Saturday 7 March 2020

Chemistry ( रसायन विज्ञान ) notes for class 11 / 12 / competitive exam like JEE main , JEE Advance , BITSAT ,MHTCET , EAMCET , KCET , UPTU in hindi Part-3



Extremely Useful for the students studying in Class 11 and 12 also for those who preparing for the competitive exam like JEE main , JEE Advance , BITSAT ,MHTCET , EAMCET , KCET , UPTU (UPSEE), WBJEE , VITEEE , CBSE PMT , AIIMS , AFMC ,CPMT and all other Engineering and Medical Entrance Exam


कार्बनिक रसायन






















अपररूपता

 

★★★ जब एक ही तत्त्व भिन्न-भिन्न रूपों में पाया जाता है तो ये रूप उस तत्त्व के अपररूप कहलाते हैं तथा इस गुण को अपररूपता कहते हैं। हीरा व ग्रेफाइट कार्बन के दो अपररूप हैं। अपररूपों के भौतिक व रासायनिक गुण एक दूसरे से भिन्न होते हैं। हीरा बहुत ही कठोर व कुचालक है जबकि ग्रेफाइट मुलायम व सुचालक पदार्थ हैं।
अमोनिया

 

1. अमोनिया गैस सर्वप्रथम 1771 में प्रीस्टले ने नौसादर (अमोनिया क्लोराइड) को चूने के सार्थ गर्म करके प्राप्त की थी।
2. यह इसके विभिन्न लवणों के रूप में जीव-जंतुओं व पेड़-पौधों के सड़ने व ज्वालामुखी पर्वतों से निकली राख में पायी जाती है।
3. औद्योगिक रूप से अमोनिया का निर्माण हैबर प्रक्रिया के द्वारा किया जाता है।
4. यह एक तीक्ष्ण गंध वाली गैस है, व वायु से कुछ हल्की होती है।
5. अमोनिया का उपयोग बर्फ़ बनाने के कारखानों, धुलायी तथा उर्वरक के रूप में किया जाता है।
6. अमोनिया एक क्षारीय गैस है तथा जल में घुलकर अमोनिया हाइड्राक्साइड बनाती है।
7. कृत्रिम रेशे व आँसू गैस बनाने में भी अमोनिया गैस का प्रयोग किया जाता है।
अम्लीय ऑक्साइड

 

★★★ "अधातुओं के ऑक्साइड जो जल के साथ अभिक्रिया करके अम्ल बनाते हैं, उसे अम्लीय ऑक्साइड कहते हैं।

★★ उदहारण:
(CO2), (SO2) (P2O5), (SO3), (NO2) आदि।
अम्लीय लवण

 

★★★ "जब प्रबल अम्ल की दुर्बल क्षारक से क्रिया होती है तो परिणामस्वरूप प्राप्त लवण में अम्लीयता का प्रभाव होता है। ऐसे लवण अम्लीय लवण कहलाते हैं। उदाहरण के लिए, (NH4Cl) एक अम्लीय लवण है। यह हाइड्रोक्लोरिक अम्ल (प्रबल अम्ल) और अमोनियम हाइड्रोक्साइड (दुर्बल क्षारक) की उदासीनीकरण क्रिया से बनता है।

(HCl) + (NH4OH) → (NH4Cl) + (H2O)

अमोनियम क्लोराइड (NH4Cl) का विलयन नीले लिटमस पेपर को लाल कर देता है। अतः यह एक अम्लीय लवण के अन्य उदहारण:-

1. ऐलुमिनियम क्लोराइड (AlCl3)
2. सोडियम बाइकार्बोनेट (NaHCO3)
कीटनाशक

 

★★★ उन रासायनिक या जैविक पदार्थों का मिश्रण होता है, जिनका उपयोग कीड़े मकोड़ों से होने वाले दुष्प्रभावों को कम करने, उन्हें मारने या उनसे बचाने के लिए किया जाता है। इसका प्रयोग कृषि के क्षेत्र में पेड़-पौधों को बचाने के लिए बहुतायत से किया जाता है। कई प्रकार के कीड़े आदि पूरी फ़सल को बर्बाद कर देते हैं। इनके नियंत्रण या फिर इन्हें समाप्त करने के लिए कीटनाशकों का प्रयोग किया जाता है।
कीटोन

 

