Extremely Useful for the students studying in Class 11 and 12 also for those who preparing for the competitive exam like JEE main , JEE Advance , BITSAT ,MHTCET , EAMCET , KCET , UPTU (UPSEE), WBJEE , VITEEE , CBSE PMT , AIIMS , AFMC ,CPMT and all other Engineering and Medical Entrance Exam
अकार्बनिक रसायन - 1
अकार्बनिक रसायन - 1
1. रसायन विज्ञान में तत्व तथा यौगिक का वह छोटा से छोटा कण जो स्वतंत्र अवस्था में रह सकता है, अणु कहलाता है।
2. पदार्थ अणुओं से मिलकर बने होते हैं और अणु परमाणुओं से।
3. साधारणतया इनका व्यास 4Å से 20Å तक होता है। (1Å = 10-10मीटर)।
4. किसी पदार्थ के अणु में उस पदार्थ के कोई भौतिक एवं रासायनिक गुण नहीं होते।
5. वास्तव में एक अणु न ठोस होता है, न द्रव और न गैस।
6. किसी भी पदार्थ का अणु उसी रूप में कभी रासायनिक क्रिया नहीं करता। इसके लिए अणु का परमाणु ओम में विभाजन आवश्यक है।
2. पदार्थ अणुओं से मिलकर बने होते हैं और अणु परमाणुओं से।
3. साधारणतया इनका व्यास 4Å से 20Å तक होता है। (1Å = 10-10मीटर)।
4. किसी पदार्थ के अणु में उस पदार्थ के कोई भौतिक एवं रासायनिक गुण नहीं होते।
5. वास्तव में एक अणु न ठोस होता है, न द्रव और न गैस।
6. किसी भी पदार्थ का अणु उसी रूप में कभी रासायनिक क्रिया नहीं करता। इसके लिए अणु का परमाणु ओम में विभाजन आवश्यक है।
★★★ अम्ल एक रासायनिक यौगिक है, जो जल में घुलकर हाइड्रोजन आयन (H+) देता है। इसका pH मान 7.0 से कम होता है।
आधुनिक परिभाषा के अनुसार, अम्ल वह रासायनिक यौगिक है जो प्रतिकारक यौगिक (क्षार) को हाइड्रोजन आयन (H+) प्रदान करता है। जैसे- एसीटिक अम्ल (सिरका में) और सल्फ्यूरिक अम्ल (बैटरी में).
अम्ल, ठोस, द्रव या गैस, किसी भी भौतिक अवस्था में पाए जा सकते हैं। वे शुद्ध रूप में या घोल के रूप में रह सकते हैं। जिस पदार्थ या यौगिक में अम्ल के गुण पाए जाते हैं वे (अम्लीय) कहलाते हैं। मानव आंत्र में हाइड्रोक्लोरिक अम्ल की अधिकता से होने वाली बीमारी को अम्लता या एसीडिटी कहते हैं।
आधुनिक परिभाषा के अनुसार, अम्ल वह रासायनिक यौगिक है जो प्रतिकारक यौगिक (क्षार) को हाइड्रोजन आयन (H+) प्रदान करता है। जैसे- एसीटिक अम्ल (सिरका में) और सल्फ्यूरिक अम्ल (बैटरी में).
अम्ल, ठोस, द्रव या गैस, किसी भी भौतिक अवस्था में पाए जा सकते हैं। वे शुद्ध रूप में या घोल के रूप में रह सकते हैं। जिस पदार्थ या यौगिक में अम्ल के गुण पाए जाते हैं वे (अम्लीय) कहलाते हैं। मानव आंत्र में हाइड्रोक्लोरिक अम्ल की अधिकता से होने वाली बीमारी को अम्लता या एसीडिटी कहते हैं।
1. इलेक्ट्रॉन की खोज जे. जे. थामसन ने की है।
2. इलेक्ट्रॉन एक वैद्युत ऋणात्मक आवेशित कण है। जो परमाणु मे नाभिक के चारो ओर चक्कर लगाता हैं। इसका द्रव्यमान हाइड्रोजन परमाणु से भी हजारगुना कम होता है।
3. एक इलेक्ट्रॉन का नकारात्मक चार्ज -1 होता है |
4. इस पर 1.6X10-19 कूलाम्ब परिमाण का ऋण आवेश होता है।
5. इसका द्रव्यमान 9.11X 10-31 किग्रा होता है |
6. एक इलेक्ट्रॉन का द्रव्यमान प्रोटॉन के द्रव्यमान का लगभग 1836 वां भाग है।
7. परमाणु में इलेक्ट्रॉनों की संख्या प्रोटॉन की संख्या के समान है |
8. एक इलेक्ट्रॉन e- द्वारा चिह्नित है इलेक्ट्रॉन तीन परमाणु कणों का सबसे छोटा कण है |
2. इलेक्ट्रॉन एक वैद्युत ऋणात्मक आवेशित कण है। जो परमाणु मे नाभिक के चारो ओर चक्कर लगाता हैं। इसका द्रव्यमान हाइड्रोजन परमाणु से भी हजारगुना कम होता है।
3. एक इलेक्ट्रॉन का नकारात्मक चार्ज -1 होता है |
4. इस पर 1.6X10-19 कूलाम्ब परिमाण का ऋण आवेश होता है।
5. इसका द्रव्यमान 9.11X 10-31 किग्रा होता है |
6. एक इलेक्ट्रॉन का द्रव्यमान प्रोटॉन के द्रव्यमान का लगभग 1836 वां भाग है।
7. परमाणु में इलेक्ट्रॉनों की संख्या प्रोटॉन की संख्या के समान है |
8. एक इलेक्ट्रॉन e- द्वारा चिह्नित है इलेक्ट्रॉन तीन परमाणु कणों का सबसे छोटा कण है |
★★★ कक्षाओं (शेलों) एवं उपकक्षाओं (सबशेल) में इलेक्ट्रॉनों के वितरण को परमाणु का इलेक्ट्रॉनिक विन्यास कहा जाता है। उदाहरण:
1. सोडियम (Na)
2. सोडियम की परमाणु संख्या 11 (2, 8, 1)
3. सोडियम का इलेक्ट्रॉनिक विन्यास: 1s2, 2s2, 2p6, 3s1
4. मैग्नीसियम (Mg)
5. मैग्नीसियम की परमाणु संख्या 12 (2, 8, 2)
6. मैग्नीसियम का इलेक्ट्रॉनिक विन्यास: 1s2, 2s2, 2p6, 3s2
7. कैल्सियम (Ca)
8. कैल्सियम की परमाणु संख्या 20 (2, 8,8, 2)
9. कैल्सियम का इलेक्ट्रॉनिक विन्यास: 1s2, 2s2, 2p6, 3s2, 3p6, 4s2
