Extremely Useful for the students studying in Class 11 and 12 also for those who preparing for the competitive exam like JEE main , JEE Advance , BITSAT ,MHTCET , EAMCET , KCET , UPTU (UPSEE), WBJEE , VITEEE , CBSE PMT , AIIMS , AFMC ,CPMT and all other Engineering and Medical Entrance Exam
रासायनिक यौगिक
★★★ नमक एक प्रसिद्ध क्षार पदार्थ जो मुख्यतः खारे जल से तैयार किया जाता है और कहीं-कहीं चट्टानों के रूप में भी मिलता है। रासायनिक दृष्टि से यह सोडियम क्लोराइड (NaCl) है जिसका क्रिस्टल पारदर्शक एवं घनाकार होता है। शुंद्ध नमक रंगहीन होता है, किंतु लोहमय अपद्रव्यों के कारण इसका रंग पीला या लाल हो जाता है। इसका द्रवणांक 804° सें., आपेक्षिक घनत्व 2.16, वर्तनांक 10.542 तथा कठोरता 2.5 है। यह ठंडे जल में सुगमता से घुल जाता है और गरम जल में इसकी विलेयता कुछ बढ़ जाती है। हिम के साथ नमक को मिला देने से मिश्रण का ताप- 21° सें. तक गिर सकता है। भौमिकी में लवण को हैलाइट कहते हैं।
★★★ "जल पृथ्वी पर पाया जाने वाला प्रकृति द्वारा प्रदत्त एक तरल पदार्थ है, जो सभी प्राणियों के जीवन का भौतिक आधार है। इसके बिना पृथ्वी पर जीवन की कल्पना नहीं की जा सकती। यह एक आम रासायनिक पदार्थ है, जिसका अणु दो हाइड्रोजन परमाणु और एक ऑक्सीजन परमाणु से बना होता है। विज्ञान में जल का रासायनिक सूत्र 'H2O' होता है।
★★ भौतिक तथा रासायनिक गुण:
जल के कुछ महत्त्वपूर्ण भौतिक तथा रासायनिक गुण निम्नलिखित हैं-
1. जल पारदर्शी होता है, इसलिए जलीय पौधे इसमें जीवित रह सकते हैं, क्योंकि उन्हें सूर्य की रोशनी मिलती रहती है। केवल शक्तिशाली पराबैंगनी किरणों का ही कुछ हद तक यह अवशोषण कर पाता है।
2. ऑक्सीजन की वैद्युत ऋणात्मकता हाइड्रोजन की तुलना में उच्च होती है, जो जल को एक ध्रुवीय अणु बनाती है। ऑक्सीजन कुछ ऋणावेशित होती है, जबकि हाइड्रोजन कुछ धनावेशित होती है, जो अणु को द्वि-ध्रुवीय बनाती है। प्रत्येक अणु के विभिन्न द्वि-ध्रुवों के बीच पारस्परिक संपर्क एक शुद्ध आकर्षण बल को जन्म देता है, जो जल को उच्च पृष्ट तनाव प्रदान करता है।
3. जल का क्वथनांक सीधे बैरोमीटर के दबाव से संबंधित होता है। उदाहरण के लिए, एवरेस्ट के शीर्ष पर, जल 68°C पर उबल जाता है, जबकि समुद्र तल पर यह 100°C उबलता है। इसके विपरीत गहरे समुद्र मे भू-उष्मीय छिद्रों के निकट जल का तापमान सैकड़ों डिग्री तक पहुँच सकता है और इसके बावजूद यह द्रवावस्था मे रहता है।
4. अपनी ध्रुवीय प्रकृति के कारण जल मे उच्च आसंजक गुण भी होते हैं।
5. जल एक बहुत प्रबल विलायक है, जिसे सर्व-विलायक भी कहा जाता है। वे पदार्थ जो जल मे भलि भाँति घुल जाते है, जैसे- लवण, शर्करा, अम्ल, क्षार, और कुछ गैसें विशेष रूप से ऑक्सीजन, कार्बन डाइऑक्साइड उन्हें हाइड्रोफिलिक कहा जाता है, जबकि दूसरी ओर जो पदार्थ अच्छी तरह से जल के साथ मिश्रण नहीं बना पाते हैं, जैसे- वसा और तेल, हाइड्रोफोबिक कहलाते हैं।
6. शुद्ध जल की विद्युत चालकता कम होती है, लेकिन जब इसमें आयनिक पदार्थ सोडियम क्लोराइड मिला देते हैं, तब यह आश्चर्यजनक रूप से बढ़ जाती है।
7. जल को हाइड्रोजन और ऑक्सीजन में विद्युत अपघटन द्वारा विभाजित किया जा सकता है।
