्रवणांक कहलाता है। जब तक पदार्थ ग़लता रहता है, तब तक ताप स्थिर रहता है। यदि विशेष दाब नियत रहे।

★★ द्रवणांक पर दाब का प्रभाव:
1. उन पदार्थों के द्रवणांक दाब बढ़ाने से बढ़ जाते हैं, जिनका आयतन गलने पर बढ़ जाता है। जैसे-मोम, ताँबा आदि।
2. उन पदार्थों के द्रवणांक दाब बढ़ाने से घट जाता है, जिनका आयतन गलने पर घट जाता है। जैसे- बर्फ, ढलवाँ लोहा आदि।
विद्युत अपघटन

 

★★★ वह प्रक्रिया जिसमे किसी रासायनिक यौगिक में विद्युत-धारा प्रवाहित करके उसके रासायनिक बन्धों को को तोड़ा जाता है,विद्युत अपघटन कहलाता है 
★★ उदाहरण :

जल में विद्युत धारा प्रवाहित करने पर जल, हाइड्रोजन एवं ऑक्सीजन में विघटित हो जाता है जिसे जल का विद्युत अपघटन कहते हैं। 

अयस्कों को प्रसंस्कारित करके उनमें निहित रासायनिक तत्व को शुद्ध करना एवं उसे अलग करना इसका सबसे महत्वपूर्ण औद्योगिक एवं व्यावसायिक उपयोग है।


★★★ विद्युत अपघटन के लिये आवश्यक अवयव:

विद्युत अपघट्य (electrolyte) - किसी द्रव में स्थित चलायमान ऑयन
दिष्ट धारा का स्रोत
दो ठोस प्लेटें या छड़े, जिन्हें एलेक्ट्रोड कहते हैं |

★★ उपरोक्त अवयवों की भूमिका इस प्रकार है:

चलायमान ऑयन विद्युतधारा के प्रवाह के लिये "वाहक" (कैरिअर) का काम करते हैं। यदि आयन चलायमान न हों (जैसे किसी ठोस में) तो विद्युत अपघ्टन सम्भव नहीं होगा।

1. बाहर से विद्युत धारा प्रवाहित करने से आयन बनने या "डिस्चार्ज" होने के लिये आवश्यक उर्जा प्राप्त होती है।

2. दो विद्युताग्र - बाहरी विद्युत परिपथ एवं आयनिक विलयन को विद्युतीय दृष्टि से जोडने का काम करते हैं।

3. विद्युताग्र, विद्युत के चालक होने चाहिये। धातु, ग्रेफाइट और अर्धचालक पदार्थों के एलेक्ट्रोड बहुता प्रयोग में लाये जाते हैं।

★★ एलेक्ट्रोड के पदार्थ का चुनाव इन् बातों से प्रभावित होता है:

1. एलेक्ट्रोड और एलेक्ट्रोलाइट के बीच कोई क्रिया नहीं होनी चाहिये।
2. एलेक्ट्रोड के निर्माण का ख्र्च कम होना चाहिये।

बहुलता नियम

 

★★★ हुण्ड का अधिकतम बहुलता नियम के अनुसार इलेक्ट्रॉन तब तक युग्मित नहीं होते जब तक कि रिक्त कक्षक प्राप्य हैं अर्थात् जब तक सम्भव है, इलेक़्ट्रॉन अयुग्मित रहते हैं।
मोल धारणा

 

★★★ एक मोल किसी भी निश्चित सूत्र वाले पदार्थ की वह राशि है, जिसमें इस पदार्थ के इकाई सूत्र की संख्या उतनी है, जिनकी शुद्ध कार्बन-12 आइसोटोप के ठीक 12 ग्राम में परमाणुओं की संख्या है।

मोल इकाई का मान- मोल का मान 6.022 x 1023 है। कार्बन के 12 ग्राम या एक मोल में 6.022 x 1023 परमाणु हैं। 6.022 x 1023 को आवोगाद्रो संख्या कहते हैं।

मोल संख्या एवं द्रव्यमान दोनों का प्रतीक है। सन् 1967 में मोल को इकाई के रूप में स्वीकार किया गया।