1. सोडियम (Na)
2. सोडियम की परमाणु संख्या 11 (2, 8, 1)
3. सोडियम का इलेक्ट्रॉनिक विन्यास: 1s2, 2s2, 2p6, 3s1
4. मैग्नीसियम (Mg)
5. मैग्नीसियम की परमाणु संख्या 12 (2, 8, 2)
6. मैग्नीसियम का इलेक्ट्रॉनिक विन्यास: 1s2, 2s2, 2p6, 3s2
7. कैल्सियम (Ca)
8. कैल्सियम की परमाणु संख्या 20 (2, 8,8, 2)
9. कैल्सियम का इलेक्ट्रॉनिक विन्यास: 1s2, 2s2, 2p6, 3s2, 3p6, 4s2
★★★ वह पदार्थ है जो हवा में जलकर बगैर अनावश्यक उत्पाद के ऊष्मा उत्पन्न करता है।
★★ एक अच्छे ईंधन के निम्नमिखित गुण होने चाहिए :
1. वह सस्ता एवं आसानी से उपलब्ध होना चाहिए।
2. उसका ऊष्मीय मान उच्च होना चाहिए।
3. जलने के बाद उससे अधिक मात्रा में अवशिष्ट होना चाहिए।
4. जलने के दौरान या बाद कोई हानिकारक पदार्थ नहीं होना चाहिए।
5. उसका जमाव, परिवह्न आसान होना चाहिए।
6. उसका जलना नियंत्रित होना चाहिए।
7. उसका प्रज्वलन ताप निम्न होना चाहिए।
★★★ मुख्यतः ईंधन तीन प्रकार के होते है :
★★ ठोस ईंधन :
ये ईंधन ठोस रूप में होते हैं तथा जलाने पर कार्बन हाइड्रोक्साइड, कार्बन मोनो ऑक्साइड व ऊष्मा उत्पन करते हैं। लकड़ी, कोयला, कोक आदि ठोस ईंधन के उदाहरण है।
★★ कोयला:
कार्बन की मात्रा के आधार पर कोयला चार प्रकार का होता हैं :-
★★ पीट कोयला :
1. इसमें कार्बन की मात्रा 50% से 60% तक होती है। इसे जलाने पर अधिक राख एवं धुआँ निकलता है।
2. यह सबसे निम्न कोटि का कोयला है।
★★ लिग्नाइट कोयला :
इसमें कार्बन की मात्रा 65% से 70% तक होती है। इसका रंग भूरा होता है, इसमें जलवाष्प की मात्रा अधिक होती है।
★★ बिटुमिनस कोयला :
1. इसे मुलायम कोयला भी कहा जाता है।
2. इसका उपयोग घरेलू कार्यों में होता है।
3. इसमें कर्बन की मात्रा 70% से 85% तक होती है।
★★ एन्थ्रासाइट कोयला :
यह कोयले की सबसे उत्तम कोटि है। इसमें कार्बन की मात्रा 85% से भी अधिक रहती है।
★★ द्रव ईंधन :
द्रव ईंधन विभिन्न प्रकार के हाइड्रोकार्बन के मिश्रण से बने होते हैं तथा जलाने पर कार्बन डाईऑक्साइड व जल का निर्माण करते हैं। केरोसिन, पेट्रोल, डीज़ल, अल्कोहल आदि द्रव ईंधनों के उदाहरण है।
★★ गैस ईंधन :
जिस प्रकार ठोस व द्रव ईंधन जलाने पर ऊष्मा उत्पन्न करते हैं, उसी प्रकार कुछ ऐसी गैस भी हैं जो जलाने पर ऊष्मा उत्पन्न करती हैं। गैस ईंधन द्रव व ठोस ईंधनों की अपेक्षा अधिक सुविधाजनक होते हैं व पाइपों द्वारा एक स्थान से दुसरे स्थान तक सरलतापूर्वक नियन्त्रित की जा सकती हैं। इसके अतिरिक्त गैस ईंधनों की ऊष्मा सरलतापूर्वक नियन्त्रित की जा सकती है।
★★★ प्रमुख ईंधन गैसें निम्न हैं :
★★ प्राकृतिक गैस :
यह पेट्रोलियम कुआँ से निकलती है। इसमें 95% हाइड्रोकार्बन होता है, जिसमे 80% मिथेन रहता है। घरों में प्रयुक्त होने वाली द्रवित प्राकृतिक गैस को एल॰ पी॰ जी॰ कहते हैं। यह ब्यूटेन एवं प्रओमेन का मिश्रण होता है, जिसे उच्च दाव पर द्रवित कर सिलेण्डरों में भर लिया जाता हैं।
★★ गोबर गैस :
गीले गोबर (पशुओं के मल) के सड़ने पर ज्वलनशील मिथेन गैस बनती है, जो वायु की उपस्थिति में सुगमता से जलती है। गोबर गैस संयत्र में शेष रहे पदार्थ का उपयोग कार्बनिक खाद के रूप में किया जाता है।
★★ प्रोड्यूसर गैस :
यह गैस लाल तप्त कोक पर वायु प्रवाहित करके बनायी जाती है, इसमें मुख्यतः कार्बन मोनोक्साइड ईंधन का काम करता है। इसमें 70% नाइट्रोजन, 25% कार्बन मोनोक्साइड एवं 4% कार्बनडाइक्साइड रहता है। इसका ऊष्मीय मान 1100 kcal / kg होता है। काँच एवं इस्पात उद्योग में इसका उपयोग ईंधन के रूप में किया जाता है।
★★ जल गैस :
इसमें हाइड्रोजन 49%, कार्बन मोनोक्साइड 45% तथा कार्बनडाइक्साइड 4-5% होता है। इसका ऊष्मीय मान 2500 से 2800 kcal / kg होता है। इसका उपयोग हइड्रोजन एवं अल्कोहल के निर्माण में अपचायक के रूप में होता है।
★★ कोल गैस :
यह कोयले के भंजक आसवन से बनाया जाता है। यह रंगहीन तीक्ष्ण गंध वाली गैस है, यह वायु के साथ विस्फोटक मिश्रण बनाती है। इसमें 54% हाइड्रोजन, 35% मिथेन, 11% कार्बन मोनोक्साइड, 5% हाइड्रोकार्बन, 3% कार्बन डाइआक्साइड होता है।
1. ईंधन का ऊष्मीय मान उसकी कोटि का निर्धारण करता है।
2. अल्कोहल को जब पेट्रोल में मिला दिया जाता है, तो उसे अल्कोहल कहते हैं, जो ऊर्जा का एक वैकल्पिक स्रोत है।
3. एल॰ पी॰ जी॰ अत्यधिक ज्वलनशील होती है, अतः इससे होने वाली दुर्घटना से बचने के लिए इसमें सल्फर के यौगिक (मिथाइल मरकॉप्टेन) को मिला देते हैं, ताकि इसके रिसाव को इसकी गंध से पहचान लिया जाय।
★★ ईंधन का ऊष्मीय मान:
किसी ईंधन का ऊष्मीय मान ऊष्मा की वह मात्रा है, जो उस ईंधन के एक ग्राम को वायु या ऑक्सीजन में पूर्णतः जलाने के पश्चात् प्राप्त होता है। किसी भी अच्छे ईंधन का ऊष्मीय मान अधिक होना चाहिए। सभी ईंधनों में हाइड्रोजन का ऊष्मीय मान सबसे आधिक होता है परन्तु सुरक्षित भंडारण की सुविधा नहीं होने के कारण उपयोग आमतौर पर नहीं किया जाता है। हाइड्रोजन का उपयोग रॉकेट ईंधन के रूप में तथा उच्च ताप उत्पन्न करने वाले ज्वालकों में किया जाता है। हाइड्रोजन को भविष्य का ईंधन भी कहा जाता है।
★★ अपस्फोटन व आक्टेन संख्या :
कुछ ईंधन ऐसे होते हैं जिनका वायु मिश्रण का इंजनों के सिलेण्डर में ज्वलन समय के पहले हो जाता है, जिससे ऊष्मा पूर्णतया कार्य में परिवर्तित न होकर धात्विक ध्वनि उत्पन्न करने में नष्ट हो जाती है। यही ध्हत्विक ध्वनि अपस्फोटन कहलाती है। ऐसे ईंधन जिनका अपस्फोटन अधिक होता है अपयोग के लिए उचित नहीं माने जाते हैं जिससे इनका अपस्फोटन कम हो जाता है सबसे अच्छा अपस्फोटरोधी यौगिक टेट्रा एथिल लेड है। अपस्फोटन को आक्टेन संख्या के द्वारा व्यक्त किया जाता है। किसी ईंधन, जिसकी आक्टेन संख्या जितनी अधिक होती है, का अपस्फोटन उतना ही कम होता है तथा वह उतना ही उत्तम ईंधन माना जाता है।
★★ एक अच्छे ईंधन के निम्नमिखित गुण होने चाहिए :
1. वह सस्ता एवं आसानी से उपलब्ध होना चाहिए।
2. उसका ऊष्मीय मान उच्च होना चाहिए।
3. जलने के बाद उससे अधिक मात्रा में अवशिष्ट होना चाहिए।
4. जलने के दौरान या बाद कोई हानिकारक पदार्थ नहीं होना चाहिए।
5. उसका जमाव, परिवह्न आसान होना चाहिए।
6. उसका जलना नियंत्रित होना चाहिए।
7. उसका प्रज्वलन ताप निम्न होना चाहिए।
★★★ मुख्यतः ईंधन तीन प्रकार के होते है :
★★ ठोस ईंधन :
ये ईंधन ठोस रूप में होते हैं तथा जलाने पर कार्बन हाइड्रोक्साइड, कार्बन मोनो ऑक्साइड व ऊष्मा उत्पन करते हैं। लकड़ी, कोयला, कोक आदि ठोस ईंधन के उदाहरण है।
★★ कोयला:
कार्बन की मात्रा के आधार पर कोयला चार प्रकार का होता हैं :-
★★ पीट कोयला :
1. इसमें कार्बन की मात्रा 50% से 60% तक होती है। इसे जलाने पर अधिक राख एवं धुआँ निकलता है।
2. यह सबसे निम्न कोटि का कोयला है।
★★ लिग्नाइट कोयला :
इसमें कार्बन की मात्रा 65% से 70% तक होती है। इसका रंग भूरा होता है, इसमें जलवाष्प की मात्रा अधिक होती है।
★★ बिटुमिनस कोयला :
1. इसे मुलायम कोयला भी कहा जाता है।
2. इसका उपयोग घरेलू कार्यों में होता है।
3. इसमें कर्बन की मात्रा 70% से 85% तक होती है।
★★ एन्थ्रासाइट कोयला :
यह कोयले की सबसे उत्तम कोटि है। इसमें कार्बन की मात्रा 85% से भी अधिक रहती है।
★★ द्रव ईंधन :
द्रव ईंधन विभिन्न प्रकार के हाइड्रोकार्बन के मिश्रण से बने होते हैं तथा जलाने पर कार्बन डाईऑक्साइड व जल का निर्माण करते हैं। केरोसिन, पेट्रोल, डीज़ल, अल्कोहल आदि द्रव ईंधनों के उदाहरण है।
★★ गैस ईंधन :
जिस प्रकार ठोस व द्रव ईंधन जलाने पर ऊष्मा उत्पन्न करते हैं, उसी प्रकार कुछ ऐसी गैस भी हैं जो जलाने पर ऊष्मा उत्पन्न करती हैं। गैस ईंधन द्रव व ठोस ईंधनों की अपेक्षा अधिक सुविधाजनक होते हैं व पाइपों द्वारा एक स्थान से दुसरे स्थान तक सरलतापूर्वक नियन्त्रित की जा सकती हैं। इसके अतिरिक्त गैस ईंधनों की ऊष्मा सरलतापूर्वक नियन्त्रित की जा सकती है।
★★★ प्रमुख ईंधन गैसें निम्न हैं :
★★ प्राकृतिक गैस :
यह पेट्रोलियम कुआँ से निकलती है। इसमें 95% हाइड्रोकार्बन होता है, जिसमे 80% मिथेन रहता है। घरों में प्रयुक्त होने वाली द्रवित प्राकृतिक गैस को एल॰ पी॰ जी॰ कहते हैं। यह ब्यूटेन एवं प्रओमेन का मिश्रण होता है, जिसे उच्च दाव पर द्रवित कर सिलेण्डरों में भर लिया जाता हैं।
★★ गोबर गैस :
गीले गोबर (पशुओं के मल) के सड़ने पर ज्वलनशील मिथेन गैस बनती है, जो वायु की उपस्थिति में सुगमता से जलती है। गोबर गैस संयत्र में शेष रहे पदार्थ का उपयोग कार्बनिक खाद के रूप में किया जाता है।
★★ प्रोड्यूसर गैस :
यह गैस लाल तप्त कोक पर वायु प्रवाहित करके बनायी जाती है, इसमें मुख्यतः कार्बन मोनोक्साइड ईंधन का काम करता है। इसमें 70% नाइट्रोजन, 25% कार्बन मोनोक्साइड एवं 4% कार्बनडाइक्साइड रहता है। इसका ऊष्मीय मान 1100 kcal / kg होता है। काँच एवं इस्पात उद्योग में इसका उपयोग ईंधन के रूप में किया जाता है।
★★ जल गैस :
इसमें हाइड्रोजन 49%, कार्बन मोनोक्साइड 45% तथा कार्बनडाइक्साइड 4-5% होता है। इसका ऊष्मीय मान 2500 से 2800 kcal / kg होता है। इसका उपयोग हइड्रोजन एवं अल्कोहल के निर्माण में अपचायक के रूप में होता है।