8. जल एक ईंधन नहीं है। यह हाइड्रोजन के दहन का अंतिम उत्पाद है।
9. जल को विद्युत अपघटन द्वारा वापस हाइड्रोजन और ऑक्सीजन में विभाजन करने के लिए आवश्यक ऊर्जा, हाइड्रोजन और ऑक्सीजन को पुनर्संयोजन से उत्सर्जित ऊर्जा से अधिक होती है।"
★★ भौतिक तथा रासायनिक गुण:
जल के कुछ महत्त्वपूर्ण भौतिक तथा रासायनिक गुण निम्नलिखित हैं-
1. जल पारदर्शी होता है, इसलिए जलीय पौधे इसमें जीवित रह सकते हैं, क्योंकि उन्हें सूर्य की रोशनी मिलती रहती है। केवल शक्तिशाली पराबैंगनी किरणों का ही कुछ हद तक यह अवशोषण कर पाता है।
2. ऑक्सीजन की वैद्युत ऋणात्मकता हाइड्रोजन की तुलना में उच्च होती है, जो जल को एक ध्रुवीय अणु बनाती है। ऑक्सीजन कुछ ऋणावेशित होती है, जबकि हाइड्रोजन कुछ धनावेशित होती है, जो अणु को द्वि-ध्रुवीय बनाती है। प्रत्येक अणु के विभिन्न द्वि-ध्रुवों के बीच पारस्परिक संपर्क एक शुद्ध आकर्षण बल को जन्म देता है, जो जल को उच्च पृष्ट तनाव प्रदान करता है।
3. जल का क्वथनांक सीधे बैरोमीटर के दबाव से संबंधित होता है। उदाहरण के लिए, एवरेस्ट के शीर्ष पर, जल 68°C पर उबल जाता है, जबकि समुद्र तल पर यह 100°C उबलता है। इसके विपरीत गहरे समुद्र मे भू-उष्मीय छिद्रों के निकट जल का तापमान सैकड़ों डिग्री तक पहुँच सकता है और इसके बावजूद यह द्रवावस्था मे रहता है।
4. अपनी ध्रुवीय प्रकृति के कारण जल मे उच्च आसंजक गुण भी होते हैं।
5. जल एक बहुत प्रबल विलायक है, जिसे सर्व-विलायक भी कहा जाता है। वे पदार्थ जो जल मे भलि भाँति घुल जाते है, जैसे- लवण, शर्करा, अम्ल, क्षार, और कुछ गैसें विशेष रूप से ऑक्सीजन, कार्बन डाइऑक्साइड उन्हें हाइड्रोफिलिक कहा जाता है, जबकि दूसरी ओर जो पदार्थ अच्छी तरह से जल के साथ मिश्रण नहीं बना पाते हैं, जैसे- वसा और तेल, हाइड्रोफोबिक कहलाते हैं।
6. शुद्ध जल की विद्युत चालकता कम होती है, लेकिन जब इसमें आयनिक पदार्थ सोडियम क्लोराइड मिला देते हैं, तब यह आश्चर्यजनक रूप से बढ़ जाती है।
7. जल को हाइड्रोजन और ऑक्सीजन में विद्युत अपघटन द्वारा विभाजित किया जा सकता है।
8. जल एक ईंधन नहीं है। यह हाइड्रोजन के दहन का अंतिम उत्पाद है।
9. जल को विद्युत अपघटन द्वारा वापस हाइड्रोजन और ऑक्सीजन में विभाजन करने के लिए आवश्यक ऊर्जा, हाइड्रोजन और ऑक्सीजन को पुनर्संयोजन से उत्सर्जित ऊर्जा से अधिक होती है।"
★★★ शक्कर, 'शर्करा' या 'चीनी'[क्रिस्टलीय भोज्य पदार्थ है, जिसमें प्रमुखत: सुक्रोज, लैक्टोज एवं फ्रक्टोज उपस्थित रहता है। चीनी मुख्यत: चुकन्दर तथा गन्ने से बनाई जाती है। मधु, फलों तथा कई अन्य स्रोतों से भी इसका निर्माण किया जाता है। विश्व में प्रति व्यक्ति चीनी की खपत ब्राजील में सर्वाधिक है। भारतीय अर्थव्यवस्था में चीनी उद्योग का बहुत बड़ा योगदान है।
1. चीनी को मारवाड़ी भाषा में 'खोड' अथवा 'मुरस' कहा जाता है। इसकी अत्यधिक मात्रा खाने से अलग-अलग प्रकार का मधुमेह होने की घटनाएँ अधिक देखी गयीं हैं। इसके अतिरिक्त अत्यधिक मोटापा और दाँतों का क्षरण भी होता है। भारत में एक देश के रूप में सर्वाधिक चीनी का खपत होती है।