20वीं शताब्दी में आधुनिक खोजों के परिणामस्वरूप जे॰ जे॰ थॉमसन, रदरफोर्ड, चैडविक आदि वैज्ञानिकों ने यह सिद्ध कर दिया कि परमाणु विभाज्य है तथा मुख्यतः तीन मूल कणों से मिलकर बना है, जिन्हें इलेक्ट्रॉन, प्रोटॉन तथा न्यूट्रॉन कहते हैं।"
वाष्पन

 

★★★ क्वथनांक से कम तापमान पर द्रव के वाष्प में परिवर्तित होने की प्रक्रिया को वाष्पन कहते हैं।


★★ वाष्पन की क्रिया निम्न बातों पर निर्भर करती है:

1. क्वथनांक का कम होना: क्वथनांक जितना कम होगा, वाष्पन की क्रिया उतनी ही अधिक तेज़ी से होगी।

2. द्रव का ताप: द्रव का ताप अधिक होने पर वाष्पन अधिक होगा।

3. द्रव का क्षेत्रफल: द्रव के खुले पृष्ठ का क्षेत्रफल अधिक होने पर वाष्पन तेजी से होगा।

★★ द्रव के पृष्ठ पर:

1. द्रव के पृष्ठ पर वायु बदलने पर वाष्पन तेज़ होगा।

2. द्रव के पृष्ठ पर वायु का दाब जितना ही कम होगा वाष्पन उतनी ही तेज़ी से होगा।

3. द्रव के पृष्ठ पर वाष्प दाब जितना बढ़ता जाएगा वाष्पन की दर उतनी ही घटती जाएगी।
वाष्पीकरण

 

★★★ किसी तत्त्व या यौगिक का द्रव अवस्था से गैस अवस्था में परिवर्तन वाष्पीकरण (Vaporization या vaporisation) कहलाता है। वाष्पीकरण दो प्रकार का होता है- वाष्पन, तथा क्वथन ।
समावयवता

 

1. ऐसे यौगिक जिनके अणु सूत्र समान होते हैं परन्तु संरचनात्मक सूत्र भिन्न-भिन्न होते हैं, समावयवी कहलाते हैं। 

2. संरचनात्मक सूत्रों में भिन्नता के कारण ऐसे यौगिकों के गुण को अपररूपता कहते हैं। 

3. उदाहरणार्थ, एथिल-एल्कोहल व डाइमेथिल ईधन एक दूसरे के समावयवी हैं।
हाइड्रोजन के समस्थानिक

 

★★★ हाइड्रोजन के तीन समस्थानिक होते हैं:

प्रोटियम (1H1), ड्यूटेरियम (1H2 या D), ट्राइटियम (1H3 या T)

★★ प्रोटियम :

प्रोटियम का परमाणु संख्या एक तथा द्रव्यमान संख्या भी एक होती है।

★★ ड्यूटेरियम :

ड्यूटेरियम को भारी हाइड्रोजन कहा जाता है। इसका परमाणु संख्या 1 तथा द्रव्यमान संख्या 2 होती है। ड्यूटेरियम की खोज यूरे ब्रिकवेड और मर्फी ने 1931 में की। ड्यूटेरियम का उपयोग कार्बनिक प्रतिक्रियाओं की क्रियाविधि समझाने में तथा नाभिकीय प्रतिक्रियाओं में बमबारी के लिए होता है।

★★ ट्राइटियम :

यह हाइड्रोजन का एक दुर्लभ समस्थानिक है। यह एक बीटा उत्सर्जक हैं। इसकी परमाणु संख्या 1 तथा द्रव्यमान संख्या 3 होती है। इसकी अर्द्ध आयु 12.4 वर्ष होती है।
हिमकारी मिश्रण

 

★★★ रसायन विज्ञान में किसी ठोस को उसके द्रवणांक पर गलने के लिए ऊष्मा की आवश्यकता होगी जो उसकी गुप्त ऊष्मा होगी।
★★ यह ऊष्मा असाधारणत:
बाहर से मिलती है, जैसे जल में बर्फ़ का टुकड़ा मिलाने पर बर्फ़ गलेगी, परन्तु गलने के लिए द्रवणांक पर वह जल से ऊष्मा लेगी जिससे जल का तापमान घटने लगेगा और मिश्रण का ताप घट जायेगा। हिमकारी मिश्रण का बनना इसी सिद्धांत पर आधारित है। उदाहरण के लिए घर पर आइसक्रीम जमाने के लिए नमक का एक भाग एवं बर्फ़ का तीन मिलाया जाता है, इससे मिश्रण का ताप -22 C प्राप्त होता है।
हिमांक