★★ कोल गैस :
यह कोयले के भंजक आसवन से बनाया जाता है। यह रंगहीन तीक्ष्ण गंध वाली गैस है, यह वायु के साथ विस्फोटक मिश्रण बनाती है। इसमें 54% हाइड्रोजन, 35% मिथेन, 11% कार्बन मोनोक्साइड, 5% हाइड्रोकार्बन, 3% कार्बन डाइआक्साइड होता है।
1. ईंधन का ऊष्मीय मान उसकी कोटि का निर्धारण करता है।
2. अल्कोहल को जब पेट्रोल में मिला दिया जाता है, तो उसे अल्कोहल कहते हैं, जो ऊर्जा का एक वैकल्पिक स्रोत है।
3. एल॰ पी॰ जी॰ अत्यधिक ज्वलनशील होती है, अतः इससे होने वाली दुर्घटना से बचने के लिए इसमें सल्फर के यौगिक (मिथाइल मरकॉप्टेन) को मिला देते हैं, ताकि इसके रिसाव को इसकी गंध से पहचान लिया जाय।
★★ ईंधन का ऊष्मीय मान:
किसी ईंधन का ऊष्मीय मान ऊष्मा की वह मात्रा है, जो उस ईंधन के एक ग्राम को वायु या ऑक्सीजन में पूर्णतः जलाने के पश्चात् प्राप्त होता है। किसी भी अच्छे ईंधन का ऊष्मीय मान अधिक होना चाहिए। सभी ईंधनों में हाइड्रोजन का ऊष्मीय मान सबसे आधिक होता है परन्तु सुरक्षित भंडारण की सुविधा नहीं होने के कारण उपयोग आमतौर पर नहीं किया जाता है। हाइड्रोजन का उपयोग रॉकेट ईंधन के रूप में तथा उच्च ताप उत्पन्न करने वाले ज्वालकों में किया जाता है। हाइड्रोजन को भविष्य का ईंधन भी कहा जाता है।
★★ अपस्फोटन व आक्टेन संख्या :
कुछ ईंधन ऐसे होते हैं जिनका वायु मिश्रण का इंजनों के सिलेण्डर में ज्वलन समय के पहले हो जाता है, जिससे ऊष्मा पूर्णतया कार्य में परिवर्तित न होकर धात्विक ध्वनि उत्पन्न करने में नष्ट हो जाती है। यही ध्हत्विक ध्वनि अपस्फोटन कहलाती है। ऐसे ईंधन जिनका अपस्फोटन अधिक होता है अपयोग के लिए उचित नहीं माने जाते हैं जिससे इनका अपस्फोटन कम हो जाता है सबसे अच्छा अपस्फोटरोधी यौगिक टेट्रा एथिल लेड है। अपस्फोटन को आक्टेन संख्या के द्वारा व्यक्त किया जाता है। किसी ईंधन, जिसकी आक्टेन संख्या जितनी अधिक होती है, का अपस्फोटन उतना ही कम होता है तथा वह उतना ही उत्तम ईंधन माना जाता है।
★★★ इलेक्ट्रॉन भरते समय कम ऊर्जा वाले कक्षक पहले भरे जाएंगे जबकि अधिक उर्जा वाले कक्षक बाद में भरे जाएंगे, इस नियम द्वारा तत्त्वों के इलेक्ट्रॉनिक विन्यास लिखने के लिए विभिन्न परमाणु कक्षकों की ऊर्जा बढ़ने का क्रम इस प्रकार है:
1s < 2s < 2p < 3s < 3p < 4s < 3d < 4p < 5s < 4d < 5p < 6s तथा आगे इसी प्रकार अर्थात 1s का उर्जा स्तर निम्नतम है तथा 2s उपकक्षा का उर्जा स्तर 1s से अधिक है।
और, 2p का उर्जा स्तर 3s के उर्जा स्तर से कम है।
और, 4s का उर्जा स्तर 3d के उर्जा स्तर से कम है।
1s < 2s < 2p < 3s < 3p < 4s < 3d < 4p < 5s < 4d < 5p < 6s तथा आगे इसी प्रकार अर्थात 1s का उर्जा स्तर निम्नतम है तथा 2s उपकक्षा का उर्जा स्तर 1s से अधिक है।
और, 2p का उर्जा स्तर 3s के उर्जा स्तर से कम है।
और, 4s का उर्जा स्तर 3d के उर्जा स्तर से कम है।
★★★ रसायन विज्ञान में पदार्थ की वह भौतिक अवस्था जिसका आकार एवं आयतन दोनों अनिश्चित हो 'गैस' कहलाता है।
जैसे- हवा, ऑक्सीजन आदि।
गैसों का कोई पृष्ठ नहीं होता है, गैसों का विसरण बहुत अधिक होता है तथा गैसों को आसानी से संपीड़ित किया जा सकता है।
जैसे- हवा, ऑक्सीजन आदि।
गैसों का कोई पृष्ठ नहीं होता है, गैसों का विसरण बहुत अधिक होता है तथा गैसों को आसानी से संपीड़ित किया जा सकता है।
★★★ 'क्लोरोपिक्रिन' एक जहरीला रसायन है, जिसका रासायनिक सूत्र CCl3NO2 है। यह अश्रु स्रावक है और त्वचा तथा श्वसन तंत्र के लिए भी हानिकारक है। 3 से 30 सेकण्ड तक 0.3 से 0.37 पीपीएम क्लोरोपिक्रिन के सम्पर्क में आने से अश्रु-स्राव तथा आँखों में दर्द होने लगता है। प्रबल अश्रु स्रावक होने के कारण क्लोरोपिक्रिन का प्रयोग अश्रु गैस के रूप में होता है।
1. एक हथियार के रूप में प्रयोग की जाने वाली गैस है।
2. अनियंत्रित तथा उपद्रव कर रही भीड़ को नियंत्रित करने के लिए अश्रु गैस का उपयोग किया जाता है।
3. हालांकि अश्रु गैस छोड़ने के बाद आँख में थोड़ी जलन होती है, लेकिन पानी से धोने के बाद यह जलन तुरंत समाप्त हो जाती है।
4. जब अश्रु गैस आँखों के सम्पर्क में आती है तो कॉर्निया के स्नायु उत्तेजित हो जाते हैं, जिससे आँख से आंसू निकलने लगता है, दर्द होता है और अंधापन भी हो सकता है।
★★ प्रमुख अश्रुकर गैसें हैं:
OC, CS, CR, CN (फेन्यासील क्लोराइड), ब्रोमोएसीटोन, जाइलिल ब्रोमाइड तथा
सिन्-प्रोपेनेथिअल-एस-आक्साइड
1. एक हथियार के रूप में प्रयोग की जाने वाली गैस है।