2. चीनी उद्योग ग्रामीण भारत में स्थित कृषि पर आधारित सबसे बड़ा उद्योग है। लगभग पाँच करोड़ गन्ना किसान, उनके आश्रित तथा काफ़ी अधिक संख्या में खेतिहर मज़दूर गन्ने की खेती, कटाई एवं संबंधित गतिविधियों में लगे हैं, जो कि ग्रामीण जनसंख्या के 7.5 प्रतिशत हैं।
3. भारत में चीनी उद्योग ग्रामीण संसाधनों को जुटाकर रोजगार एवं उच्चतर आय, परिवहन एवं संचार सुविधाओं के सृजन द्वारा ग्रामीण क्षेत्रों में सामाजिक-आर्थिक विकास के लिए केन्द्रीय बिंदु रहा है। इसके अतिरिक्त कई चीनी फैक्ट्रियों ने ग्रामीण आबादी के लाभ के लिए स्कूल, कॉलेज, चिकित्सा केन्द्र तथा अस्पताल स्थापित किए हैं।
1. चीनी को मारवाड़ी भाषा में 'खोड' अथवा 'मुरस' कहा जाता है। इसकी अत्यधिक मात्रा खाने से अलग-अलग प्रकार का मधुमेह होने की घटनाएँ अधिक देखी गयीं हैं। इसके अतिरिक्त अत्यधिक मोटापा और दाँतों का क्षरण भी होता है। भारत में एक देश के रूप में सर्वाधिक चीनी का खपत होती है।
2. चीनी उद्योग ग्रामीण भारत में स्थित कृषि पर आधारित सबसे बड़ा उद्योग है। लगभग पाँच करोड़ गन्ना किसान, उनके आश्रित तथा काफ़ी अधिक संख्या में खेतिहर मज़दूर गन्ने की खेती, कटाई एवं संबंधित गतिविधियों में लगे हैं, जो कि ग्रामीण जनसंख्या के 7.5 प्रतिशत हैं।
3. भारत में चीनी उद्योग ग्रामीण संसाधनों को जुटाकर रोजगार एवं उच्चतर आय, परिवहन एवं संचार सुविधाओं के सृजन द्वारा ग्रामीण क्षेत्रों में सामाजिक-आर्थिक विकास के लिए केन्द्रीय बिंदु रहा है। इसके अतिरिक्त कई चीनी फैक्ट्रियों ने ग्रामीण आबादी के लाभ के लिए स्कूल, कॉलेज, चिकित्सा केन्द्र तथा अस्पताल स्थापित किए हैं।
★★★ "सिलिका अथवा 'सिलिकॉन डाईऑक्साइड' (Silica, SiO2) ऑक्सीजन और सिलिकन से योग से बना होता है। इसके खनिज आग्नेय, जलज तथा रूपांतरित तीनों प्रकार की शिलाओं में मिलते हैं, लेकिन इनके आर्थिक निक्षेप पैगमेटाइट शिलाओं तथा बालू में मिलते हैं।
★★ रूप:
सिलिका निम्नलिखित खनिजों के रूप में पाया जाता है-
1. 'गुप्त क्रिस्टलीय', जैसे- चाल्सीडानी, ऐगेट और फ्लिंट
2. 'क्रिस्टलीय', जैसे- क्वार्ट्ज
3. 'अक्रिस्टली', जैसे- ओपल
★★ गुण:
सिलिका षड्भुजीय प्रणाली का क्रिस्टल बनता है। साधारणत: यह रंगहीन होता है, लेकिन अपद्रव्यों के विद्यमान होने पर यह भिन्न-भिन्न रंगों में मिलता है। इसकी चमक काँचाभ तथा टूट शंखाभ होती है। यह काँच को खुरच सकता है। सिलिका वर्ग के अन्य खनिजों के गुण भी क्वार्ट्ज से मिलते-जुलते हैं।
★★ उपयोग:
सिलिका का उपयोग भिन्न-भिन्न रूपों में होता है। बालू में विद्यमान छोटे-छोटे कण काँच तथा धात्विक उद्योगों, विशेषत: भट्ठियों के निर्माण में काम आते हैं। सिरेमिक सामानों के निर्माण में सिलिका काम आता है। तापरोधी ईंटें इससे बनती हैं। ताप परिवर्तन को यह सरलता से पूरक के रूप में सहन कर लेता है। यह खनिज, रंग तथा काग़ज़ उद्योग में काम आता है। शुद्ध, रंगहीन, क्वार्ट्ज क्रिस्टल से प्रकाश यंत्र तथा रासायनिक उपकरण बनाए जाते हैं। सिलिका से बनी बालू शिलाएँ मकान बनाने के पत्थरों के रूप में प्रयोग की जाती हैं।"
★★ रूप:
सिलिका निम्नलिखित खनिजों के रूप में पाया जाता है-
1. 'गुप्त क्रिस्टलीय', जैसे- चाल्सीडानी, ऐगेट और फ्लिंट
2. 'क्रिस्टलीय', जैसे- क्वार्ट्ज
3. 'अक्रिस्टली', जैसे- ओपल
★★ गुण:
सिलिका षड्भुजीय प्रणाली का क्रिस्टल बनता है। साधारणत: यह रंगहीन होता है, लेकिन अपद्रव्यों के विद्यमान होने पर यह भिन्न-भिन्न रंगों में मिलता है। इसकी चमक काँचाभ तथा टूट शंखाभ होती है। यह काँच को खुरच सकता है। सिलिका वर्ग के अन्य खनिजों के गुण भी क्वार्ट्ज से मिलते-जुलते हैं।
★★ उपयोग:
सिलिका का उपयोग भिन्न-भिन्न रूपों में होता है। बालू में विद्यमान छोटे-छोटे कण काँच तथा धात्विक उद्योगों, विशेषत: भट्ठियों के निर्माण में काम आते हैं। सिरेमिक सामानों के निर्माण में सिलिका काम आता है। तापरोधी ईंटें इससे बनती हैं। ताप परिवर्तन को यह सरलता से पूरक के रूप में सहन कर लेता है। यह खनिज, रंग तथा काग़ज़ उद्योग में काम आता है। शुद्ध, रंगहीन, क्वार्ट्ज क्रिस्टल से प्रकाश यंत्र तथा रासायनिक उपकरण बनाए जाते हैं। सिलिका से बनी बालू शिलाएँ मकान बनाने के पत्थरों के रूप में प्रयोग की जाती हैं।"
★★★ "एक प्रकार का ईंधन है, जो पेट्रोलियम को कई चरणों में ठंडा करने के बाद बनता है। इसका उपयोग वाहनों, मशीनों, संयत्रों आदि को चलाने के लिए ईंधन के रूप में किया जाता है।
1. इसका नाम जर्मन आविष्कारक रुडोल्फ़ डीज़ल के नाम पर पड़ा है, जिसने 1892 ई. में डीज़ल इंजन लिए पेटेंट लिया।
2. डीज़ल में प्रति लीटर पेट्रोल के बराबर रासायनिक ऊर्जा होती है।
3. इसके द्वारा चालित इंजनों में नाट्रोजन ऑक्साईड तथा कालिख के कण अधिक होते हैं, जिसकी वजह से प्रदूषण को नियंत्रित करना मुश्किल होता है। इसलिए इसके स्थान पर जैविक पदार्थों से बने तेल, जिन्हें 'जैव डीज़ल' कहा जाता है, का इस्तेमाल शुरू हुआ है। डीज़ल शब्द का इस्तेमाल इस विस्थापित तेल के लिए भी होता है।
4. भारत में इस पर पेट्रोल के मुकाबले कम कर लिया जाता है, जिसकी वजह से ये पेट्रोल से सस्ता होता है।
5. डीज़ल सामान्यतः द्रव रूप में पाया जाता है, जिसमें कई उदप्रांगार रहते हैं। इस द्रव का घनत्त्व 820 ग्रान प्रति लीटर, यानि लगभग 820 किग्रा/मी3 होता है तथा इसका वाष्पीकरण 140-250 डिग्री सेन्टीग्रेड पर होता है।
6. इसकी रचना कई उदप्रांगार के मिश्रण से होती है, जिसमें खुली कड़ी तथा सुगंधित गोल कड़ी के कार्बन परमाणुओं से बने उदप्रांगार शामिल हैं। इसका औसत रासायनिक सूत्र C12H23 माना जाता है।"
1. इसका नाम जर्मन आविष्कारक रुडोल्फ़ डीज़ल के नाम पर पड़ा है, जिसने 1892 ई. में डीज़ल इंजन लिए पेटेंट लिया।
2. डीज़ल में प्रति लीटर पेट्रोल के बराबर रासायनिक ऊर्जा होती है।
3. इसके द्वारा चालित इंजनों में नाट्रोजन ऑक्साईड तथा कालिख के कण अधिक होते हैं, जिसकी वजह से प्रदूषण को नियंत्रित करना मुश्किल होता है। इसलिए इसके स्थान पर जैविक पदार्थों से बने तेल, जिन्हें 'जैव डीज़ल' कहा जाता है, का इस्तेमाल शुरू हुआ है। डीज़ल शब्द का इस्तेमाल इस विस्थापित तेल के लिए भी होता है।
4. भारत में इस पर पेट्रोल के मुकाबले कम कर लिया जाता है, जिसकी वजह से ये पेट्रोल से सस्ता होता है।
5. डीज़ल सामान्यतः द्रव रूप में पाया जाता है, जिसमें कई उदप्रांगार रहते हैं। इस द्रव का घनत्त्व 820 ग्रान प्रति लीटर, यानि लगभग 820 किग्रा/मी3 होता है तथा इसका वाष्पीकरण 140-250 डिग्री सेन्टीग्रेड पर होता है।