★★★ कीटोन वे कार्बनिक यौगिक हैं, जिनमें कार्बनिक समूह होता है और जिनका सामान्य सूत्र R-CO-R होता है। यदि R तथा R एक ही मूलक हो तो कीटोन को 'सरल कीटोन' और यदि R तथा R विभिन्नमूलक हों तो उसे 'मिश्रित कीटोन' कहते हैं। वे कीटोन जिनमें दो कार्बनिल समूह होते हैं 'द्वि-कीटोन' कहलाते हैं। कुछ चक्रीय कीटोन, जिनमें, कार्बन की संख्या अधिक होती हैं, जैसे- सिवेटोन या मसकोन, सुगंधित पदार्थ बनाने के काम आते हैं।
अल्कोहल

 

★★★ कार्बनिक यौगिक से एक या एक से अधिक हाइड्रोजन परमाणु का प्रतिस्थापन एक या एक से अधिक -O-H समूह द्वारा कर दिया जाए तो बनने वाले यौगिक अल्कोहल कहलाते है । यौगिक मे उपस्थित -OH समूह की संख्या के आधार पर इसे चार भागो मे बाँटा गया है । 
1. मोनो हाइड्रिक अल्कोहल 
2. डाइ हाइड्रिक अल्कोहल 
3. ट्राई हाइड्रिक अल्कोहल 
4. पॉली हाइड्रिक अल्कोहल

i. अल्कोहल वे कार्बनिक पदार्थ हैं जिनमें एक या एक से अधिक हाइड्रॉक्सिल समूह (OH) रहते हैं।
ii. हाइड्रॉक्सिल समूह बेंज़ीन कार्बन से संयुक्त नहीं रहना चाहिए।
iii. यदि बंज़ीन कार्बन के साथ हाइड्राक्सिल समूह संयुक्त रहता है तो ऐसे कार्बनिक पदार्थो को फ़ीनोल कहते हैं।
iv. अल्कोहल की रासायनिक अभिक्रियाएँ विशेष प्रकार की होती हैं और उनके लाक्षणिक गुण किसी विशेष अल्कोहल, जैसे मेथिल अल्कोहल, एथिल अल्कोहल, ग्लाइकोल, ग्लीसिरोल आदि के लक्षणों से प्रकट होते हैं।
v. संगठन की दृष्टि से अल्कोहल तीन प्रकार के होते हैं, प्राथमिक, द्वितीयक और तृतीय
आंशिक आसवन

 

★★★ रसायन विज्ञान में आंशिक आसवन विधि से वैसे मिश्रित द्रवों को अलग करते हैं, जिसमें क्वथनांकों में अन्तर बहुत कम होता है। खनिज तेल या कच्चे तेल में से शुद्ध डीज़ल, पेट्रोल, मिट्टी तेल, कोलतार आदि इसी विधि द्वारा अलग किया जाता है।
आसवन विधि

 

★★★ द्रव को गर्म करके वाष्प बनाना और फिर उस वाष्प को ठंडा करके द्रव के रूप में लाने की विधि को आसवन कहा जाता है।
आसवन विधि द्वारा मुख्यतः द्रवों के मिश्रण को पृथक्‌ किया जाता है। रसायन विज्ञान में जब दो द्रवों के क्वथनांकों में अन्तर अधिक होता है, तो उसके मिश्रण को आसवन विधि से पृथक करते हैं। आवसन विधि में द्रव को वाष्प में परिणत कर किसी दूसरे स्थान में भेजा जाता है, जहाँ उसे ठंडा कर पुनः द्रव अवस्था में परिवर्तित कर लिया जाता है। आसवन का प्रथम भाग वाष्पीकरण एवं दूसरा भाग संघनन कहलाता है।

★★★ प्रकार:
★★ आसवन विधि को तीन भागों में बांटा गया है:

1. प्रभाजित आसवन
2. निर्वात आसवन
3. प्रभंजक आसवन
उदासीन ऑक्साइड

 

★★★ पानी भी हाइड्रोजन का एक ऑक्साइड है। जब अधात्विक हाइड्रोजन, ऑक्सीजन के साथ जलती है तो पानी बनता है। लाल अथवा नीले लिटमस पेपर पर जल की कोई क्रिया नहीं होती है। अतः जन न ही अम्लीय है और न ही क्षारीय। अतः जल उदासीन ऑक्साइड है। कुछ अन्य ऑक्साइड जैसे कार्बन मोनो-ऑक्साइड (CO), नाइट्रिक ऑक्साइड (NO) आदि भी उदासीन ऑक्साइड होते हैं।
उदासीन लवण

 