2. अनियंत्रित तथा उपद्रव कर रही भीड़ को नियंत्रित करने के लिए अश्रु गैस का उपयोग किया जाता है।
3. हालांकि अश्रु गैस छोड़ने के बाद आँख में थोड़ी जलन होती है, लेकिन पानी से धोने के बाद यह जलन तुरंत समाप्त हो जाती है।
4. जब अश्रु गैस आँखों के सम्पर्क में आती है तो कॉर्निया के स्नायु उत्तेजित हो जाते हैं, जिससे आँख से आंसू निकलने लगता है, दर्द होता है और अंधापन भी हो सकता है।
★★ प्रमुख अश्रुकर गैसें हैं:
OC, CS, CR, CN (फेन्यासील क्लोराइड), ब्रोमोएसीटोन, जाइलिल ब्रोमाइड तथा
सिन्-प्रोपेनेथिअल-एस-आक्साइड
1. अंतरतारकीय गैस तारों के बीच रिक्त स्थानों में उपस्थित रहती है।
2. यह गैस धूलकणों के साथ पाई जाती है।
3. गैस के अणु तारों के प्रकाश से विशेष रंगों को सोख लेते हैं और इस प्रकार उनके कारण तारों के वर्णपटों में काली धारियाँ बन जाती हैं। ऐसी काली धारियाँ सामान्यत: तारे के निजी प्रकाश से भी बन सकती हैं।
4. काली रेखाएँ अंतरतारकीय धूलि से ही बनी होती हैं।
5. इसका प्रमाण उन युग्मतारों से मिलता है, जो एक-दूसरे के चारों ओर नाचते रहते हैं।
इन तारों में से जब एक हमारी ओर आता रहता है, तब दूसरा हमसे दूर जाता रहता है। परिणाम यह होता है कि 'डॉपलर नियम' के अनुसार वर्णपट में एक तारे से आई प्रकाश की काली रेखाएँ कुछ दाहिने हट जाती हैं। इस प्रकार दूसरे तारे के प्रकाश से बनी रेखाएँ दोहरी हो जाती हैं, परंतु अंतरतारकीय गैसों से उत्पन्न काली रेखाएँ इकहरी होती हैं; इसलिए वे तीक्ष्ण रह जाती हैं।
अंतरतारकीय गैस में कैल्शियम, पोटैशियम, सोडियम, टाइटेनियम और लोहे के अस्तित्व का पता इन्हीं तीक्ष्ण-रेखाओं के आधार पर चला है।
2. यह गैस धूलकणों के साथ पाई जाती है।
3. गैस के अणु तारों के प्रकाश से विशेष रंगों को सोख लेते हैं और इस प्रकार उनके कारण तारों के वर्णपटों में काली धारियाँ बन जाती हैं। ऐसी काली धारियाँ सामान्यत: तारे के निजी प्रकाश से भी बन सकती हैं।
4. काली रेखाएँ अंतरतारकीय धूलि से ही बनी होती हैं।
5. इसका प्रमाण उन युग्मतारों से मिलता है, जो एक-दूसरे के चारों ओर नाचते रहते हैं।
इन तारों में से जब एक हमारी ओर आता रहता है, तब दूसरा हमसे दूर जाता रहता है। परिणाम यह होता है कि 'डॉपलर नियम' के अनुसार वर्णपट में एक तारे से आई प्रकाश की काली रेखाएँ कुछ दाहिने हट जाती हैं। इस प्रकार दूसरे तारे के प्रकाश से बनी रेखाएँ दोहरी हो जाती हैं, परंतु अंतरतारकीय गैसों से उत्पन्न काली रेखाएँ इकहरी होती हैं; इसलिए वे तीक्ष्ण रह जाती हैं।
अंतरतारकीय गैस में कैल्शियम, पोटैशियम, सोडियम, टाइटेनियम और लोहे के अस्तित्व का पता इन्हीं तीक्ष्ण-रेखाओं के आधार पर चला है।
★★★ रसायन विज्ञान में तत्त्व वह शुद्ध पदार्थ है, जिसे किसी भी ज्ञात भौतिक एवं रासायनिक विधियों से न तो दो या दो से अधिक पदार्थों में विभाजित किया जा सकता है, और न ही अन्य सरल पदार्थों के योग से बनाया जा सकता है।
जैसे- सोना, चाँदी, ऑक्सीजन आदि।
जैसे- सोना, चाँदी, ऑक्सीजन आदि।
1. द्रव का आकार अनिश्चित होता है| इनको जिस पात्र में डाला जाता है, उसका आकार ले लेते हैं |
2. द्रव का आयतन निश्चित होता है |
3. द्रव का घनत्व गैस से अधिक परंतु ठोस से कम होता है |
4. द्रव में संपीड्यता बहुत कम होती है |
5. द्रव के कणों के मध्य दुर्बल अंतराणुक आकर्षण बल पाया जाता है |
6. द्रव के कणों में विसरण गैस से कम परंतु ठोस से अधिक होता है |
★★ उदाहरण :
जल, मिट्टी का तेल, सरसों का तेल आदि |
2. द्रव का आयतन निश्चित होता है |
3. द्रव का घनत्व गैस से अधिक परंतु ठोस से कम होता है |
4. द्रव में संपीड्यता बहुत कम होती है |
5. द्रव के कणों के मध्य दुर्बल अंतराणुक आकर्षण बल पाया जाता है |
6. द्रव के कणों में विसरण गैस से कम परंतु ठोस से अधिक होता है |
★★ उदाहरण :
जल, मिट्टी का तेल, सरसों का तेल आदि |
★★★ किसी परमाणु के नाभिक में उपस्थित प्रोटॉनों और न्यूट्रोनों की संख्याओं के योग को द्रव्यमान संख्या कहते है। इसको A से प्रदर्शित करते हैं।
द्रव्यमान संख्या = प्रोटॉनों की संख्या + न्यूट्रॉनों की संख्या
द्रव्यमान संख्या = प्रोटॉनों की संख्या + न्यूट्रॉनों की संख्या
★★★ नाभिक की खोज = रदरफोर्ड
1. नाभिक परमाणु के मध्य स्थित धनात्मक वैद्युत आवेश युक्त अत्यन्त ठोस क्षेत्र होता है। नाभिक, नाभिकीय कणों प्रोटॉन तथा न्यूट्रॉन से बने होते है। इस कण को नूक्लियान्स कहते है।
2. प्रोटॉन व न्यूट्रॉन दोनो का द्रव्यमान लगभग बराबर होता है और दोनों का आंतरिक कोणीय संवेग (स्पिन) 1/2 होता है।