6. इसकी रचना कई उदप्रांगार के मिश्रण से होती है, जिसमें खुली कड़ी तथा सुगंधित गोल कड़ी के कार्बन परमाणुओं से बने उदप्रांगार शामिल हैं। इसका औसत रासायनिक सूत्र C12H23 माना जाता है।"
★★★ "एक सफ़ेद रंग का कार्बनिक यौगिक है, जिसका रासायनिक सूत्र (NH2)2CO होता है। कार्बनिक रसायन के क्षेत्र में इसे 'कार्बामाइड' भी कहा जाता है। यह एक रंगहीन, गन्धहीन, रवेदार जहरीला ठोस पदार्थ है। यह जल में अति विलेय है। यह स्तनपायी और सरीसृप प्राणियों के मूत्र में पाया जाता है। कृषि में नाइट्रोजन युक्त रासायनिक खाद के रूप में इसका उपयोग होता है।
★★ उत्पादन:
यूरिया पानी में अति घुलनशील है और इसमें 46 प्रतिशत नाइट्रोजन होती है। रसायनज्ञों द्वारा संश्लेलषित यह पहला आर्गेनिक मिश्रण है। यह उपलब्धि 18वीं सदी के शुरूआत में हासिल की गई थी। इसे प्रिल्ड के साथ-साथ दानेदार रूप में उत्पारदित किया जाता है। बड़े पैमाने पर यूरिया का उत्पादन द्रव अमोनिया तथा द्रव कार्बन डाई-आक्साइड की प्रतिक्रिया से होता है।
★★ उपयोग:
1. यूरिया का उपयोग मिट्टी की उर्वरा शक्ति बढ़ाने में होता है।
2. इसका प्रयोग वाहनों के प्रदूषण नियंत्रक के रूप में भी किया जाता है।
3. यूरिया-फार्मल्डिहाइड, रेंजिन, प्लास्टिक एवं हाइड्राजिन बनाने में भी इसका उपयोग किया जाता है।
4. इससे यूरिया-स्टीबामिन नामक काला-जार की दवा बड़े पैमाने पर बनाई जाती है।
5. वेरोनल नामक नींद की दवा बनाने में यूरिया का उपयोग किया जाता है।
6. सेडेटिव के रूप में उपयोग होने वाली दवाओं के बनाने में भी इसका उपयोग किया जाता है।"
★★ उत्पादन:
यूरिया पानी में अति घुलनशील है और इसमें 46 प्रतिशत नाइट्रोजन होती है। रसायनज्ञों द्वारा संश्लेलषित यह पहला आर्गेनिक मिश्रण है। यह उपलब्धि 18वीं सदी के शुरूआत में हासिल की गई थी। इसे प्रिल्ड के साथ-साथ दानेदार रूप में उत्पारदित किया जाता है। बड़े पैमाने पर यूरिया का उत्पादन द्रव अमोनिया तथा द्रव कार्बन डाई-आक्साइड की प्रतिक्रिया से होता है।
★★ उपयोग:
1. यूरिया का उपयोग मिट्टी की उर्वरा शक्ति बढ़ाने में होता है।
2. इसका प्रयोग वाहनों के प्रदूषण नियंत्रक के रूप में भी किया जाता है।
3. यूरिया-फार्मल्डिहाइड, रेंजिन, प्लास्टिक एवं हाइड्राजिन बनाने में भी इसका उपयोग किया जाता है।
4. इससे यूरिया-स्टीबामिन नामक काला-जार की दवा बड़े पैमाने पर बनाई जाती है।
5. वेरोनल नामक नींद की दवा बनाने में यूरिया का उपयोग किया जाता है।
6. सेडेटिव के रूप में उपयोग होने वाली दवाओं के बनाने में भी इसका उपयोग किया जाता है।"
★★★ "एक रासायनिक यौगिक है, जो विभिन्न जैव रासायनिक प्रक्रमों में प्रमुख भूमिका निभाता है।
1. लैक्टिक अम्ल एक कार्बोक्सिलिक अम्ल है। इसका अणुसूत्र C3H6O3 है।
2. हमें थकान का अनुभव उस समय होता है, जब मांसपेशियों में लैक्टिक अम्ल एकत्र होने लगता है।"
1. लैक्टिक अम्ल एक कार्बोक्सिलिक अम्ल है। इसका अणुसूत्र C3H6O3 है।
2. हमें थकान का अनुभव उस समय होता है, जब मांसपेशियों में लैक्टिक अम्ल एकत्र होने लगता है।"