 

1. किसी विशेष दाब पर वह नियत ताप जिस पर कोई द्रव जमता है, हिमांक कहलाता है। 

2. सामान्यतः पदार्थ का द्रवणांक एवं हिमांक का मान बराबर होता है। 

3. जैसे : बर्फ़ का द्रवणांक एवं हिमांक 0॰C है। 

4. अशुद्धियों की उपस्थिति में पदार्थ का हिमांक और द्रवणांक दोनों कम हो जाते हैं।
परासरण

 

★★★ विलायक अणुओं का अर्द्ध-पारगम्य झिल्ली द्वारा कम सांद्रता वाले विलयन से अधिक सांद्रता वाले विलयन की ओर विसरण परासरण कहलाता है |
अक्रिय गैस

 

★★★ अक्रिय गैस अक्रिय गैस हीलियम (He), निऑन (Ne), आर्गन (Ar), क्रिप्टन (Kr), जेनान (Xe) तथा रेडॉन (Rn) आवर्त सारणी के शून्य वर्ग के तत्व हैं। 

1. शून्य वर्ग के तत्त्व रासायनिक दृष्टि से निष्किय होते हैं। इस कारण इन तत्वों को अक्रिय गैस या 'उत्कृष्ट गैस' कहा जाता हैं। 

2. रेडॉन को छोड़कर अन्य सभी गैसें वायुमंडल में पायी जाती हैं। 

3. अक्रिय गैस की खोज का श्रेय 'लोकेयर', 'रैमजे', 'रैले' आदि को जाता है। 

4. अक्रिय गैसों की प्राप्ति दुर्लभ होने के कारण उन्हें 'दुर्लभ गैस' भी कहा जाता है।

5. अक्रिय गैस उन गैसों को कहते हैं, जो साधारणत: रासायनिक अभिक्रियाओं में भाग नहीं लेतीं और सदा मुक्त अवस्था में प्राप्य हैं।

6. इन गैसों में हीलियम, निऑन, आर्गान, जीनॉन और रडॉन सम्मिलित हैं। ये उत्कृष्ट गैसों के नाम से भी प्रसिद्ध हैं।

7. समस्त अक्रिय गैसें रंगहीन, गंधहीन तथा स्वादहीन होती हैं।

स्थिर दाब और स्थिर आयतन पर प्रत्येक गैस की विशिष्ट उष्माओं का अनुपात 1.67 के बराबर होता है, जिससे पता चलता है कि ये सब एक परमाणुक गैसें हैं।


★★★ उपयोग :

★★ हीलियम :

यह गुब्बारों और वायुपोतों में भरने के काम में आती है। गहरे समुद्र में गोता लगाने वाले साँस लेने के लिए वायु के स्थान पर हीलियम और ऑक्सीजन का मिश्रण काम में लाते हैं। धातु कर्म में जहाँ अक्रिय वायुमंडल की आवश्यकता होती है, हीलियम का प्रयोग किया जाता है। वायु से यह बहुत हल्की होती है, अत: बड़े- बड़े हवाई जहाजों के टायरों में इसी गैस को भरा जाता है।

★★ नीऑन :

बहुत कम दाब पर नीऑन से भरी ट्यूबों में से विद्युत गुजारने पर नारंगी रंग की चमक पैदा होती है, जिसका विद्युत संकेतों में उपयोग किया जाता है। 

★★ आर्गन:

1. 26 प्रतिशत नाइट्रोजन के साथ मिलाकर आर्गन विद्युत के बल्बों में तथा रेडियो वाल्बों और ट्यूबों में प्रयुक्त होती है। 

2. क्रिप्टान और जीनॉन इनका प्रयोग किसी काम में नहीं होता।

★★ रेडान:

यह घातक फोड़ों और ठीक न होने वाले घावों के इलाज में काम आती है।
अधातु

 

1. अधातुयें ठोस, द्रव व गैस तीनों में अवस्थाओं में पायी जाती है। 

2. कार्बन, गन्धक आदि ठोस अधातु हैं जबकि ब्रोमिन द्रव व ऑक्सीजन, नाइट्रोजन आदि गैस हैं।

★★★ अधातुयें भंगुर होती हैं:

1. इनमें सुघट्यता का गुण नहीं पाया जाता। 

2. इनके ऑक्साइड उदासीन या अम्लीय होते हैं। 

3. अधातुये वैद्युत की कुचालक होती हैं 

4. इनके ग्लनांक धातुओं की अपेक्षा कम होते हैं।
अवधि (आवर्त सारणी)

 

1. आधुनिक आवर्त सारणी में सात क्षैतिज पंक्तियाँ होती हैं जिन्हें अवधि और आर्वत कहते हैं। 

2. अवधि की विशेषताएँ आवर्त सारणी के किसी अवधि में बाएँ से दाएँ जाने पर तत्त्व का धातुई गुण कम होता जाता है तथा अधातुई गुण में वृद्धि होती है। 

3. आवर्त सारणी के किसी अवधि में बाएँ से दाएँ जाने पर तत्त्व की रासायनिक क्रियाशीलता घटती है और बाद में बढ़ती है। 

4. किसी अवधि में तत्त्वों की संयोजकता 1 से बढ़कर 4 हो जाती है, तथा उसके बाद घटते- घटते शून्य हो जाती है। 

5. किसी अवधि में बाएँ से दाएँ जाने पर संयोजी इलेक्ट्रॉनों की संख्या 1 से बढ़कर 8 हो जाती है।

6. आवर्त सारणी के किसी अवधि में इलेक्ट्रॉन- प्रीति का मान बाएँ से दाएँ जाने पर प्रायः बढ़ता है। 

7. आवर्त सारणी के किसी अवधि में बाएँ से दाएँ जाने पर विद्युत् ऋणात्मकता का मान क्रमशः बढ़ता जाता है। 

8. आवर्त सारणी के किसी अवधि में बाएँ से दाएँ जाने पर पर आयनन विभव का मान बढ़ता है। 

9. आवर्त सारणी के किसी अवधि में बाएँ से दाएँ जाने पर परमाणु आकार या परमाणु की त्रिज्या घटता है। 

10. आवर्त सारणी के किसी अवधि में बाएँ से दाएँ जाने पर तत्त्व के ऑक्साइडों के भास्मिक गुण क्रमशः घटते जाते हैं।
आवर्त सारणी

 

★★★ आवर्त सारणी की सर्वप्रथम खोज मेण्डलीफ ने की थी। 

मोजले ने आधुनिक आर्वत सारणी बनाया जिसके अनुसार- आर्वत सारणी में रखे हुए तत्वों के रासायनिक तथा भौतिक गुण उनके परमाणु क्रमांकों के आवर्ती फलन होते हैं। 

आर्वत सारणी में उदग्र कतारों को समूह और क्षैतिज कतारों को अवधि कहते हैं। 

इन तत्वों के इलेक्ट्रॉनिक विन्यासों के आधार पर इन्हें चार उनके ब्लॉकों में विभाजित किया गया है। 

1. S Block के तत्वों के सबसे अंतिम इलेक्ट्रॉन S उपकोश में होते हैं। 

2. P Block के तत्वों के सबसे अंतिम इलेक्ट्रॉन P उपकोश में होते हैं। 

3. इसी प्रकार d और f ब्लॉक के तत्वों के सबसे अंतिम इलेक्ट्रॉन d और f उपकोशों में होते हैं। d और f ब्लॉक के तत्त्व परिवर्ती संयोजकता प्रदर्शित करते हैं। 

इस आधुनिक आर्वत सारणी में सात क्षैतिज पंक्तियाँ होती हैं जिन्हें आर्वत कहते हैं। 

आर्वत की संख्या तत्त्व के सबसे बाहरी कक्षा की संख्या को प्रदर्शित करतीं हैं। आर्वत सारणी में 9 उर्ध्वाधर खाने होते हैं जिन्हें समूह कहते हैं। 

पुनः 8 समूहों को दो-दो उपसमूह में विभाजित किया गया है। इन्हें A और B उपसमूह कहते हैं।

उपसमूह A में स्थित किसी तत्त्व का अंतिम इलेक्ट्रॉन S या P उपकोश में होता है। 

d और f ब्लॉक के तत्त्व उपसमूह B के अंतर्गत आते हैं। 

8 वें समूह को 3 भागों में विभाजित करके सभी 9 तत्वों को उपयुक्त स्थान दिया गया है। इस प्रकार कुल समूहों की संख्या 16 होती है जो इस प्रकार हैं- IA, IIA, IIIB, IVB, VB, VIB, VIIB, VIIIB, IB, IIB, IIIA, IVA, VA, VIA, VIIA, Zero.
धातु