3. प्रोटॉन इकाई विद्युत आवेशयुक्त होता है जबकि न्यूट्रॉन अनावेशित होता है।
4. प्रोटॉन और न्यूट्रॉन दोनो न्यूक्लिऑन कहलाते है।
5. नाभिक का व्यास (10−15 मीटर)(हाइड्रोजन-नाभिक) से (10−14 मीटर)(युरेनियम) के दायरे में होता है।
6. परमाणु का लगभग सारा द्रव्यमान नाभिक के कारण ही होता है, इलेक्ट्रान का योगदान लगभग नगण्य होता है।
★★ सामान्यत:
नाभिक की पहचान परमाणु संख्या Z (प्रोटॉन की संख्या), न्यूट्रॉन संख्या N और द्रव्यमान संख्या A (प्रोटॉन की संख्या + न्यूट्रॉन संख्या) से होती है जहाँ A = Z + N
1. नाभिक के व्यास की परास "फर्मी" के कोटि की होती है।
2. इनके अलावा नाभिक के कई गुण होते हैं जैसे आकार, आकृति, बंधन ऊर्जा, कोणीय संवेग और अर्द्ध-आयु इत्यादि।
1. नाभिक परमाणु के मध्य स्थित धनात्मक वैद्युत आवेश युक्त अत्यन्त ठोस क्षेत्र होता है। नाभिक, नाभिकीय कणों प्रोटॉन तथा न्यूट्रॉन से बने होते है। इस कण को नूक्लियान्स कहते है।
2. प्रोटॉन व न्यूट्रॉन दोनो का द्रव्यमान लगभग बराबर होता है और दोनों का आंतरिक कोणीय संवेग (स्पिन) 1/2 होता है।
3. प्रोटॉन इकाई विद्युत आवेशयुक्त होता है जबकि न्यूट्रॉन अनावेशित होता है।
4. प्रोटॉन और न्यूट्रॉन दोनो न्यूक्लिऑन कहलाते है।
5. नाभिक का व्यास (10−15 मीटर)(हाइड्रोजन-नाभिक) से (10−14 मीटर)(युरेनियम) के दायरे में होता है।
6. परमाणु का लगभग सारा द्रव्यमान नाभिक के कारण ही होता है, इलेक्ट्रान का योगदान लगभग नगण्य होता है।
★★ सामान्यत:
नाभिक की पहचान परमाणु संख्या Z (प्रोटॉन की संख्या), न्यूट्रॉन संख्या N और द्रव्यमान संख्या A (प्रोटॉन की संख्या + न्यूट्रॉन संख्या) से होती है जहाँ A = Z + N
1. नाभिक के व्यास की परास "फर्मी" के कोटि की होती है।
2. इनके अलावा नाभिक के कई गुण होते हैं जैसे आकार, आकृति, बंधन ऊर्जा, कोणीय संवेग और अर्द्ध-आयु इत्यादि।
★★★ परमाणु के अंदर न्यूट्रॉन एक ऐसा सूक्ष्म कण है, जिसका द्रव्यमान प्रोटॉन के द्रव्यमान के लगभग बराबर होता है, लेकिन इस पर कोई आवेश नहीं होता है। अर्थात् न्यूट्रॉन एक उदासीन कण है। न्यूट्रॉन की खोज 1932 ई. में जेम्स चेडविक ने वेरीलियम धातु पर α- कणों से आघात कराकर की।
★★★ प्रत्येक वस्तु जो स्थान घेरती है, जिसका द्रव्यमान होता है एवं जिसे पांच ज्ञानेंद्रियों द्वारा महसूस किया जा सकता है, वह द्रव्य या पदार्थ कहलाता है |
जैसे - हवा,जल,अग्नि,आकाश,पृथ्वी
★★ पदार्थों का वर्गीकरण :
ठोस-
पदार्थ की वह भौतिक अवस्था जिसका आकार एवं आयतन दोनों निश्चित हो, ठोस कहलाता है।
द्रव-
पदार्थ की वह भौतिक अवस्था जिसका आकार अनिश्चित एवं आयतन निश्चित हो 'द्रव' कहलाता है।
गैस-
पदार्थ की वह भौतिक अवस्था जिसका आकार एवं आयतन दोनों अनिश्चित हो 'गैस' कहलाता है।
जैसे - हवा,जल,अग्नि,आकाश,पृथ्वी
★★ पदार्थों का वर्गीकरण :
ठोस-
पदार्थ की वह भौतिक अवस्था जिसका आकार एवं आयतन दोनों निश्चित हो, ठोस कहलाता है।
द्रव-
पदार्थ की वह भौतिक अवस्था जिसका आकार अनिश्चित एवं आयतन निश्चित हो 'द्रव' कहलाता है।
गैस-
पदार्थ की वह भौतिक अवस्था जिसका आकार एवं आयतन दोनों अनिश्चित हो 'गैस' कहलाता है।
1. तत्व का वह छोटा से छोटा भाग है, जो किसी भी रासायनिक अभिक्रिया में भाग ले सकता है परन्तु स्वतंत्र अवस्था में नहीं रह सकता है।
2. भारत के महान ॠषि कणाद के अनुसार सभी पदार्थ अत्यन्त सूक्ष्मकणों से बने हैं, जिसे परमाणु कहा गया है।
3. परमाणुओं का निर्माण प्रोटॉन, न्यूट्रॉन तथा इलेक्ट्रॉन से मिलकर होता है।
4. परमाणुओं का आकार अतिसूक्ष्म व द्रव्यमान बहुत कम होता है।
5. परमाणुओं में हाइड्रोजन सबसे छोटा व हल्का होता है। इसकी त्रिज्या 0.3 x 10-10 मीटर के बराबर होता है।
20 वीं शताब्दी में आधुनिक खोजों के परिणामस्वरूप जे. जे. थॉमसन, रदरफोर्ड, चैडविक आदि वैज्ञानिकों ने यह सिद्ध कर दिया कि परमाणु विभाज्य है तथा मुख्यतः तीन मूल कणों से मिलकर बना है, जिन्हें इलेक्ट्रॉन, प्रोटॉन तथा न्यूट्रॉन कहते हैं।
★★ प्रमुख मूल कणों के अभिलक्षण :
मूल कण प्रतीक आवेश द्रव्यमान (ग्राम) द्रव्यमान (amu) खोजकर्ता
इलेक्ट्रॉन -1e0 -1 9.1095X10-28g 0.0005486 जे.जे.थॉमसन (1897)
प्रोटॉन 1p1 +1 1.6726X10-24g 1.0073335 रदरफोर्ड
न्यूट्रॉन 0n1 0 1.6749X10-24g 1.008724 चैडविक(1932)
2. भारत के महान ॠषि कणाद के अनुसार सभी पदार्थ अत्यन्त सूक्ष्मकणों से बने हैं, जिसे परमाणु कहा गया है।
3. परमाणुओं का निर्माण प्रोटॉन, न्यूट्रॉन तथा इलेक्ट्रॉन से मिलकर होता है।