★★★ कैल्सियम हाइपोक्लोराइट रसायन विज्ञान में एक अकार्बनिक यौगिक है। इसका रासायनिक सूत्र Ca(OCl)Cl है। इसे 'विरजंक चूर्ण' (ब्लीचिंग पाउडर) भी कहा जाता है। यह सफ़ेद रंग का एक ठोस है, जिसमें से क्लोरीन की काफ़ी तेज़ गंध निकलती रहती है। जल के शुद्धिकरण में इसका उपयोग किया जाता है। क्लोरोफ़ॉर्म तथा क्लोरीन के निर्माण में भी इसका प्रयोग किया जाता है।
★★★ एक रासायनिक यौगिक है। यह अल्केन श्रेणी का प्रथम सदस्य और प्राकृतिक गैस में भी शामिल रहता है। यह सबसे साधारण हाइड्रोकार्बन है, जिसका रासायनिक सूत्र CH4 है।
★★★ एक हाइड्रोकार्बन है। यह एक अल्केन है, जिसका रासायनिक सूत्र C4H10 है।
★★★ एक हाइड्रोकार्बन है, जिसका सूत्र C6H6 है। कोयले के शुष्क आसवन से अलकतरा तथा अलकतरे के प्रभाजी आसवन से धूपेन्य (बेंजीन) बड़ी मात्रा में तैयार होता है।
★★ खोज:
प्रदीपन गैस से प्राप्त तेल से प्रसिद्ध वैज्ञानिक फैराडे ने 1825 ई. में सर्वप्रथम बेंजीन प्राप्त किया था। मिटशरले ने 1834 ई. में बेंज़ोइक अम्ल से इसे प्राप्त किया और इसका नाम 'धूपेन्य' रखा। अलकतरे में इसकी उपस्थिति का पता पहले पहल 1845 ई. में हॉफमैन ने लगाया था। जर्मनी में बेंजीन को बेंज़ोल कहते हैं।
★★ गुण:
1. बेंजीन प्रांगार और उदजन का एक यौगिक (हाइड्रोकार्बन) है।
2. यह वर्णहीन और प्रबल अपवर्तक द्रव है। इसका क्वथनांक 80 डिग्री सेंटीग्रेट, ठोस बनने का ताप 5.5 डिग्री सेंटीग्रेट और घनत्व 0 डिग्री सेंटीग्रेट पर 0.899 है।
3. इसकी गंध ऐरोमैटिक और स्वाद विशिष्ट होता है।
4. जल में यह बड़ा अल्प विलेय, सुषव में अधिक विलेय तथा ईथर और कार्बन डाइसल्फाइड में सब अनुपातों में विलेय है।
5. विलायक के रूप में रबड़, गोंद, वसा, गंधक और रेज़िन के घुलाने में प्रचुरता से प्रयुक्त होता है।
6. जलते समय इससे धुंआँ निकलता है। रसायनत: यह सक्रिय होता है।
★★ संरचना:
बेंजीन में छ: कार्बन परमाणु और छ: हाइड्रोजन परमाणु होते हैं, अत: इसका अणुसूत्र C6H6 है। केकूले ने 1865 ई. में पहले सिद्ध किया कि इसके छ: कार्बन परमाणु एक वलय के रूप में विद्यमान हैं, जिसको धूपेन्य वलय की संज्ञा दी गई। प्रत्येक कार्बन परमाणु एक बंध से हाइड्रोजन से और दो से अन्य निकटवर्ती कार्बन परमाणुओं से संबद्ध रहता है। कार्बन का चौथा बंध युग्म बंध के रूप में उपस्थित माना गया है। ऐसे संरचना सूत्र से बेंजीन के गुणों की व्याख्या बड़ी सरलता से हो जाती है।
★★ खोज:
प्रदीपन गैस से प्राप्त तेल से प्रसिद्ध वैज्ञानिक फैराडे ने 1825 ई. में सर्वप्रथम बेंजीन प्राप्त किया था। मिटशरले ने 1834 ई. में बेंज़ोइक अम्ल से इसे प्राप्त किया और इसका नाम 'धूपेन्य' रखा। अलकतरे में इसकी उपस्थिति का पता पहले पहल 1845 ई. में हॉफमैन ने लगाया था। जर्मनी में बेंजीन को बेंज़ोल कहते हैं।
★★ गुण:
1. बेंजीन प्रांगार और उदजन का एक यौगिक (हाइड्रोकार्बन) है।
2. यह वर्णहीन और प्रबल अपवर्तक द्रव है। इसका क्वथनांक 80 डिग्री सेंटीग्रेट, ठोस बनने का ताप 5.5 डिग्री सेंटीग्रेट और घनत्व 0 डिग्री सेंटीग्रेट पर 0.899 है।
3. इसकी गंध ऐरोमैटिक और स्वाद विशिष्ट होता है।
4. जल में यह बड़ा अल्प विलेय, सुषव में अधिक विलेय तथा ईथर और कार्बन डाइसल्फाइड में सब अनुपातों में विलेय है।
5. विलायक के रूप में रबड़, गोंद, वसा, गंधक और रेज़िन के घुलाने में प्रचुरता से प्रयुक्त होता है।
6. जलते समय इससे धुंआँ निकलता है। रसायनत: यह सक्रिय होता है।