★★★ "प्रबल अम्ल और प्रबल क्षारक की उदासीनीकरण क्रिया से बनने वाला लवण उदासीन होता है। उदाहरण के लिए, एक प्रबल यानि खतरनाक अम्ल लेते हैं जो अपने की समान प्रबल यानि खतरनाक क्षारक के साथ क्रिया करके खतरों से मुक्त लवण और पानी बनाते हैं।
(HCl) + (NaOH) → (NaCl) + (H2O)

यहाँ सोडियम क्लोराइड (NaCl), जो कि उदासीन लवण है, बनता है जब कि प्रबल अम्ल हाइड्रोक्लोरिक ऐसिड (HCl) की प्रबल क्षार सोडियम हाइड्रोक्साइड (NaOH) से उदासीनीकरण क्रिया होती है।

सोडियम क्लोराइड का विलयन लाल अथवा नीले लिटमस पेपर का रंग परिवर्तित नहीं करता है। यह उदासीन लवण है। कुछ अन्य उदासीन लवण हैं।

1. सोडियम सल्फेट (Na2SO4)
2. कैल्सियम कार्बोनेट (CaCO3)
3. सोडियम कार्बोनेट (Na2CO3)"
उर्वरक

 

★★★ ये ऐसे रसायनिक पदार्थ होते हैं, जो पेड-पौधों की वृद्धि में बहुत ही सहायक होते हैं। प्राय: पौधों को उर्वरक दो प्रकार से दिये जा
★★ सकते हैं:
(1) ज़मीन में डालकर, जिससे ये तत्व पौधों की जड़ों द्वारा अवशोषित कर लिए जाते हैं।
(2) पत्तियों पर इनका छिड़काव करने से पत्तियों द्वारा ये अवशोषित कर लिये जाते हैं। उर्वरक पौधों के लिये आवश्यक तत्वों की पूर्ति करते हैं।

★★ उर्वरकों के प्रकार:
कृषि में फ़सलों के अधिक उत्पादन व पौधों की वृद्धि के लिए, नाइट्रोजन, फॉस्फोरस, पोटेशियम, कैल्शियम आदि तत्वों की आवश्यकता होती है। पौधे इन तत्वों को भूमि से ग्रहण करते हैं। लेकिन धीरे-धीरे भूमि में इन तत्वों की कमी हो जाती है। इस कमी को पूरा करने के लिए कृत्रिम रूप से बनाये गए तत्वों के यौगिक भूमि में मिलाए जाते हैं। कृत्रिम रूप से बनाये गए इन यौगिकों को ही उर्वरक कहते हैं। यदि तत्वों के इन यौगिकों को भूमि में न मिलाया जाए, तो भूमि की उत्पादकता कम हो जायेगी। उर्वरक कई प्रकार के होते हैं। इनका विवरण इस प्रकार से है-

★★ नाइट्रोजन के उर्वरक:

इन उर्वरकों में मुख्यत: नाइट्रोजन तत्व पाया जाता है। कुछ प्रमुख नाइट्रोजन यौगिक इस प्रकार से हैं-
1. यूरिया - यूरिया में 46% नाइट्रोजन पाई जाती है।
2. अमोनियम सल्फेट - इसमें नाइट्रोजन अमोनिया के रूप में उपस्थित रहती है तथा इसमें अमोनिया की मात्रा लगभग 25% पायी जाती है। यह आलू की फ़सल के लिए अच्छा उर्वरक है। इसका प्रयोग चूना रहित भूमि में नहीं किया जाता है।
3. कैल्सियम नाइटेट - यह नाइट्रोजन का सबसे अच्छा उर्वरक है। बाज़ार में यह ‘नार्वेजियन साल्टपीटर’ के नाम से जाना जाता है।
4. कैल्शियम नायनाइड - इस उर्वरक का बुआई करने से पहले भूमि में छिड़काव किया जाता है। पौधों की वृद्धि के समय इस उर्वरक का प्रयोग पौधों के लिए लाभप्रद नहीं होता है।

★★ पोटेशियम के उर्वरक:
पोटेशियम क्लोराइड, पोटेशियम नाइट्रेट, पोटेशियम सल्फ़ेट आदि पोटेशियम के कुछ प्रमुख उर्वरक हैं।

★★ फॉस्फोरस के उर्वरक:
सुपर फॉस्फेट ऑफ़ लाइम, फॉस्फेटी धातुमल, फॉस्फोरस के प्रमुख उर्वरक हैं। सुपर फॉस्फोरस को हड्डियों को पीसकर बनाया जाता है।