4. परमाणुओं का आकार अतिसूक्ष्म व द्रव्यमान बहुत कम होता है।
5. परमाणुओं में हाइड्रोजन सबसे छोटा व हल्का होता है। इसकी त्रिज्या 0.3 x 10-10 मीटर के बराबर होता है।
20 वीं शताब्दी में आधुनिक खोजों के परिणामस्वरूप जे. जे. थॉमसन, रदरफोर्ड, चैडविक आदि वैज्ञानिकों ने यह सिद्ध कर दिया कि परमाणु विभाज्य है तथा मुख्यतः तीन मूल कणों से मिलकर बना है, जिन्हें इलेक्ट्रॉन, प्रोटॉन तथा न्यूट्रॉन कहते हैं।
★★ प्रमुख मूल कणों के अभिलक्षण :
मूल कण प्रतीक आवेश द्रव्यमान (ग्राम) द्रव्यमान (amu) खोजकर्ता
इलेक्ट्रॉन -1e0 -1 9.1095X10-28g 0.0005486 जे.जे.थॉमसन (1897)
प्रोटॉन 1p1 +1 1.6726X10-24g 1.0073335 रदरफोर्ड
न्यूट्रॉन 0n1 0 1.6749X10-24g 1.008724 चैडविक(1932)
★★★ किसी तत्व का परमाणु भार वह संख्या है, जो यह प्रदर्शित करता है कि तत्त्व का एक परमाणु, कार्बन-12 के परमाणु के 1/12 भाग द्रव्यमान अथवा हाइड्रोजन के 1.008 भाग द्रव्यमान से कितना गुना भारी है।
परमाणु भार = तत्त्व के परमाणु का द्रव्यमान / कार्बन परमाणु का बारहवां भाग
प्रकृत्ति में पाये जाने वाले अधिकांश तत्त्व अपने समस्थानिकों के मिश्रण के रूप में होते हैं अतः परमाणु भार प्रायः भिन्नात्मक होते हैं।
परमाणु भार = तत्त्व के परमाणु का द्रव्यमान / कार्बन परमाणु का बारहवां भाग
प्रकृत्ति में पाये जाने वाले अधिकांश तत्त्व अपने समस्थानिकों के मिश्रण के रूप में होते हैं अतः परमाणु भार प्रायः भिन्नात्मक होते हैं।
★★★ परमाणु क्रमांक को ही परमाणु संख्या कहा जाता है।
★★★ खोज- ई गोल्डस्टीन
प्रोटॉन एक धनात्मक विद्युत आवेशयुक्त मूलभूत कण है, जो परमाणु के नाभिक में न्यूट्रॉन के साथ पाया जाता हैं। इसे p प्रतिक चिन्ह द्वारा दर्शाया जाता है।
1. सन 1886 गोल्डस्टीन ने विसर्जन नलिका में छिद्रमय कैथोड प्रयुक्त किया |
2. प्रोटोन का द्रव्यमान इलेक्ट्रॉन से 1837 गुना अधिक होता है |
3. प्रोटोन का द्रव्यमान 1.6726 × 10-27 कि.ग्रा होता है |
प्रोटॉन एक धनात्मक विद्युत आवेशयुक्त मूलभूत कण है, जो परमाणु के नाभिक में न्यूट्रॉन के साथ पाया जाता हैं। इसे p प्रतिक चिन्ह द्वारा दर्शाया जाता है।
1. सन 1886 गोल्डस्टीन ने विसर्जन नलिका में छिद्रमय कैथोड प्रयुक्त किया |
2. प्रोटोन का द्रव्यमान इलेक्ट्रॉन से 1837 गुना अधिक होता है |
3. प्रोटोन का द्रव्यमान 1.6726 × 10-27 कि.ग्रा होता है |
★★★ पदार्थ की वह भौतिक अवस्था जिसका आकार एवं आयतन दोनों निश्चित हो, ठोस कहलाता है। जैसे लोहे की छड़, लकड़ी की कुर्सी, बर्फ़ का टुकड़ा आदि।
★★★ वे पदार्थ जो गरम करने पर क्रमश: नरम हो जाते हैं और फिर धीरे-धीरे उनकी श्यानता इतनी कम हो जाती है कि वे चल्य बनकर द्रव में परिवर्तित हो जाते हैं, अकेलास ठोस कहलाते है |
★★★ मोल संकल्पना के अनुसार किसी परमाणु अथवा अणु के एक ग्राम परमाण्विक अथवा आण्विय द्रव्यमान को एक मोल कहा जाता है। एक मोल में 6.022 x 1023 परमाणु अथवा अणु होते हैं। इस प्रकार,
1 मोल O (ऑक्सीजन) परमाणु = O(ऑक्सीजन) परमाणुओं का
1 ग्राम परमाण्विक द्रव्यमान = 16 ग्राम
1 मोल O2 = O2 अणु का 1 ग्राम आण्विक
द्रव्यमान = 32 ग्राम
किसी पदार्थ की वह मात्रा, जिसमें उस पदार्थ के 6.022 x 1023 कण होते हैं, पदार्थ का एक मोल कहलाता है।
1 मोल O (ऑक्सीजन) परमाणु = O(ऑक्सीजन) परमाणुओं का
1 ग्राम परमाण्विक द्रव्यमान = 16 ग्राम
1 मोल O2 = O2 अणु का 1 ग्राम आण्विक
द्रव्यमान = 32 ग्राम
किसी पदार्थ की वह मात्रा, जिसमें उस पदार्थ के 6.022 x 1023 कण होते हैं, पदार्थ का एक मोल कहलाता है।
★★★ ऐसा मिश्रण जिस में सभी अवयव भिन्न-भिन्न अवस्था एवं प्रावस्था में होते हैं ,उसे विषमांगी मिश्रण कहते हैं |
जैसे- दूध, बादल, धुँआ आदि |
जैसे- दूध, बादल, धुँआ आदि |
★★★ जिन आयनों और परमाणुओं के इलेक्ट्रॉनों की संख्या समान होती है, समइलेक्ट्रॉनिक कहते हैं। जैसे- Ne,etc समइलेक़्ट्रॉनिक हैं।
★★★ परमाणुओं में न्यूट्रॉनों की संख्या समान होती है। जैसे- 1H3 और 2He4 इन दोनों परमाणुओं के नाभिक में न्यूट्रॉनों की संख्या दो-दो है
1. भिन्न-भिन्न तत्वों के वे परमाणु जिनके परमाणु क्रमांक भिन्न-भिन्न परन्तु द्रव्यमान संख्या समान होती है, समभारिक कहलाते हैं।
2. समभारिकों में प्रोटॉनों की संख्यायें भिन्न-भिन्न होती हैं परन्तु न्यूट्रॉनों व प्रोटॉनों की संख्याओं का योग समान होता है।
3. कार्बन तथा नाइट्रोजन की द्रव्यमान संख्या एक ही 14 हैं। अतः ये दोनों तत्त्व समभारिक हैं।