 

★★★ सामान्यत:
धातुयें विद्युत की सुचालक होती है, तथा अम्लों से क्रिया करके हाइड्रोजन गैस विस्थापित करती है। साधारण अवस्था में पाया गेलियम व सीजियम को छोड़कर सभी धातुयें ठोस अवस्था में पायी जाती हैं। धातुओं में, तन्यता, उच्च ऊष्मा चालकता, आधातवर्धनीयता, उच्च वैद्युत चालकता उच्च तनन क्षमता, सुपट्यता आदि गुण पाये जाते हैं। धातुएं कठोर होती हैं तथा उनमें धातुई चमक पायी जाती है। पारा ऐसा धातु है जो द्रव की अवस्था में रहता है।
उपधातु

 

★★★ जिन पदार्थों में धातुओं व अधातुओं दोनों के गुण पाये जाते हैं, उपधातु कहलाते हैं। जैसे आर्सेनिक, ऐण्टीमनी आदि। उपधातुओं के ऑक्साइड प्रायः अम्लीय व क्षारीय दोनों प्रकार के होते हैं
क्षार धातु

 

★★★ रासायनिक तत्त्वों की एक शृंखला होती है, जो आवर्त सारणी के समूह-1 में लिथियम (Li), सोडियम (Na), पोटेशियम (K), रुबिडियम (Rb), सीज़ियम (Cs), और फ्रैनशियम (Fr) से मिलकर बनते हैं।
क्षारीय पार्थिव धातु

 

★★★ रीय पार्थिव धातु रसायनिक तत्त्वों की एक शृंखला होती है, जो आवर्त सारणी के समूह-2 में बेरिलियम (Be), मैग्नीसियम (Mg), कैल्सियम (Ca), स्ट्रॉन्शियम (Sr), बेरियम (Ba) और रेडियम (Ra) से मिलकर बनते हैं।
समावयवी यौगिक

 

★★★ वे यौगिक, जिनके अणु सूत्र तो समान होते हैं, परंतु संरचनात्मक सूत्रों में भिन्नता होती है। इस कारण ऐसे यौगिकों के गुण भी भिन्न-भिन्न होते हैं। जैसे- एथिल एल्कोहल व डाइमेथिल ईथर एक दूसरे के समावयवी हैं।
मिश्रधातु

 

★★★ दो या अधिक धात्विक तत्वों के आंशिक या पूर्ण ठोस-विलयन को मिश्रधातु (Alloy) कहते हैं।

★★ भौतिक गुण:
1. मिश्र धातुओं के भौतिक गुण उनके घटक धातुओं के गुणों से भिन्न होते हैं। जब पारा किसी धातु से मिलकर मिश्र धातु बनाता है तो उसे अमलगम कहते हैं।
2. मिश्र धातु में कम से कम एक धात्विक तत्व अवश्य होना चाहिये।
3. इनकी कठोरता घटक धातुओं से अधिक होती है।
अपरूपता

 

★★★ "जब एक ही तत्त्व कई रूपों में मिलता है, तब उसका यह गुण अपरूपता कहलाता है और उसके विभिन्न रूपों को उस तत्त्व का अपरूप कहते हैं। जैसे कार्बन के विभिन्न अपरूप हैं

1. हीरा (डायमंड)
2. ग्रेफाइट
3. कोयला
4. कोक
5. चारकोल या काष्ठ कोयला
6. अस्थि कोयला
7. काजल
8. गैस कार्बन
9. पेट्रोलियम कोक
10. चीनी कोयला
कार्बन के अतिरिक्त ऑक्सीजन, गंधक, फॉस्फोरस आदि भी अपरूपों में पाए जाते हैं।"
नाइक्रोम

 

★★★ अचुम्बकीय गुणों वाली मिश्रधातु है। यह निकिल, क्रोमियम तथा लोहा से मिलकर बनती है।

1. मुख्य रूप से इसका उपयोग प्रतिरोधक तार बनाने में किया जाता है।
2. नाइक्रोम मिश्रधातु बिना पिघले हुए उच्च ताप तक गर्म की जा सकती है। वायु से मिलकर यह शीघ्र ऑक्सीकृत नहीं होती।

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