★★ संरचना:
बेंजीन में छ: कार्बन परमाणु और छ: हाइड्रोजन परमाणु होते हैं, अत: इसका अणुसूत्र C6H6 है। केकूले ने 1865 ई. में पहले सिद्ध किया कि इसके छ: कार्बन परमाणु एक वलय के रूप में विद्यमान हैं, जिसको धूपेन्य वलय की संज्ञा दी गई। प्रत्येक कार्बन परमाणु एक बंध से हाइड्रोजन से और दो से अन्य निकटवर्ती कार्बन परमाणुओं से संबद्ध रहता है। कार्बन का चौथा बंध युग्म बंध के रूप में उपस्थित माना गया है। ऐसे संरचना सूत्र से बेंजीन के गुणों की व्याख्या बड़ी सरलता से हो जाती है।
★★★ ऐरोमेटिक कार्बोक्सिलिक अम्ल है। इसका सूत्र C6H5 COOH है। इस अम्ल का गलनांक 122.4 डिग्री सेंटीग्रेट और क्वथनांक 250 डिग्री सेंटीग्रेट होता है। बेंज़ोइक अम्ल हल्के, रंगहीन, चमकदार और क्रिस्टलीय चूर्ण के रूप में प्राप्य है। यह जल में अल्प विलेय, किंतु ईथर और ऐल्कोहॉल में अपेक्षाकृत सुगमता से विलेय हो जाता है।
1. यह अम्ल प्रकृति में स्वतंत्र रूप से या संयुक्त अवस्था में लोबान में और कई प्रकार के बाल्समों में पाया जाता है।
2. औद्योगिक स्तर पर व्यापारिक बेंज़ोइक अम्ल का निर्माण अनेक विधियों से किया जाता है, जैसे-
3. बेंजों-ट्राइक्लोराइड (C6H5. CCI3) के जल विश्लेषण से, जिसमें लोह चूर्ण और चूना उत्प्रेरक के रूप में प्रयुक्त होते हैं।
4. भाप और जिंक ऑक्साइड की उपस्थिति में थैलिक ऐनहाइड्राइड से थैलिक अम्ल बनाकर, उसका डीकार्बोक्सिलेशन से।
5. मैंगनीज़ डाइऑक्साइड एवं सल्फ्यूरिक अम्ल से, या कोबाल्ट उत्प्रेरक के समक्ष हवा से, टॉलूईन के ऑक्सीकरण से।
6. बेंज़ोइक अम्ल की रासायनिक सक्रियता अपेक्षाकृत कम होने के कारण रासायनिक संश्लेषण में उसकी उपादेयता सीमित है।
7. सल्फ्यूरिक और नाइट्रिक अम्लों के मिश्रण द्वारा सीधा नाइट्रेशन करने से साधारण ताप पर मेटा-नाइट्रो-बेंज़ोइक अम्ल और ऊँचे ताप पर 3, 5- डाइनाइट्रोबेंज़ोइक अम्ल बनते हैं।
8. यह अम्ल तंबाकू के शोधन के लिए और छींट छपाई में प्रयुक्त होता है। इसके अनेक संजात, जैसे- सोडियम बेंज़ोएट, एस्टर और बेंज़ोइल क्लोराइड महत्व के और उपयोगी पदार्थ हैं।
1. यह अम्ल प्रकृति में स्वतंत्र रूप से या संयुक्त अवस्था में लोबान में और कई प्रकार के बाल्समों में पाया जाता है।
2. औद्योगिक स्तर पर व्यापारिक बेंज़ोइक अम्ल का निर्माण अनेक विधियों से किया जाता है, जैसे-
3. बेंजों-ट्राइक्लोराइड (C6H5. CCI3) के जल विश्लेषण से, जिसमें लोह चूर्ण और चूना उत्प्रेरक के रूप में प्रयुक्त होते हैं।
4. भाप और जिंक ऑक्साइड की उपस्थिति में थैलिक ऐनहाइड्राइड से थैलिक अम्ल बनाकर, उसका डीकार्बोक्सिलेशन से।
5. मैंगनीज़ डाइऑक्साइड एवं सल्फ्यूरिक अम्ल से, या कोबाल्ट उत्प्रेरक के समक्ष हवा से, टॉलूईन के ऑक्सीकरण से।
6. बेंज़ोइक अम्ल की रासायनिक सक्रियता अपेक्षाकृत कम होने के कारण रासायनिक संश्लेषण में उसकी उपादेयता सीमित है।
7. सल्फ्यूरिक और नाइट्रिक अम्लों के मिश्रण द्वारा सीधा नाइट्रेशन करने से साधारण ताप पर मेटा-नाइट्रो-बेंज़ोइक अम्ल और ऊँचे ताप पर 3, 5- डाइनाइट्रोबेंज़ोइक अम्ल बनते हैं।
8. यह अम्ल तंबाकू के शोधन के लिए और छींट छपाई में प्रयुक्त होता है। इसके अनेक संजात, जैसे- सोडियम बेंज़ोएट, एस्टर और बेंज़ोइल क्लोराइड महत्व के और उपयोगी पदार्थ हैं।