★★ मिश्रित उर्वरक:
इस प्रकार के उर्वरकों में एक से अधिक तत्व पाये जाते हैं। जैसे-अमोनिया फॉस्फोरस, अमोनियम सुपर फॉस्फोरस आदि।
मंड

 

★★★ "मंड (स्टार्च) एक पॉली सैकेराइड कार्बोहाइड्रेट है। इसका रासायनिक सूत्र C6H10O5 है। ग्लूकोज मोनोसैकेराइड की इकाइयों की एक बड़ी संख्या के आपस में ग्लाइकोसिडिक बंधों द्वारा जुड़ने के कारण मंड का निर्माण होता है।

1. मंड केवल पादपों में पाया जाता है। सभी पादपों के बीजों और फलियों में यह 'अमाइलोज' या 'अमाइलोपेप्सिन' के रूप मे उपस्थित रहता है।
2. इसमें पादप की प्रकृति के अनुसार, आमतौर पर 20 से 25 प्रतिशत अमाइलोज और 75 से 80 प्रतिशत अमाइलोपेप्सिन होता हैं।
3. मंड को आम बोलचाल की भाषा में 'मांड' कहा जाता है। इसका उपयोग जब कपड़ों पर किया जाता है, तब यह 'कलफ' कहलाता है।
4. भोजन में भी मंड का महत्त्वपूर्ण स्थान है। मंड के कुछ अच्छे खाद्य स्रोतों में अनाज, चावल, आलू, मटर और सेम हैं।
5. खाना पकाने में मंड का उपयोग शोरबे को गाढ़ा करने में किया जाता है।
6. मंड एक बेस्वाद और गंध रहित सफ़ेद रंग के बारीक पाउडर के रूप मे उपलब्ध होता है।"
ऊर्ध्वपातन

 

★★★ कुछ पदार्थ गर्म करने पर सीधे ठोस रूप से गैस बन जाते हैं, इसे ऊर्ध्वपातन कहते हैं। जैसे- आयोडिन, कपूर आदि। सामान्यतः ठोस पदार्थों को गर्म करने पर वे द्रव अवस्था में परिवर्तित होता हैं और उसके पश्चात्‌ गैसीय अवस्था में, लेकिन कुछ ठोस पदार्थ ऐसे होते हैं; जिन्हें गर्म किये जाने पर वे द्रव अवस्था में आने के बदले सीधे वाष्ण में परिणत हो जाते हैं और वाष्ण को ठंडा किये जाने पर पुनः ठोस अवस्था में हो जाते हैं।

★★ गर्म करने पर:
ठोस पदार्थ ←→ वाष्ण

★★ ठंडा करने पर:
ऐसे पदार्थों को ऊर्ध्वपातन कहा जाता है व इस प्रकार की क्रिया ऊर्ध्वपातन कहलाती है। रसायन विज्ञान में ऊर्ध्वपातन विधि द्वारा दो ऐसे ठोसों के मिश्रण को अलग करते हैं, जिसमें एक ठोस ऊर्ध्वपातित हो, दूसरा नहीं। ऐसे ठोसों के मिश्रण को गर्म करने पर ऊर्ध्वपातन ठोस सिधे वाष्ण अवस्था में परिवर्तित हो जाता है। इस वाष्ण को अलग ठंडा कर लिया जाता है। इस प्रकार दोनों ठोस पृथक्‌ हो जाते हैं। इस विधि के द्वारा कपूर, नेफ्थलीन, अमोनियम कलोराइड, एंथ्रासीन, बेंज़ोइक अम्ल आदि पदार्थ शुद्ध किये जाते हैं।
ऐसीटोन

 

★★★ ऐसीटोन एक रंगहीन, अभिलाक्षणिक गंधवाला, ज्वलनशील द्रव है जो पानी, ईथर और अल्कोहल में मिश्रय है।

1. ऐसीटोन काष्ठ के भंजक आसवन से प्राप्त पाइरोलिग्नियस अम्ल का घटक है।
2. ऐसीटोन का मुख्य उपयोग विलायक़ के रूप में होता है।
3. ऐसीटोन फ़िल्मों, शक्तिशाली विस्फोटकों, आसंजकों, काँच के समान एक प्लास्टिक और ओषधियों के निर्माण में काम आता है।
4. अति शुद्ध ऐसीटोन का उपयोग इलेक्ट्रानिकी उद्योग में विभिन्न पुर्जो को सुखाने और उन्हें साफ़ करने के लिए होता है।
ऑक्साइड

 