4. इसी प्रकार ऑर्गन की द्रव्यमान संख्या 40 और कैल्सियम की द्रव्यमान संख्या भी 40 होने के कारण दोनों ही युग्म समभारिक हैं।
5. समभारिक के अन्य उदहारण :- 18Ar40, 18K40, 20Ca40 ।
2. समभारिकों में प्रोटॉनों की संख्यायें भिन्न-भिन्न होती हैं परन्तु न्यूट्रॉनों व प्रोटॉनों की संख्याओं का योग समान होता है।
3. कार्बन तथा नाइट्रोजन की द्रव्यमान संख्या एक ही 14 हैं। अतः ये दोनों तत्त्व समभारिक हैं।
4. इसी प्रकार ऑर्गन की द्रव्यमान संख्या 40 और कैल्सियम की द्रव्यमान संख्या भी 40 होने के कारण दोनों ही युग्म समभारिक हैं।
5. समभारिक के अन्य उदहारण :- 18Ar40, 18K40, 20Ca40 ।
★★★ किसी तत्व के वे परमाणु जिनके परमाणु क्रमांक समान व परमाणु भार भिन्न-भिन्न होते हैं, समस्थानिक कहलाते हैं।
समस्थानिकों में प्रोटॉन की संख्या समान होती है, किन्तु न्यूट्रॉनों की संख्या भिन्न-भिन्न होती है।
★★ जैसे- 1H1, 1H2 तथा 1H3 से प्रदर्शित करते हैं:
1. संख्या प्रोटियम (1H1) ड्योटेरियम (1H2) ट्रिटियम (1H3)
2. परमाणु संख्या 1 1 1
3. न्यूट्रॉन संख्या 0 1 2
4. द्रव्यमान संख्या 1 2 3
सबसे अधिक समस्थानिकों वाला तत्व पोलोनियम है।
समस्थानिकों में प्रोटॉन की संख्या समान होती है, किन्तु न्यूट्रॉनों की संख्या भिन्न-भिन्न होती है।
★★ जैसे- 1H1, 1H2 तथा 1H3 से प्रदर्शित करते हैं:
1. संख्या प्रोटियम (1H1) ड्योटेरियम (1H2) ट्रिटियम (1H3)
2. परमाणु संख्या 1 1 1
3. न्यूट्रॉन संख्या 0 1 2
4. द्रव्यमान संख्या 1 2 3
सबसे अधिक समस्थानिकों वाला तत्व पोलोनियम है।
★★★ ऐसा मिश्रण जिनमें सभी अवयव एक ही अवस्था एवं प्रावस्था में होते हैं, उसे समांगी मिश्रण कहते हैं |
जैसे- वायु, विलियन आदि |
जैसे- वायु, विलियन आदि |
1. अनिश्चितता सिद्धांत (की व्युत्पत्ति हाइजनबर्ग ने क्वांटम यांत्रिकी के व्यापक नियमों से सन 1927 ई. में की थी।
2. इस सिद्धांत के अनुसार किसी गतिमान कण की स्थिति और संवेग को एक साथ एकदम ठीक-ठीक नहीं मापा जा सकता।
3. यदि एक राशि अधिक शुद्धता से मापी जाएगी तो दूसरी राशि के मापन में उतनी ही अशुद्धता बढ़ जाएगी, चाहे इसे मापने में कितनी ही कुशलता क्यों न हो।
4. इन राशियों की अशुद्धियों का गुणनफल 'प्लांक नियतांक' से कम नहीं हो सकता है।
5. यदि किसी गतिमान कण के स्थिति निर्दशांक x के मापन में D x की त्रुटि (या अनिश्चितता) और x अक्ष की दिशा में उसके संवेग p के मापने में D p की त्रुटि हो तो इस सिद्धांत के अनुसार
D x ´ D p ³ h
6. इसमें h प्लांक का नियतांक है और चिह्न ³ का तात्पर्य यह है कि अनिश्तिताओं का गुणनफल दाहिनी ओर की राशि h से कम नहीं हो सकता है। इससे प्रकट होता है कि किसी कण का कोई निर्दशांक और उसके संवेग का तत्संगन संघटक दोनों एक साथ यथार्थता पूर्वक नहीं जाने जा सकते और यदि इन दोनों संयुग्मी राशियों में से एक की अनिश्चितता बहुत कम हो तो दूसरी की बहुत अधिक होती है।
2. इस सिद्धांत के अनुसार किसी गतिमान कण की स्थिति और संवेग को एक साथ एकदम ठीक-ठीक नहीं मापा जा सकता।
3. यदि एक राशि अधिक शुद्धता से मापी जाएगी तो दूसरी राशि के मापन में उतनी ही अशुद्धता बढ़ जाएगी, चाहे इसे मापने में कितनी ही कुशलता क्यों न हो।
4. इन राशियों की अशुद्धियों का गुणनफल 'प्लांक नियतांक' से कम नहीं हो सकता है।
5. यदि किसी गतिमान कण के स्थिति निर्दशांक x के मापन में D x की त्रुटि (या अनिश्चितता) और x अक्ष की दिशा में उसके संवेग p के मापने में D p की त्रुटि हो तो इस सिद्धांत के अनुसार
D x ´ D p ³ h
6. इसमें h प्लांक का नियतांक है और चिह्न ³ का तात्पर्य यह है कि अनिश्तिताओं का गुणनफल दाहिनी ओर की राशि h से कम नहीं हो सकता है। इससे प्रकट होता है कि किसी कण का कोई निर्दशांक और उसके संवेग का तत्संगन संघटक दोनों एक साथ यथार्थता पूर्वक नहीं जाने जा सकते और यदि इन दोनों संयुग्मी राशियों में से एक की अनिश्चितता बहुत कम हो तो दूसरी की बहुत अधिक होती है।
★★★ पाऊली का अपवर्जन नियम 1925 में वुल्फगॅन्ग पाउली ने प्रतिपादित किया था। इसके अनुसार एक दिए गए परमाणु में किन्हीं दो इलेक्ट्रॉनों के लिए चारों क्वाण्टम संख्याओं का मान समान नहीं हो सकता। अतः यदि दो इलेक्ट्रॉनों के n, l और m के मान एक ही हो, तो उनका चक्रण विपरीत होगा।
★★★ दो या दो से अधिक तत्वों के परमाणु एक निश्चित अनुपात में रासायनिक संयोग कर जो पदार्थ बनाते हैं, उसे यौगिक कहते हैं |
जैसे- नमक, जल, सल्फ्यूरिक अम्ल आदि |
जैसे- नमक, जल, सल्फ्यूरिक अम्ल आदि |
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