★★★ हाइड्रोजन व कार्बन से बने यौगिक होते हैं। कार्बन परमाणुओं में स्वयं से बंधन करने का विलक्षण गुण पाया जाता है, जिसे 'शृँखलन'[1] कहते हैं। इस गुण के कारण यह असंख्य हाइड्रोकॉर्बन के निर्माण में सक्षम है।
1. इसका मुख्य स्रोत जीवधारी व पेट्रोलियम हैं।
2. हाइड्रोकार्बन प्रत्यक्ष रूप से कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन, न्यूक्लिक अम्ल इत्यादि के रूप में जीवन के आधार हैं।
3. अधिकतर औषधियाँ, कृषि रसायन, ईंधन तथा प्लास्टिक भी हाइड्रोजन व कार्बन से बने यौगिक होते हैं।[2]
4. हाइड्रोकार्बन को दो भागों में विभाजित किया जा सकता है-
i. संतृप्त हाइड्रोकार्बन :
ऐसे हाइड्रोकार्बन, जिनके परमाणु परस्पर केवल एक आबंध[3] द्वारा जुड़े होते हैं, जैसे- ब्यूटेन (CH3-CH2-CH2-CH3)
ii. असंतृप्त हाइड्रोकार्बन :
ऐसे हाइड्रोकार्बन, जो बहु-आबंध[4] से जुड़े होते हैं, जैसे- बेंजीन (C6H6)
1. इसका मुख्य स्रोत जीवधारी व पेट्रोलियम हैं।
2. हाइड्रोकार्बन प्रत्यक्ष रूप से कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन, न्यूक्लिक अम्ल इत्यादि के रूप में जीवन के आधार हैं।
3. अधिकतर औषधियाँ, कृषि रसायन, ईंधन तथा प्लास्टिक भी हाइड्रोजन व कार्बन से बने यौगिक होते हैं।[2]
4. हाइड्रोकार्बन को दो भागों में विभाजित किया जा सकता है-
i. संतृप्त हाइड्रोकार्बन :
ऐसे हाइड्रोकार्बन, जिनके परमाणु परस्पर केवल एक आबंध[3] द्वारा जुड़े होते हैं, जैसे- ब्यूटेन (CH3-CH2-CH2-CH3)
ii. असंतृप्त हाइड्रोकार्बन :
ऐसे हाइड्रोकार्बन, जो बहु-आबंध[4] से जुड़े होते हैं, जैसे- बेंजीन (C6H6)
★★★ एक तरल खनिज है, जिसका मुख्य उपयोग दीपक, स्टोव, लालटेन और ट्रैक्टरों में जलाने में होता है। औषधियों में विलायक के रूप में, उद्योग धंधों में, प्राकृतिक गैस से पैट्रोल निकालने में तथा अवशोषक तेल के रूप में भी इसका व्यवहार होता है।
1. केरोसीन कच्चे पेट्रोलियम का वह अंश है, जो 175-275 सें. ताप पर आसुत होता है। इसका विशिष्ट गुरुत्व 0.775 से लेकर 0.850 तक होता है।
2. इसमें पैराफिन, नैफ्थीन और सौरभिक हाइड्रोकार्बन रहता है।
3. इसका भौतिक और रासायनिक गुण उपस्थित हाइड्रोकार्बनों के अनुपात, संघटन और क्वथनांक पर निर्भर करता है।
4. कच्चे केरोसीन में सौरभिक हाइड्रोकार्बन (40 प्रतिशत तक) ऑक्सीजन, गंधक और नाइट्रोजन के कुछ यौगिक रहते हैं। ऐसे तेल की सफाई पहले सल्फ्यूरिक अम्ल के उपचार से, फिर सोडा विलयन और जल से धोकर की जाती है।
1. केरोसीन कच्चे पेट्रोलियम का वह अंश है, जो 175-275 सें. ताप पर आसुत होता है। इसका विशिष्ट गुरुत्व 0.775 से लेकर 0.850 तक होता है।
2. इसमें पैराफिन, नैफ्थीन और सौरभिक हाइड्रोकार्बन रहता है।
3. इसका भौतिक और रासायनिक गुण उपस्थित हाइड्रोकार्बनों के अनुपात, संघटन और क्वथनांक पर निर्भर करता है।
4. कच्चे केरोसीन में सौरभिक हाइड्रोकार्बन (40 प्रतिशत तक) ऑक्सीजन, गंधक और नाइट्रोजन के कुछ यौगिक रहते हैं। ऐसे तेल की सफाई पहले सल्फ्यूरिक अम्ल के उपचार से, फिर सोडा विलयन और जल से धोकर की जाती है।
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