★★★ "किसी तत्व का ऑक्सीजन के संयोग से बनने वाला यौगिक होता है। अधिकांश तत्वों (धातु एवं अधातु) को ऑक्सीजन एवं वायु में जलाकर एक नया यौगिक बनाया जा सकता है, जिसे ऑक्साइड कहते हैं।

1. पानी, हाइड्रोजन का एक ऑक्साइड है।
2. कार्बन का ऑक्साइड, कार्बन डॉइ-ऑक्साइड (CO2) और कार्बन मोनो-ऑक्साइड (CO) हैं।
3. लोहे के पदार्थों पर जमा जंग भी वास्तव में लोहे का ऑक्साइड ही है। लौह पदार्थों में जग लगने की क्रिया वायु में ऑक्सीजन और जलवाष्य की आयरन से क्रिया का परिणाम होता है।
4. कटे हुए सेब की सतह पर भूरे रंग की परत बनना भी आयरन ऑक्साइड की उपस्थिति दर्शाता हैं। वस्तुतः सेब में आयरन यानी लौह तत्त्व पाया जाता है जो वायुमण्डल की ऑक्सीजन से क्रिया करके आयरन ऑक्साइड बनाता है।
कुछ ऑक्साइडों का विलयन नीले लिटमस पेपर को लाल कर देता है। इन विलयनों को अम्ल कहते हैं। कुछ ऐसे ऑक्साइड होते हैं जिनका विलयन इसकी विपरीत प्रतिक्रिया दर्शाता है अर्थात् वह लाल लिटमस पेपर को नीला कर देता है। इन विलयनों को क्षारक कहते हैं।

i. अम्लीय ऑक्साइड
ii. क्षारीय ऑक्साइड
iii. उदासीन ऑक्साइड
कार्बोहाइड्रेट

 

★★★ कार्बन, हाइड्रोजन, ऑक्सीजन के यौगिक होते हैं। सरल कार्बोहाइड्रेट के रूप में शर्कराएँ ग्लूकोज़, फ्रुक्टोज़, लैक्टोज़ आदि प्रमुख हैं। गन्ना, चुकन्दर, खजूर, अंगूर इनके प्रमुख स्रोत हैं। जटिल कार्बोहाइड्रेट के रूप में स्टार्च या मंड प्रमुख भोज्य पदार्थ हैं जो आलू, साबूदाना, चावल, अरवी, मक्का आदि में पर्याप्त मात्रा में पाया जाता है।
ग्लूकोज़

 

★★★ "कार्बोहाइड्रेट का सबसे सरल प्रकार है। यह जल में घुलनशील है। इसका रासायनिक सूत्र C6H12O6 है। ग्लूकोज़ स्वाद में मीठा होता है तथा सजीवों की कोशिकाओं के लिये ऊर्जा का प्रमुख स्रोत है।

1. ग्लूकोज़ काजू, अंगूर व कई प्रकार के फलों में, कई प्रकार की जड़ों, जैसे- चुकन्दर में, तनों में जैसे गन्ने के रूप में सामान्य रूप से संग्रहित भोज्य पदार्थों के रूप में पाया जाता है।
2. यह प्रमुख आहार औषधि है। इससे देह में उष्णता और शक्ति उत्पन्न होती है। मिठाइयों और सुराओं के निर्माण मंस भी इसका प्रयोग किया जाता है।
3. ग्लाइकोजन के रूप में यह यकृत और पेशियों में संचित रहता है।
4. इसका अणुसूत्र C6H12O6 और आकृति सूत्र CH2 OH. CHOH. CHOH. CHOH. CHOH. CHO है।
5. ग्लूकोज़ अंगूर और अंजीर सदृश मीठे फलों, कुछ वनस्पतियों और मधु में पाया जाता है। अल्प मात्रा में यह रक्त और मूत्र[1] सदृश जांतव उत्पादों, लसीका और प्रमस्तिष्क मेरुतरल में भी पाया जाता है।
6. स्टार्च, सेलुलोज, सेलोबायोस और माल्टोज़ सदृश कार्बोहाइड्रेट ग्लूकोज़ से ही बने होते हैं।
7. चीनी और दुग्ध शर्करा जैसी कुछ शर्कराओं में अन्य शर्कराओं के साथ यह संयुक्त पाया जाता है।
8. ग्लूकोज़ ऐल्फा और बीटा रूपों में पाया जाता है। सामान्य ग्लूकोज़ अम्ल दशा में 146.5 डिग्री सेंटीग्रेट पर और जलयोजित रूप में 86 डिग्री सेंटीग्रेट पर पिघलता है।"
क्षारीय ऑक्साइड

★★★ "धात्वीय ऑक्साइड पानी के साथ अभिक्रिया करके जो क्षारक बनाते हैं उन्हें क्षारीय ऑक्साइड कहते हैं।

इस प्रकार सोडियम (Na), ऑक्सीजन के साथ जलकर पहले सोडियम ऑकसाइड बनाता है जो पानी से क्रिया करके क्षारीय सोडियम हाइड्रॉक्साइड बनाता है।
(4Na) (सोडियम) + (O2) (ऑक्सीजन) = (2Na2O) (सोडियम ऑक्साइड)
(Na2O) (सोडियम ऑक्साइड) + (H2O) (जल) = (4NaOH) (सोडियम हाइड्रॉक्साइड)
क्षारीय लवण

 

★★★ "जब प्रबल क्षारक और दुर्बल अम्ल की क्रिया होती है तो परिणामस्वरूप प्राप्त लवण में क्षारीयता पाई जाती है। ऐसे लवण क्षारीय लवण कहलाते हैं। सोडियम ऐसीटेट (CH3COONa) क्षारीय लवण का उदहारण है। यह प्रबल क्षारक सोडियम हाइड्रोक्साइड और दुर्बल अम्ल ऐसीटिक ऐसिड की क्रिया से उत्पन्न होता है।
(NaOH) + (CH3COOH) → (CH3COONa) + (H2O)
सोडियम ऐसीटेट का विलयन लाल लिटमस पेपर को नीले रंग में परिवर्तित कर देता है। अतः यह एक क्षारीय लवण है। क्षारीय लवण के

★★ अन्य उदहारण:

सोडियम कार्बोनेट (Na2CO3)
कैल्सियम हाइड्रोक्सी क्लोराइड (Ca(OH)Cl)
हाइड्रोजनीकरण

 

★★★ हाइड्रोजनीकरण से अभिप्राय है कि केवल असंतृप्त कार्बनिक यौगिकों से हाइड्रोजन की क्रिया द्वारा संतृप्त यौगिकों को प्राप्त करना। जैसे हाइड्रोजनीकरण द्वारा एथिलीन अथवा ऐसेटिलीन से एथेन प्राप्त किया जाता है। हाइड्रोजनीकरण में एथिल ऐल्कोहॉल, ऐसीटिक अम्ल, एथिल ऐसीटेड, संतृप्त हाइड्रोकार्बन जैसे हाइड्रोकार्बनों में नार्मल हेक्सेन डेकालिन और साइक्लोहेक्सेन विलयाकों का प्रयोग अधिकता से होता है।
प्रभाजी आसवन

 

★★★ विभिन्न क्वथनांक वाले मिश्रित द्रवों को भिन्न-भिन्न तापों पर आसुत करके उन्हें पृथक् करने की प्रकिया को प्रभाजी आसवन कहते है।

★★ प्रभाजी आसवन विधि:
प्रभाजी आसवन विधि के द्वारा उन मिश्रित द्रवों का पृथक्कन किया जाता है, जिनके क्वथनाकों में बहुत कम का अंतर होता है। दूसरे शब्दों में द्रवों के क्वथनांक एक-दूसरे के समीप होते हैं। भूगर्भ से निकाले गये खनिज तेल से शुद्ध पेट्रोल, डीज़ल, मिट्टी का तेल आदि इसी विधि द्वारा पृथक किया जाता है। जलीय वायु से विभिन्न गैसें भी इसी विधि द्वारा पृथक्‌ किये जाते हैं।
उत्प्रेरण

 

★★★ जब किसी रासायनिक अभिक्रिया की गति किसी पदार्थ की उपस्थिति मात्र से बढ़ जाती है तो इसे 'उत्प्रेरण' कहते हैं।" जबकि अभिक्रिया की गति बढ़ाने वाले पदार्थ को 'उत्प्रेरक' (catalyst) कहते हैं। औद्योगिक रूप से महत्त्वपूर्ण रसायनों के निर्माण में उत्प्रेरकों की बहुत बड़ी भूमिका है, क्योंकि इनके प्रयोग से अभिक्रिया की गति बढ़ जाती है, जिससे अनेक प्रकार से आर्थिक लाभ होता है और उत्पादन भी अधिक तेज़ी से हो पाता है।

★★★ उत्प्रेरण के प्रकार:
सभी उत्प्रेरित क्रियाओं को दो भागों में विभाजित किया जा सकता है-

1. समावयवी उत्प्रेरित क्रियाएँ (समावयवी उत्प्रेरण)
2. विषमावयवी उत्प्रेरित क्रियाएँ (विषमावयवी उत्प्रेरण)

★★ समावयवी उत्प्रेरण:

इस प्रकार की क्रियाओं में उत्प्रेरक, प्रतिकर्मक तथा प्रतिफल सभी एक ही अवस्था में उपस्थित होते हैं। जैसे- सल्फ़्यूरिक अम्ल बनाने की वेश्म विधि में सल्फर डाइऑक्साइड, भाप तथा ऑक्सीजन के संयोग से सल्फ़्यूरिक अम्ल बनता है तथा नाइट्रिक ऑक्साइड द्वारा यह क्रिया उत्प्रेरित होती है। इस क्रिया में प्रतिकर्मक, उत्प्रेरक तथा प्रतिफल इसी गैसीय अवस्था में रहते हैं।

★★ विषमावयवी उत्प्रेरण:

इस प्रकार की क्रियाओं में उत्प्रेरक, प्रतिकर्मक तथा प्रतिफल विभिन्न अवस्थाओं में उपस्थित रहते हैं। जैसे- अमोनिया बनाने की हाबर-विधि में नाइट्रोजन तथा हाइड्रोजन की संयोग क्रिया को फ़ेरिक ऑक्साइड उत्प्रेरित करता है। सूक्ष्म निकिल की उपस्थिति में वानस्पतिक तेलों का हाइड्रोजनीकरण इस प्रकार की क्रियाओं का एक अन्य उदाहरण है।
विरंजन

 

★★★  विरंजन रंगीन पदार्थों से रंग निकालकर उन्हें श्वेत करने को कहते हैं। इसमें से केवल रंग ही नहीं निकलता, बल्कि प्राकृतिक पदार्थों से अनेक अपद्रव्य भी निकल जाते हैं। अनेक पदार्थों को विरंजित करने की आवश्यकता पड़ती है। ऐसे पदार्थों में रूई, वस्त्र, लिनेन, ऊन, रेशम, कागज लुगदी, मधु, मोम, तेल, चीनी और अनेक अन्य पदार्थ हैं। ऊन और सूती वस्त्र के विरंजन की कला हमें बहुत प्राचीन काल से मालूम है।
प्राचीन मिस्रवासी, यूनानी, रोमवासी तथा फिनिशियावासी विरंजित सामान तैयार करते थे, पर कैसे करते थे, इसका पता हमें नहीं है। प्लिनी ने कुछ पेड़ों और पेड़ों की राखों का उल्लेख किया है। ऐसा मालूम होता है कि यूरोप में डच लोग विरंजन की कला में अधिक विख्यात थे। इंग्लैंड में 14वीं शताब्दी में विरंजन करने के स्थानों का वर्णन मिलता है। 18वीं शताब्दी में इसका प्रचार वस्तुत: व्यापक हो गया था। उस समय वस्त्रों को क्षारीय द्रावों [में कई दिनों तक डूबाकर धोते और घास पर कई सप्ताह सुखाते थे। इसके बाद वस्त्रों को मट्ठे में कई दिन डुबाकर फिर धोकर साफ करते थे।
प्रोटीन

 

★★★ जटिल कार्बनिक यौगिक होते हैं तथा इनका निर्माण अमीनो अम्लों से होता है। जन्तु प्रोटीन माँस, मछली, दूध, अण्डा, पनीर से प्राप्त होती है। वनस्पति प्रोटीन मुख्यतः गेहूँ, मूँगफली, बादाम तथा अन्य सूखे मेवों से प्राप्त होती है।

★★ प्रोटीन की उपयोगिता:
प्रोटीन शरीर का निर्माणकारी प्रमुख पदार्थ होता है। एन्जाइम के रूप में ये विभिन्न जैव रासायनिक क्रियाओं को उत्प्रेरित करता है तथा एण्टीबॉडीज के रूप में शरीर की रोगों से सुरक्षा करती है। आवश्यकतानुसार प्रोटीन के ऑक्सीकरण से ऊर्जा प्राप्त होती है। प्रोटीन न्युक्लियोप्रोटीन के निर्माण में भाग लेती है।
भाप आसवन

 

★★★ रसायन विज्ञान में भाप आसवन विधि से कार्बनिक मिश्रण को शुद्ध किया जाता है, जो जल में अघुलनशील होता है, परन्तु भाप के साथ वाष्पशील होता है। इस विधि द्वारा विशेष रूप से उन पदार्थो का शुद्धीकरण किया जाता है, जो अपने क्वथनांक पर अपघटित हो जाते हैं। कार्बनिक पदार्थों जैसे एसीटोन, ऐल्कोहॉल, एसीटल्डिहाइड आदि का शुद्धिकरण भाप आवसन विधि द्वारा ही किया जाता है।
विसरण

 

★★★ विसरण उस क्रिया को कहते हैं, जिसमें "दो या दो से अधिक पदार्थ स्वतः एक-दूसरे से मिलकर समांग मिश्रण बनाते हैं।" सजीव कोशिकाओं में अमीनो अम्ल के संवहन में विसरण की मुख्य भूमिका होती है। विसरण एक अपरिवर्तनीय क्रिया है, जिसमें पदार्थों के स्वाभाविक बहाव से सांद्रण का अंतर कम होता रहता है। यह क्रिया सभी पदार्थों में होती है।

1. सम्पूर्ण वस्तुएँ ठोस, द्रव तथा गैस, बड़े सूक्ष्म कणों से बनी हुई हैं। सबसे छोटे कणों को अणु कहा जाता है।
2. अणु पदार्थों में सतत गतिशील रहते हैं। इनकी गतियाँ बहुत कुछ ताप पर भी निर्भर करती हैं। भिन्न-भिन्न वस्तुओं को यदि एक साथ रखा जाए, तो इन गतियों के कारण वे परस्पर मिल जाती हैं।
3. ठोसों के अणु एक दूसरे से बहुत निकटता से सटे हुए रहते हैं। द्रवों के अणु ठोसों के अणुओं की अपेक्षा कम सटे हुए रहते हैं। गैसों के अणु तो एक दूसरे से पर्याप्त दूरी पर रहते हैं, यही कारण है कि गैसें बड़ी शीघ्रता से एक-दूसरे में मिल जाती हैं।
4. द्रवों के अणु उतनी शीघ्रता से नहीं मिल पाते और ठोसों के अणु तो परस्पर और देर से मिलते हैं। इस प्रकार पदार्थों के अणुओं के परस्पर मिल जाने को 'विसरण' कहा जाता है।
रवाकरण

 

★★★ किसी पदार्थ को रासायनिक अभिक्रिया या भौतिक उपचार से रवादार ठोस बनाने की क्रिया को रवाकरण कहते है।
ऑक्सीकरण

 

★★★ वह प्रक्रिया है, जिसमें पदार्थ ऑक्सीजन से मिल जाता है अथवा उसकी हाइड्रोजन निकल जाती है।

1. दूसरे शब्दों में यह भी कह सकते हैं कि ऑक्सीकरण वह प्रक्रम है, जिसमें पदार्थ के इलेक्ट्रॉन कम हो जाते हैं।
2. ऑक्सीकारक पदार्थ वे पदार्थ हैं, जो दूसरे पदार्थों को ऑक्सीकृत कर देते हैं, जैसे- पोटैशियम परमैंगनेट, नाइट्रिक अम्ल
अपचयन

 

★★★ वह प्रक्रम है, जिसमें ऑक्सीजन का निष्कासन और हाइड्रोजन का संयोग होता है।

1. आधुनिक परिभाषा के अनुसार 'अपचयन' वह प्रक्रिया है, जिसमें पदार्थ के इलेक्ट्रॉन अधिक हो जाते हैं।
2. अपचायक वे पदार्थ हैं, जो दूसरे पदार्थों का अपचयन करते हैं तथा वे स्वयं ऑक्सीकृत हो जाते हैं, जैसे- हाइड्रोजन सल्फाइड, हाइड्रोजन, कार्बन आदि |
वसा

 

★★★ वसाएँ जटिल कार्बनिक अम्लों, वसीय अम्लों द्वारा निर्मित यौगिक होते हैं तथा शाकाहारी तथा माँसाहारी दोनों प्रकार के भोजन से प्राप्त होती है। वनस्पति से यह नारियल, बादाम, मूँगफली, सरसों एवं अन्य तिलहन से तथा पशुओं से यह मक्खन, पनीर, दूध तथा घी से प्राप्त होती है।

★★ वसा की उपयोगिता:
शरीर में भोज्य पदार्थ वसा के रूप में संचित रहते हैं। वसा शरीर में ताप नियमन, कोशिका निर्माण में भाग लेती है। कार्बोहाइड्रेट की कमी की स्थिति में वसा से ऊर्जा प्राप्त होती है।

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